
सुगंधा एक मौन – 11
बाहर आते एक एक कदम रास्ते की ओर बढ़ाते उसका दिल हर क्षण डूबा जा रहा था| उसका मन उससे पूछ बैठा………वह क्यों वापस जा रहा है?? अगर वह नही पहचान पाई तो उसके मन ने कैसे उसे पहचान लिया?? आखिर कैसे उसके मन को झट से सारा कुछ याद आ गया?? तो कहीं सुगंधा की कोई मजबूरी तो नहीं?? अपने हर सवाल को तलाशता वह फिर वापस मुड़ गया और झट से क्लास की देहरी में पहुँच गया| अबकि बार का दृश्य उसके होशोहवास पर भारी पड़ा और वह वही रुका न रह सका|
मेज पर सर टिकाए वह सिसक सिसक कर रो रही थी| चिराग उसकी हर हिलकी का दर्द खुद के अन्दर महसूस करता दौड़ता हुआ उसके नजदीक पहुँच गया| उसकी मुट्ठी के बीच ताजमहल आंसुओं में डूबा जा रहा था|
“सुगंधा |” उसने फिर दिल से पुकारा|
उसका मन भी तड़प उठा वह अपना रोता चेहरा उठाकर कह उठी – “जीने लगी थी किसी तरह से – भूलने लगी थी तुम्हें तो क्यों लौट आए – अगर लौटना था तो उस दिन क्यों नही आए – दो साल पूरे दो साल बाद क्यों लौटे !!!” अतिरेक दर्द से उसका हर शब्द आंसुओ से भीग गया था|
चिराग उसकी ओर झुकता उसके चेहरे को अपनी हथेलियों में भरता नम शब्दों से कह रहा था – “मुझसे गलती हो गई – मैं तुम्हारा गुनाहगार हूँ कि वादा करके भी तुम्हारे पास न पहुँच पाया पर क्या करता – एक एक्सीडेंट से दो साल की बेहोशी ने मुझे तुम्हारे पास आने से रोक लिया था सुगंधा |”
“एक्सीडेंट !!!” वे भरे नयनों से उस चेहरे को देखने लगी|
“उस दिन निकला था तुम्हारे पास आने के लिए पर उस एक्सीडेंट ने सब कुछ एक पल में तोड़कर बिखेर दिया – दो साल के कोमा में रहने के बाद सिवाय तुम्हारे नाम के कुछ याद नहीं रहा – मैं मजबूर था सुगंधा |”
सुगंधा उसके हाथों पर अपना हाथ रखती हुई उसकी दर्द से भरी आँखों को देखती हुई कह रही थी – “एक्सीडेंट – और मैं सोचती रही कि चंद दिनों की मुलाकात शायद हमे विश्वास के उस दायरे में नही ला पाई जहाँ किसी भी वक़्त की पुकार पर तुम मेरे पास आ जाते|”
“तुमसे मिलना शेष था तभी तो देखो मैं जिन्दा बचा रह गया |”
“चिराग |” सरगोशी करती वह उससे लिपट गई – “तुम दो साल कोमा में रहे – उफ़ मैं क्यों नहीं समझ सकी तुम्हारी स्थिति – |”
उनके रुंधे लगे से शब्द दर्द की तरह बह निकला –
“मैं तुम्हारा अपराधी हूँ सुगंधा – आखिर क्यों नही आ सका तुम्हारे पास – जाने किस स्थिति में तुमने कितने अधिकार से मुझे इतनी रात बुलाया होगा |” चिराग उसका चेहरा फिर अपनी हथेलियों में भरता उन उफनती नदी सी आँखों को देखता रहा|
वह भी भरे नयनों से उसका चेहरा तकती कहती रही – “हमारी दो चार मुलाकात से तुम कहाँ कुछ जानते थे मेरे बारे में लेकिन उस एक दिन से मेरी जिंदगी बदल गई चिराग – तुम्हें क्या बताऊँ आखिर ये दो साल मुझपर कैसे बीते लेकिन हमारा प्यार सच्चा था तभी तो देखो अनचाहा दो साल का मौन भी हमारे प्यार को कम न कर सका|”
“लेकिन तुमने खुद को इतना मौन क्यों कर लिया !!”
