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सुगंधा एक मौन – 15

किसी सुव्यवस्थित कमरे में सुगंधा एक अधेड़ स्त्री के सामने बैठी थी जो सुगंधा को कोई पेपर दिखाती हुई कह रही थी – “ये देखो मेरे कॉलेज में वेकेंसी निकली है – तुम भरना जरुर बाकी तुम्हारा परास्नातक खत्म होते अपनी पीएचडी तुम मेरे अंडर में शुरू कर देना – फिर तो हाथों हाथ नौकरी मिलेगी तुम्हे सुगंधा |”

वे सुगंधा की गहरी गहरी आँखों को देखती हुई जैसे सारा कुछ पढ़ लेती है – “अब तुम दुनिया के लिए भलेहि निशा बनो पर मैं तो तुम्हें सुगंधा नाम से ही जानती रहूंगी – मेरा दिया नाम ही मेरी जबान में नहीं चढ़ता -|”

इस पर दोनों की मुस्काने आपस में मिल जाती है|

“तुम वहां ठीक से तो हो न – वैसे वो मेरी सबसे अच्छी सहेली का घर है लेकिन फिर भी तुम्हें कभी भी कोई समस्या हो तुम कभी भी मेरे पास आ जाना – तुम तो में बेटी सरीखी हो |” वे प्यार से उसके सर पर हाथ फिराती है तभी सुगंधा के बंद पर्स से मैसेज टोन की घुटी आवाज आती है, इससे उसका ध्यान मोबाईल की तरफ जाता है पर वह उसे निकालती नही है बल्कि उनकी बात का उत्तर देने लगती है –

“मुझे वहां कोई तकलीफ नही है नूतन मैम – वे भी आपकी ही तरह बहुत अच्छे लोग है – वे लगभग रोजाना ही कॉलेज से लौटकर मेरा हाल चाल लेलेती है और कोचिंग भी अच्छी चल रही है |” वह भरपूर मुस्कान से अपनी बात कहती है|

“वाह – ये तो अच्छी बात है पर मैं चाहती हूँ कि तुम जल्द सेजल्द कॉलेज में नौकरी करो – कोचिंग तो अनिश्चित जॉब है|”

“जी ..!!” वह धीरे से प्रतिउत्तर देकर चुप हो जाती है फिर जाने की विदा लेकर उस बड़े कमरे से बाहर निकलते निकलते अपना मोबाईल निकाल लेती है और मोबाईल की ओर आखें गडाते उसके चेहरे का रंग ही उड़ जाता है, अब उसके कदम बाहर की ओर तेजी से बढ़ रहे थे|

काफी देर बाद जब अमित बाहर से वापस आता है तो पाता है कि अभी भी अमित अपने दोस्तों को खून की आवश्कता के बारे के फोन कर रहा था तिसपर चौंकते हुए वह पूछ बैठा – “कितने ख़ास दोस्त है तुम्हारे – अभी तक फोन ही कर रहे हो |”

“हाँ मैंने पन्द्रह ख़ास दोस्तों को फोन कर दिया जो एक फोन पर कभी भी आ जाएँगे हॉस्पिटल |” अतुल जिस सहजता से बोल गया अमित उसका चेहरा देखता रह गया|

“अच्छा डॉक्टर आए कुछ और बताया ?”

“नहीं पर मैंने ही पूछा था – बोले स्थिति नियंत्रण में है और खून की अभी फ़िलहाल जरुरत नही |”

“हम्म |” फिर दोनों शांत वही बैठ जाते है|

तभी उस ख़ामोशी के बीच अतुल ध्यान हॉस्पिटल की गैलरी के अग्रिम छोर की ओर दिलाता है जहाँ से आते एक बेचैन चेहरे पर अब उनकी नज़रे जम गई थी| सुगंधा बेचैनी में वही लगभग भागी हुई सी आ रही थी, वे दोनों उसकी ओर देखते अब खड़े हो जाते है|

“ये तो निशा मैडम है – क्या सच में यही सुगंधा है !!!”

“चेहरे की बेचैनी तो यही कह रही है – आने तो यहाँ उसे पूछता हूँ |” अब दोनों उस ओर अपनी अपनी ऑंखें गडा देते है|

सुगंधा तेजी से उधर आती शायद अतुल को पहचान लेने पर अब उनके सामने रुकी अपनी प्रश्नामक नज़रों से देखने लगती है|

“सुगंधा !!!” अमित धीरे से पुकारता है तो अब वह उसकी ओर देखने लगती है|

“हुआ क्या !!!” बड़ी हिम्मत कर जैसे वह पूछ पाई|

“एक्सीडेंट |” फिर धीरे से अमित कह कर उसके चेहरे के भाव पढने लगता है|

अमित की नज़रे सुगंधा के चेहरे पर टिकी थी जहाँ बेहद दर्द की टीस साफ़ नज़र आ रही थी|

“वैसे अभी उसकी हालत स्थिर है लेकिन कोई चिंता की बात नही है |”

अमित की बात सुन वह अमित से ही पूछ बैठती है – “क्या मैं देख सकती हूँ ?”

