
शैफालिका अनकहा सफ़र – 50
सभी घरों में फिर से मंगनी की तैयारी शुरू हो गई| मोहित भी जागता तो फोन से ही सारी व्यवस्था करने में लग जाता| सारी रात कार्ड में नाम लिखने में लगा रहा तो सुबह होते उसकी आंख लग गई| समर और जय के जाने के बाद अब इरशाद उसके पास रुका था| वह उसके पास आता हुआ देखता है कि सीने में कार्ड और कलम रखे रखे ही मोहित सो गया था| वह धीरे से उससे कार्ड और कलम हटाता उसे सहूलियत से लेटाता हुआ कार्ड टेबल में रखता हुआ जाने लगता है तो सहसा उसकी नज़र उस कार्ड पर जमी रह जाती है|
वह कार्ड के नाम की जगह पेन से बनाई गई आँखों को देखता रह गया…उन एक जोड़ी नीली आँखों की रेखाएं इतनी गहन और स्पष्ट थी मानों अभी पलक झपका देगी….किसी प्रेमी दिल की दीवानगी थी वहां…उनकी कोरों में टिकी बूंद में मानों समस्त संसार समाया लग रहा था….वे ऑंखें कोई सवाल थी या वक्त से गुहार ये सोचकर इरशाद मोहित की ओर आद्र मन से देखता रह गया…..कि तभी चौंककर मोहित जाग जाता है….इरशाद तुरंत उसके पास आता उसे संभालता है…वह लेटा लेटा ही यूँ गहरी गहरी सांसे ले रहा था मानों मीलों दूर से भाग कर आया हो…..
“क्या हुआ मोहित !!!” वह उसकी बेचैन नज़रों को देखता रहा जो कुछ तलाशती अब इधर उधर भटक रही थी|
“क्या ढूंढ रहे हो ?”
इरशाद को उसकी बेचैनी देख समझते देर नहीं लगी कि उसकी तलाश के दायरे में बस वही नीली ऑंखें थी, इरशाद वह कार्ड उसकी तरफ धीरे से बढ़ा देता है, ऐसा करते वह देखता रह जाता है कि मोहित कितने करीने से उसे संभालकर फिर अपने सीने में रख लेता है|
“मोहित !!”
इरशाद कुछ और कहना चाहता था पर शब्द जैसे हलक तक आते चुक जाते और वह बस उसकी ओर देखता रह जाता इसके विपरीत उन आँखों को अपनी पनाह में कर वह सुकून से अब कह रहा था –
“मैंने कार्ड में सारे नाम लिख दिए है – तुम लोगों के कहेअनुसार सीमित लोग ही बुलाए है – सोचता हूँ गाँव से भाई जी को अभी नही बुलाता – आएँगे तो मेरी हालत देख सब परेशान हो उठेंगे फिर ताई जी, दार जी खुद को यहाँ आने से नही रोक पाएँगे – यार ठीक कर रहा हूँ न मैं – अभी सर्दी बहुत है – मैं उन सबको परेशान नही करना चाहता और फिर शैफाली के बिना परजाई से क्या कहूँगा मैं !!”
“जैसा तुम चाहो |” वह सहमति में मोहित का हाथ थाम लेता है |
“बस बाँटने का काम तुम लोगों का है – इरशाद |”
कहते कहते वह इरशाद की ओर कुछ ख़ास कहने की तरह देखता हुआ कहता है – “एक कार्ड पवन तक भी पहुंचा देना – भावना जरुर मुझसे खफा होगी पर मैं उससे मिलकर उसे बताऊंगा कि जो गलती हो गई मुझसे उसे सुधारने का मौका दे दे बस लेकिन क्या वो भरोसा करेगी मुझपर |”
बेख्याली में वाचाल होते मोहित के शब्दों के पीछे की बेचैनी को महसूसते इरशाद के पास कोई शब्द नही बचे, वह सपाट भाव से बस उसकी ओर देखता रह गया|
आज मोहित के कॉलेज के स्टाफ से कुछ लोग आए थे, साथ में कुसुमलता तो जैसे सारा श्रृंगार ही ओढ़कर आई थी और छुईमुई सी बैठी मोहित की ओर प्यारभरी नज़रों से देख रही थी पर उसकी ओर बिना ध्यान दिए हुए मोहित कह रहा था –
“मदन – मुझे एक लम्बी छुट्टी चाहिए |”
“हाँ हाँ सर वो तो आपका मेडिकल तो ऑफिस में आ गया |” वह जल्दी से अपनी बात कहता है|
“दरअसल मुझे उसके बाद भी छुट्टी चाहिए – मुझे लन्दन जाना है और पता नहीं कितना समय लग जाए आने में|”
मोहित के ये कहते उसी कमरे में उससे कुछ दूर बैठे इरशाद की नज़र एकदम से उसकी तरफ मुड़ गई|
“बहुत जरुरी है समझो मेरे जीवन मरण का प्रश्न है|” दिलशाद नज़रों से अपनी बात कहता जा रहा था|
“क्या कहते है सर – ऐसा है क्या ?”
