Kahanikacarvan

शैफालिका अनकहा सफ़र – 6

फ़्लैट का वो कमरा अब वही उसकी दुनिया हो गई थी, उसे कब भारत आने का मन था पर शर्त की मज़बूरी में उसे ये करना पड़ा पर वह जानकर कुछ ऐसा ही कर रही थी जिससे भावना परेशान हो जाए और उसकी वापसी के लिए खुद ही राजी हो जाए| वह खुद भी इस सरजमीं से जल्दी से जल्दी जाना चाहती थी क्योंकि हर पल भारतीय चेहरे देखते मिस्टर सेन के प्रति उसकी नफरत और तीक्ष्ण होती जाती तब वोडका का लंबा घूंट वह अपने हलक से उतार लेती और तब तक पीती रहती जब तक होश को मात न दे दे, ये उसकी खुद से खुद के प्रति  इंतकाम जैसा था, एक ऐसी नफरत का बेचैन झरना जो हमेशा उसकी टूटी आत्मा की चट्टान से फूटकर सच की जमी पर आक्रोश से विस्फारित होता….

भावना ने उसे जैसा ही बताया कि उसके आने की ख़ुशी में उसने घर पर कुछ दोस्तों को बुलाया है पर शैफाली के अज़ब रवैया से वह नाराज़ हो उठी –

“तुम हर वक़्त अपनी मनमानी नही कर सकती – ये मत भूलो तुम मेरे पास आई हो क्योंकि तुम मेरी अडरकेअर में हो |” वह आखिर बरस ही पड़ी उस पर|

“लिसेन – तुम्हारा मिस्टर सेन से जो भी रिश्ता हो पर मुझसे कोई भी रिश्ता जोड़ने की कोशिश भी मत करना – मुझे सिर्फ किसी तरह से ये छह महीने काटने है ताकि मुझे मेरी ही दौलत मिल सके – ये बात अच्छे से याद रखना |”

भावना खड़ी रह गई और गुस्से से पैर पटकती शैफाली अपने कमरे की ओर बढ़ गई|

वह रोककर उसे बताना चाहती थी कि उसके भारतीय दोस्त उसी से मिलने घर आ रहे है पर उसकी अनदेखी करती वो तो जा चुकी थी, इससे उसका मन टूट कर रो पड़ा|

वह पार्टी कैंसिल करने पवन को फोन मिलाने उठती ही है कि उधर से मानसी का फोन आ जाता है –

“तो कैसी हो भावना – कही बहन के चक्कर में अपनी दोस्त को मत भूल जाना – शाम को हम सब आ रहे है तुम्हारे हाथ का कुछ स्पेशल खाने – चिंता मत करो थोड़ी मदद के लिए मैं पहले आ जाउंगी – ओके बाय |”

अपनी बात झटपट कहती मानसी कब रुककर किसी और की सुनती है, अब मनमसोजे वह शाम की पार्टी की तैयारी करने लगी|

शाम होते मानसी सबसे पहले भावना के घर पहुँच गई, वह शैफाली से मिलने को इतना उत्सुक थी कि बिना भावना के मिलाए वह सीधी शैफाली से मिलने उसके कमरे तक आकर दस्तख देने लगती है, भावना जानती थी कि अभी अभी उससे बिगड़कर गई शैफाली मानसी से भी उतनी ही रुखाई से पेश आ सकती है तो जल्दी से स्थिति संभालती हुई भावना अपने चेहरे पर जबरन मुस्कान लाती हुई बोली –

“हो सकता है तैयार हो रही हो – अभी चलो और प्लीज मेरी हेल्प कराओ – सब आने वाले है और मेरी आधी तैयारी भी नही हुई |”

“अरे तो मैं हूँ न – चलो अभी जादुई छड़ी घुमाते है |”

मानसी के इसी अंदाज पर भावना को हमेशा हँसी आ जाती थी|

***

शैफाली जानकर खुद को कमरे में बंद किए थी, वह उस पार की आवाजे साफ सुन पा रही थी जिसमे उसके लिए इंतजार, प्यार, साथ सब कुछ था पर यही चीजे तो चिढ़ाती हुई लगती उसे…..नहीं चाहिए कोई रिश्ता, कोई प्यार, किसी का भी साथ ये अकेलापन ही उसका एकमात्र साथी था….शराब की हर घूंट के साथ वह ये पल भी किसी तरह से अपने अंतरस लुढ़का देना चाहती थी….

