Kahanikacarvan

शैफालिका अनकहा सफ़र – 8

पवन के जाते अब शैफाली भावना की सोच में घर कर गई, उसके बारे में सोचते सोचते अब उसे उसके उठने का इंतजार था, वह रोज ही यूँही देर तक सोती रहती और दोपहर के कुछ समय पहले ही उठकर बाहर आती लेकिन अब इंतजार के सिवा भावना के पास चारा ही क्या था? उसके इंतजार में वह घर के काम निपटाने लगी|

ग्यारह बजते बजते उसका फोन बज उठता है, फोन उठाने पर पता चलता है कि लन्दन से वकील मिस्टर चैटर्जी का फोन है, वे भावना का हाल चाल लेते शैफाली से बात करना चाहते थे क्योंकि उन्हें पता था कि शैफाली कोई भी मोबाईल नही रखती थी| भावना के कम शब्दों ने भी उन्हें शैफाली की स्थिति बता दी, उसकी जिद्द और अक्खडपन से वे अच्छे से वाकिफ थे| भावना उनको रुकने को कहती शैफाली के कमरे के दरवाजे को चेक करती है तो पाती है कि उसका दरवाजा उड़का हुआ था, ये देख अन्दर आती उसे देख वह बस देहरी पर ही ठिठकी रह गई, शैफाली को भी कहाँ होश था बिस्तर पर औंधी पड़ी थी| भावना अन्दर आती है तो उसके पैर से कुछ टकराता है तब उसकी निगाह जमी पर जाती है जहाँ खाली शराब की बोतल के साथ साथ सिगरेट के ढेरों बड बिखरे पड़े थे, कमरा बिलकुल तितर बितर था खैर इससे बेहतर होने का उसने कुछ सोचा भी नहीं था| भावना मोबाईल लिए शैफाली को हौले से झिंझोड़ती है| उनींदी में शैफाली करवट लेती हुई भावना की ओर बिना उठे ही देखती है कि भावना अपने हाथ में लिए मोबाईल से उसे बात करने का इशारा करती है| लेकिन अब मोबाईल शैफाली अपने हाथ में नहीं लेती तो भावना उन्हें अपनी बात कहने को कहकर स्पीकर में लगाकर किनारे खड़ी हो जाती है|

वे अपनी बात कहते रहे –

“शैफाली तुम्हें कुछ पेपर मेल से भेज रहा हूँ देख लेना और तुम्हारा अकाउंट में इस महीने का भी डाल दिया – तुम ठीक हो न – भावना तुम्हारा ख्याल रखता है फिर भी कुछ जरुरत हो तो बता देना |” वे कहते रहे और शैफाली अंत मे बस ओके कहती मोबाईल की ओर से मुंह घुमा लेती है| ये देख भावना झट से फोन उठाकर अपने कान से लगाती हुई कहने लगी –

“हाँ अंकल शैफाली ठीक है वो अभी सो कर उठी है न इसलिए बात नही कर पा रही – आप पेपर भेज दीजिएगा मैंने साईन करवा कर फैक्स करवा दूंगी – जी |”

फोन कट गया और शैफाली यूँही पड़ी रही मानों किसी की मौजूदगी से उसपर कोई फर्क ही न पड़ा हो| लेकिन भावना जानती थी कि शैफाली जगी हुई है इसलिए अपनी बात कहने से वह खुद को रोक नही पाई –

“शैफाली दोपहर होने को आई है – कल रात से तुमने कुछ नही खाया है – चलो उठो – तुम्हें जो अच्छा लगता है बना लो – मैंने अपनी समझ से तुम्हारी चॉइस की कुछ चीजे भी मंगा ली है – प्लीज उठ जाओ – अपने आप को तकलीफ पहुँचाने के अलावा जो तुन्हें ठीक लगता है तुम करो मैं कुछ भी नही कहूँगी |” अपनी बात खत्म कर भावना कुछ पल तक वही खड़ी रही पर शैफाली की ओर से कोई प्रतिक्रिया न पाकर चुपचाप कमरे से बाहर चली गई|

भावना को लगा नही था कि वाकई उसके कहे का कुछ असर भी होगा शैफाली पर ये उसकी जीत का पहला कदम था तब उसे पवन की बात सच में सही लगी, शैफाली कमरे से बाहर आकर किचेन की ओर जा रही थी| भावना को पता था कि शैफाली उनके भारतीय खाने के  प्रति नीरस ही बनी थी इसलिए जो उसे फास्ट फ़ूड में समझ आया वो सब शैफाली के लिए उसने मंगा लिया|

शैफाली किचेन में आती कॉफ़ी मेकर में कॉफ़ी बनते छोड़कर फ्रेंच ब्रेड के स्लाइस कर रही थी, शायद सैंडविच बनाने की तैयारी कर रही थी, भावना देहरी पर खड़ी खड़ी उसकी ओर देखती हुई सोचने लगी, शैफाली को सब्जी काटते देख उसकी मेहनत पर उस पल उसे दया उमड़ आई, सच में शैफाली शायद कुछ भी काम नही करती होगी| वह अनजान बनती उसके पास आती हुई कहने लगी –

