
शैफालिका अनकहा सफ़र – 53
एक बार को आँखों में सपने भी समा जाए पर अताह प्यार का समंदर आँखों में समेट पाना कहाँ संभव होता है !! शैफाली की आँखों के लिए इन प्यार भरे रिश्तों को संभालना मुश्किल हो रहा था| एक ओर से परजाई जी उसे थामे तो दूसरी ओर गुड्डी उसे अपनी ओर खींचे बस गले से ही लगा लेती है|
मोहित के लिए तो शैफाली का मिलना किसी ईश्वरीय सौगात से कम नही था, वह उसे नयन भर देखना चाहता था, जी भर के अपने में समेटे महसूस करना चाहता था पर सबकी लगातार की मौजूदगी में वह बस टुकड़ा भर ही उसे देख पाया| वे आँखों से गलबांही मिल लिए|
शैफाली के मिलने से धडाधड दिल्ली फोन हो गए, समर, जय और इरशाद ने ऋतु, मानसी और नूर को फटाफट ये खबर दी जिसे सुनते उनकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा, मोहित भी तुरंत भावना को फोन लगाता है, पर उसका फोन पूरी रिंग हो जाने के बाद भी नही उठता तो वह पवन को लगाता है|
पवन घर पर ही था इसलिए तुरंत भावना के पास पहुँचता उसे मोहित से बात करने को कहता है, पर तबसे उदासी में लिपटी भावना भरे नयन से मोबाईल की ओर देखती मानों कह उठी कि अब क्या कहना है !! पवन मोहित से तुरंत वीडियो में फोन कनेक्ट करने को कहता उसका स्क्रीन भावना की आँखों के सामने कर देता है| जिसमे मोहित के चेहरे पर भरपूर मुस्कान थी, भावना हैरान नाराजगी भरी आँखों से उसे देखती रही, उस पल बेहद नफरत के भाव से वह उस स्क्रीन से अपनी नज़रे फेर लेना चाहती थी कि उसकी आँखों के परीदृश्य में जो बदलाव हुआ उससे उसकी ऑंखें की नदी फूट पड़ी, वह तुरंत स्क्रीन को अपनी हथेली के बीच लिए बार बार ऑंखें झपकाकर देखने की कोशिश करने लगी, मोहित के हटते अब स्क्रीन पर शैफाली दिख रही थी जिस पर उसके दिल का यकीन लगभग रो ही पड़ा|
वे उसे बता रहे थे कि वे सब गाँव में है और उसका इंतजार कर रहे है, परजाई जी वीडियो मे अपनी झोली फैलाती शैफाली को मांगती दिखी तो शैफाली को थामे गुड्डी खड़ी थी, अचानक इतनी ख़ुशी भावना की भावनाए नही संभाल पाई और वह बिलख उठी पवन दौड़कर उसे अपने अंक में समेटता सँभालते हुए “हम सभी भी आते है|” कहकर फोन काट देता है|
सबके दिलों को जो यकीन करना मुश्किल था वो उनके लिए बस ऊपर वाले का आकस्मिक उपहार था जिसे दोनों हाथों में समेटने को सभी तैयार हो उठे|
इधर दार जी के सामने मोहित की पेशी हो गई| उनके साथ ताऊ जी भी गंभीर मुद्रा में बैठे मोहित की ओर देख रहे थे तो मोहित जय, समर और इरशाद के साथ कोना पकडे हाथ बांधें खड़ा था| भाई जी उसकी शादी की जल्दी में थे जिससे दार जी एकदम से उखड़ते हुए बोले – “किउम जाल्दी है – सारे रिस्तेदार आएँगे – धूम से कारनी है सादी फिर जल्दबाजी की है?”
