Kahanikacarvan

सुगंधा एक मौन – 18

सुगंधा की खोज में सारा शहर घूमते घूमते उन दोस्तों को अचानक शहर कितना बड़ा लगने लगा कि सारे दोस्त अपनी हर संभव पहुँच पर निशा कोचिंग की खोज करते रहे पर वे निशा नाम की परछाई तक भी न पहुँच सके, विनी ने अपने जानने वाली हर मैथ्स की कोचिंग को खंगाल लिया पर निशा नाम से कोई कोचिंग पता नही चली तो पवन, कार्तिक, आदित्य, रितेश और जयंत शहर के कोचिंग हब कहे जाने वाले हर रास्ते गली से सौ बार गुजर लिए पर निशा कोचिंग का वे भी जरा सा भी सुराग न लगा पाए तो अंकिता और संजना नेट के सामने बैठी हर मैथ्स विषय पढ़ाने वाली कोचिंग से संपर्क करती निशा या सुगंधा दोनों नामों की खोज कर डाली पर उनके हाथ भी निराशा ही आई, अब तो जैसे उन्हें लगने लगा कि सुगंधा इस शहर में ही नही है, आखिर ये शहर कितना बड़ा है कि एक नाम को अपने अतुल में कितना गहरा छुपा लेगा..!!

ग्राउंड में एक साथ सारे दोस्त एकत्रित हुए निराशा से एक दूसरे की ओर देखते अपनी अपनी तरह से की गई खोज को पूरे विस्तार से बताते हुए जैसे इस खोज को गलत करार दे रहे थे कि हम बिना नाम पता के टेलीफोन नंबर जैसे खोज रहे है| सभी अपना ध्यान अब अतुल की ओर लगा देते है जो आराम से टांग फैलाए चियुम्गम की जुगाली कर रहा था|

“हमे ये तक नहीं पता कि वे दिखती कैसी है !! न ये पता कि उनका मूल घर कहाँ था !!! तो आखिर ढूंढें भी तो कैसे !!!”

“अतुल तुम चिराग भईया से उनके बारे में और कुछ क्यों नही पूछते हो सकता है हमे कोई सुराग मिल जाए !!”

तबसे दोस्तों की सुनता अतुल ये सुनते एक दमसे जैसे अपने स्थान से उछल पड़ा|

“पागल हो तुम लोग – मैं भईया से पूछूंगा !!! उनकी चुप्पी से कितनी खुशहाल जा रही है मेरी जिंदगी मैं बता नही सकता और तुम लोग चाहते हो कि मैं अपने हाथ से अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी माँ रुं |” कहता हुआ अतुल दांत दिखाता हंस पड़ा तो सब उसकी ओर देखते रह गए|

सब चुप उसी को घूर रहे थे तभी संजना अतुल से पूछने लगी – “अच्छा तुमने नहीं बताया कि तुमने किस तरह से सुगंधा जी की खोज की !!”

अब सबके चेहरों पर भी प्रश्नात्मक चिन्ह एक साथ प्रकट हो गए|

इसपर अतुल बड़े इत्मीनान से और पैर फैलाता हुआ कहता है – “मैं बताता हूँ – पूरे तीन दिन इस शहर की जितनी भी कोचिंग है सबके आस पास जितने भी रेस्टोरेंट और फ़ूड कॉर्नर है सब जगह घंटों घंटों बैठकर जबरदस्ती बर्गर, पोहा जलेबी, दही बड़ा सब खाते खाते मैंने हर चेहरे में उनकी तलाश की -|’

सब अब मुंह खोले उसकी बात हैरानगी से सुन रहे थे|

“सोचो मैंने कितना कष्ट उठाया – मन न होने पर भी पूरे टाइम बस खाता रहा – आंसू बहा बहा कर पानी पूरी भी खाई – सच्ची |” कहता हुआ वह जैसे कसम खाने लगता है लेकिन इसके विपरीत सबकी आँखों की हैरानगी गुस्से में बदलती एक साथ उसपर टूट पड़ी|

“अच्छा बच्चू हम भूखे प्यासे गली गली भटक रहे थे और ये महानुभाव मन माँ र माँ र कर पेट में बर्गर-पिज़्ज़ा ठूंस रहे थे..|”

