Kahanikacarvan

सुगंधा एक मौन – 14

बचपन में माँ नाराज होने पर कितनी बार कसम खिला कर खुद ही तोड़ देती पर इस बार सच में माँ और चिराग के बीच कसम की अनदेखी लेकिन पुष्ट दीवार खड़ी थी जिसे दोनों में से कोई लाँघ नही पा रहा था| माँ का कठोर मन चिराग के चेहरे के उड़े रंग को न देख पाया और न उसकी मुरझाई आँखों को अपने में समेट पाया| वे दोनों कब विपरीत दिशा में जाकर अवस्थित हो गए ये वे खुद भी नहीं जान पाए| चिराग अब कुछ भी कहे बिना सीधे अपने कमरे में जकर खुदको बंद कर लेता है तो माँ भी पूरी ख़ामोशी से अपने कमरे में आकर चुपचाप लेट जाती है| नींद उनकी आँखों से भी रूठी हुई थी| बहुत देर तक एक ही करवट से लेटी लेटी जब वे करवट बदलती है तो अपने पति को आँखें खोले छत की ओर घूरते देख आखिर उन्हें टोक ही देती है|

“आप सोए नही अभी तक !!”

वे आवाज सुन अपनी पत्नी की ओर देखते हुए बोले – “सोई तो आप भी नही !!”

इससे अचकचाती वे चुप हो जाती है|

“मुझे पता है कि क्यों किया आपने ऐसा ?”

वे फिर अपने पति की ओर देखने लगी तो वे मुड़कर अपनी साईड टेबल से एक कार्ड उठाकर बेड के बीच के स्थान पर उसे रखते हुए बोले – “यही वजह है न !”

उस कार्ड की ओर एक चिढ़ी हुई नज़र देख वे उठकर बैठती हुई बोली – “मुझे कोई फर्क नही पड़ता कि दिशा की शादी हो रही है – मुझे तो बस अपने बेटे की फ़िक्र है बस |” कहते कहते उनकी ऑंखें नम हो उठती है|

ये देख वे उठते हुए कार्ड को वहां से हटा कर उनकी तरफ देखते हुए कहते है – “कैसे छुपाएगी अपना मन मुझसे – ये कार्ड देखकर जो भाव आपके मन में आए वही मेरे मन में भी है पर फर्क ये है कि आप अपने भाव पर नियंत्रण नही रख पाई – चिराग के लिए इतना कठोर होकर क्या आप चैन से रह पाएंगी !!” वे उनकी आखों की नमी को महसूसते हुए अपना हाथ बढ़ाकर उनके हाथों पर रखते हुए कहते रहे – “अब ये सोचिए शायद हमारे भाग्य में इससे भी अच्छी बहु हो |”

ये सुन वह झट से अपनी पलकें बंद कर जैसे मन ही मन दिल से यही दुआ मागने लगी|

“श्रीमती जी थोड़ा वक़्त दीजिए चिराग को और धीरे धीरे उसके मन को समझने की कोशिश करिए |”

“तभी तो चाहती हूँ कि वह इधर उधर न भटके – तो क्या मैंने बुरा किया !!” एक बूंद उनके गालों से लुढ़क जाती है जिसपर वे धीरे से मुस्कराते हुए कहते है – “ईश्वर भी माँ का दिल बना कर न समझ पाए तो मैं इन्सान क्या समझूंगा |”

कुछ पल तक वे दोनों खामोश रहते है फिर वे धीरे से फिर कहते है – “अच्छा उस कार्ड का क्या करना है ?”

वे आश्चर्य से उनकी तरफ देखती है मानों यही सवाल वे खुद उनसे पूछ रही हो|

“मेरा विचार है कि परसों मंगनी भोपाल में है तो एक दिन के लिए हम दोनों हो आते है फिर शादी तो किसी और शहर में है तो दूर की असमर्थता दिखाते तब नही जाएँगे |”

“तो अभी भी जाने की क्या जरुरत है – मेरा तो बिलकुल भी मन नही |”

इस पर एक गहरा उच्छवास छोड़ते हुए वे कहते है – “मन की क्या कहूँ बस रस्म अदायगी है अगर बिलकुल नही गए तो हम भी मौके पर इन्हें बुला नही पाएँगे – ये समझिए न आप |”

वे समझाते हुए उनकी तरफ देखते है तो वे आँखों से सहमति देती चुपचाप करवट बदल कर लेट जाती है|

अगली सुबह की ख़ामोशी कुछ ज्यादा ही निशब्द थी| उस पल कोई कुछ बोल देता तो लगता जैसे जंगल के नीरव सन्नाटे में कोई हलचल मचाकर फिर खामोश हो गया| अतुल भी चुपचाप कब कॉलेज के लिए निकल गया किसी को पता भी नहीं चला| माँ भी कई बार चिराग के कमरे के बाहर से होकर गुजर गई पर अन्दर जाने का हौसला न कर पाई, जैसे जैसे ऑफिस जाने का समय हो गया था उनका चिराग के लिए इंतजार बढ़ता जा रहा था|