“जी कुड़ी नू लन्दन भी जाना सी |”
भाई जी की बात सुन ताऊ जी तुरंत बोल उठे – “तो कोई गल नई – कुड़ी नु आने दो तब कार लेंगे सादी – साल छह महीना भी असी कुड़ी का इंतजार कार सगदे है – कौण सी मुंडे की उम्र निकली जा रही है|”
ये सुनते सबके चेहरों पर उलझन दौड़ गई, ताई जी जो परजाई जी संग देहरी पर खड़ी सब सुन रही थी मोहित के उतरे चेहरे को देखती दुप्पटा का कोना दबाए सोच में पड़ गई| मोहित सर उठाकर अब भाई जी से आँखों आँखों में मिन्नतें कर उठा| भाई जी फिर किसी तरह से बात को बढ़ाते दार जी की ओर झुकते हुए कहने लगे – “ओह जी बात एसी है कि कुड़ी संग अपना मुन्डा भी जाएगा ओर हुण इस नई पीढ़ी को कि समझाए – जवान मुंडा कुड़ी के साथ होगा – कुछ उंच नीच हो गया तो – असी इल्तजा थी कि व्याह करा दित्ता सी |”
भाई जी की बात पर जहाँ बाकियों का चेहरा गंभीर बना रहा वही दोस्तों की हँसी बस छूटने को थी तो मोहित उन्हें आंख दिखा कर रोक लेता है|
“ओह पर इतनी जाल्दी व्याह की तयारी कैसे कारेंगे|”
अभी ताऊ जी ये बोलते ताई जी की ओर देखते है तो वे भरसक इशारे में सब सम्हाल लेने का भरोसा देती दिखती है|
“सब हो जाएंगा जी – सब दिखा लिया परसों बडा चंगा दिन है जी आनंद कारज के लिए |”
दार जी अब अपनी अनुभवी आँखों से सबके चेहरे देख डालते है| मोहित ऑंखें नीची किए होंठ दबाए बैठा था, भाई जी इल्तजा की मुद्रा में उनकी ओरदेख रहे थे तो घर की औरते हसरत भरी निगाह से बस जैसे उनकी हाँ का ही इंतजार कर रही थी, अब ताऊ जी भी दार जी ओर उनका फैसला जानने देखने लगे जिससे वे अपनी सफ़ेद लम्बी दाढ़ी को सहलाते हुए सपाट स्वर में बोले – “कदों एवे किउम बैठी सी – कोई काम धाम नई है त्वाडे नाल – जाओ परसों व्याह है तो जाकर तयारी करी सब |”
दार जी का ये कहना भर था कि सबके चेहरे पल भर में ख़ुशी से नाच उठे, मोहित बेकाबू होता कसकर मुस्करा दिया पर दार जी से नज़रे मिलते तुरंत संभल गया जिससे उनके चेहरे की अनुभवी झुरियां भी मानों मुस्करा पड़ी|
अब सब को शादी की तैयारी करनी थी| भावना पवन तो तुरंत ही चलने को तैयार हो गए, उनके साथ मानसी, नूर और ऋतु भी चली आई| उनका तो एक पल भी रुकना अब मुश्किल था| आते ही भावना तो काफी देर शैफाली का हाथ थामे बैठी रही मानों खुद को होश में लाने का प्रयास कर रही थी| जब मोहित ने “लो ले आया न शैफाली को” तो बस किसी तरह से अपनी आँखों की बेहिसाब बहती नदी को वह रोक पाई|
ये ऐसा खूबसूरत पल बन गया जब चारों जोड़े एकसाथ मौजूद जी भरकर मुस्करा रहे थे और मन ही मन ये ख़ुशी पर नज़र न लगे यही दिल से दुआ कर रहे थे|
शादी एक दिन बाद थी और बहुत सारी करने को थी, सारे रिश्तेदारों को फटाफट फोन किया गया, पूजा ये खबर सुनते जैसे पंखों पर सवार गाँव चली आई| घर आंगन एकबार फिर खुशियों से गुलजार हो उठा| बस जहाँ देखो हँसी की फुलझड़ी सी छूट रही थी| इसी हँसी ख़ुशी की फुहार के बीच रस्मे भी पूरी की जाने लगी| सबेरे हल्दी की रस्म के लिए जहाँ एक तरफ जनानी इकठ्ठा हुई शैफाली को हल्दी लगा रही थी वही सारे दोस्त मोहित को हल्दी से पोते