
शैफालिका अनकहा सफ़र – 9
मोहित आवेश में एकदम से ब्रेक में पैर जमाता है और झटके से कार रुक जाती है| अब कार भावना के अपार्टमेंट के पोर्च पर खड़ी थी|
“चलो..|” मोहित ड्राइविंग सीट से निकलकर उसकी ओर का दरवाज़ा खोलते हुए कहता है| मोहित के तेवर देख शैफाली इंकार भी न कर पायी| वह उसकी ओर बस आंख तरेरती हुई बाहर निकल आती है| नशा तारी होने से वह हलके से लडखडा जाती है जिससे मोहित झट से उसे संभालने आगे आता है लेकिन शैफाली जल्दी से खुद ही संभलती हाथ से उसे रुकने का इशारा कर देती है|
“संभाल सकती हूँ खुद को|” अपनी लडखडाहट पर काबू करती वह कहती है|
“हाँ वो तो दिखी रहा है|” तंज कसता मोहित अपार्टमेंट की लिफ्ट की तरफ कदम बढ़ा देता है|
“तुम..तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे ये कहने की..|” वह लगभग दौड़ती हुई उसकी तरफ आती है|
“तुम खुद को क्या समझते हो?” मोहित का कन्धा धक्का देती हुई कहती है|
“अपनी हालत तो देखो – हर तरह से गई गुज़री हालत है तुम्हारी|” उसका तंज़ शैफाली के कपड़ो को भेदता उसके मन को जा लगा|
कहते हुए मोहित आगे बढ़ता हुआ बिल्डिंग की लिफ्ट की तरफ आता है|
“ये मेरी अपनी जिंदगी है – चाहे जो भी करूँ|” लिफ्ट का दरवाज़ा खुलते वह मोहित को हलका धकेलती खुद आगे बढ़ जाती है|
“हाँ वो तो कर ही रही हो|” तंज कसता मोहित लिफ्ट के बंद होते सीने पर हाथ बांधें किनारे खड़ा हो जाता है|
“हाँ कर रही हूँ और करती रहूंगी क्योकि ये मेरी अपनी जिंदगी है – इच मग दास |” जर्मन में कहती वह लिफ्ट की दीवार से खुद को टिकाए गुस्से में होंठ कसकर भींचे रही|
मोहित उसका आखिरी वाक्य नही समझ पाया पर उसका मंतव्य समझता हुआ कहता है – “चाहे कितनी भाषाएँ बोल लो पर अगर तुम किसी का मन नही समझ सकती तो तुम्हें वाकई कुछ समझ नही आता|” तभी लिफ्ट खुलते मोहित तेज़ कदम चलता निश्चित फ्लैट की कॉलबेल बजाता है| पीछे पीछे अपनी लड़खड़ाती चाल में शैफाली भी आती रहती है|
फ्लैट का दरवाजा खुलते सामने भावना दिखती है, जिसके चेहरे पर आसाब परेशानी उमड़ी हुई थी|
भावना एक पल शैफाली को तो दूसरे पल मोहित को देखती है| दोनों के चेहरे के चिढ़े भाव देख बस दरवाज़ा खोल कर एक किनारे खड़ी हो जाती है|
लेकिन अन्दर आने के बजाए भावना की ओर देखती हुई आखिर शैफाली बिफर पड़ती है – “मैंने कहा था न कि मुझे यहाँ नही बुलाओ अब कर लो मेरी जिंदगी कंट्रोल – हूंअ..|” एक हिकारत भरी नज़र मोहित की ओर डालती फिर भावना की ओर देखती है – “याद रखो ये एक डील भर है – मुझे यहाँ रखना किसी मरते आदमी की आखिरी ख्वाहिश और मुझे अपनी ही जायदाद पाने के लिए रखी शर्त से ज्यादा कुछ भी नही है|” वह कहती हुई अन्दर चली जाती है| मोहित सन्न सा उसे जाता हुआ देखता रहा|
अब दरवाज़े पर खड़े मोहित और भावना अपनी कतराती नज़रों से एक दूसरे की ओर देखते है|
“सॉरी मोहित मैं शैफाली की ओर से मांफी मांगती हूँ और शुक्रिया कि तुम उसे सुरक्षित वापस ले आए …|’ वह बिलखना चाहती थी पर रुंधे मन से यही कह पायी| वह किसी तरह से आंसू को छुपाती अपनी नज़रे नीची कर लेती है|
“नहीं शुक्रिया की कोई बात नहीं – मैं अब चलता हूँ|” मोहित झट से पलट कर लिफ्ट की ओर वापस चल देता है|
