
शैफालिका अनकहा सफ़र – 7
टेरिस की ओर बढ़ते कदमो में उलझन के साथ साथ निराशा भी थी| वह लिफ्ट से जाने के बजाये सीढियों से ऊपर की ओर चढ़ रही थी, आखिर पता भी कहाँ था उसे कि वह नाराज़ होकर किस सीढ़ी पर जाकर बैठी है| दसवीं मंजिल के अपने छठी मंजिल से चढ़ती हुई वह टेरिस की ओर जाती आखिरी सीढ़ी की ओर मुड़ी ही थी कि तेज गंध का भभका उसके नथुनों को कसकर झिंझोड़ गया| सीढ़ियों तक काफी कम उजाला था, बिलकुल नाममात्र का, वह अपने मोबाईल की टोर्च जलाकर ऊपर की ओर देखती है तो बस उसकी ऑंखें चौड़ी होती फैली ही रह जाती है| सीढ़ियों की रेलिंग से टिकी शैफाली जैसे नींद में थी, उसके आस पास कई खाली बोतल और सिगरेट के बड बिखरे पड़े थे जिससे उसकी इस हालत का उसे अच्छे से अंदाजा हो गया| वह तुरंत उसके पास पहुँचती उसे हिलाती हुई होश में लाने की भरसक कोशिश करती है|
लेकिन उनींदी में वह भावना का हाथ झटक देती है जिससे भावना उसे और कसकर झिंझोड़ती हुई कह रही थी – “शैफाली कम से कम नीचे घर में चलो – यहाँ कब तक बैठी रहोगी?” वह किसी तरह से उसे अपनी ओर उठाती हुई हौले से खींचती है पर शैफाली खुद को उसकी ओर से खींचती हुई खुद ही उठने का प्रयास करती है लेकिन अत्यधिक नशे की खुमारी से उसके पैर लडखडा जाते है और वो बस रेलिंग को थामने एक हाथ पर अपना सारा भार देती है| रेलिंग पकड़ में आ जाती है फिर भी उससे सीधा नही चला जाता जिससे भावना किसी तरह से उसका भार अपने में देती अगली सीढ़ी उतारने का प्रयास करती है अगले ही पल शैफाली के पैर अगली सीढ़ी पर एक साथ पड़ने से अपना नियंत्रण खोते बस लहकने ही वाले थे कि कोई अन्यत्र मजबूत हाथ अपने एक हाथ से ही उसकी कोमल देह को गिरने से संभाल लेते है| भावना किसी तरह से खुद को संभालती हुई पीछे पलटकर देखती है तो पीछे शैफाली को संभाले मोहित खड़ा था, वह इरशाद के फोन करने पर अब नीचे की ओर उतर रहा था और शायद उन्हें देख वही ठिठक गया|
अब भावना के पास ज्यादा कुछ कहने को नहीं रहा, मौन ही सब तय कर लिया गया| शैफाली अपना होश खोती अब मोहित की बांह में ढह सी गई थी| मोहित के लिए ये स्थिति बड़ी असमंजस वाली थी पर कर भी क्या सकता था वह एक दो बार किसी तरह से शैफाली को हौले से झिंझोड़ भी चुका पर अपना होश पूरी तरह से गवां कर वह बेहोश थी| भावना और मोहित दोनों ओर से उसे पकडे अब नीचे उतारने लगे लेकिन मोहित की लम्बी कद काठी से उनका सामान्य कद ताल मेल नही बैठा पा रहा था जिससे भावना बार बार लडखडा जाती| अभी भी दो मंजिल उतरने को शेष थी| आखिर आँखों से ही निवेदन पढ़ता मोहित शैफाली को अपनी बांह में उठा लेता है| उसकी मजबूत काठी में उसकी कोमल देह किसी कमल की डाली सी लहरा रही थी| उसे उठाते हुए भी मोहित ने एक बार भी शैफाली की ओर नही देखा था, उस पल उसके लिए कोई सामान उठाकर लाने या उसे उठाने में उसके लिए कोई ख़ास फर्क नही था|