सबकी माँ र से बचने अतुल अपने सर पर जल्दी से हाथ करता हुआ बोला – “अरे दिमाँ ग लगाओ न – वे कितनी देर पढाएंगी खाने के लिए कभी न कभी तो फ़ूड सेंटर जाती न तो बस मेरा यही प्लान था|”

“अच्छा – बहुत बढ़िया प्लान था|”

कहते कहते अतुल झट से उनकी पहुँच से सरकता अब ग्राउंड में दौड़ लगा देता है जिससे बाकी भी अब उसके पीछे पीछे हो लेते है| एक ही पल में दोस्तों के उखड़े चेहरे हंसी की फुहार में तब्दील हो जाते है|

आखिर सुगंधा को ढूंढने का प्लान कुछ दिन के लिए स्थगित कर देते है जब तक कोई क्लू नही उनके हाथ लग जाता| फिर सब अपनी विफलता से हुए खराब मूड को ठीक करने हॉल में मूवी देखने चले जाते है| फिर देर शाम होते सब सरपट अपने अपने घर की ओर भागते है|

संजना भी चुपचाप अपने घर में घुसने का रास्ता देख ही रही थी कि माँ को घर के मुख्य गेट पर खड़ी पड़ोस की एक आंटी संग बतियाते देख धीरे से पिछवाड़े से दोस्तों की मदद से किसी तरह से दीवार लांघती गमलों के ऊपर पैर रखकर अन्दर आती हुई झट से अपने कमरे की ओर भाग जाती है और कपडे चेंज कर किताब लेकर बैठ जाती है|

“संजना …|”

माँ की आवाज सुन संजना लगभग दौड़ती हुई बाहर आती है|

मुख्य कमरे में आती संजना माँ को मटर छीलते तो वही पापा को टी वी में व्यस्त देख झट से पापा के बगल में बैठती हुई पूछती है – “हाँ मम्मा आपने बुलाया !”

माँ दो पल तक उसका चेहरा देखती हुई बोली – “तो कहाँ थी तब से तुम ?”

“कमरे में पढ़ रही थी |” आराम से कहकर वह भी अब टी वी पर अपना ध्यान लगा देती है|

“ओह्ह – मुझे तो पता ही नही चला |” माँ मटर रखती उसकी ओर मुड़ती हुई बोली – “मुझे लगा पिछवाड़े बिल्ली दीवार से कूदी |”

ये सुन संजना का अवाक् मुंह खुला रह गया| पापा भी हडबडाते पूछ बैठे –

“कहाँ है बिल्ली !!”

माँ रहस्यमई मुस्कान से मुस्कराती हुई कह रह थी – “इंजीनियर साहब कुछ घर की भी खबर रखा करिए – बिल्ली नही आपकी सुपुत्री कूदी है दीवार से -|”

माँ जिस गुस्से से अपनी बात पर प्रतिक्रिया चाहती थी पापा उसके विपरीत उसी पल संजना की ओर मुड़ते हुए पूछने लगे –

“दीवार से कूदी – संजना बेटा चोट तो नही लगी !!”

ये सुन माँ का चेहरा खुला का खुला रह गया|

इधर संजना कह रही थी – “नो पापा – दैट वाज अमेजिंग – मेरे फ्रेंड्स है तो कोई मुश्किल नही |”

संजना और पापा के चेहरे की मुस्कान देख माँ के गुस्से का तापमाँ न ही चढ़ गया |

“हे भगवान – बेटी दीवार फांद कर आए तो पिता डांटने के बजाये उसका हाल ले रहे है -|”

माँ को गुस्से में देख दोनों चुप रहने में अपनी भलाई समझते टी वी की ओर अपना ध्यान लागा देते है इधर माँ शब्दों से अपना गुस्सा निकाले जा रही थी|

“बिगाड़ो – खूब बिगाड़ो अपनी लड़की को – तभी तो खूब शह मिली है कि उन शैतान मंडली संग बस फालतू घूमती फिरती है – खबर क्या होगी – इनको बिल्डिंग बनाने से फुर्सत नही और लाड़ली को बातें बनाने से |” माँ अब पूरे आक्रोश से कहे जा रही थी – “और उस अक्षरा को देखो – पूरा पूरा दिन घर बैठी पढ़ती रहती है |”

ये सुनते संजना ऐसे उछली जैसे गर्म तवे पर हाथ रख दिया हो – “वो चश्मिश – वो क्या घूमेगी – उस चश्मिश का कोई दोस्त ही नही है– |” कहते हुए संजना अपने सारे दोस्तों को याद कर मुस्करा दी|

“दोस्त नही दुश्मन है सारे – क्या मुझे पता नही सब बंदरों का झुण्ड है जैसे |”

“मम्मा ..!”

