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सुगंधा एक मौन – 16

माँ ये सुनते अवाक् रह गई और अतुल पर नाराज़ भी हुई – “तुमने ऐसा क्यों किया – क्या एटीएम नही था – अरे ऑफिस से ही शर्मा जी से ले लेते – किसी का बेमतलब में अहसान क्यों लिया !!”

चिराग की नाराजगी तो थी ही अब वह अमित का नाम लेकर उनकी नाराजगी भी मोल नही लेना चाहता था इसलिए वह आगे कहने से चुप रह गया| 

“ठीक है तुम घर जानते हो न तो ड्राईवर को बता दो मैं पैसे भिजवा देती हूँ |” कहकर माँ अपनी अलमारी की ओर बढ़ गई|

पर अतुल वहां से जाने के बजाय कुछ सोचता हुआ अपनी माँ को पुकारता है तो वे उसकी ओर देखने लगती है|

“माँ ऐसे समय उन्होंने पैसे दिए तो क्या ड्राईवर के हाथों पैसे भिजवाना अच्छा लगेगा !!”

उन्हें अतुल के मुंह से इस तरह की बात की कतई उम्मीद नही थी फिर भी वे उसकी इस बात से इंकार न कर पाई फिर कुछ सोचती हुई कहने लगी –

“ठीक है लेकिन तुम नही जाओगे अब मैं खुद जाउंगी |”

अतुल ने ड्राईवर को घर बता दिया वे भी जाने को तैयार हो गई क्योंकि वे इस अहसान का भार बहुत देर तक अपने मन में नही रखना चाहती थी|

अगले कुछ पलों में वे सुगंधा के घर के बाहर थी और ड्राईवर को वही रुकने को कहती उसके घर तक अपने कदम बढ़ा देती है| वे डोरबेल को खोजती आखिर दरवाजे को हाथों से ही दस्तक देने लगती है| लेकिन काफी देर तक बार बार दस्तक देने पर भी दरवाजा नही खुलता तो वे पलट कर वापस चलने लगती है तो कोई प्रौढ़ स्त्री उन्हें अपने पीछे दिखाई देती है|

“कहिए ?”

“आप सुगंधा की …!!” वे अपनी प्रश्नात्मक नज़र उनकी ओर गड़ा देती है|

“मैं इस घर की मकानमाँ लकिन हूँ और सुगंधा मेरी किरायदार है – आपको देर से खटखटाते देख मैं चली आई – कुछ आवश्यक बात थी ?”

“असल में कुछ देना था सुगंधा को |”

“अच्छा – बहुत जरुरी है तो आप मुझे दे दीजिए – |” वे उनकी परेशानी उनके चेहरे से पढ़ती हुई कहती है – “वैसे वह कहीं जाती नही – लगता है घर का सामाँ न लेने बाज़ार गई होगी – आप चाहे तो मेरे घर चलकर इन्तजार कर लीजिए – वह मेरी बेटी जैसी ही है|” वे थोड़ा मुस्करा कर उन्हें आश्वासन देती है|

इस  पर कुछ पल सोचती हुई वे कहने लगी – “मैं रुक तो नहीं सकती पर मैं आपको एक पैकेट देती हूँ बस आप उस तक वह पहुंचा दीजिएगा |”

वे आँखों से अपनी सहमति देती तो माँ अपने कदम कार की तरफ बढ़ा देती है| ड्राईवर से कागज और पेन माँ ग वे कुछ लिख रही थी जिसे नोटों के संग रखकर उसे ठीक से बांध कर फिर से वे उनके सामने खड़ी कह रही थी – “कहिएगा चिराग की माँ आई थी और ये दे दीजिएगा उसे – |”

धन्यवाद कहती वे कार की तरफ बढ़ जाती है|

लौट के आती सुगंधा को ये कतई आभास नहीं था कि चिराग की माँ खुद उसके पास आएंगी, इससे कुछ ख़ुशी तो डर के साथ वह पैकेट खोलती है तो नोटों की गड्डी देख उसका चेहरा उतर जाता है, ये नोट ही थे जो कुछ क्षण तक उसे उस परिवार से जोड़े थे आज उनका वापस मिल जाना उस अहसास की इति माँ त्र था| उसकी नज़र देखती है कि नोटों के साथ कोई कागज का टुकड़ा भी है वह हैरत से उसे उठाकर देखती है, उसमे कुछ लिखा था जिसे वह जल्दी से पढ़ने लगती है|