“वाह लगता है कुछ स्पेशल बन रहा है – चलो इसी बहाने कुछ नई चीज सीख लुंगी मैं|” भावना अति मुस्कान के साथ कहती रही पर शैफाली ने कोई प्रतिक्रिया नही दी|

“तुम्हें अगर और भी किसी चीज की जरुरत हो न तो ऑनलाइन मंगा लेना – ये तो है यहाँ मिल सब जाता है – मैंने तुम्हारे कमरे में जो मोबाईल रखा है उसमे ऑनलाइन बहुत सारी साईट है – वैसे वो मोबाईल तुम्हारे लिए ही है – |”

भावना कहती रही और शैफाली अपना सैंडविच तैयार कर कॉफ़ी लिए बाहर टेबल पर आकर बैठ गई| भावना को तो उसे बैठे देखकर ही सुकून हो आया कि उसने कम से कम उस नशे से निकलकर कुछ खाया पिया तो !

***

शैफाली के पीने की तलब अब बार ढूंढ रही थी, पवन की बात मान आखिर उसने उसे जाते वक़्त नही रोका बस धीरे से जल्दी आने की गुजारिश कर दी| अभी जुम्मा जुम्मा हुए दो सप्ताह ही बमुश्किल से बीते है इस पर शैफाली आज अकेली ही बार चली गई| भलेही उसका बार जाना उसे बुरा लग रहा था पर कर भी क्या सकती थी घर पर उसका पीने का दौर देख देख कुड़ने से अच्छा है पीने का दौर खत्म कर के आए तो ज्यादा अच्छा हो| उसने कहा था एक घंटे में आ जाए नहीं तो वह उसे कहीं नहीं जाने देगी, कह तो दिया लेकिन शैफाली ने सुना कितना वह नही जानती थी| खैर उसके साथ एक पल में ही वह जान गई कि मिलने वाली वसीयत के सिवा कोई कारण नहीं था उससे अपनी बात मनवाने का| पर आज पहली बार में ही उसकी ताकीद को उसने दर किनार कर दिया|

भावना बेचैनी में कभी  इस कमरे से उस कमरे जाती कभी हाथ में पकडे मोबाईल पर जल्दी से एक ही नम्बर पर रिडायल करती लेकिन बार बार के बिज़ी टोन जैसे कानो में गर्म सीसा उड़ेल दे रही थी| बढ़ते समय ने उसके मन में ढ़ेरों दुश्वारियां भर दी थी| बार बार मन का खिचांव दीवार घड़ी की ओर ले जाता जिससे उसका मन और बैचैन हो उठता| रात के दस ही तो बजे है कोई ज्यादा रात तो नहीं हुई, दिल्ली शहर के लिए रात का नौ तो दुबारा जागने जैसा होता है, उसकी नज़र अपनी बालकनी से दिखते शहर की तेज़ भागती सड़क की ओर जाती है वहां शहर कितना तेज़ भाग रहा था, कौन पीछे छूट रहा इसकी परवाह किए बिना लेकिन भावना तो ऐसा नही कर सकती आखिर एक मौन वादा जो कर चुकी थी अपने जन्मदाता से, उसकी कीमत तो अदा करनी थी इसलिए शैफाली की जिम्मेदारी उस पर भार से कहीं ज्यादा जिम्मेदारी थी जिसे हर हाल में उसे निभाना था| यही बात बहुत देर से उसे बेचैन कर रही थी| घड़ी अपने निर्धारित चक्र को पूरा करती और उसकी टिक टिक की धड़कने उसके ह्रदय में उठने लगती| अब तो ग्यारह बजने को आए एक तरफ ये लड़की वापस नहीं आई दूसरी तरफ पवन का फोन भी पहुँच से बाहर बता रहा है ,आज प्रेस में ही कोई ख़ास आर्टिकल के कारण कहा था कि देर हो जाएगी| जल्दी जल्दी वह मानसी को मिलाती है वहां भी लम्बी घंटी बज कर अपना दम तोड़ दिया फिर स्विच ऑफ़ बताने लगा| क्या करे झक मारकर उसने अपने मोबाईल में सर्च किया कि अब इस समय वह किससे मदद मांग सकती थी| फोन की लिस्ट खंगालते उसकी नज़र के सामने जय के घर का लैंडलाईन नबर आते वह झट से उसी को डायल कर लेती है पर वहां भी पूरी रिंग जाती है वह सब्र से पूरी घंटी जाने तक रूकती है पर फोन नहीं उठता| भावना को लगा अब बस वह रो ही देगी| बेचैनी में अपने होंठ काटती फिर उसी नम्बर पर रिडायल करती है| अबकि फोन तुरंत उठा लिया जाता है| फोन मोहित द्वारा उठाया जाता है उसके हेल्लो कहते झट से औपचारिक परिचय देकर अपनी परेशानी बताती है किसी तरह से कोई शैफाली तक जा सकता है, वह अपना प्रश्न छोडती है, मोहित अपनी कलाई की  घड़ी देखता है| रात के ग्यारह बज रहे थे| अब वही था जो उसकी बात सुन कर अनसुना नहीं कर सकता था| जय लौटा नहीं था इरशाद अप्पी के यहाँ गया था और समर आज बहुत थका आने से कबका सो चुका था यूँ तो मोहित भी बस सोने ही जा रहा था कि लगातार बजते फोन को उठाए बिना न रह सका| भावना से वह बार का पता पूछता झट से अपनी कार से उसकी बताई जगह की ओर कार बढ़ा देता है|