वे निशंक फ्लैट तक आखिर पहुँच गए| भावना आगे आगे चलती जल्दी से फ़्लैट का दरवाजा खोलकर किनारे खड़ी होती मोहित को अन्दर आने का रास्ता देती है| मोहित शैफाली को उठाए अन्दर आते किसी की भी नज़र की ओर नही देखता बस भावना के बताए रास्ते पर चलता हुआ शैफाली को उसके कमरे तक लाता बिस्तर पर लेटाकर निर्वृत भाव से तुरंत ही पलटकर बाहर की ओर चल देता है|
भावना शैफाली की देह को चादर से ढककर दो पल तक उसका चेहरा तकती रही, आखिर दिन भर कहाँ वह उसे पल भर भी देख पाती हर बार उसके चेहरे के निर्विकारी भाव न चाहते हुए भी जबरन ही कोई चिढ़ सी उसमें भर देते| वह स्नेह से उस क्लांत चेहरे पर से उसकी बिखरी झुल्फे हटाती उसका माथा सहलाने लगती है| असल में उसकी अब हिम्मत ही नहीं हो रही थी कि वह बाहर अपने मित्रों से नज़र भी मिलाए| तभी उसे अपने कंधे पर कोई भार महसूस होता है तो पलटकर देखती है तो अपने पीछे मानसी को खड़ा पाती है जिसके चेहरे के हर भाव में उसके लिए गहरी संवेदना मौजूद थी| वह आँखों से भावना को तसल्ली दे रही थी| अब देहरी तक पवन भी आ चुका था और बड़ी बेबसी से उनकी ओर देख रहा था| स्थिति को भांपती मानसी एकदम से होंठो को विस्तार देती चहक उठी –
“अरे हमारी एक होस्ट सो गई तो क्या तुम लोग हमे भूखा ही भेज दोगे क्या – जल्दी आओ – बड़ी जोर की भूख लगी है और जब से तुम्हारे हाथ का टेस्टी खाना देखा है तब से और नही रुका जा रहा – जल्दी से तुम दोनों आओ – मैं चली खाना गर्म करने |” मानसी अपनी ही रौ में कहती झट से कमरे से बाहर निकल गई|
उसके जाते अब पवन और भावना की नज़रे आपस में मिली तो पवन अहिस्ते से भावना के पास आते कहता है – “चलो – बाहर सब इंतजार कर रहे है -|”
पवन और कुछ न कह सका बस बाहर की ओर निकल गया| अब भावना को भी बाहर आकर सबकी नज़रों का सामना करना ही था| वह धीरे से उठती किसी अपराधिन की तरह नज़रे झुकाए कमरे से बाहर आती है|
उसे समझ नही आ रहा था कि क्या कहेगी ?? किन शब्दों से माहौल को सहज कर सकेगी| पर उस पल उसके आश्चर्य की सीमा नहीं रही जब सभी के चेहरे यूँ खिले हुए थे मानों कुछ हुआ ही न हो, सब हँसते बोलते एक साथ खड़े खाने का स्वाद ले रहे थे और भावना को देखते उस खाने की तारीफ में कसीदे भी पढ़ देते तब भावना को मुस्करा कर उनका अभिवादन करना ही पड़ता| ये सब मानसी का कमाल था जो हमेशा अपनी प्रिय सखी भावना के साथ मजबूत सहारे की तरह खड़ी हो जाती|
“भावना जल्दी से तुम भी अपनी प्लेट लगा लो – नहीं तो कहोगी हमने सब चट कर लिया –|” कहकर मानसी कसकर खिलखिला पड़ी|
“अब क्या करे खाना ही इतना लजीज है |”
साथ में खड़े जय ने एक बड़ा कौर मुंह के हवाले करते हुए कहा तो कुछ दूर खड़ी दिव्या भी कह उठी –
“अब मालूम पड़ा भावना जी कि जो डॉक्टर समर किसी भी पार्टी में नहीं जाते और वे यहाँ कैसे मिल गए – ऐसी लजीज पार्टी भला कौन छोड़ता है |”
सब एक साथ खिलखिला रहे थे जिससे भावना के होंठ भी आखिर मुस्करा पड़े….