जा रहे थे| रस्म के साथ शरारते भी शुरू हो गई| तीनों हल्दी हाथों में भरे चुपचाप जनानी पंडाल की ओर आए और इशारे से नूर, मानसी और ऋतु को बुलाते है पर वे आने से मना कर देती है जिससे तीनों मायूस खड़े वापस जाने लगे कि तभी पीछे से उन्हें अपनी बाँहों में घेरती कमसिन कलाइयों ने उन्हें हल्दी से सराबोर करते गुदगुदा दिया कि वह अपनी अपनी जगह बस थमे रह गए| झूठ मूठ की नाराजगी दिखाते अब लड़कों की नज़रे उन खिलखिलाती नज़रों की ओर मुड़ गई जो उनकी रंगी हालत पर कसकर हँस पड़ी थी| जय अपने हाथ की हल्दी अब अपने शरीर में खुद ही पोत लेता है ये देख मानसी निचला होंठ दबाए देखती रही और जय ने उसे उस एकांत में अपनी बाँहों में खींच लिया अब उनका मन से लेकर तन केसरिया हो उठा| शरारते अब बाकि दिलों में भी हिलोरे मार उठी और छहों दिल एकदूसरे को बाँहों में समेटे खो चुके थे|
आहट पर तीनों एकदूसरे से छिटकते पलटकर देखते है मोहित भी वहां अपने प्यार का दीदार करने आ चुका था और शैफाली को बुलाने का इशारा करने लगा जिससे उसे अंगूठा दिखाती तीनों वापस जाने लगी तो जय आगे आता बोल उठा – “अच्छा ये नक्शेबाजी – जाओ हम भी कोई दिल बिछाए नही बैठे है |”
ये सुन तीनों मुंह चिढ़ाती वापस चली गई पर मोहित मुंह लटकाए उनकी ओर देखता है, जहाँ तीनों लड़के अब ऐंठे खड़े थे तो लड़कियां गर्दन उचकाए उन्हें जानकर अनदेखा करती चिढ़ा रही थी|
“चल मोहित – ये समझती क्या है – क्या हम इनके पीछे पीछे घूमेंगे – कल शादी में बताते है कैसे जयमाल डलवा पाएंगी !”
ये सुन मोहित पहले मुंह लटकाए उन्हें देखता रहा फिर उन छहों की आपस में छुपी शरारती नज़रों को मिलते देख और उनकी हल्दी से रंगी देह देख बस जले दिल से दोस्तों को घूरता वापस चला गया, ये देख तीनों को जबरजस्त हँसी आ गई|
पूरा वक़्त वह शैफाली से मिलने का बहाना खोजता रहा पर हर बार वह किसी न किसी से घिरी बैठी मिलती| किसी ऐसे की मौके की तलाश करता मोहित ननकू को बोरा उठाकर इधर से उधर करता दिखा तो इशारे से उसे वहां से भगाकर बोरा खुद उठाकर जनानी पंडाल की ओर रखता शैफाली को इशारे से अपने पास बुलाने लगा पर जबतक उसका इरादा पूरा होता परजाई जी दौड़ती उसकी ओर आती उसे रोकती हुई बोल उठी – “ए कि है लाला जी – तुसी क्यों कार रहे हो – चलो जाओ – इतना हलकान होने की कि जरुरत है !!” मोहित क्या अपने दिल का हाल बयाँ करता मन मारे बस चला गया और ये सब दूर से देखती शैफाली खिलखिलाकर हँस पड़ी|
नयन जी भर कर एकदूसरे को देखना चाहते थे, एकदूसरे की पनाह में ठहर कर धड़कती धडकनों को पल पल सुनना चाहते थे इसी ललक में शैफाली जो शाम से सबसे घिरी भर कलाई मेहन्दी लगवा रही थी मोहित के इशारे समझती अन्दर कमरे में न जाकर गलियारे में हवा खाने बैठी रहती है| बाकि सब भी मेहन्दी लगवाने में जुटी उसको आराम कुर्सी पर बैठाकर अपने अपने में व्यस्त हो गई| मोहित इसी पल के इंतजार में तब से सबसे जान छुड़ाने में लगा था| शाम ढलते ढलते अँधेरा होते मोहित के चुपचाप कदम गलियारे की ओर बढ़ रहे थे कि भाई जी झट से आते उसे पकड़ते बोल रहे थे – “मोहिते तू शेरवानी का रंग पासन्द कर बाकि सब असी तयार करा लंगा |”