अमित देखता है कि उन गहरी गहरी आँखों में दर्द की बूंद झलक आई थी| वह और कुछ न कहते बस उसे इमरजेंसी रूम की तरफ लाता है जिसके कांच के शीशे से वह अब झांकती हुई चिराग की निस्तेज देह को देख अब अपनी रुलाई पर काबू नहीं कर पाई और हट से अमित की ओर पीठ कर अपने आंसू पोछने लगी|

“आप ही सुगंघा और निशा है !!” अमित उसका सर हाँ में हिलता देख आगे कहता है – “आपको बहुत दीवानों की तरह ढूंढता फिरा है मेरा दोस्त – पता नही कहाँ जा रहा था पर डायल में आपका ही नंबर देख मैंने आपको मैसेज कर दिया – क्या सुबह आपकी बात हुई थी उससे !!”

अमित जानता था कि चिराग माँ की कसम नही तोड़ेगा फिर भी वह सुगंधा का मन टटोलना चाहता था| वह धीरे से उसकी तरफ मुडती हुई न में सर हिला कर फिर उस शीशे के पार अपनी नज़र जमाँ  देती है|

तभी वहां आती नर्स को देख अतुल उनके  पास आ जाता है| वह दोनों की तरफ देखती हुई कह रही थी – “डॉक्टर साहब ने दो यूनिट खून देने के लिए कहा है और आपके मरीज को प्राईवेट रूम में शिफ्ट कर रहे है तब तक आप अस्सी हज़ार काउंटर पर जमा  करा दे |” कहती हुई नर्स निकल गई|

इससे पहले की अतुल कुछ कहता सुगंधा झट से आगे आती हुई बोली – “पैसे मैं काउंटर में जमा करा देती हूँ |”

ये सुन अतुल आश्चर्य से उसे देखता कुछ कहने वाला था उससे पहले ही अमित धीरे से उसका हाथ दबा कर इशारा कर रोक लेता है| वह तुरंत बाहर की ओर चल देती है तो अतुल अब अमित की तरफ प्रश्नात्मक मुद्रा से देखने लगता है|

“अरे बुद्धू वो तो समझती है न कि इतना पैसा तुम अफोर्ट नही कर पाओगे – समझे|”

“पर उनसे कैसे ले सकते है पैसे ?”

“अरे अभी उसे देने दो न बाद में चुका देना – बाद के लिए थोड़े ही मैंने मना किया – चलो अभी हमे ब्लड सेण्टर में अपना ब्लड देना होगा – चलो |”

दोनों साथ में निकलने लगते है|

***

चिराग की ख़ामोशी किसी तीर सी उसके अंतर्मन को भेदे दे रही थी| नर्स विगो लगाकर खून उसकी नसोंतक पहुँचाने का कार्य सहजता से कर रही थी पर शरीर बिंधने का दर्द एक टीस की तरह सुगंधा की आँखों में आंसू बन निकल आए, नर्स एक नज़र सुगंधा की ओर देखती है फिर धीरे से मुस्करा कर सांत्वना भरे शब्दों से कहती है – “अभी आपका मरीज ठीक है खून की कमी से चेतना कम है जल्दी ही होश भी आ जाएगा|”

वह अपना कार्य कर चली गई पर सुगंधा अपनी नज़र चिराग से नही हटा पाई, वह चिराग के विगो लगे हाथ को अब धीरे धीरे सहलाते मन ही मन जैसे कोई प्रार्थना बुदबुदा रही थी| भीगी पलकें उठाकर वह उसका चेहरा देख रही थी कि सहसा चिराग की देह में कुछ हरकत हुई वह उसका हाथ कसकर थाम लेती है, चिराग का चेहरा अपने स्थान से थोडासा हिलता है तो बड़ी आस से उसके सर पर हाथ फिराने लगती है, उस पल उसे लगता है जैसे चिराग ने उसे पुकारा हो पर बिन आवाज़ के| उसकी ऑंखें और भार नही संभाल पाई और पहाड़ों से नदी सी एक लहर उसके गालों से लुढ़क गई, चिराग की देह फिर खामोश हो गई|

चिराग की निस्तेज देह को बहुत देर मशीनों से बिंधे सुगंधा नही देख पाई और धीरे से अपने आंसू पोछती वार्ड से बाहर निकलकर बैंच पर बैठ गई| अतुल और अमित साथ में वापस आ रहे थे| साथ में कुछ रुदन की आवाज़ भी जिसपर सहसा ही उसका ध्यान चला जाता है| वो एक माँ का रुदन था जो शायद वक़्त से ही अपने सवाल का जवाब माँ ग रहा था|

