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सुगंधा एक मौन – 20

संजना की नज़र से जैसे उनके तड़पते चेहरे एक पल को भी न हटे| क्या प्यार यूँ दीवाना होता है !! तो मौन क्यों है मुखर होता सारी दुनिया को अपना दर्द क्यों नही कह देता !! पर ये दुनिया क्या समझेगी किसी प्रेमी तड़प को, कितनी निर्दयता से उनके बीच दीवार खड़ी कर उन्हें बेकली में छोड़कर दुनिया आराम से सो रही है और ये दो जोड़ी आँखें एक दूसरे के इंतजार में राह तकती अपने अपने शून्य में जैसे अटकी रह गई है !! उफ़्फ़ काश मैं अभी इसी पल इनके बीच की दूरी घटा पाती !! सोचती हुई संजना अपने मोबाईल के स्क्रीन में चिराग और सुगंधा की तस्वीर को बारी बारी एकटक देखती देखती ही सो गई और उसे पता भी न चला कि कब अपने ख्वाबों में उन्हें मिलता देख पूरी रात मुस्कराती रह गई लेकिन सपना था तो अगले पल टूटना ही था| सुबह नींद खुलते जैसे अधूरे मिलन की बेचैनी उसके चेहरे पर चिपकी रह गई|

“क्या हुआ संजना – इतनी परेशान सी क्यों दिख रही है ?” माँ पूछ ही बैठी पर अनुत्तरित संजना क्या कहती बस किसी तरह से बहाना बनाती कॉलेज को निकल गई|

पर अपने चेहरे की उदासी पूरी तरह से नही झाड़ पाई और कॉलेज में भी किसी एकांत में बैठी उन तस्वीरों को निहारती रह गई| अंकिता उसके पास आती उसकी पीठ पर हलके से धौल जमाँ ती उसका चेहरा देखती पूछ रही थी –

“अरे क्या हुआ संजना – ये तेरे चेहरे की हवाइयां क्यों उड़ी हुई है ?”

इस समय संजना सच में अपनी बेचैनी किसी से बाँटना ही चाहती थी और अंकिता से बेहतर कौन हो सकता है !! वह झट से अंकिता की ओर मुड़ती वे तस्वीरें उसके परिदृश्य में रखती अब बेचैनी का एक घुमड़ता बादल उनकी आँखों में भी भटकता देखती है, यही पल था जब जयंत अंकिता को ढूंढता हुआ वही आता वह भी उस तस्वीर से अपनी ऑंखें नही हटा पाता| जुदाई के आभास की तड़प अब उन दोनों के चेहरे पर भी दिखाई पड़ आई| जयंत और अंकिता डर के एक दूसरे का हाथ थाम लेते है|

ये प्रेमी दिल ही है जो प्यार और जुदाई को सहज ही महसूस कर लेते है|

“संजना अब क्या करेगी तू ?”

वे दोनों अब संजना का चेहरा ताकते रहे|

“पता नही – पर जब ये तस्वीर देखती हूँ न तो लगता है जैसे दोनों को एक दूसरे का पता दे दूँ फिर अगले पल मेरा मन किसी अनजाने डर से उनके फिर से जुदा हो जाने का सोच सिहर उठता है |”

इसी डर से जयंत और अंकिता फिर एक दूसरे की ओर देखते एक दूसरे का हाथ थामे रहते है| यही पल था सब सारे दोस्त एक दूसरे को ढूंढते वहां इकट्ठे होने लगते है|

अगले ही पल सब स्थिति समझते संजना का चेहरा तक रहे थे जो कह रही थी –

“अभी हम कुछ भी नही जानते है कि आखिर सुगंधा जी क्यों चिराग भईया के जीवन से चुपचाप चली गई – कहीं ऐसा न हो कि एक दूसरे को सामने देख फिर ये जुदा हो जाए – असल में मुझे लगता है कि आंटी ही नही चाहती कि सुगंधा जी चिराग भईया के सामने आए |” कहती हुई वह अपनी नज़रे अतुल के चेहरे पर टिकाती उसके हाव भाव में नज़रे गड़ा देती है|

“वे उनको चिराग भईया के जीवन के लिए अपशगुन माँ नती है |”

संजना की बात सुन बाकी मौजूद अब अतुल और संजना का चेहरा देखते उचकते हुए बोले – “तो क्यों न हम कुछ ऐसा करे कि वे चिराग भईया के लिए उन्हें लकी माँ नने लगे |”

इसपर विनी लगभग उछलते हुए बोल उठा – “हम आंटी के सामने काली बिल्ली से उनका रास्ता कटवा देंगे फिर कुछ अच्छा कर देना तू अतुल – इससे अपशगुन जैसी बात उनके दिमाँ ग से हट जाएगी|”

“पर मैं अच्छा क्या करूँगा ??” अतुल मुंह बनाते हुए पूछता है|

“नहीं यार – अतुल तू निम्बू मिर्चा उनके कमरे के बाहर डाल देना |” आदित्य भी अपना आइडिया देता हुआ बोला|

“अरे यार तुम छीक देना |”आरवभी कहाँ पीछे रहने वाला था|

संजना अवाक् अपनी बात का मुड़ता रुख देख हैरान उन्हें देखती रह गई कि कहाँ से कहाँ वे बातों का सिरा ले गए!!