‘तुम्हारा शुक्रिया कि तुमने ऐसे समय अपनी जमाँ पूंजी दे दी…अब इसे रख लेना इससे मुझे अच्छा लगेगा…मुझे नहीं पता कि मेरे बेटे से तुम्हारा किस तरह से जुड़ाव है पर जो कुछ भी है वो अब उसके जिंदगी पर बन आया है…मैं ये बिलकुल नही कहना चाहती कि तुम्हारे आते उसकी जिंदगी हादसों में क्यों बदल गई…हो सकता है ये सिर्फ संयोग ही हो…पर ये माँ का दिल है जो डरा बैठा है…अब तुम पर है कि तुम क्या चाहोगी…उसका जीवन या उसकी चाह…|’

पढ़ते पढ़ते उसकी आँखों में समंदर का खारापन आ गया, सारे शब्द धुंधले हो उठे| वह चुपचाप पैकेट को रखती उस पत्र को अपनी भीगी पलकों तले निहारती रहती है|

चिराग दो दिन में ही इतना स्वस्थ हो जाएगा कि खुद उठकर सीढियां चढ़कर अपने कमरे तक जा पहुंचा, माँ हैरान रह गई, उन्होंने तो जानकार उसका नीचे के कमरे में रहने का प्रबंध किया था| वे ख़ुशी से उसका सर सहलाती उसका चेहरा देखती रह गई|

“माँ अब मैं बिलकुल ठीक हूँ तो सोचा यही वापिस आ जाऊं|”

“हाँ हाँ – क्यों नही -|” वे नम आँखों से उसका चेहरा देखती हुई कह रही थी – “तुम्हें सदा ऐसे ही खुश और स्वस्थ देखना चाहती हूँ – और क्या चाहे ये ऑंखें |”

चिराग भी माँ को थामे अपनी भरपूर मुस्कान से उन्हें देखता हुआ मन ही मन सुगंघा का ख्याल कर मुस्करा रहा था कि मुझे मेरी ख़ुशी दे दी मुझे भी और क्या चाहिए|

माँ ने शब्दों के अलावा अपनी हर तरह से अपनी स्वीकृति जाहिर कर दी तो चिराग के लिए भी अब रुके रहना मुश्किल हो गया, वह उसके अगले दिन ही ठीक महसूस होते अमित को बुला लेता है, ताकि किसी तरह से फिर सुगंधा से मिलने की कोई भूमिका बने तो हुआ भी यही, अमित ने जानकर पैसों वाली बात छेड़ी फिर चिराग से ही पूछ बैठा कि वह गया नही वहां !!! चिराग सहमति के लिए माँ की ओर देखता है|

“मैंने पैसे भिजवा दिए थे |”

चिराग को मिलने की उम्मीद खत्म होती दिखी, वह ख़ामोशी से फर्श की ओर देखने लगा|

“और अगर सुगंधा को थैंक्स कहने मिलवाना चाहते हो तो क्या दोपहर का लंच बनवा दूँ उसे सपरिवार बुलवा लो |”

चिराग के कानों में माँ के शब्द जैसे मंदिर की घंटी जैसे बज उठे, वह चाहकर भी अपनी मुस्कान छुपाए न रख पाया|

“क्या आज !!”

“जब चाहो – बता देना बस |”

वे सहजता से कहती है|

अमित ख़ुशी से लगभग उछलते हुए बोला – “हाँ आज ही – मैं ले चलता हूँ तुझे|”

माँ दोनों के चेहरों को गौर से देखकर पढ़ने का पर्यंत करने लगी|

“माँ वो अकेले रहती है|”

“उसके माँ ता पिता !!” माँ चौंककर पूछती है|

“उसकी माँ इस दुनिया में नही है और पिता…|” हिचकिचाते हुए वह धीरे से कहता है – “वे – वे |”

“वे कहीं चले गए है – मतलब कि गुमशुदा है -|” अमित जल्दी से बात सँभालते हुए कहता है – “अन्टी जी फ़िलहाल वह अपनी टीचर के पास रेंट पर रहती है और बच्चों को मैथ्स पढ़ाती है |”

चिराग के चेहरे पर थोड़ी उलझन समाँ  जाती है, उस वक़्त अमित का बात संभालना उसे ठीक लगा या माँ से कुछ छुपा ले जाना, वह तय नही कर पाया|

“ठीक है – जब बुलाना चाहो बता देना |” कहकर वे दोनों दोस्तों के बीच से उठने लगी तो अमित का कुछ तेज स्वर उनके कानों में पड़ा|

“अरे उठ न – आज ही चल – देख रोज रोज मेरे पास समय थोड़े ही होता है|”

दोनों माँ की ओर नही देखते क्योंकि वे सुनिश्चित थे कि माँ उनकी बात सुन चुकी होंगी|