“अपनी दुल्हन को लिवाने जाना है – रूठ गई है मुझसे|” जिस ह्या से मोहित ने अपनी बात कही सब पर वह बात अलग अलग गुजरी|
“सर जी हमे तो आप बताए नही |”
मोहित धीरे से मुस्कराता हुआ अपनी तकिया के नीचे से तस्वीर निकालकर उसे अब उनके बीच में रख देता है| अब सबकी नज़रे उस तस्वीर पर जम गई थी|
मदन तुरंत चिहुँकते हुए बोला – “अच्छा सर जी ये तो वही है न – हम तो पहले से ही ताड़ लिए थे कि कुछ तो है पर सर जी आप भी छुपे रुस्तम निकले पर अब चिंता मत करिए आप आराम से जाइए और भाभी जी को मना कर लाईए – यहाँ हम प्रिंसपल साहब को सब समझा देंगे |”
वह खींसे निपोरे अभी भी उस तस्वीर को देख रहा था वही कुसुमलता के चेहरे के भाव बदल चुके थे| उसकी नज़रे भी जैसे वही तस्वीर पर जमी रह गई| वह देखती रह गई उस तस्वीर को ताज के सामने एक दूसरे के विपरीत बैठे मोहित और शैफाली की एक दूसरे की ओर टिकी नज़रो को, उस पल मानों कायनात थम गई होगी…उनकी एक दूसरे की आँखों में समाए प्रेम का ताज इतना विस्तार होता दिख रहा था मानों पीछे का ताज उससे फीका हो गया….ये दृश्य और बहुत देर कुसुमलता की ऑंखें नही देख पाई और उसके मुंह का स्वाद बिगड़ने जैसा उसका चेहरा भी बिगड़ गया जिससे परेशान होती हुई वह कह उठी –
“ऐसा है मोहित सर – मुझे न बहुत जरुरी वाला काम याद आ गया – अब मैं चलती हूँ|” झट से अपनी बात कहती वह तुरंत वहां से निकल गई जबकि मोहित की याद फिर ताज के गलियारे में कही खो सी गई थी|
पुराने आवरण को बदलते नए कलेवर में नये साल के स्वागत के साथ आखिर वो दिन भी आ गया जिसका हर दिल को इंतजार था लेकिन वो दिन आया भी तो इतने घावों के साथ कि हर होंठ पर खुलकर हँसी भी नही ठहर पा रही थी| गेस्टहाउस के उस सजावटी हॉल के स्टेज पर वे तीनों जोड़े एक साथ मौजूद थे पर सबके दिलों में शैफाली की नामौजूदगी का असर साफ़ नज़र आ रहा था| वही उन्हें तबियत से निहारते हुए मोहित अभी भी अपने प्लास्टर के साथ आरामदायक स्थिति में बैठा था, उसका हाथ थामे समर के पिता उसके पास ही बैठे थे लेकिन उस पल उनके पास भी दिलासे के कोई शब्द नही थे, बस वक़्त पर भरोसा और ढेर दुआ थी दिल में|
जो मोहित और शैफाली के बारे में नहीं जानते थे उनके लिए ये बेरौनक लम्हा गले नही उतर रहा था, कहीं कोई हँसी ठिठोली नही बल्कि हँसते मुस्कराते दोस्तों के बीच खामोशी देख वे हैरान से थे|
सभी की उपस्थिति में उँगलियों से बंधन होता उन सबकी आँखों से होता हुआ मन के पोर पोर में समा गया| वे हाथ एक दूसरें से सदा के लिए बंधकर खिल उठे|
सगाई में मेहमानों के बीच जब भावना और पवन मोहित को नहीं दिखे तो अगले दिन वह कमरे में मौजूद इरशाद को पुकारता हुआ पूछ बैठा – “इरशाद भावना और पवन क्यों नही आए – तुमने उन्हें कार्ड दिया तो था न !!”