“चिराग मौन मेरे जीवन में ढाल बन गया जिससे मैं उस अनचाहे वक़्त से खुद को बचा पाई|”
“तुम आज जो भी कहना चाहो कह दो मैं सुन रहा हूँ |”
दुप्पटे के कोने से अपनी आँखों के आगे का धुंधला बादल हटाती हुई कहती है – “मेरी जैसी मामूली लड़की ने सपना देखा तभी तो ईश्वर ने दंड दिया – तुम्हारे साथ का सपना – माँ हमेशा कहती थी कि मेरे जीवन में भी एक राजकुमार आएगा जो मुझे सदा के लिए इस दर्द भरी दुनिया से दूर ले जाएगा – तुमसे मिलकर सच में मैं ऐसा एक सपना देखने लगी थी पर उस एक रात सब कुछ बदल गया जब मेरे शराबी पिता जो अकसर मेरी और मेरी माँ की जिंदगी में कभी भी दखल देने आ जाते – उस दिन भी आए थे – नशे में चूर – माँ हर बार की तरह अपनी सिलाई से मेरी पढाई के लिए बचाए पैसे बचाने फिर भिड गई थी उस नर रुपी राक्षस से – पर हार गई और एक ठोकर में मेरी ओर से सदा के लिए ऑंखें मूंद ली उसने – मैं डर गई – तब उस एक पल मुझे सिर्फ तुम याद आए और झट से पड़ोस के घर से तुम्हें फोन करने लगी – तुम्हारी हाँ से मन को भरोसा हो गया और मैं तुम्हारा इंतजार कर रही थी पर तुम नहीं आए – आई पुलिस और प्रेस वाले जिनके लिए ये एक रोचक घटना हो गई – बार बार तरह तरह से सवालों से गुज़री मैं – न चाहते हुए भी मुझे उनके बेतुके सवालों का जवाब देना पड़ता लेकिन मेरे मजबूर हालात पर कोई मेरे साथ नहीं आया – सारे पहचान वालों और रिश्तेदारों ने मुझसे किनारा कर लिया – उस पल मैं बार बार तुम्हें याद करती रही – कैसे कैसे करते मैं उन सबकी सवालियां नज़रों से बचती रही पर हर बार वे मेरी मजबूरी टी वी पर दिखा दिखा कर बेचारी बेचारी का राग अलापते मुझे मानसिक रूप से दर्द देते रहे आखिर अपनी एक टीचर की मदद से मैंने सदा के लिए वो घर छोड़ दिया और इस घर में किराये पर रहने आ गई और जिंदगी चलाने के लिए ट्यूशन पढ़ाने लगी |”
“पर तुमने नाम क्यों बदला अपना ?”
“मैं बार बार लोगों के मुंह से बेचारी सुगंधा सुन सुन कर आजीज आ गई थी इसलिए मैंने अपना नाम बहुत हद तक शक्ल बदला ताकि कुछ तो जी सकूँ मैं|”
“और ये अपने प्यारे बाल भी बदल डाले |” वह उसके रेशमी बालों पर अपनी उंगलियाँ तैराता हुआ मुस्कराया|
“तबभी तुमने पहचान लिया मुझे |” वह फिर उसके कंधे से सट गई|
वह उसकी जुल्फों पर अपना चेहरा फिराने लगा था|
“अब सब भूल जाओ क्योंकि अब मैं तुम्हें खुद से कभी दूर नहीं जाने दूंगा सुगंधा |”
“चिराग – |”
दोनों की बाहें एक दूसरे की पीठ पर अपना बंधन कसती चली गई, आंसुओं से चेहरा फिर देह भीगती रही, पर दर्द था कि समय की सीमा लांध न सका और विस्तार होता गया|
क्रमशः…….
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