“तुम सबका दिमाँ ग घास चरने गया है जो एक से बढ़कर एक दो पैसे का आइडिया दे रहे हो |” आखिर वह उन सबपर बरस पड़ी|

“वही तो फालतू में समय बर्बाद कर रहे है – अभी कैंटीन चलकर एक एक गर्मागर्म समोसा उड़ाते हम सब |” जल्दी से कहता अतुल अपनी चिर परिचित मुस्कान से मुस्करा पड़ा|

संजना से तो अब कुछ कहते न बना| वह बस तुनकती हुई उनके बीच से उठती हुई बोल पड़ी – “ऐसा करो ऑनलाइन चुड़ैल भी ऑर्डर करके मंगवा लो – बेवकूफ कहीं के |” संजना को एकदम से गुस्से में जाता देख अतुल उसे पुकारता रह गया पर बिना पलटे वह चली गई|

वोहरा मैम कॉलेज जाने को बिलकुल तैयार थी कि सुगंधा उनके पास आती हुई कह रही थी – “मैम !”

“हाँ बोलो सुगंधा |” वे रुककर उसकी ओर देखती है|

“मैंने राधा नगर में एक घर देखा है तो सोच रही थी कि…|” वह धीरे से अपनी बात अधूरी छोड़ती हलके से नज़रे झुका लेती है|

“तो वहां अकेले रहने का सोच रही हो !” वे गंभीर स्वर में उसका चेहरा ताकती हुई कहती रही – “कोई तकलीफ है तुम्हें यहाँ – मेरी बहु ने कुछ कहा !!”

“नही नही – ऐसा कुछ भी नही है – छवि जी तो बहुत अच्छी है और आपकी देखरेख की तो मैं अपना जीवन देकर भी कभी कीमत नही चुका पाऊँगी |” वह जल्दी से उन्हें टोकती हुई कह उठी|

“फिर !!”

सुगंधा चुप रहती फिर नज़रे झुका लेती है तब वे उसके और पास आती उसका चेहरा उठाती हुई कहती है – “हर चीज की कीमत जरुर होती है पर चुका दी जाए ये हर बार संभव नही होता – मैं तुम्हें अपने यहाँ शरण दिए हूँ ऐसा तुम्हें लगता है पर ये मेरा मन ही जानता है कि तुम्हारा मेरे आस पास होने से मैं कितना सुकून महसूस करती हूँ – क्या तुम मेरी बेटी होती तब भी ऐसे ही कहती !!” वे उसकी नम होती आँखों को देखती हुई कहती रही – “तुम्हें सिर्फ अपनी स्टूडेंट नही बल्कि मैं तो हमेशा बेटी की तरह माँ नती हूँ तो बेटियां अपनी माँ का घर बिना विदा हुए नही छोड़ती – समझी |”

सुगंधा के पास फिर कोई शब्द शेष नही रहते वह धीरे से उनका हाथ थाम लेती है|

“सुगंधा तुम आराम से यहाँ रहो – देखो बेटा तो मेरा यहाँ रहता नहीं बहु और मैं कॉलेज चली जाती है फिर आखिर है कौन इस घर में फिर तुम्हारी बात माँ नती हुई ऊपर की मंजिल के एकांत कमरे में तुम रहती हो – ऊपर टेरिस के कमरे में तुम क्लास लेती हो जिसके लिए बाहर की सीढ़ियों से बच्चे आते है फिर मुझे क्या परेशानी होगी – पिछली बार तुम्हें अपनी सहेली के घर किराये पर रहने जाने दिया वो घर भी बिना कुछ कहे छोड़ दिया पर अब यही मेरे साथ रहोगी तुम – मैं तुम्हें अकेले कहीं नही रहने दूंगी |”

“आप खुद इतनी अच्छी है कि मुझसे कोई सवाल भी नही करती |” वह धीरे से नज़र उठाकर उनकी विश्वस्त आँखों को देखती है|

“इतने समय से जानती हूँ तुम्हें – विश्वास की बहुत पुख्ता दीवार के बीच है हम इसलिए कोई सवाल का प्रश्न ही नहीं उठता |”

“मैं जब हौसला कर पाऊँगी तब आपको जरुर बताउंगी कि क्यों मैंने उनका घर छोड़ दिया पर मुझे खुद में संभलने को कुछ वक़्त चाहिए |” सुगंधा बड़ी हिम्मत करती बस इतना कह पाई|

“हाँ हाँ क्यों नही – जब भी जी करे तब मुझसे कहना पर कोई मलाल मत रखो अपने मन में और आराम से रहो यहाँ |”

“जी |”

वे दोनों आपस में मुस्करा उठी|

“ठीक है अब मैं कॉलेज जाती हूँ – टेक केअर |”