मोहित का प्रश्न सुन इरशाद उस पल सकपका गया जिससे उसके शब्द लड़खड़ा गए – “आं – हाँ – हाँ दिया तो था |”
“तो आए क्यों नही – माना मुझसे नाराजगी है पर तुम लोगों के लिए तो आते |” मोहित संशय भरी नज़र से इरशाद की ओर देखता रहा और इरशाद उससे नज़र चुराता इधर उधर देखते हुए कहता है – “पता नही शायद कुछ और कमिटमेंट रहा होगा – अच्छा एक मिनट मैं आता हूँ|” उसके और सवालों से बचता इरशाद जाने लगा तो मोहित उसे संदेह भरी नज़र से देखता रह गया|
यही सवाल उसने मानसी के आने पर भी किया पर किसी से समुचित जवाब न मिलने पर उसमें एक खीज सी भर गई जिससे वह कह उठा – “कहीं कुछ ऐसा है क्या जो तुम लोग मुझसे छुपा रहे हो !!”
उन सबके निरुत्तरता से उसमे अब खुद को उसी स्थिति में रखे रहना भारी गुजने लगा| अब एक कमरे तक सीमित दायरा उसके मन को सालने लगा इसलिए जिद्द करके उसने तीस दिन के अन्दर ही प्लास्टर कटवाने की जिद्द लगा दी, इस वादे को मानने के साथ कि वह अभी ज्यादा नही चलेगा पर इसके विपरीत मोहित सबकी अनुपस्थिति में छड़ी की सहायता से चलने की भरसक कोशिश करने लगा|
अपनी नीरवता में अब बस खुद को फिर से चलने लायक बनाने के अलावा मानव को पढ़ाना ही शामिल था| ऐसे ही किसी पल टहलते टहलते मोहित मानव को लिखने को कुछ दे कर छड़ी की सहायता से कमरे से बाहर निकल गया|
दोस्तों की अनुपस्थिति में मोहित खुद में हौसला भरता हर पल खुद को चलने लायक बनाने का भसक प्रयास करता हर कमरे से अन्दर बाहर करता रहता, ऐसे ही किसी वक़्त इरशाद के कमरे में उसके हाथ मंगनी का वो कार्ड हाथ लग जाता है जिसके ऊपर उसके ही हाथ द्वारा भावना और पवन का नाम लिखा था, वह कार्ड वहां क्यों है ???वह कार्ड दिया क्यों नही गया ???क्या कारण हो सकता है??? क्या सच में कुछ ऐसा है जो उससे छुपाया जा रहा है???
ऐसे ढेरों प्रश्न उसके दिमाग को मथते रहे, जिससे बेचैन होता उस पल वह परेशान हो उठा| उसे पता था कि इस पर अब कुछ उनसे पूछने का कोई फायदा नही, अब सच का पता उसे खुद ही लगाना होगा, ये सोचते सोचते वह अपनी कशमकश से दो चार होता हताश बैठा था|
आखिर मोहित के कहने पर मानव टैक्सी बुलाता उसी के साथ चल देता है| मानव देखता है कि मोहित पवन की बिल्डिंग के नीचे उतरकर उसे घर जाने को बोल अन्दर की ओर बढ़ गया|
मानव घर पहुंचकर मानसी को मोहित के पवन के घर जाने की बात जिस सहजता से कहता है उसे सुन मानसी एक पल भी सहज नही रह पाती और घबरा कर जय को फोन कर तुरंत उसके घर के लिए किसी अनजानी अनहोनी की आशंका से चल देती है|
वह भावना के फ्लैट के बाहर खड़ा कॉल बेल बजा कर दरवाजा खुलने का इंतजार कर रहा था| दरवाजा खुलते सामने भावना को देख वह मुस्कराया पर इसके विपरीत बेहद रूखे भाव से वह मोहित को देखती रह जाती है|
“अरे भावना इतनी नाराज़ हो कि अन्दर भी नही बुलाओगी क्या ?”
