
सुगंधा एक मौन – 22
संजना को जैसे अब सुगंधा के अलावा कुछ सूझ ही नहीं रहा था, वह हर दूसरे दिन कोई न कोई बहाना बनाकर उसके पास पहुँच जाती पर सुगंधा उसकी इधर उधर की बातों में कोई दिलचस्पी दिए बिना उसकी बातों से बचने खुद को अन्यत्र कार्यों में व्यस्त कर लेती| उनकी टीचर वोहरा मैम का बेटा नेवी में था तो साल के छह माँ ह उसके घर से दूर समंदर में ही बीतते थे तब घर पर वे तीन प्राणी ही रह जाते, संजना भी बेधड़क उस घर में आती अब वोहरा मैम से तो कभी उनकी बहु छवि को अपने बातों के लच्छों में लपेट लेती| छवि भी अपने अकेलेपन में संजना जैसी चंचल लड़की से मिलकर खुश हो जाती, अब उसकी शोपिंग की बात जो सुगंधा से लेकर उसके पति और सास के लिए बोरिंग थी संजना के संग रोचक हो उठी थी| एक आद बार संजना छवि संग बाज़ार भी घूम आई इससे अब इस घर में उसका आना कभी भी असहज न रहा| ऐसे ही अगले सन्डे के लिए संजना छवि संग मूवी का प्लान करती है, फिर जानकर मूवी के लिए निकलने से आधा घंटा पहले वह छवि को फोन कर अपनी असमर्थता जतला देती है जिससे जाने को लगभग तैयार छवि का चेहरा ही लटक जाता है|
संजना अपनी बातों का सिरा किसी भी तरह से सुगंधा की ओर घुमाँ ने का प्रयास करती है|
“सॉरी भाभी क्या करूँ मेरा भी बहुत मन था आपके संग मूवी जाती फिर हम शोपिंग करते पर क्या करूँ – मेरे माँ माँ जी बहुत दिन बाद आ रहे है और माँ ने घर से निकलने से बिलकुल मना कर दिया – टिकट भी बेकार हो गई – पर भाभी एक चीज हो सकती है आप सुगंधा जी के साथ चली जाओ |”
“सुगंधा के साथ – मुझे उस बोर के साथ कहीं नही जाना |”
“अरे भाभी समझो न मूवी बहुत अच्छी है – पता है बड़ी मुश्किल से टिकट ले पाई मैं – आप सोचो आप किसी मूर्ति के संग जा रही है|”
“हाँ वही एहसास होने वाला है|” एक ऊबा हुआ स्वर छवि का निकला क्योंकि वह जानती थी कि बहुत जरुरी काम के अलावा सुगंधा कहीं नहीं जाती थी अब उसे भी मूवी के लिए मनाना ही पड़ेगा|
वैसे भी वह सुगंधा से काम के अलावा कोई बात नही करती क्योंकि वह उसे अपने टाइप की नहींसमझती थी, पर अब मूवी का टिकट बचाना है तो बोलना पड़ेगा, यही सोच फोन रखती वह अपनी सास के पास बैठी सुगंधा को पुकारती हुई उसे मूवी चलने का एक ठंडा निमंत्रण देती है जिसे हमेशा की तरह सुगंधा बड़े सम्मान से मना कर देती है पर ये सुन वोहरा मैम छवि का बदला रूप देख उत्साहित होती सुगंधा को खुद मनाने लगती है तब बहुत देर सुगंधा के लिए इनकार करना मुश्किल हो जाता है इसपर तुनकती हुई छवि कह उठी – “देखा आपने – मेरी नही हमेशा आपकी बात ही सुनती है सुगंधा|”
“ऐसा नही है भाभी – मैं सच में जाना नही चाहती पर आपका साथ देने चल सकती हूँ|”
वोहरा मैम हौले हौले मुस्करा रही थी तो छवि उसे तैयार होकर जल्दी आने का बोल बाहर की ओर चल देती है|
