
शैफालिका अनकहा सफ़र – 52
‘छोड़ दोगे तो लौटकर भी नही आउंगी …|’ शैफाली की आवाज से मोहित एकदम से चौंक बैठा, पसीने से नहाई उसकी देह कांप उठी, दर्द की लहर उसके जिस्म में सनसना गई जिससे फिर एक पल को भी वह ऑंखें न बंद कर सका|
पूरी रात जैसे आँखों आँखों में कट गई….सुबह की फ्लाईट के लिए मोहित खुली आँखों से सुबह का इंतजार कर रहा था तो अन्य कमरे में समर, जय और इरशाद चिंताजनक अवस्था में इस स्थिति से कैसे लड़े सोच रहे थे|
“अगर उसे अभी नही रोका तो उसका लौटना मुश्किल हो जाएगा |” समर टहलते हुए चिंतित स्वर में कह उठा|
“कुछ तो करना ही होगा |” जय हथेलियाँ मसलते हुए समाधान के लिए जैसे अपने अगल बगल देखता है|
तब बहुत देर से खामोश इरशाद कह उठा – “अब एक ही तरीका है |”
आवाज सुन दोनों अब इरशाद की ओर देखने लगे|
“उसे किसी तरह से गाँव ले जाना होगा – अब भाई जी ही स्थिति संभाल सकते है – वह उनकी बात नही टाल पाएगा |”
इरशाद की बात सुन आँखों से दोनों उसकी बात का समर्थन करते हुए भी शंकित थे –
“लेकिन इस समय उसे लन्दन जाने की धुन सवार है इसलिए हमारे कहने भर से बिलकुल नही जाएगा गाँव |”
झूठ जब भलाई के लिए हो तो वह झूठ नही रह जाता…तब समस्या का समाधान होता है बस….यही सोच इरशाद ही आगे बढ़कर मोहित के सामने हडबडाहट से आता कह रहा था – “मोहित अभी गाँव से खबर आई है – दार जी की तबियत बहुत खराब है – हमे तुरंत अभी वहां के लिए निकलना चाहिए |”
अपने में ही खोया मोहित आवाज सुन चौंककर इरशाद और उसके पीछे पीछे अवाक् चेहरे में जय और समर को देखता रहा|
“क्या सोच रहा है – जल्दी चलो – हमे अभी निकलना चाहिए |”
“तुम दार जी से मिलकर फिर जा सकते हो न लन्दन |”
“अभी बस चलो |”
अब ज्यादा कुछ न सोचते मोहित उनकी हडबडाहट देखता उनके साथ गाँव के लिए चल देता है|
वे एक कार में पूर्ण ख़ामोशी से एक साथ थे| उनके बीच नीरवता में मानों उफनती सांसों की आवाज भी साफ साफ़ सुनाई दे रही थी| वे नही जानते थे कि वहां पहुंचकर मोहित के सामने सच कैसे स्वीकारेंगे ?? बस आने वाले वक़्त पर भरोसा कर आगे आगे बढ़े जा रहे थे|
सर्दियों का ओस मिश्रित धुंधलका मानों एक आँख से लाल अंगारा आकाश से धरती की ओर धीरे धीरे छोड़ रहा था जिससे चारोंओर चीत्कार करते पक्षी हलक भर चीखते इधर उधर भाग रहे थे| मोहित की नज़रे बगल की खिड़की के बाहर के दृश्य पर टिक सी गई थी| गुजरती हर रहगुज़र में हर जगह उसे शैफाली नज़र आ रही थी, रास्ते पर स्टेरिंग पर हाथ घुमाकर खिलखिलाती हुई, कही रास्तों पर किनारे खड़ी हाथ लहराती हुई…..सब जगह वही एक चेहरा जैसे समा गया था….कहीं कोई अन्यत्र चेहरा उसे नज़र ही नही आ रहा था….उसपल उसे ऐसा लगा मानों उसकी आँखों में वही एक चेहरा चस्पा हो गया जिससे अब किसी और मंजर के लिए उसकी आँखों में कोई जगह शेष नही रही….कब रास्तों में शैफाली संग चलते चलते मोहित गाँव की पगडण्डी तक आ गया ये भाई जी की आवाज सुनकर उसे होश आया|
भाई जी औचक चारों को एकसाथ सामने देख हैरान से उन्हें देखते रहे| इरशाद जल्दी से आगे बढ़कर उन्हें स्थिति समझा देना चाहता था पर उससे पहले ही मोहित अपने तेज क़दमों से भाई जी के सामने आता दार जी का हाल पूछ बैठा|
“ओ हाल सब चंगा जी – पर यूँ हवाइयां उड़े तुसी क्यों – के होएया !!!”
