
सुगंधा एक मौन – 2
अतुल इधर उधर घूमते फिरते जब वापस घर आता है तो अपने बंगले के बाहर अमित की बाइक देखकर समझ जाता है कि वे घर आ चुके है, जल्दी से अपनी बाइक साईड में खड़ी कर तेज़ी से अन्दर की ओर चल देता है|
बैग एक तरफ फेंककर उसकी नज़र डाइनिंग टेबल के आमने सामने बैठे अपनी माँ और अमित पर जाती है जो उसकी उपस्थिति से अनभिग्ज्ञ अपनी बातों में मशगूल थे| कुछ पल उसके कदम वहीँ ठिठक जाते है| माँ अभी भी उस दिन की घटना से आहत होती हुई अमित से अपना दर्द बता रही थी –
“तुम तो दोस्त हो उसके बेटा – तुम तो सब जानते होगे पर हमे नहीं जानना उस लड़की के बारे में – लगता है जैसे उसके नाम ने ही चिराग की जिंदगी तबाह कर दी|”
“नहीं आंटी जी सच में मुझे भी उसके नाम के सिवा और कुछ भी नहीं पता – उस दिन हम सारे दोस्त कॉलेज की फेरवैल पार्टी के बाद अपनी पार्टी कर रहे थे – सब मेरे घर पर थे फिर अचानक से एक फोन आया और हडबडाते हुए चिराग बाहर निकल गया – मैं कितना पूछता रहा कि बात क्या है, किसका फोन है पर बस सुगंधा ने तुरंत बुलाया है ये कहकर झट से निकल गया – हम उसे रोकते रह गए|” अमित के चेहरे पर तेज़ी से तनाव घिर आया माँ नों वो घटना फिर से एक बार उसके सामने घटित हो रही हो|
माँ खामोश सी नज़रे नीची किए विचारों की खोह में समाती गई|
“मैंने भी आंटी उसके मुंह से उस नाम के सिवा कुछ नहीं सुना – देखना तो दूर की बात है – अगर उस एक्सीडेंट में उसका फोन न बुरी तरह से टूटा होता तो शायद उसमें से उसका नंबर ही मिल जाता – |”
“नहीं पता करना हमें कुछ -|” माँ एकदम से बिफ़र पड़ी – “जिसके नाम भर ने मेरे चिराग को इस हालात तक पहुँचाया अब मैं उसे और नही सुनना चाहती – बस बेटा अब तुम उसके गहरे दोस्त हो तो समय मिले तो उससे मिलते रहो तो धीरे धीरे सब सामान्य होता जाएगा |”
अमित उनकी भावना को अंतरस उतारता हुआ अपना आश्वासन भरा हाथ उनके हाथ पर रखता हुआ कहता है – “आप फ़िक्र न करे आंटी – चिराग कोमाँ से वापस आ गया है तो अब सब ठीक हो जाएगा |”
माँ धीरे से अपनी आँखों के कोरे पोछते उठती हुई कहती है – “बैठो बेटा मैं चाय लाती हूँ |”
माँ उठकर किचेन की ओर चल देती है, उनके जाते अमित की नज़र घूमती हुई अपने से कुछ दूर खड़े अतुल पर जाती है तो वह एकदम से चहक उठता है – “अरे अतुल कब आए – !”
अतुल मुस्कराता हुआ आगे बढ़ता है – “बस भईया जस्ट अभी आया – आप कैसे है ?”
अतुल बढ़कर उसकी पीठ पर हाथ धरता हुआ उसे अपने सामने की चेअर पर बैठाता है – “मैं तो ठीक हूँ – और चैम्प तुम बताओ – कैसी चल रही है पढ़ाई तुम्हारी !”
“नार्मल |” वह धीरे से मुस्करा कर संक्षिप्त उत्तर देता है|
“नार्मल क्यों !! इस बार तो सेकेंड ईयर है न तुम्हारा – एनी प्रोब्लेम ?”