इधर अतुल को तीन टिकट खरीद कर अमित को सौंपना पड़ता है| अमित झट से तृप्ति के साथ चिराग के घर पहुँचता है और जैसा कि उसे पहले से एहसास था कि चिराग न जाने के लिए आनाकानी जरुर करेगा, वह तृप्ति का सुनकर तो और भी बिदक उठा|
“यार बीवी के साथ क्वालिटी टाइम बिता मुझे फालतू में क्यों लिए जा रहा है|”
“देख ज्यादा नाटक करने की जरुरत नही है – बीवी है तो घर पर हमें एक दूसरे के लिए समय मिल जाता है यहाँ हम दोस्त की तरह तुझे साथ लेने आए है समझा तू |”
“मेरा मन नही है |” चिराग को जब कुछ नही सूझता तो मन का बहाना कर वह और सोफे में धस जाता है|
इसपर अमित उसके बगल में बैठता हुआ कहता है – “देख तेरे साथ के लिए परी को उसकी नानी के यहाँ छोड़कर हम दोनों तुझे लेने आए है – अब चल जल्दी|” अमित उसे खींचते हुए बोला|
“नही जाना न यार |”
“अच्छा जब सुगंधा को ढूंढना था तो मैं नही गया था तेरे साथ पर अब तू क्यों चलेगा साथ मेरे !” चिराग की बाजु छोड़ता हुआ अपने हाथ सीने की ओर बांधता हुआ बोला|
“इसे ब्लैकमेल करना कहते है|”
“तेरा ही तरीका है|” चिराग को उठते हुए देख धीरे से मुस्कराते हुए अमित कहता है|
आखिर मन माँ रे चिराग को मूवी के लिए जाना ही पड़ता है|
मल्टीप्लेक्स पहुंचकर अपनी सीट पर पहुँचते तीनों सामने की स्क्रीन पर नज़र जमाँ ए थे,जल्द ही मूवी शुरू होने वाली थी पर चिराग के बगल की तीन सीट अभी भी खाली थी| चिराग बेमन से बैठा वहां से उठकर जाना चाहता था पर अमित और तृप्ति का जोश देख कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था|
इधर सुगंधा भी बेमन से तैयार होती छवि के बगल में आकर बैठते छवि कार स्टार्ट कर चल देती है| चार बजे के शो के लिए छवि जिस मल्टीप्लेक्स की ओर चली थी वहां जाने के रास्ते के जाम में उसकी कार फंसी थी,टाइम बीता जा रहा था उसी गति में छवि की उबाहट भी, अब पुल के रास्ते आते न वह पीछे मोड़ सकती थी और न आगे, इसी बेचैनी में वह सपाट भाव से बैठी सुगंधा को देख अन्दर ही अन्दर खीज उठी, पर कर भी क्या सकती थी| जाम धीरे धीरे सरकता रहा और साढ़े चार के करीब वे दोनों उस मल्टीप्लेक्स में पहुंचती जल्दी से मूवी हॉल की ओर अपना कदम बढ़ा देती है| सुगंधा को यहाँ आना किसी कब्र में जाने जैसा डरावना लग रहा था, पर चुप रहने के अलावा कर भी क्या सकती थी|
चिराग से जब बहुत देर नहीं बैठा जाता तो वह अमित से सिगरेट का बहाना कर बाहर की ओर उठकर चल देता है| यही वो पल था जब सुगंधा और चिराग एकदूसरे की बगल से गुजरे तो एक पल को चौंक कर अपने उस अँधेरे में पीछे पलटकर देखते है पर अँधेरे उनके चेहरे छुपा ले गया और सुगंधा छवि के साथ अन्दर तो चिराग बाहर की ओर आ गया|