मोहित के जाते वह दरवाजा बंद कर ज्योंही पलटी कि फिर कॉल बेल बजी, वह शंकित भाव से दरवाजा खोलती है तो सामने पवन खड़ा था, भावना के चेहरे के उड़े उड़े भाव और शायद जाते हुए मोहित से पवन सब जान चुका था इसलिए कुछ न पूछते हुए भावना के कंधे पर हाथ फैलाए उसे लिए अन्दर आ जाता है| अन्दर आकर एक नज़र शैफाली के कमरे के बंद दरवाजे को दो पल तक वह निशब्द देखती रह जाती है|
नशे ने शैफाली को ज्यादा कुछ सोचने समझने लायक छोड़ा नही था, बिस्तर पर गिरते वह नींद की गहराइयों में उतर चुकी थी|
***
अगली सुबह छुट्टी का दिन था तो पवन आराम से लिविंग रूम के सोफे पर बैठा अख़बार पढ़ रहा था तो बगल में बैठी भावना सब्जी काटने में व्यस्त थी तभी उन दोनों ने नहीं देखा कि कमरे सी निकलते शैफाली अपने लिए कॉफ़ी बनाकर उनके सामने के सोफे पर आकर बैठ गई थी, उसके दूसरे हाथ में मोबाईल था जिसे कान में लगाए ज्योंही वह बोलती है तो दोनों एकदम से चौंक जाते है| वह अनावश्यक हँसती हुई एडवर्ड से बात कर रही थी| हिंदी अंग्रेज़ी मिश्रित भाषा में बात करती करती बीच बीच में जोर से हँस पड़ती जिससे दोनों के चेहरे पर अनबुझे भाव उतर आते कि कल रात की लेश मात्र भी शर्मिंदगी उसके चेहरे पर नही थी ये देख भावना का चेहरा तन उठा, वह कुछ कहना ही चाहती थी कि पवन की आँख का इशारा देख बस जब्त करके रह गई| शैफाली बात करती करती फ्लाइंग किस करती है| भावना से ये अभद्रता और ज्यादा बर्दाश्त नहीं होती वह उठकर वहां से चली जाती है| शैफाली तिरछी नज़र से सब देख रही थी, वह असल में ऐसा ही कुछ चाहती थी| भावना को ज़ेर कर वह मन ही मन मुस्कराई और अपनी मिनी स्कर्ट से झांकती जांघे सोफे पर और इत्मीनान से पसार कर बात करने लगती है| पवन को भी आखिर वहां से उठना पड़ता है|
“मिस यू पुच्च …|” वह खिलखिला कर बिन आहट से हँसी|
पवन देखता है भावना बालकनी में खड़ी अपने रुके बांध हटा कर आँखों की नदी हौले हौले बहा रही थी| वह कुछ समझाना चाहता था पर मन मसोज कर रह गया| पवन और भावना की नज़रे मिलती है और दोनों ख़ामोशी से वहीँ खड़े अभी ही शैफाली की तरफ देख रहे थे कि वह कैसे सिगरेट के धुंधले छल्लो के बीच अभी भी मोबाईल में ठहाके लगा रही थी| ये स्वछंद हँसी थी अपने जीवन के प्रति लापरवाही की ये सोच भावना उस ओर से अपनी नज़रे फेर लेती है|
आखिर रोज ही शैफाली की बेअद्बी उसका दिल दुखा रही थी और न चाहते हुए भी वह कुछ नहीं कर पा रही थी| हालाँकि वह कानूनन रूप से उसपर जो रोक लगा सकती थी और लगा भी चुकी थी जैसे उसे उसकी इच्छा के बिना कहीं बाहर जाने की अनुमति नही थी पर लौटती वह जानबूझ कर अपनी ही इच्छा पर थी, भावना ने उसे अपने साथ रहने के लिए मजबूर किया हालाँकि वह अलग स्वतंत्र रहना चाहती थी पर भावना के अधिकार पर उनके बीच हुए करार में उसे उन्ही के तौर तरीके से उसी घर पर रहना होगा, उसपर भावना न चाहते हुए भी उसे सिगरेट व शराब पीने से नहीं रोक पाती| वह शैफाली से न पीने की जिद्द कर देख चुकी थी कि उसकी देह इसकी कितनी आदतन हो चुकी है कि कुछ घंटों में ही उसके विपरीत असर उसके शरीर में दिखने लगते| भावना पूरी तरह से उसकी ओर से निराश व हताश हो चुकी थी कि शायद ही वह उसे कभी सुधार पाए लेकिन पवन हर बार उसे वक़्त पर भरोसा रखने को कहता आखिर इसके सिवा उनके पास चारा ही क्या था|
क्रमशः………………