आखिर पिता तैयार होकर चिराग को आवाज़ लगाते है पर उसकी ओर से कोई प्रतिक्रिया न पाकर वे अपनी पत्नी की ओर देखने लगते है इससे जान कर वे अपने चेहरे पर कठोरता लाती हुई काकी को आवाज लगाकर नाश्ता उसके कमरे में ही भेजने को कहती हुई विपरीत दिशा में मुड़ जाती है ये देख वे ख़ामोशी से ऑफिस चले जाते है|

काकी के बाहर आने तक माँ चिराग का हाल जानने ऐसे बेचैन हुई रही जैसे दूर देश से चिट्टी आने की बेसब्री होती हो| काकी उस घर में चिराग के जन्म के बाद से ही थी तो वह उसे अपनी संतान जैसा ही स्नेह रखती थी, इसलिए उनसे भी उसकी बिखरी हालत देखी नहीं जा रही थी पर माँ बेटे के शीत युद्ध पर चुप रहने के अलावा कर भी क्या सकती थी| वह चिराग को कमरे की बालकनी में उदास इज़ीचेअर में बैठा देख उसका सर प्यार से सहलाकर उसे अपने हाथ से खिलाना चाहती थी पर नाश्ता उसके पास रख बस निवेदन कर चुपचाप चली आई|

इस तरह एक पूरा दिन गुज़र गया न चिराग कमरे से बाहर आया और न माँ उस कमरे में गई| अतुल तो चिराग से डरा डरा उससे दूर ही बना रहा| ये देख पापा ने तय किया कि भोपाल से लौटकर वे चिराग से बात करेगे, तब तक उसे आत्ममंथन करने देते है|

अगले दिन सुबह ही अतुल को चिराग के लिए ढेर निर्देश देते हुए दोनों भोपाल के लिए निकल गए| उस दिन अतुल कॉलेज भी नहीं गया, अचानक वह देखता है कि चिराग घर से बाहर जा रहा है| उसे चिराग से डर तो था पर उससे कहीं अधिक माँ के हुक्म की फ़िक्र थी वह चिराग को रोकने दौड़ता है|

चिराग उसकी बाइक लेकर जाने को तैयार था|

अतुल उसे आवाज लगा कर माँ का हुक्म सुनाता है कि उनकी अनुपस्थिति में वह कही नही जाए इसपर चिराग अपनी गुस्से वाली ऑंखें उसपर गड़ा देता है इससे अतुल वही ठहर कर रह जाता है|

चिराग तेजी से बाइक स्टार्ट कर एक झटके से पीछे की ओर मोड़ लेता है ये देख अतुल उसके पीछे भागता उसे आवाज लगाता  है|

“भईया….|” उसकी आवाज की आकस्मिकता पर चिराग फिर गर्दन मोड़कर उसे घूरता है कि सामने अधखुला मुख्य लोहे के गेट से वह सहसा टकरा जाता है|

ये देख अतुल जान लगाकर उसकी तरफ भागता है लेकिन तब तक कम दूरी पर बाइक की रफ़्तार से चिराग एक झटके से लुढ़कते हुए बाइक से दूर छिटककर गिरता है|

इससे अगले ही पल बाइक की आवाज और अतुल की चीख उस वातावरण में एक साथ गूँज उठती है|

***

उस एक पल क्या हुआ या अतुल ने कितना संभाला पर वक़्त की ये दूसरी ठोकर थी जिसे जो सुनता उसी का मन द्रवित हो उठता| अभी डॉक्टरों के बीच चिराग इमरजेंसी रूम में था और बाहर अपनी रुलाई को समेटे अतुल अपना सर पकडे तो वही बगल में अमित शून्य में ताकता बैठा हुआ था| दोनों को डॉक्टर का इंतजार था पर इंतजार भी बड़ी खामोशी और दयनीयता से बीत रहा था|

“अतुल अंकल अंटी को फोन किया !!”

“हाँ – शायद बिजी होंगे अभी – मैंने पापा को मैसेज कर दिया है – जैसे ही देखेंगे वापस आ जाएँगे वे |”

अतुल की बात सुन अमित धैर्य के लिए उसके कंधे पर हाथ रखता हुआ कहता है – “सब ठीक हो जाएगा अतुल लेकिन चिराग जा कहाँ रहा था ?”

“मुझे नही पता पर अगर मैं पीछे से आवाज नही लगाता तो ये नही होता – सब मेरी ही गलती है पर क्या करता मम्मी ने अपने आने तक उन्हें कहीं भी बाहर जाने से मना जो किया था|” अतुल की जैसे रुलाई फूट पड़ी|

“हट पगले – जो होना होता है वो हो कर ही रहता है – खुद को बेवज़ह मत कोसो समझे – सब ठीक हो जाएगा |” कहता हुआ अमित लगभग उसे अपनी बांह में घेरते छोटे बच्चे की तरह चुप कराता हुआ पूछता है – “लेकिन मना क्यों किया था अंटी जी ने ?”