पार्टी आखिर कैसे भी खत्म हो गई और सभी चले गए बस शेष रह गया त्रस्त बिखरा हुए मन के साथ कही कहीं फैली प्लेट और गिलास जो बुझे मन के साथ भावना समेट रही थी|
“छोड़ो भावना – सब कल कर लेंगे – मैं कल सुबह जल्दी उठकर करा लूंगा |”
“आज जो हुआ – कुछ भी ठीक नही रहा -|” भावना का अंतरस आखिर बिलख ही पड़ा|
“च्च – ज्यादा मत सोचो – इसमें तुम्हारी कोई गलती नही है|” पवन उसके पास आता दोनों हाथों से उसके कंधो को पकडे कह रहा था – “मैंने कहा था न कि उसे और हमे दोनों को वक़्त लगेगा इसलिए ज्यादा खुद को परेशान मत करो – चलो अब |” वह मनुहार करते उसकी बांह पकडे कमरे की ओर बढ़ने लगा|
***
पवन प्रेस निकलने की तैयारी करते करते नाश्ता भी करता जा रहा था| प्लेट में रखे पराठे के एक कौर को मुंह में रखते वह मेज पर रखा कागज अलट पलट लेता| भावना जल्दी से एक और पराठा लाती उसकी प्लेट में बढ़ाती हुई ज्योंही पलटी पवन का ध्यान उसपर चला गया|
“वाह मज़ा आ गया – एक अच्छा नाश्ता दिन भर की अच्छी शुरुआत के लिए इससे बेहतर क्या होगा -|” गर्म पराठे को दोनों हाथों से तोड़ते हुए वह भावना की दिशा में थोड़े तेज स्वर में कहता है – “आज डिनर में क्या बनेगा ?”
भावना पवन की बात सुनती मुस्कराती साड़ी के पल्ले को कमर से मुक्त करती हुई पवन के बगल की कुर्सी पर बैठती हुई कहती है – “तो आप ही बताए कि क्या बनाऊ ?”
प्लेट का आखिरी कौर भी मुंह के हवाले करते चबाते चबाते ही पवन कहता है – “खास क्या – वही दाल चावल सब्जी रोटी खा कर जो आत्मिक सुख मिलता है वो किसी इज्जा पिज़्ज़ा में कहाँ ?”
पिज़्ज़ा नाम लेते दोनों का ध्यान एकसाथ शैफाली की ओर चला जाता है, भावना अब वही बैठी बैठी उसके कमरे के बंद दरवाजे की ओर देखती रही, इससे उस पल उसके चेहरे के भाव उदास हो उठते है| ये समझते पवन उसके हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहता है –
“तुम अपना मूड अच्छा रखोगी तो सब हैंडिल कर पाओगी इसलिए वेट करो जब वो बाहर आए तो आराम से बात करना |”
पवन की सांत्वना से भावना पुनः मुस्करा उठती है|
“हूँ – ये हुई न मेरी स्टोंग वाइफ वाली बात |”
“अच्छा तो कोई कमजोर वाली वाईफ भी है क्या ?” हौले से चेहरे पर तनते हुए भाव लाती हुई बोली तो पवन ये देख मुस्करा पड़ा|
“हाँ अभी थोड़ी देर पहले यही थी अब स्ट्रोंग वाली से डरकर चली गई|” कहकर पवन हँसता हुआ उसका गाल प्यार से छूते हुए उठ जाता है|
पवन तैयार होकर बाहर निकलने ही वाला था कि कुछ याद आते वह भावना की ओर देखता हुआ कहता है –
“अच्छा भावना – शैफाली को किसी भी चीज की जरुरत हो तो ऑनलाइन ही मंगा लेना – देखना उसे कोई भी चीज की यहाँ कमी न लगे – एक तो हमारे जैसा खाना भी नहीं खाती है खैर टेक केअर शाम तक आता हूँ|” कहते हुए जल्दी से बाहर निकल जाता है|
क्रमशः……………………..
Bahut achi hai story 🥰👌