चिराग हॉल से बाहर तो आ गया पर वापस नही जा सकता था तो अपनी उबाहट काटने के लिए मन न होने पर भी वह लगातार दो सिगरेट पी जाता है फिर तीसरी जलाते पीने के बजाय उसके घुंघराले धुंए को हवा में घुलता हुआ देख रहा था कि कोई चेहरा उसमें गडमड होता दिखाई दिया तो अज़ब बेचैनी उसकी आँखों में तारी होने लगी, वह आंखे झपकाता बरबस उसे देखता रहा, फिर सिगरेट के काफी जलते उसे अपनी उँगलियों की गिरफ्त से हटाता खुद की बेवकूफी पर माँ नों हंस पड़ता है, चिराग ये सोच ही रहा था कि उसे लगता है कि उसकी नज़रे किसी सराब को नही बल्कि किसी हकीकत को देख रही है, सुगंधा उसकी नज़रों के फासले की सीध में थी, अब तक सुगंधा भी शायद ऊब कर बाहर आती चिराग को देख चौंक गई थी| वे एक दूसरे की आँखों के सामने जैसे जड़वत खड़े एकटक एक दूसरे को देखते सारी दुनिया से बेखबर थे|
***
दोनों के लिए एकदूसरे का वहां होना बिन माँ गी किसी मुराद की तरह था| चिराग सुगंधा को देखता जैसे अपना होना भूल बैठा, सुगंधा वाशरूम का बहाना करके बाहर आई थी और अपने एकांत में घिरी एकाएक चिराग को देख चौंक ही पड़ी, एक बारगी उसका जी हुआ कि सारे मलाल भूल कर दौड़ जाए और खुद को अपनी मुहब्बत की पनाह में फना कर ले पर अज्ञात जंजीर से जकड़े उसके कदम एक पग भी आगे न बढ़ा पाए, वह तो जी भर कर उस दृश्य को अपनी आँखों की गहराई में उतर जाने दे रही थी जिसमें उनकी पहली मुलाकात की खुशबू समाँ ई थी, आज उसका सारा जहाँ उसकी आँखों के सामने अपनी बांह फैलाए खड़ा था तब भी वह उदासीन बनी रही, उसी पल उनके फासले में ढेरों अनजाने चेहरे समाँ ने लगे, शायद मूवी में अंतराल होने से हॉल से निकलते लोगबाग उनके चारोंओर फ़ैल गए तो सुगंधा जैसे अतीत से भागती वापस आ गई और न चाहते हुए भी खुद को उसने उस भीड़ का हिस्सा करती चिराग की आँखों के परिदृश्य से ओझल हो गई| सुगंधा के अपनी नज़रों से हटते चिराग के होशोहवास वापस आते वह उसकी तरफ भागा, भीड़ का हर व्यक्ति उसकी राह का बाधा बना खड़ा था जिसे जबरन धकेलता चिराग सुगंधा की ओर दौड़ गया पर सुगंधा जा चुकी थी, कहाँ !!! उसे नही पता चला, वह अवाक् अपने आस पास देखता जैसे हर नज़र से अपनी मुहब्बत को फिर से उसके परिदृश्य में लाने की खामोश इल्तिजा कर रहा था| लेकिन बेरहम दुनिया उसके आस पास से गुजरती अपनी खुशरंग दुनिया में मस्त थी और चिराग बेबस खड़ा अपने चारोंओर ताकता रह गया|
“चिराग – यहाँ क्या कर रहे हो – तबसे ढूंढ रहा हूँ |”
चिराग आवाज की दिशा में देखता है कि अमित उसे रोकने उसके पीछे खड़ा था| आखिर मन मसोजे उसे अमित के साथ जाना पड़ता है| उस पल उसकी स्थिति खुद वही समझ रहा था कि कितने बेमन से उसकी ऑंखें तो फिल्म के पर्दे पर टिकी थी पर नज़रों के परिदृश्य में सुगंधा समाई थी, इतने दिन बाद उसकी आरजू उसकी आँखों के सामने से गुजर गई और वह कुछ प्रतिक्रिया भी न कर सका|
क्रमशः…………………
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