“एक्चुली भईया के साथ बहुत सारा समय चला जाता है – जब से होश में आए है उन्हें बहुत देखना पड़ता है – जैसे पिछला अपना सब कुछ भूल गए हो |” अतुल का स्वर गंभीर हो उठा|
“डोंट वेरी अतुल – तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो – धीरे धीरे सब याद आ जाएगा उसे – मैं आता रहूँगा जल्दी जल्दी|”
“आप मिले अभी !!” अतुल पूछता है|
“नहीं आंटी जी ने बताया कि सो रहा है तो मैंने सोचा उसकी नींद डिस्टर्ब न करूँ – मिल लूँगा आराम से|”
कुछ पल दोनों खामोश हो जाते है जैसे उनके बीच की सारी वार्तालाप चिराग से शुरू होकर चिराग में समाँप्त हो गई हो|
इसी बीच नौकर आकर उनके बीच चाय और नाश्ता रखता हुआ जाते जाते बता जाता है कि मालकिन अभी आ रही है|
अमित अपनी कलाई घड़ी में समय देख धीरे धीरे चाय सुड़कने लगता है, अतुल भी एक कप अपनी तरफ रख लेता है पर अपने मन में उठते किसी प्रश्न से दो चार होता चाय के साथ उस प्रश्न को नहीं गटक पाता तो एक गहरी साँस अपने भीतर से खींचता हुआ वह अमित से पूछने का हौसला कर ही लेता है – “एक चीज पूछ सकता हूँ भईया ?” अमित की ऑंखें तुरंत उसकी तरफ उठती उसे अपनी आँखों से स्वीकृति दे देती है|
“सुगंधा सच में कोई लड़की है या चिराग भईया का कोई ख्याल !!!”
अमित हैरान उसका चेहरा देखता रहा|
“जिसका नाम लेकर भईया कोमा में गए और जिसका नाम लेकर दो साल बाद वह अपने कोमा से बाहर आए – वह है क्या चीज और आप जो उनके जिगरी दोस्त है आपने भी क्यों नही देखा उसे – मुझे ये बात बहुत उलझा देती है भईया|”
अतुल का प्रश्न उसके जेहन में भी जैसे उथल पुथल मचा देता है, वह उसकी तरफ देखता रह जाता है| सुलगते प्रश्न में उनके बीच चाय ठंडी होती रहती है पर उससे कुछ कहते नही बनता|
उसकी नज़रों के सामने जैसे दो साल पूर्व का समय चलचित्र सा दौड़ जाता है, उसके फ़्लैट में सारे दोस्त गाने में झूम रहे थे, सबको अपनी मस्ती में आधी रात तक का भान नही रहा था, तब अचानक से चिराग का मोबाईल बज उठा, अमित देखता रह गया कि उस फोन के साथ ही उसके चेहरे के भाव परेशान हो उठे थे| वह तुरंत मोबाईल अपनी जेब के सुपूर्त करता बाहर की ओर जाने लगा, ये देख अमित बाहर तक उसके पीछे भागा और आवाज लगाकर किसी तरह से रोक पाया लेकिन चिराग जाने को कुछ ज्यादा ही व्यग्र था, वह रुका भी तो बस ये कहने कि बहुत जरुरी है सुगंधा का फोन आया है उसे मेरी जरूरत है|’ कहकर बिना उत्तर की प्रतीक्षा करे चिराग बाइक से पल में उसकी आँखों से ओझल हो गया| बस अगले एक घंटे बाद बस फोन आया और चिराग के हॉस्पिटल में होने की खबर मिली| वो भला हो कि उसका एक्सीडेंट किसी सरकारी हॉस्पिटल के नजदीक हुआ जिससे बिना इंतजार उसे झट से हॉस्पिटल में भरती करा दिया गया| बस यही से चिराग की चुप्पी से सुगंधा उसे कभी समझ नहीं आई|
उसी घर का एक बड़ा करीने से सजा कमरा, जो अपनी हर दीवार पर इस कमरे में रहने वाली की हर स्मृति को अपने सीने में चिपकाए मुस्करा रहा था पर उसका माँ लिक बेड पर पड़ा पड़ा अपनी खुली आँखों से बहुत देर से बस छत ताके जा रहा था| उसकी ऑंखें शून्य में टक सी गई थी जहाँ निस्तेज शब्द के ढ़ेरों मौन थे…..
क्रमशः…..
Very🤔🤔👍👍