“चुप रहो और मेरी सुनो |”

माँ का रौद्र रूप देख संजना का मुंह बनता गया तो समय की नजाकत देख पापा झट से पूछ बैठे – “अरे तुम कोई शादी में जाने का बता रही थी न शायद अपनी बहन के यहाँ….!”

“बहन की नन्द की देवरानी के यहाँ शादी है |” माँ उतने ही गुस्से में बोली|

“हाँ बड़े नजदीकी रिश्ते है|” जिस तरह से पापा बोले संजना को हंसी आ गई|

इससे माँ और भी चिढ़ती हुई बोली – “ऐसा है बाप बेटी दोनों सुन लो कान खोलकर – परसों शादी है और हम तीनों को चलना ही है – मुझे कोई बहाना नही चाहिए|”

“ओके बॉस |”

पिता पुत्री एक साथ बोल खुद ही हंस पड़े जिससे माँ और नाराज़ होती आधी छीली मटर लेकर ही वहां से चली गई|

आखिर न चाहते हुए भी संजना को शादी में जाना ही पड़ा| तीनों लोग तैयार होकर शादी के लिए निकल पड़े| पापा के लिए ये बेगानी शादी में तैयार अब्दुल्ला जैसा कुछ था पर पत्नी के आगे महादेव की न चली तो वे किस खेत की मूली थे| संजना को ऐसी दूर के रिश्ते की शादियाँ बोर लगी थी इसलिए उसने अपनी बोरियत दूर करने का तरीका निकाल लिया| वीडियो कॉल से सारे दोस्तों से एक साथ जुड़कर उन्हें घर बैठे बैठे शादी में आने का मज़ा दिखने लगी, कभी आइसक्रीम खाकर टेस्ट बताती तो कभी नुडल्स के स्वाद के साथ तीखी स्वर भरी आवाज पर सबको चिढ़ाती| इसी मस्ती में उसका समय भी अच्छे से गुजर गया और मम्मी का मुंह भी नही बना|

दूसरे दिन सभी दोस्तों के बीच वह अपनी ढ़ेरों तरह की सेल्फी दिखा रही थी|

“वाओ – उस लड़की ने कितना अच्छा लहंगा पहना है |” अंकिता एक तस्वीर देखती लगभग उछलती हुई बोली|

“अच्छा – उसका अच्छा है तो मेरा वाला …!!” मुंह बनाती हुई संजना बोली तो सब उसका बना चेहरा देख हंस पड़े|

“इतने खाने की फोटो फोटो देख देखकर न मुझे तो भूख ही लग आई – यार बंद कर फोटो दिखाना|” अतुल बीच में पड़ता संजना का मोबाईल छीनने लगता है|

वह उसका मोबाईल लेकर बंद ही करने वाला था कि उसे लगा कि मोबाईल के स्क्रीन में कुछ था| वह फिर से मोबाईल के स्क्रीन में नज़र गड़ाते हुए बोला – “ये तो सुगंधा जी है !!!”

ये सुनते सब अवाक् उसकी तरफ खिंचे चले आते घुसकर अपनी अपनी नज़रे उस एक तस्वीर को देखने के लिए मोबाईल की खुली स्क्रीन में गड़ा देते है|

अतुल ज़ूम कर सुगंधा की तस्वीर सबके सामने कर देता है जिससे सभी की बहुत डेट तक मोबाईल के स्क्रीन में जमी रह गई|

“तभी तो कहावत है लड़का बगल में ढिंढोरा शहर में..|” अंकिता अपनी बात कहकर हंस पड़ी

“लड़का नही लड़की |” ये सुनते सारे दोस्त एक साथ हंस पड़े|

अब अतुल के हाथ से अपना मोबाईल लेती हुई कहती है – “अब तो मिल गई न – देखना कैसे मिलाती हूँ मैं इनको चिराग भईया से |” कहते कहते संजना ऐसे खुद में ही झूम उठी पर इसके विपरीत अतुल का चेहरा जैसे लटक ही गया|

क्रमशः …….

One thought on “सुगंधा एक मौन – 18

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!