मोहित हँसकर भावना से कह रहा था और वह हतप्रभता से दरवाज़े के एक किनारे खड़ी हो जाती है, जिससे रास्ता पाते हुए मोहित अंदर आते आते कह रहा था|
“पता है कि तुम क्यों नाराज़ हो और होना भी चाहिए – मैंने किया ही ऐसा काम है – वक़्त रहते रोक लेता शैफाली को तो वो हमसे इतनी दूर नही जाती |”
भावना हैरान मोहित की ओर देखती रही जो अपने आप में खोया कहता ही जा रहा था – “पर अब देखना मैं उसे लिवा लाऊंगा देखो मैंने लन्दन की टिकट भी बुक की है – कल सुबह ही निकल रहा हूँ लन्दन और देखना लेकर ही आऊंगा उसे |” कहकर मोहित अपनी पॉकेट से आज़ाद किए एक लिफाफे को उसे दिखाते हुए धीरे से हँस पड़ा तिस पर भावना एक दम से बेकाबू होती एक दम से मोहित की बांह थामती हुई उसे लगभग अपने साथ घसीटते हुए ले जाती हुई कहने लगी – “कहाँ जा रहे हो शैफाली को ढूंढने लेकिन वो तो यही है – चलो आओ मैं तुम्हें उससे मिलवाती हूँ – चलो |”
मोहित हैरान सा उसके साथ साथ खिंचा चला जाता है|
अब वे उस कमरे में थे जो कभी शैफाली का था पर उस कमरे में नज़र दौड़ते उसे कही शैफाली नहीं दिखती हाँ पर उसकी मौजूदगी का हर निशान वहां मौजूद था, अभी भी उसके द्वारा आखिरी बार पहनी गई साड़ी बिस्तर के पैताने पड़ी थी, तो टेबल पर बेतरतीबी से एक स्कार्फ बड़ी ख़ामोशी से पड़ा था, फर्श पर उसकी छूटी हुई सैंडल एक के ऊपर एक किए मानों अभी अभी पहनकर उतार दी गई हो, मोहित उनकी तली में लगी गाँव की मिटटी देख उसे पहचान जाता है| वह हैरान सा खड़ा उस कमरे में मौजूद शेफालिका की खुशबू से महकता एक सरसरी निगाह से पूरे कमरे को देखता कि अचानक उसकी नजर सामने की दीवार पर शैफाली की हँसती मुस्कराती तस्वीर पर जाती है तो उस पल जैसे उसके पैर ही फर्श से उखड़ जाते है वह अपनी जगह से खड़ा खड़ा डगमगा जाता है| उसकी तस्वीर पर हार देख उसकी आँखों को उस पल सब धुंधला धुंधला दिखाई देने लगता है| उस एक पल उसे लगा कि वक़्त थम गया या साँसे सीने में दुबक गई, ऑंखें टकटकी बांधें किरकिरा उठी, गले तक सांसे रुंध गई| भावना गुस्से में अब उसके सामने अखबार को लहराती पटकती हुई कह रही थी – “जाओ लेकर आओ न शैफाली को – ये देखो – जिस दिन उसे तुम सिर्फ तुम उसे रोक सकते थे पर तुमने नहीं रोका और वो चली गई – पूरे अतृप्त मन से – न उसे परिवार मिला न प्यार – उसी दिन हवा में ही उसकी जिंदगी खत्म हो गई – चली गई शैफाली हमसे बहुत दूर – उस बेचारी को न खुद की जमी ही मिली और न आसमान – तो अब बताओ कहाँ से और कैसे लाओगे उसे – बोलो – गाँव से लौटते के बाद मैंने उसे पहली बार इतनी बुरी तरह से टूटते हुए देखा था – उसके टूटे मन की गुहार सिर्फ मैं देख पाई पर उसके लिए कुछ नही कर पाई – इतने दिन उसके साथ रहते उसकी आँखों से तुम कैसे अनजान बने रहे – उसकी आँखों में तुमने खुद का अक्स नहीं देखा कभी – कितने निष्ठुर बने रहे तुम उसके प्रति |”
भरी आँखों से भावना का गला भी भर गया और मोहित ऑंखें बंद किए जैसे अनंत शून्य में समाता चला गया|
“काश जो तुमने आज कहा उस दिन कहा होता तो वो खफा होकर न जाती – काश तुम्हारा उदाहरण देकर हर उस खामोश प्रेमी को मैं सन्देश दे पाती जो प्रेम का समंदर अपने सीने में छुपाए अपने प्रेम की दुनिया में अकेले जीते है तब उन्हें बताती कि खुलकर न कहने की कभी कभी कितनी बड़ी कीमत अदा करनी पड़ती है…….|”
मोहित का दिल चीत्कार उठा, रूह जैसे देह का साथ छोड़ने लगी, वह बोझिल थके क़दमों से बाहर की ओर चल दिया, पीछे से भावना के चुभते शब्द अभी भी उसके मन को छलनी कर दे रहे थे|
“जाओ मोहित जाओ और ले आओ मेरी शैफाली को – यही तो कहने आए थे न तुम तो अब तभी इस घर में आना जब शैफाली तुम्हारे साथ हो वरना कभी अपना मुंह मुझे मत दिखाना – जाओ |” वह कहते कहते चिल्ला पड़ी|
दरवाजे से वह किसी अंतिम राह की ओर बढ़ते अपने कदम बढ़ा रहा था तभी सामने से आते जय और मानसी साथ में उस ओर आते है| जय मोहित को एक दम से थाम लेता है, वह लाश सा उसके कंधो पर ढह जाता है| मानसी भावना की चीत्कार सुन उसकी ओर दौड़ जाती है| वह फर्श पर घुटनों के बल बैठी बिलख बिलख कर रो रही थी|
…………क्रमशः………………….
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