मोहित झटसे पलटकर उन तीनों का चेहरा देखता है तो तीनों उससे ऑंखें चुराते अन्यत्र देखने लगते है, गुस्से में उन्हें घूरता वह आगे बढ़ता हुआ कहता है – “ठीक है दार जी से मिलके मैं अभी निकल जाऊंगा |”
वे मोहित को रोक न सके, वह अपने तेज कदमों से आगे बढ़ गया और भाई जी उन तीनों के चेहरे पर के पिटे भाव देखते रह गए|
चेहरे पर तनाव की खिंची लकीरों को किसी तरह से जब्त किए हुए मोहित दार जी से मिलने घर की ओर अपने बोझिल क़दमों के साथ बढ़ रहा था कि बच्चों का स्कूल से लौटता हुजूम देख कुछ पल वही ठिठक कर उस ओर देखने लगता है जहाँ से बच्चे दौड़ते हुए बाहर की ओर निकल रहे थे| उस पल उसकी आश्चर्य की सीमा नही रही जब उसने निरकुंज भवन में स्कूल के साथ साथ डॉक्टर का भी बोर्ड लगा देखा, ये देख उसके कदम खुद ब खुद उस भवन की ओर मुड़ गए, वह उस स्कूल को अपनी आँखों से देखने व्यग्र हो उठा|
मुख्य गेट से अन्दर आते खुले आँगन से अब आखिरी बच्चा भी दौड़ता बाहर की ओर निकल गया तो मोहित अन्दर बढ़ते हुए एक एक चीज को निहारता हुआ विचारों की नदी में गोता लगाता आंगन के बीचों बीच मौजूद पारिजात के पेड़ को देखता हुआ वहां शैफाली की मौजूदगी को महसूस करता हुआ नम आँखों से उसे टकटकी बांधें देखता रहा….मानों शैफाली सामने खड़ी उससे शिकायत कर रही थी कि छोड़ दोगे तो लौट कर भी नही आउंगी !! ये सोचते उसका दिल चीत्कार उठा…ऑंखें बंद किए दर्द को मन में घोट ले गया| अब अन्दर आते उसके कदम मुख्य कमरे में खड़े सामने की दीवार की ओर दृष्टि उठाकर देख रहे थे जिसे पूजा स्थल की तरह सुसज्जित किया गया था, वहां उसके माता पिता की तस्वीर थी, जिसे देख उस पल खुद के मनोभावों पर नियंत्रण रखना उसके लिए और मुश्किल हो गया| जाते हुए लोग क्यों सिर्फ तस्वीर होकर रह जाते है, धुंधली होती नज़रे अब दो अन्य तस्वीरों को देख हैरान रह गई, वे चेहरे किसी की याद दिलाते विचारों को उसके मस्तिष्क को मथे दे रहे थे| वह उस तस्वीर को समझने गौर से देखता खो सा रहा कि आँखों के धुंधलके के बीच शैफाली का साया उसकी आँखों के सामने लहराया तो दिल का दर्द पलकों पर आकर जम गया|
“कैसी हालत कर दी है तुम्हारे अहसास ने मेरी – अब या तो मैं खुद की जान ले लूँ या तुम्हीं समा लो मुझे अपनी पनाह में..|” कहता हुआ वह कसकर अपनी पलकें बंद कर लेता है|
साया उसके अब काफी करीब आकर थमता है|
“तो समा जाओ न मुझमे – कब रोका मैंने..!”
आवाज की सरगोशी से वह पलक खोलता सामने शैफाली का चेहरा देख उतावला होता देखता रह गया| वक़्त भी ख़ामोशी से सांसों के दरमियाँ धड़कनों के क्रम में धड़कता रहा|
“शैफाली…|” वह धीरे से धड़कते दिल से उसे पुकारता है – “तुम सच में मेरे सामने हो या फिर मेरा खुद पर से काबू खो रहा है…!!”
“सामने तो हूँ तुम्हारे इंतजार में |”
ये देख मोहित जैसे होश में आता मुस्करा उठा – “तुम सच में मेरे सामने हो – उफ्फ – इस पल पर यकीन कैसे करूँ कि तुम मुझे छोड़कर कहीं नही गई…|” उसका चेहरा अपनी हथेलियों में लेता हुआ उन नीली आँखों को उस पल निहारता रहा|
वह पलके झपकाती धीरे से मुस्कराई – “तुम्हीं ने तो कहा था कि शेफालिका अपनी जड़ों से दूर खिलती है तो कैसे लौट जाती अपनी जड़ों में |”
मोहित के दिल का ये आलम था कि कहना सुनना बहुत कुछ था पर शब्द लब तक आते थरथरा उठे थे|
“जाना तो चाहती थी – उस पल बस जाने ही वाली थी पर पता नही कौनसी अदृश्य शक्ति ने मेरे कदमों में बेड़ियाँ बांध दी और तुम्हारा अहसास अपने अन्दर समेटे मैं खुद को यहाँ आने से नही रोक पाई |” “श….शैफाली..|” उसके होंठो पर वह नाम कंपकंपी छोड़ गया|
“तुम मेरा यहाँ इंतजार कर रही थी !!”