“कहाँ है चिराग – क्या हुआ मेरे बच्चे को – पता नहीं कौन सा मनहूस साया है जो मेरे बच्चे का पीछा ही नही छोड़ता..|”

जैसे ही ये स्वर सुगंधा के कानों में पड़ा उसकी रूह कांप गई एक ही पल में वह कई आँखों का निशाना बन गई जो साथ में उसकी ओर उंगली उठाए कह रही थी – ‘सुगंधा मनहूस है – माँ मर गई बाप जेल चला गया…मनहूस सुगंधा..|’ दर्द आँखों के रास्तें बह निकला| चिराग की माँ उसे अनदेखा कर अन्दर वार्ड की ओर बढ़ गई, सुगंधा भी बाहर मौजूद भीड़ में जैसे अनजाना चेहरा बन गई, अन्दर जाते कोई भी नज़र अब उसका चेहरा न देख पाया| उसी पल कोई आवाज़ जिसने उसके पैरों में जैसे बेड़ी बांध दी, वो चिराग की आवाज़ थी, उसे होश आ गया था, माँ के आंसू अब हिलकी में बदल चुके थे|

चिराग आँख खोले सबको देख रहा था| माँ, पिता, अतुल के साथ अमित और अभी अभी नर्स के साथ प्रवेश करते डॉक्टर, सब थे फिर भी उसकी निगाह दरवाज़े पर लगी उसी ओर चली जा रही थी, माँ नों कोई इंतजार वही देहरी पर ख़ामोशी से बैठा हो पर नज़र नही आ रहा था|

“अब कैसा लग रहा है, कही दर्द…!!” डॉक्टर चेक करते करते चिराग से पूछ रहे थे और वह न में सर हिलाकर आंख बंद कर लेता है|

“सब ठीक है – और ब्लड चढ़ाने की जरुरत भी नहीं है – शाम तक रिपोर्ट आ जाए – हो सकता है कल परसों तक डिस्चार्ज भी मिल जाएगा |”

डॉक्टर अपनी सांत्वना उनकी आँखों में उम्मीद की तरह छोड़कर चले गए| माँ चिराग के पास बैठी अपने भरे नयनों से उसका चेहरा देखती उसके सर पर हाथ फेरती हुई कह रही थी – “मुझे नहीं पता कि मेरे जाते इतना कुछ हो जाएगा नहीं तो मैं तुझे एक पल के लिए भी अपनी नज़र से दूर नही करती|”

“कल्याणी जी – होनी को हम नही रोक सकते बस ये सोचिए अला बला आकर कट गई और हमारा बेटा सुरक्षित है |” वे आस से उनके कंधे पर अपना हाथ रखते है तो वे एक पल उनकी तरफ तो दूसरी नज़र से चिराग की तरफ देखती हुई कहती है –

“ले मैं अपनी कसम से तुझे आज़ाद करती हूँ चिराग – बस फिर कभी ऐसा मत करना – मुझे तुम्हारी सारी पसंद मंजूर है बस एक बार देख तो ले मेरी ओर|”

चिराग आंख खोलकर अपनी माँ के चेहरे की ओर देखता है जहाँ माँ के दिल का बांध आँखों में टूट जाता है| वह हाथ बढाकर माँ का हाथ कसकर पकड़ लेता है, तो पिता धीरे से मुस्करा देते है, वही अमित और अतुल की मुस्काने भी एकसार हो उठती है|

“अंटी जी सुगंधा यही है |” अमित जोश में कह गया पर उससे अगले ही पल स्तब्धता छा गई|

चिराग की ऑंखें चमक उठी पर मौन वह माँ की तरफ देखता है तो वे धीरे से कहती है – “बुला लो उसे |” एक शब्द जैसे मन मार कर निकले थे उनके मुंह से पर अमित के पैर तो इसी वक़्त का इंतजार कर रहे थे वह तुरंत तेज़ क़दमों से बाहर की ओर चल दिया|

अमित जिस जोश से कमरे से बाहर गया था, उतनी ही निराशा से वह वापस आकर बताता है कि वह चली गई| माँ तुरंत उसका असर चिराग के चेहरे पर देखती हुई धीरे से कहती है – “तुम ठीक तो हो जाओ फिर मिलवा लेना मुझसे |”

उस पल चिराग के लिए अपने जज्बात ज़ाहिर करना और छुपाना दोनों असहज कर रहा था, शरीर में दर्द से आह निकल जाती तो सुगंधा को याद करते मन गुदगुदा उठता|

क्रमशः……………

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