अमित का प्रश्न वही टंगा रह जाता है, तभी डॉक्टर के निकलते दोनों एकसाथ उनकी तरफ लपकते है| डॉक्टर देखता है कि उनके शब्द उनके चेहरे बयाँ कर रहे थे|

“डोंट वरी – अब स्थिति खतरे से बाहर है फिर भी ट्वंटी फोर अवर हम ऑब्जरवेशन में रखेंगे|”

दोनों की सांसों ने जैसे एकसाथ राहत महसूस की| वे एकदूसरे का चेहरा देख रहे थे और डॉक्टर उन्हें दिलासा देकर चले गए|

दोनों फिर वही बैंच पर बैठ जाते है, अतुल फिर सर नीचा किए बैठा था तो अमित उसे पुकारता हुआ उससे कह रहा था – “अब तो ठीक हो गया न चिराग – थोड़ी देर में होश में भी आ जाएगा|”

इसपर अतुल कुछ प्रतिक्रिया नही करता तो फिर अमित पूछता है – “कोई बात हुई थी क्या जो चिराग गुस्से में घर से बाहर निकला – हु !!”

इस पर अतुल धीरे से सर उठाकर अबकि अमित की नज़रों में न देखते हुए कह रहा था – “मैंने रोज रोज सुगंधा के लिए भटकने वाली बात मम्मी को बता दी थी जिससे मम्मी ने भईया को फिर कभी सुगंधा का नाम तक न लेने की कसम दिला दी – तभी से भईया ने सबसे नाराज़ होकर खुद को अपने कमरे में बंद कर लिया लेकिन मम्मी पापा के बाहर जाते कहाँ जा रहे थे ये मुझे नही पता !” कहता कहता अतुल का चेहरा रुआंसा हो उठा था|

“इतना सब कुछ हो गया पर मम्मी के बच्चे तुमने मम्मी को सारी बात बताई ही क्यों !!! तभी चिराग नाराज़ हो गया !!”

अबकी भरी आँखों से अतुल अमित की ओर देखता है और अमित उसे दिलासा देते उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहता है – “कोई बात नही – जो होता है सोचो अच्छे के लिए ही होता है – अच्छा चिराग का मोबाईल ला – शायद उससे कुछ पता चल जाए|”

अतुल अपनी पॉकेट तलाशता एक मोबाईल अमित की ओर बढ़ा देता है| मोबाईल लेकर कुछ पल तक उसे खंगालने के बाद वह कहता है – “इसमें सुगंधा के नाम से जो नंबर है वही आखिरी डायल नंबर है पर शायद घंटी जाने से पहले ही फोन काट दिया गया – पचास साठ बार डायल किया है|” अतुल को स्क्रीन दिखाते हुए कहता है|

अतुल हतप्रभ देखता रहा|

“ऐसा करते है – बुलाते है सुगंधा को – देखते है ये आखिर है कौन ?”

“नही – मम्मी को पता चल गया तो !!!”

“चुप मम्मी के बच्चे सब काम क्या मम्मी से पूछ के करेगा – तूने ही सब गडबड कर दिया – क्या जरुरत थी घर में बताने की ?”

“मैं क्या करता – दिर रात भईया खुद भी परेशान हो रहे थे और मुझे भी करते थे – पता नही कौन सी निशा मैडम के सामने मुझे भेज दिया – बस भईया फिर ऐसा न करे इसलिए बताया पर नही पता था कि मम्मी इतना नाराज़ हो जाएगी |” मासूमियत से अपनी बात कह वह अमित की ओर देखता रहा|

“अब तो इन सुगंधा मैडम को बुलाना पड़ेगा – हम भी देखे इस मुहब्बत की आग में कितना दम है |”

अतुल अमित को मना नही कर पाया पर घिघियाते हुए उसकी ओर देखता रहा जो मोबाईल के मैसेज में कुछ लिख रहा था|

तभी नर्स उनकी तन्द्रा भंग करती है – “डॉक्टर साहब ने कहा है – आप खून की बोतल का इंतजाम रखे – हो सकता है जरुरत पड़ जाए|”

दोनों साथ में अब नर्स की ओर देख सहमति में बस सर हिला देते है फिर नर्स के जाते अमित कहता है – “तुम अपने कुछ ख़ास ख़ास दोस्तों को बोल के रखो ताकि हमारे अलावा भी खून देने लिए समय पर वे उपलब्ध रहे – मैं आता हूँ थोड़ा बाहर से |” कहकर अमित बैंच से उठ जाता है और अतुल अपना मोबाईल निकाल लेता है|

क्रमशः………

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