“जाने क्यों दिल को विश्वास था कि तुम जरुर आओगे….पर तैनू कि तू तो साडी केयर न करदा !!” कहती हुई वह रूठती हुई दूसरी ओर मुंह फेर लेती है ऐसा करते मोहित के हाथ उसके चेहरे से फिसल जाते है|
ये देख मोहित की हँसी छूट जाती है, उस पल उसके नखरे पर उसे कितना प्यार आया ये उसपर टिकी उसकी ऑंखें बयाँ कर रही थी| वह उस पल एक हाथ सीने पर रखे दूसरे हाथ से उसका हाथ थामता घुटनों के बल बैठता हुआ अपनी नज़रे उसके रूठे हुए चेहरे पर जमाता हुआ जल्दी से कह उठा – “ए तू मेरे नाल व्याह करेगी !!!”
उसपर ठहरी मोहित की नज़रे उसकी ओर से मुड़ी गर्दन अभी भी देख रही थी, जिससे ऊपर वारी जाती उसकी मुस्कराती नज़रे फिर कह उठी – “जान रहम करो – अब इस टूटी टांग के साथ बहुत देर ऐसे नही बैठ पाउँगा |”
“देखो तुम्हारे सच्चे दिल को तोड़ा तो सजा के तौर पर भगवान में मेरी टांग ही तोड़ दी |” कहता हुआ वह हँस पड़ा|
ये सुन शैफाली चुहुंक कर अपने दोनों हाथों से उसका बढ़ा हाथ थाम तड़पकर उसका चेहरा देखती रह जाती है, उस पल ऑंखें बीते दिनों की सारी बेचैनी, इंतजार, कुछ भी उस क्षण अपने में छुपाए न रह सकी| फिर उन बेचैन दिलों को मिलने से कौन रोक सका, वे छुप जाना चाहते थे एक दूसरे की पनाह में…..दोनों के हाथों का बंधन एकदूसरे की पीठ पर कसता गया और उसी क्रम में आंसुओं से चेहरा भीगता चला गया|
“क्यों चली गई थी मुझे तड़पता हुआ छोड़कर…!!”
“तुमने रोका भी तो नही…!!!”
उस एक पल में जैसे जन्मों की प्यास समा गई| आसमानी बर्फ रुई के फाहे सी आकाश से उतरती मन की तलहटी में नदी सी बह चली|
“ए मेरे शिरी फरहाद ऐ कि करदे हो..?” परजाई जी आवाज देती चली आ रही थी पर एक दूसरे में सिमटे खोए उनतक कहाँ किसी की आवाज जा रही थी| परजाई जी सच में आगे बढ़कर दोनों को अलग करती है|
“तुसी दोनो अकेले नई हो जो कुछ भी कार लिए – कोई और भी त्वाडे नाल उसकी फिक्र तो कारि |” परजाई जी अपनी गहरी मुस्कान से शैफाली के उदर की ओर दृष्टि डालती है, जिससे शैफाली के चेहरे पर एक शर्मीली मुस्कान तैर जाती है|
“बड़े छुपे रुस्तम निकले लाला जी – हमारे सामने तो कुड़ी की उंगली भी न थामी और मैनू इन्नी जल्दी ताई बना दित्ता !!”
मोहित का अवाक् चेहरा अब दोनों के चेहरे पर आई उस गहरी मुस्कान को समझा तो जैसे खुद पर काबू ही नही रख पाया – “क्या सच शैफाली !!”
वह भी हाँ में सर हिलाती मुस्करा दी तो उस क्षण परजाई जी रोकती रह गई और मोहित उसे गोद में उठाए झूम गया|
“ए दोनों भाई नू एसे ही ख़ुशी मनांदे है कि !!” उस पल वातावरण में खिलखिलाहट तैर गई|
“ए बाई हम भी कम खुश नई है !”
भाई जी की आवाज सुन मोहित को ज्योंही अपनी बेखुदी का अहसास होता है वह धीरे से शैफाली को नीचे उतारकर संकुचाता खड़ा रह जाता है| भाई जी के साथ साथ वे तीनों तेजी से उसकी तरफ बढ़ते जैसे उसे घेर लेते है| जय तो उसके पेट पर घूसा जमाता उसके कानों के पास फुसफुसाया – ‘अबे साले हमे बस मंगनी से बहलाकर यहाँ तूने हमसे पोतड़े धुलवाले तक का काम कर दिया |’ वे सब साथ में खिलखिला पड़े और बिना मोहित की टांग की परवाह किए उसके गले लगने तीनों जैसे उसके कन्धों पर लद से गए|
“तो मुंडों तैयार हो जाओ अब पहली शादी इस घार में होगी तो बुला लो सब कुड़ियों नू – फिर एक बार हो जाए पंजाबी मस्ती |” कहकर भाई जी खुद में ही खुश होते एक टांग हवा में उठाए होंठों को मोड़कर आवाज निकालते भांगड़ा करने लगे, ये देख सब साथ में झूम उठे|
शैफाली उस पल की ख़ुशी जैसे पलकों पर बहुत देर समेटे न रह पाई और उस दीवार पर अपने माता पिता की तस्वीर देख आद्र मन से दिल ही दिल शुक्रिया कह अपने जीवन का आखिरी दर्द आँखों से आज बह जाने दिया| अब मुस्कराती आँखों से उस भांगड़े में हैपी और गुरमीत को भी नाचते देख वह भी वर्षावन में बारिश सी खिलखिला पड़ी……|
क्रमशः…………………..
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