
सुगंधा एक मौन – 21
कॉलेज के एक सुनसान कोने में संजना झूमती हुई अतुल के सामने खड़ी थी| ख़ुशी अतुल के चेहरे पर भी चमक रही थी| दोनों अपनी अपनी बात बताने को अतिउस्साहित थे|
“मैं बताउंगी पहले |”
“अरे मुझे बताने दो पहले – ख़ुशी की खबर मैं सुनाऊंगा पहले|”
“मैं पहले |”
“अच्छा लेडिज फर्स्ट – सुना |”
ये सुन हौले से उसके सर पर टीप माँ रती कहती है – “अच्छा तुम ही बताओ पहले कि तुम्हारे पास क्या गुड न्यूज़ है !”
ख़ुशी से झूमती हुई संजना बोली तो अतुल एक दम से खुश होता हुआ पूछता है – “सच्ची – बताऊँ मैं !”
संजना भी खुश होती अपनी सहमति देती है|
“पता है आज से हमाँ रे कॉलेज की कैंटीन में पिज़्ज़ा भी मिलेगा – |”ख़ुशी से उछलता हुआ अतुल कहता है|
पर ये सुन संजना अतुल का चेहरा देखती रह गई|
“तो तुम इस बात से खुश थे और ये बताना चाहते थे मुझे !!” अवाक् संजना अतुल के चेहरे की ख़ुशी देखती रह गई|
“हाँ – क्यों – तुम्हें ख़ुशी नही हुई !!” रूककर संजना के सपाट भाव देखता हुआ पूछता है – “वैसे तुम क्या बताने वाली थी ?”
संजना अपना सर थामे वही के बैंच में बैठ जाती है तो अतुल उसके पास आता उसे हिलाते हुए पूछता है – “बताओ न – क्यों खुश थी तुम ?”
सर उठाकर वह अतुल का चेहरा देखती जैसे खुद पर तरस खाती हुई कहती है – “मैं तो चिराग भईया के बारे में खुश थी कि मैं सुगंधा जी से मिली आज |”
“ओहो तुम तो हमेशा भईया के पीछे पड़ी रहती हो |”
“तो किसके पीछे पडूँ ?”
“मेरे पीछे |”
अतिउत्साह में अतुल कहते कहते उस पल खुद ही स्तब्ध होता संजना का चेहरा देखता रह गया जो ऑंखें झपकाती उसकी ओर देखती वही थमी रह गई थी फिर जल्दी से स्थिति को सँभालते संजना खड़ी होती हुई कहती है – “अब तुम जल्दी से बताओ कि उनको मिलाना कैसे है ?”
“मैं क्या बताऊँ !” अपनी ऑंखें झपकाते खुद को सयंत करते वह अन्यत्र देखने लगता है|
“कुछ तो सोचो – कुछ फ़िल्मी जैसा – जैसे वे अचानक से एक दूसरे के सामने आ जाए|”
अतुल अभी भी नज़रे फेरे था पर संजना एकदम से उछलती ही बोलती है – “ऐसा करते है फिल्म हाँ यही ठीक है |” संजना खुद में खुश होती अब अतुल के चेहरे की ओर देखती हुई कहती है – “अतुल तुम न भईया के साथ मूवी आना और मैं सुगंधा जी को ले आउंगी फिर अचानक से दोनों एक दूसरे को देखेंगे |” कहते कहते संजना की ऑंखें सामने की ओर देखती यूँ चमक उठी माँ नों प्रत्यक्ष चित्रपटल पर उन्हें मिलता हुआ देख रही हो|
पर इसके विपरीत अतुल तुरंत बिदकता हुआ दो कदम पीछे होता हुआ बोल उठा – “भईया के संग मूवी – न मैं जाऊंगा और न भईया मेरे साथ – एकदम बकवास आइडिया है |”
“अरे सुनो तो अतुल |”
अतुल अब कुछ भी सुनने को तैयार नही था, वह तुरंत वापसी की ओर अपने कदम पीछे कर लेता है तो संजना उसके पीछे पीछे उसे रोकने दौड़ जाती है|
“सुनो तो अतुल – ये अच्छा आइडिया है |”
“बिलकुल भी नही – मैं अब तुम्हारी कोई बात नही माँ नने वाला – मुझे कोई शौक नही जानबूझ कर ओखली में अपना सर देने का – मैं जा रहा हूँ |”
अतुल को मनाने संजना कुछ दूर तक उसके पीछे जाती है पर अतुल उसे अनसुना करता बाइक लेकर चला जाता है|
कुछ दिन बाद अमित चिराग से मिलने उसके घर आया वो भी परिवार सहित| उसे देखते मुख्य कमरे में बैठी चिराग की माँ शिकायत कर बैठी –
“बड़े दिन बाद आए तुम लोग – याद नही आती दोस्त की !!”