फिर दरवाजे पर दस्तक होती है, शैफाली जब नही आती तो उस पार से भावना अपनी आवाज में गुहार लिए धीरे धीरे उसे पुकारती रही….

आखिर दरवाजे के खुलने की आहट से भावना को कुछ हौसला हुआ, दरवाजे के पार शैफाली थी…दो पल को वह उसे ऊपर से नीचे निहारती है…अंग वस्त्र की तरह उसने दो हिस्सों में मानों वस्त्र पहनने की कोई नियमावली अदा की हो| वह देखती है कि बैकपैक लिए वह बाहर जाने को थी तो उसे रोकती हुई भावना बोल उठी –

“कहाँ जा रही हो ?”

“सुकून की जगह – जहाँ फालतू का शोर न हो |” कहकर शैफाली आगे बढ़ गई|

“रुको तो शैफाली – देखो थोड़ी देर रुक जाओ – सब तुमसे मिलने ही आने वाले है – प्लीज |’ वह हर शब्द से निवेदन कर रही थी पर शैफाली बिना पलटे आगे बढ़ गई|

भावना बेबस खड़ी बस दरवाजे की ओर देखती रही, एकटक देखते उसकी आँखों के कोरे भीग उठे|

“भावना |” वह पवन था जो उसकी हालत अच्छे से समझ रहा था, उसके कंधे पर हाथ धरे वह उसे अपनी और करता हुआ उसका उदास चेहरा उठाते हुए कह रहा था – “अभी उसे आए कुछ दिन ही तो हुए है – कुछ वक़्त तो दो उसे और खुद को भी – |” भावना भीगी आँखों से उसकी विश्वस्त आँखों की चेतना देखती रह गई और पवन उसे संभाले कहता रहा – “बहुत ज्यादा उम्मीदे व्यक्ति को निराश कर देती है इसलिए उम्मीद की जगह कोशिश करो बस – डोन्ट वरी – अपना मूड अच्छा करो – अभी सब आने वाले है और हो सकता है थोड़ी देर में शैफाली भी खुद ही आ जाए – वैसे भी जाएगी कहाँ टेरिस में ही तो जाकर बैठ जाती है –|”

भावना एक गहरे उच्छवास के साथ जैसे सब जब्त कर आने वाले वक़्त के लिए खुद को तैयार कर लेती है, अब दोनों हौले से मुस्कराते अन्दर चल देते है जहाँ रसोई में मानसी आते से बेचारी उलझती छीक रही थी| उस पल उसकी हालत देख सच में दोनों को बड़ी तेज हँसी आ गई|

***

वाकई वह उस फ्लैट से निकलकर जाती भी कहाँ हर बार नाराज़ होकर टेरिस में आकर बैठ जाती और घंटों सिगरेट के धुएं के गुबार में अपनी उलझने उड़ाती रहती, तब से यही सब कुछ उसे बेचैनी से भर दे रहा था…वह बहुत देर से उसी सीढियों में बैठी अब दूसरी बोतल अपने हलक में उतार रही थी, नशा बुरी तरह से उसके मष्तिष्क में हावी हो रहा था, अपनी उँगलियों के बीच फंसी सिगरेट के छल्ले उड़ाती वह अपनी याद का हर क्षण भूल जाना चाहती थी…जिसकी हर खनक में उसके पिता का नाम उससे जुड़ता हुआ प्रतीत होता, अब भावना जो हर क्षण उस पर रिश्ते का हक जमाती, उसकी आज़ाद जिंदगी को रिश्तों की डोर से कस देना चाहती इसी बंधन से वह और उकता जाती लेकिन मजबूर थी उसके पास अब वापसी का कोई चारा शेष नही था….तभी किसी रौशनी से उसकी आंख पल में चुन्धियाँ जाती है…

“हुज़ दिस रास्कल ?” वह फुंकार उठी|

वह अपने कसे जबड़े से सामने देखती है कोई गठीले बदन का भारतीय युवक था जो उसकी ओर लगातार देख रहा था, वह फिर नाराज़ हो उठी तो घबराकर वह मोबाईल ऑफ़ करके सीढियों से ऊपर की ओर बढ़ गया|