जान छुड़ाने मोहित उनके हाथ में पकडे कई रंग के कपडे के टुकड़े में से कोई एक पर हाथ रखता उन्हें विदा करता है, उनके जाते सूने गलियारे में बढ़ता वह राहत की सांस लेता है| वह दबे पैर गलियारे से बढ़ता अपनी धडकनों को भी मानों सीने में चुपचाप दबाए चला जा रहा था|
मुलाकात के लम्हे को दिल में महसूसते मोहित के रोम रोम में रोमांच दौड़ गया जिससे वह गलियारे में चलते अब अपने कदम तेज कर लेता है| उसे यकीन नही हुआ कि सच में शैफाली अभी भी वही मौजूद होगी वो भी तनहा उसके इंतजार में, वह अपने बहकते जज्बात समेटता उसके बहुत पास पहुँचते उसकी ओर झुक जाता है| वह देखता है कि गलियारे की हलकी रौशनी में आराम कुर्सी पर गर्दन टिकाए शैफाली ऑंखें बंद किए लेटी थी, उसके और पास पहुँचते वह धीरे से उसे पुकारता भी है पर शायद दिनभर की थकान या देह की स्थिति से वह सो चुकी थी, ये देख वह मुस्करा देता है पर उसे जगाता नही है| बस करीब से उसे निहारता रहता है…
ये इश्क भी क्या चीज है दिल बेकाबू होते मानों जज्बातों का उफनता समन्दर हो गए….फना होने को दिल महबूब की एक झलक पाने राते जला कर परवाने हो गए…
उसी पल हलके हलके हवा के झोंके से उसकी खुली जुल्फे उसके चेहरे पर घिर आई, मोहित हाथ से हटाने से उसकी सुनहरी नींद में खलल न हो इससे वह हलके सी उसके चेहरे पर फूंक मारता उस गुस्ताख जुल्फों को एक ओर समेट देता है…उस पल उसका चेहरा मानों घने बादलों के हटते चाँद सा उसके मन के उन्मुक्त आकाश में खिल आया..उफ़ क्या यही वो इश्क का बेहिसाब समंदर है जिसे वह लांघने से डरता था और आज उसी में फना होने को तैयार है तो हाँ आज डूब जाना चाहता है इस लम्हे इस कसक में वह….वह हौले से कुर्सी के एक ओर लटकी उसकी मेहँदी से भरी कलाई उठाकर हौले से रखता उसे निहार ही रहा था कि कोई आहट होते वह उठकर दीवार की ओट लिए खम्बे की परछाई के पीछे खुद को छुपा ले जाता है|
“ओह शैफाली यही सो गई – अभी पल भर पहले पानी माँगा था वही लेकर आई थी|”
“चलो पुत्तर अन्दर चैन से सो जा |”
वहां ताई जी, परजाई जी, गुड्डी, पूजा थी जो उसकी फ़िक्र करती उसके आस पास मौजूद थी|
मोहित सीने पर हाथ बंधे ऑंखें बंद किए जैसे कानों से सुनता सब ख्वाबो में देख रहा था…उसका सपना साकार हो रहा था..सब कितने खुश थे..वह सोचता हुआ गलियारे से निकलता देखता रहा..हर तरफ सब व्यस्त थे…इरशाद फूलों की लडिया पूरे घर में सजा रहा था तो हैपी शैतानी छोड़कर अपनी पलटन संग उसकी मदद में लगा था…समर और जय भाई जी को दिलासा देते कि अभी वह सब बुक कर आए है उन्हें कोई फ़िक्र की जरुरत नही है…रात में ही सब पंडाल तन कर मेहमानों के स्वागत के लिए तैयार खड़े थे…इरशाद की अप्पी और जीजा भाई ऋतु की बहन वर्षा और बुआ जी के साथ शाम को ही आ गए थे..तभी से वह सबको व्यस्त देख रहा था..बुआ जी और अप्पी ने रसोई संभाल ली थी तो मानसी का भाई मानव, वर्षा और भावना सबको भोजन कराने में लगे थे| कही भी कोई खाली नहीं था आखिर कल ही शादी थी…
क्रमशः………….