गोद में नन्ही परी को देखते चिराग की माँ के ह्रदय में यूँ ममता उमड़ आई कि वे झट से तृप्ति की गोद से उसे लेकर प्यार करने लगी|
“बड़ी प्यारी है तुम्हारी परी – काश ऐसा प्यारा नन्हा गुल इस घर आँगन में भी खिलता !” वह गहरा उच्चवास छोड़ती कहती है तो तृप्ति के बगल में खड़ा अमित शरारत में तृप्ति के कानों में फुसफुसाता है – ‘चिराग तो तैयार है पर आप होने दे तब न !’ ये सुन आँख तरेरती तृप्ति धीरे से उसे कोहनी माँ रती देखती है तो अमित हंस देता है|
वे परी को गोद में लिए अभी भी उसके संग खेलने में व्यस्त थी| तृप्ति भी मुस्कराती उनके पास आकर बैठ गई|
“एक बार मेरा ही मन हुआ कि तुम लोग से मिलने तुम्हारे घर आ जाऊं पर चिराग ऑफिस के अलावा कहीं जाता ही नही – बस घर से ऑफिस – ऑफिस से घर – यही दिनचर्या है उसकी|” गहरी पीड़ा उनके चेहरे पर तारी हो आई|
“अच्छा आंटी जी – अभी है कहाँ ?” अमित जल्दी से पूछता है|
“कहाँ होगा – अपने कमरे में और कहाँ |”
“अभी देखता हूँ उसे |” कहता झट से सीढ़ियों की ओर बढ़ जाता है|
चिराग के कमरे में पहुंचकर सच में वह उसे किसी फाइल में संलिप्त दिखा तो अमित उसके नज़दीक आता उसकी पीठ पर एक हाथ जमाँ ता हुआ कहता है – “ये हसीन जवानी क्या तुझे इन फाइलों में सर खपाते हुए ही बितानी है क्या ?”
अचानक से अमित की उपस्थिति पर चौंकते हुए चिराग फाइल से सर हटाकर अमित की ओर मुस्कराता हुआ देखता है|
“यही कहने आया है क्या ?”
“नही नए ज़माँ ने के नए देवदास को देखने आया हूँ – वो अपनी पारो के गम में शराब में डूबा रहता था और ये जनाब इन फाइलों में |” कहकर अमित हँसते हुए चिराग के चेहरे पर भी कुछ पल की क्षणिक हंसी देखता है|
“क्या यार सुगंधा नही तो कोई ख़ास नही तेरे लिए |” उसकी टेबल के कोने में बैठता हुआ अमित बोला|
“मैंने ऐसा कब कहा ?” वह फिर फाइल की ओर ध्यान लगाता हुआ कहता है|
“तो बंद कर ये फाइल और चल कहीं घूम कर आते है |” अमित जबरन उसके सामने की फाइल बंद करने लगता है तो चिराग अरे करता उसे टोकता है|
यही समय था जब अतुल उस कमरे में आता कह रहा था – “आप लोग चलिए मम्मी बुला रही है |”
अब दोनों उस आवाज की दिशा में साथ में देखते है फिर अमित चिराग की ओर देखता हुआ कहता है – “अब साथ में नीचे तो चलेगा – तृप्ति भी आई है|”
“ओके ओके आता हूँ बस पांच मिनट में – तुम चलो |”
चिराग का इसरार सुन अमित अब अतुल के साथ बाहर की ओर निकलते निकलते उसके हाल लेने लगता है – “तो चैम्प कैसी चल रही है पढाई और तू चिराग के साथ कहीं बाहर जाया कर न ?”
“जाना तो दूर भईया तो बात भी नही करते बस घर में रहते है और ऑफिस के अलावा अपने कमरे से बाहर भी नही निकलते |”
“क्या…!!!” सीढ़ियाँ उतरते उतरते अमित अवाक् उसका चेहरा देखता रह गया|
“मेरा एक दोस्त ट्रीट में तो मूवी की फ्री टिकट भी दे रहा है पर भईया चलने को राज़ी ही नही होंगे |” मौका देख अतुल बातों का सिरा घुमाँ देता है|
“अच्छा !!’
“हाँ भईया वो टिकट आप लोगों को दे दूंगा बस आप भईया को राज़ी कर लो – वैसे वो आपकी बात थोड़े ही टाल पाएँगे |” अतुल कन्खनियो से अमित की ओर देखता है|
“ये बात है तो इस सन्डे कर दे इंतजाम फिर देखता हूँ कि कैसे नही चलता साथ |”
ये सुन अतुल को अपना प्लान सफल होता दिखा जिससे वह मुस्कराते हुए साथ में नीचे उतर जाता है|
ये खबर सबसे पहले अतुल संजना को देता है तो संजना ख़ुशी से लगभग उछल ही पड़ती है – “वाह ये तो और अच्छा है फिर इस सन्डे जो मूवी की टिकट तुम खरीदोगे वही मैं सुगंधा जी के लिए भी ले लूंगी |”
“ये क्या मैं क्यों खरीदूं टिकट – तुम्हारा प्लान है तुम जानो |” बच्चों सा रूठता वह वही आसन जमाँ ए बैठ जाता है|
“अच्छा तो तू इतना खर्च भी नही कर सकता फिर दोनों मिल गए तो भाभी बन वो तेरे घर ही तो आएंगी न !”
“अच्छा प्लान तुम्हारा और खर्च मेरा – पता है जितने में टिकट आएगी उतने में मैं दो प्लेट छोला भटूरा और एक पिज़्ज़ा खा लूँगा |”
ये सुन संजना भी वही बैठती अपने सर पर हाथ मारती उसकी ओर देखती है जो अब मुस्करा कर संजना की ओर देख रहा था|
क्रमशः…………..
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