कार के साथ माँ नों रास्तें के भी पंख लग गए, वे कुछ ही क्षण में सुगंधा के घर के बाहर खड़े थे| चिराग उसके दरवाजे के बाहर खड़ा अपनी बेकाबू धड़कनों पर काबू करने का प्रयास कर रहा था तो अमित उसे दरवाजे की ओर धकेलता मुस्करा रहा था| चिराग के चेहरे की मुस्कान गहरी हुई जा रही थी, उसे समझ नही आ रहा था कि सुगंधा को सामने देख आखिर क्या पहले कहेगा, घर ले जाने की बात या माँ की मंजूरी की बात या अपना हाल-ए-दिल बयाँ करेगा, कहीं ऐसा न हो कि वह कुछ भी कहना भूल जाए और उसके सामने आते वह कुछ न कह पाए ये सोच वह बेबसी से अमित की तरफ देखता है|

“क्या हुआ – अब सोच क्या रहा है – यही घर है न !!”

अमित की बात सुन चिराग अपना हाथ सर पर माँ रते हुए बोला – “नींद में भी अब इस घर को नही भूल सकता|”

“फिर क्या सोच रहा है – कहीं मैं तुझे कबाब में हड्डी तो नही लग रहा – बोल दे तो चला जाउँगा|” एक आंख दबाते वह कह कर कस कर हंस पड़ा इससे चिराग भी अपनी हंसी नही रोक पाया फिर बारी बारी से दोनों ही दरवाजे पर दस्तक दे कर उसके खुलने का इंतजार करने लगते है|

अगले क्षण किसी के आने की आहट के साथ चिराग की धड़कने तेज होने लगती है, दरवाजा झटके से खुल जाता है| चिराग अपनी भरपूर मुस्कान से सामने देखता है तो अगले क्षण ही उसकी मुस्कान कपूर की तरह उड़ जाती है और सामने खड़ी प्रौढ़ा स्त्री की बात सुनकर तो जैसे उसके ह्रदय का स्पंदन की रुक जाता है|

वे कह रही थी – “सुगंधा अब यहाँ नही रहती – उसने कल ही ये घर खाली कर दिया और अब कहाँ रहती है मुझे नही पता|”

अमित अवाक् देखता रह गया, चिराग बहुत देर तक उस बंद दरवाजे को एकटक देखता रह गया|

बिन आत्मा के देह जैसे यंत्रवत अपने स्थान पर चुपचाप वापिस आ गई| अब न अमित से ही कुछ कहते बना और न समझाते|

अमित ने सुगंघा के वहां से जाने की बात बता दी, उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नही दी, बस चिराग की ओर से कुछ चिंतित हो उठी|

चिराग के चेहरे से हंसी रेगिस्तान से पानी की तरह लापता हो गई| एक ही पल में जैसे डूबते आदमी से किनारे की उम्मीद भी छीन ली गई हो| न दिन का उजाला न रात का अँधेरा किसी में कोई फर्क नही रह गया| वह अपनी उदासी में लिपटा ईजीचेअर पर ऑंखें मूंदे बैठा था तभी अतुल उस कमरे में आता उसके पैरों के पास बैठते उसका हाथ थाम लेता है, इस अहसास से चिराग धीरे से ऑंखें खोल अतुल को देख फिर अपनी ऑंखें बंद कर फिर कुर्सी की पुश्त से पीठ सटा लेता है|

“भईया – मुझे माँ फ़ नहीं करेंगे –?” चिराग की ओर से कोई प्रतिक्रिया न देख अतुल कहता रहा – “मैं घबरा गया था आपको परेशान देख के इसलिए मम्मी को बता दिया लेकिन देखिए अब मम्मी भी राज़ी है तो आप देखना हम फिर से उन्हें खोज निकालेंगे |” वह चहकते हुए बोला पर चिराग के भाव वैसे ही बने रहे|

“आप कुछ तो बोलो|”

अतुल परेशान होकर उसका हाथ हिलाते हुए बोला तो चिराग पुश्त से पीठ हटाकर उसकी ओर देखता है|

“ढूंढा उन्हें जाता है जो खो जाते है – खुद छोड़कर जाने वालों के पीछे नही जाया करते |” उसके सर पर हाथ फिराते धीरे से कहता हुआ चिराग उठकर कमरे से सटी बालकनी की ओर बढ़ जाता है|

अतुल हैरान सा उस ओर देखता रह जाता है| अब बालकनी के अंधेरों से धुंए का गुबार उठता हुआ देखता रहा, उन घुंघराले धुंए में माँ नों कोई आकृति बनती बिगड़ रही थी|

क्रमशः……..

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