उनके जाने तक सुगंधा उनकी ओर देखती रही फिर ऊपर टेरिस की ओर चल दी|

“गुड इविंग सुगंधा जी – आपने कहा था न कि कभी भी आ सकती हूँ तो मैं आ गई |”

सुगंधा अवाक् संजना को देखती रही कि कल ही तो कहा था और आज आ गई|

संजना पूरी तैयारी से आई थी, उसके हाथों के बीच किताब भी थी और वह टेरिस में हलकी धूप में बैठी सुगंधा के ठीक सामने खड़ी थी|

“मैंने कही आपको डिस्टर्ब तो नही किया !!” संजना बातों का छोर कहीं से भी छोड़ने को तैयार नही थी|

“नही नही – आ जाओ बैठो – बताओ क्या पूछना था|”

ये सुन ख़ुशी से झूमती वह झट से उसके बगल में कुर्सी लेकर बैठती हुई बोली – “आपको इन पेड़ पौधों के संग बहुत अच्छा लगता है !!”

सुगंधा बस मुस्करा कर हाँ में सर हिलाती उसकी किताब लेती उसके खुले पन्ने पर अब अपनी दृष्टि रख लेती है पर संजना की नज़र कभी सुगंधा की ओर, कभी वहां के पेड़ पौधों पर और थोड़ी बहुत देर अपनी किताब पर चली जाती|

“ये गुलाब कितना प्यारा है – गहरा जामुनी रंग का तो मैंने कहीं जल्दी देखा भी नही |”

फिर मुस्करा कर सहमति में सर हिलाती वह किताब के किसी प्रश्न को उसे समझाने लगती है| कुछ देर एक सवाल के बाद दूसरे सवाल पर आते संजना कह उठती है – “आपको कौन सा फूल पसंद है ?”

सुगंधा उब कर किताब बंद करती उसकी ओर देखती है जो कह रही थी|

“मुझे तो सुर्ख गुलाब बहुत पसंद है |” जैसे अपने में ही खुश होती वह कहती रही पर सुर्ख गुलाब का ख्याल आते सुगंधा का मन उसकी पहुँच से दूर भागता चिराग के हाथों में टिके सुर्ख गुलाब की तलहटी में जैसे जमाँ  रह जाता है, उसी पल अनजाने काटों की चुभन से मन चुपचाप वापिस भी लौट आता है|

“कौन सा पसंद है ?”

खुद को जबरन अतीत से खींचकर लाती सुगंधा अब उसकी आँखों की चंचलता को देखती हुई पूछती है – “तुम सच में पढ़ने ही आई हो न ?”

“हम्म – असल में अब मेरा पढ़ने का बिलकुल मन नही हो रहा – मुझे आपसे बात करनी है – काश आप जैसी कोई बड़ी बहन होती तो सारा दिन मैं आपसे बातें करती रहती|” कहती हुई संजना के होठों के किनारे खिल उठे|

ये सुन सुगंधा के चेहरे पर प्यार भरी मुस्कान तैर गई, वह संजना का चेहरा से छूती हुई बोली – “मुझे तो तुम्हारा खिलंदडपन देखकर लगता है कि तुम्हारे बहुत सारे दोस्त होंगे फिर भी जब पढ़ने का मन करे आ जाना – अब मेरा क्लास शुरू होने वाला है तो मैं जाऊं ?”

संजना ऑंखें झपकाती मुस्करा दी तो सुगंधा अपनी किताब समेटती हुई उठने लगती है तभी संजना का मोबाईल बज उठा उसमे अतुल का नंबर देख चहकती हुई बोल उठी – “अरे बुद्दू तुम्हें कुछ तो मिलना ही नहीं – चिराग..|” संजना जानकर नाम लेती अपनी छुपी नज़र से सुगंधा का चेहरा देखती है जहाँ ढेरों तूफान आँखों में उमड़ आया जिसकी हलचल से हाथ में पकड़ी किताब उसके हाथों से फिसल गई, वह अपलक संजना की ओर देखती रही जो मोबाईल पकडे पकडे कह रही थी – “अरे अलादीन का चिराग की किताब के बगल में – हाँ अब समझे न तुम |” कहकर कॉल काटती जानकर सहज होती उस पल सुगंधा के चेहरे पर उमड़ आई असब्र बेचैनी देख मन ही मन मुस्काती हुई उठती बाहर की सीढ़ियों की ओर बढ़ जाती है|

सुगंधा का मन उस नाम भर से बेकल हो उठा पर जल्द ही खुद को समेटती वह थके भाव से चिराग का ख्याल मन से झटकती वह किताब उठाने लगती है, ऐसा करते उसे लगता है कि वह खुद पर कितना अत्याचार कर रही है| पर उसे नहीं पता था कि उसकी बेचैनी संजना की चंचल आखों द्वारा चुपचाप देख ली गई है| सीढ़ियों की ओर बढ़ती संजना चुपचाप लताओं के झुरमुट के पीछे से सुगंधा को देखती जल्दी से सीढियाँ उतर जाती है|

क्रमशः………………….

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