***

मोहित किसी भी प्रकार के व्यसन से कोसो दूर था और आज उसे बार आना पड़ा| उसके लिए ये बेहद भारी वक़्त था| उस बताये बार के बाहर से ही अन्दर का नज़ारा मिल गया| उसने दूर से लाइट मारते बोर्ड को एक नज़र देखा उसके आस पास खड़े लोगो को देखता है वे सब अपनी ही मदहोशी में खोये खड़े थे| कहीं कोई बेहद दिखावटी वस्त्र पहने कमसिन लड़कियाँ जिनकर झुके चिकने लड़के दिखे, माहौल को देख मोहित का जी हुआ कि तुरंत निकल जाए पर उसे अब बार के अन्दर जाना था, अन्दर का नज़ारा वह देखता है वहां कुछ कुछ रंगीन बत्तियों से बार बार टिमटिमाता अँधेरी गुफा जैसा था वहां का माहौल  जिसमें न चाहते हुए भी मोहित समा रहा था| उसे यकीन था कि उस दिन टैरिस की तरफ जाते मिली लड़की ही शैफाली है वह उसे आसानी से पहचान पाएगा फिर भी उसे इस बात पर संदेह था कि उसे लड़कियों के चेहरे आखिर याद भी कहाँ होते है| देर रात होने से भीड़ कम थी पर कुछ डांसिंग फ्लोर पर अभी भी मदमस्त हो कर नाच रहे थे तो कुछ बार की तरफ झुके अपनी मपसंद ड्रिंक का मज़ा ले रहे थे| पूरा माहौल किसी सुरूर में खोया जैसा था| शराब की तीक्ष्ण गंध और सिगरेट के धुएँ से अटा पड़े उस बड़े हॉल में मोहित बड़ी मुश्किल से उसे ढूंढ पाता है अगर उसका ध्यान किसी लड़की का बार बॉय से बहस करते हुए पर न जाता तो| वह थोड़ा आगे बढ़ता है और एक ही नज़र में उसकी नज़र उस सुनहरे बालो वाली गोरी रंगत की लड़की को झट से पहचान लेती है| वह अंग्रेजी और जर्मन में मिली जुली गाली दे रही थी और बार बार उसे ड्रिंक देने का हुक्म दे रहे थी| गुस्से में उसके घुंघराले बाल भी मानों तितर बितर हो गए थे| उस पल न जाने किस अधिकार से उसमे इतनी चेतना आई की झट से उसने उसकी गिलास थामे कलाई थाम ली| ये पल शायद उसमे भी उतना ही आश्चर्य भर गया और वह एक पल मोहित की ओर देखती रह गई| उसके अपनी और खीचने पर जाने कैसे गिलास छोड़कर वह खड़ी हो गई| उसकी नज़रे उसके ऐसा करने का कारण पूछना चाहती थी| मोहित एक साँस में ही उसे समझा देता है कि उसकी बहन ने उसे लिवाने मुझे भेजा है और तुरंत उसे वहां से चलना होगा| ये सुन शैफाली झटके से अपनी कलाई उसकी गिरफ से मुक्त कर फिर बार चेअर पर बैठ कर बार की तरफ मुंह कर लेती है| बार बॉय मोहित को देखकर अपनी शिकायत रखता हुआ कहता है कि कब से कह रहा हूँ कि अब बार बंद होने वाला है| मोहित उसे फिर भावना का हुक्म  सुनाता है पर उसपर लेश मात्र भी असर न होने पर न जाने कैसे मोहित का चेहरा गुस्से में भींच जाता है और पुनः कसकर उसकी बांह वह थाम लेता है अबकि कितनी ही कोशिश पर भी वह उस कसरती हाथो की पकड़ से नहीं छूट पाती है तो उसकी बेलगाम जुबान धाराप्रवाह उसे कोसने लगती है| ये स्थिति मोहित में लगातार गुस्सा और नफ़रत भर रही थी इसी से परेशान वह उसे लगभग खींचते हुए बाहर की ओर लाकर ही उसका हाथ छोड़ता है| बाहर आकर अपनी दुखती कलाई सहलाती शैफाली बुरी तरफ उस पर फुंकार रही थी| इस सबकी परवाह किए बिना वह उसे अपनी कार की सीट पर जबरन बैठाकर तेज़ रफ़्तार से चन्द पलों में ही बिल्डिंग तक पहुँच जाता है|

क्रमशः…………………..

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