***

कोल्डड्रिंक का दौर खत्म हो चुका जिससे अब सभी को शैफाली से मिलने का इंतजार होने लगा|

“भावना – कहाँ छुपा रखा है अपनी बहन को – कब मिलवाओगी उससे ?” मानसी भावना के साथ बाकि की प्लेट उठाती हुई पूछती है तो भावना के चेहरे से एकदम से मुस्कान जैसे गायब सी हो जाती है, मन में कई तरह की बात एक साथ चलने लगी कि कैसे शैफाली के रवैये के बारे में मानसी से कहे?? न वह शैफाली को समझ पा रही है नाही समझा पा रही है उसे !! तब मानसी से क्या कहे कि उससे बिगड़कर शैफाली चली गई है या फिर से कोई बहाना बनाकर अपनी स्थिति संभाल ले !!

“वो…|” भावना कहते कहते अचकचा रही थी|

“ओहो – चलो मैं ही उसे बुलाकर लाती हूँ |” मानसी झूठी प्लेट को सिंक में डालती किचेन से निकल ही रही थी कि भावना की आवाज उसे रोक लेती है|

“रुको मानसी – शैफाली कमरे में नही है |”

“तो कहाँ है ?” वह उसका चेहरा प्रश्नात्मक मुद्रा में ताके जा रही थी|

“वो टेरिस की ओर गई है |”

“हम्म |”

इससे पहले की मानसी कोई प्रतिक्रिया करती भावना झट से कह उठी  –

“मैं उसे बुलाकर लाती हूँ |”

“ओके – तबतक मैं खाना गरम करती मेहमानों को देखती हूँ |”

भावना किसी तरह से अपने दबे मनो भावों को छुपाती हुई बाहर निकल गई| मानसी किचेन में खाना गर्म करने मुड़ गई कि अचानक अपनी कमर पर अन्यत्र हाथों की सरसराहट महसूसती एकदम से चिहुंक पड़ी|

ये जय था जो मानसी को एकांत में देख उसके पास आने से खुदको रोक नहीं पाया| वह मुड़कर मुस्कराती उसके गाल खीच लेती है|

सभी उस बड़े हॉल में चलते मध्यम मध्यम संगीत की सुर लहरी में गुम प्रसन्नचित थे| समर तो दिव्या को देख औचक रह गया उसे उसकी वहां उपस्थिति का बिलकुल भी अंदेशा नही था| तब पता चला कि उसने अभी हाल में भावना के बिलकुल बगल वाला फ्लैट ख़रीदा है, पर रहने नहीं आई थी, बस भावना के निमंत्रण पर आज चली आई, तो अच्छा ही हुआ आखिर समर को देख वह भी खिल उठी थी| इरशाद को पता ही नहीं कि जय और मानसी कहाँ व्यस्त है या समर किससे बात कर रहा है, वह तो अपने मोबाईल की खुली स्क्रीन के समंदर में जैसे डुबकी लगा रहा था, जहाँ बार बार वापसी में उसके मुस्कराते हाथों में नाज़ द्वारा भेजा स्माइली या बुके का सिम्बल होता जिसे आँखों में लिए वह बस अंतरस झूम उठा था| अपनी दुनिया में खोया अचानक आवाज पर उसका ध्यान अपने सामने खड़े पवन पर जाता है|

“मोहित नही दिख रहा – कहाँ है ?”

मोहित का नाम सुन वाकई वह अपनी प्रत्यक्ष की दुनिया में वापिस आता है और पलटकर साथ में बात करते जय और मानसी को देखने के बाद समर को दिव्या के संग खड़ा देख बाकि के बचे कुचे मेहमानों की ओर दृष्टि दौड़ाता है तब उसे भी ख्याल आता है कि मोहित सच में वहां  नही है|

“पता नही – वैसे हमे बताए बिना तो घर नहीं जाएगा – मैं फोन लगाता हूँ उसे |” कहता वह जल्दी से मोबाईल की ज़हनी दुनिया से निकलकर मोहित को कॉल करके बुलाता है|

भावना एक एक कदम किसी तरह से आगे रखती हर पल अपने मन को समझाती जा रही थी कि किस तरह से उसे किसी भी तरह से शैफाली को समझाना ही होगा, नही तो क्या कहेगी आए हुए अपने दोस्तों से !!

क्रमशः…….

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