
सुगंधा एक मौन – 25
शाम की चाय की चुस्कियों संग दोनों बहनें साथ में ढेरों तरह की बातें कर रही थी, अगले पल चिराग के पिता भी उनके बीच शामिल हो गए| हंसी मजाक के हलके फुल्के दौर के बीच कनकलता विगत दिन हुए कार्यक्रम की तस्वीरे दिखा रही थी, वे सारी तस्वीरे सामने की मेज पर चाय के प्यालों के बीच बेतरतीबी से पड़ी थी| तभी उन प्यालों के बीच रखे नमकपारे की प्लेट पर किसी का हाथ बढ़ते देख मौसी जी झट से उसे पकड़ लेती है, वह अतुल था और पकड़े जाने पर दांत निपोरता उनकी तरफ देख रहा था|
“बदमाँ श मेरे पास बैठने की फुर्सत नही है और अभी कहाँ चले ?” मौसी अभी भी उसका हाथ पकडे थी|
“ग्रुप स्टडीज – अभी एग्जाम आने वाले है न |”
“पूरा दिन दोस्तों के संग बाहर ही निकालता है – कभी ग्रुप स्टडी कभी और मस्ती – कभी घर भी तो बैठा करो – ये मत सोचो मौसी को कुछ नही पता – मुझे कल्याणी से सारी खबर मिलती रहती है |” मौसी जी आँखों से प्यारभरा गुस्सा दिखाती हुई बोली तो पास बैठे माँ और पिता के चेहरे पर भी मुस्कान तैर गई – “लगता है चिराग ने तुम्हारे कान खींचने छोड़ दिए |” वे नाम ही लेती है कि उसके अगले क्षण चिराग सामने से आता हुआ उन्हें दिखता है|
चिराग को वही आता देख सबका ध्यान अब उसकी तरफ चला जाता है जिससे मौसी की पकड़ ढीली होते अतुल जल्दी से अपनी मुट्ठी में ढेरो नमकपारे समेटता चुपचाप वहां से खिसक लेता है|
“वाह चिराग खूब मौके से आए – अरे ये अतुल कहाँ गया !!” वे चौंककर अपने अगल बगल देखती है पर गधे के सींग की तरह अतुल चिराग को देखते गायब हो गया और वे सब अवाक् रह गए, चिराग अब उनके बीच आकर बैठता है तो अगले ही पल काकी चाय का एक और प्याला लाकर उसके सामने रख देती है|
“और चिराग बेटा कैसा चल रहा है सब ?”
इसपर चिराग धीरे से मुस्कराता हुआ कप की ओर अपना हाथ बढ़ा देता है, तभी मौसी जी किसी फोन के आने पर उसमे व्यस्त हो जाती है| उस ख़ामोशी में चाय की चुस्कियों संग चिराग की सरसरी नज़र टेबल में फैली तस्वीरों की तरफ चली गई तो उसकी ऑंखें वहां किसी चेहरे पर टिक सी गई, चिराग चुपचाप उन तस्वीरों को उठाकर अब गौर से देख रहा था| एकाएक उसके चेहरे में जैसे कुछ बदल सा गया, एक सामूहिक तस्वीर में वही चेहरे जिसे जाने कहाँ कहाँ वह खोज रहा है, और अचानक वह उसके सामने आ गया| उसका दिल बल्लियों उछल पड़ा पर किसी तरह से ये भाव वह अपने चेहरे से छुपा ले गया|
“ये आसरा के गोल्डन जुबली के कार्यक्रम की तस्वीरे है – कैसी है बताओ – सोच रही हूँ एक बैनर बनवा कर लगवा दूँ – सबको स्मरणीय रहेगा |”
“हाँ जीजी अच्छा रहेगा |” कल्याणी जी सहमति रखती है|
“इसीलिए सब दो दो तस्वीरे है – जरा छांटकर बताओ कि कौन कौन सी तस्वीरे उपयोग में लूँ !”
चिराग अपना ध्यान उस तस्वीर से नही हटा पाया बस उसे हाथ में लिए एकटक देखता रहा तो मौसी जी उसे उसकी पसंद समझती हुई कहती है – “हाँ ये तस्वीर भी अच्छी है – कार्यकर्ताओं के साथ आगंतुक चेहरे भी है |”
अब सबका ध्यान उस तस्वीर की तरफ चला जाता है|
“जीजी इसमें ये वही लड़की है न !” कल्याणी जी तस्वीर की ओर अपना ध्यान डालती हुई पूछती है|
“कौन सी ?” कुछ प्रश्न पिता के चेहरे पर भी तैर गए|
“बड़ी नेक लड़की है – निशा – अपनी माँ के साथ आई थी|”
ये सुन चिराग अवाक् उनकी ओर देखता रहा और वे अपनी बात कहती रही|
“अबकी कार्यक्रम लेडीज क्लब की ओर से था – ये उन्ही की बेटी है – मैं तो उस पल दंग रह गई – कैसे समझदारी से स्थिति संभाल ली उसने – मैंने भी कह दिया कि तुम जब चाहे आ जाओ – हमे तो बहुत अच्छा लगेगा |”
वे ख़ुशी से चहकती हुई कहती है पर इसके विपरीत कल्याणी जी इससे इत्तफाक रखती नही दिखती – “एक बार आ गई पर बार बार इस उम्र के बच्चे वहां नहीं आएँगे जीजी |”
“हाँ कह सकती हो ऐसा पर ये लड़की इस नए ज़माँ ने से जरा अलग ही है – पता है सहयोग देने रोजाना आ जाती है शाम को |”
“अच्छा !!!” वे तीनों अपने अपने आश्चर्य में डूबे वार्तालाप करते रहे और चिराग धीरे से मुस्कराता हुआ वही एक तस्वीर ट्रे के नीचे छुपता हुआ अब प्याले ट्रे में रखने लगता है|
“ये क्या – तुम क्यों उठा रहे हो ?” माँ चौंककर चिराग की ओर देखती है पर वह किसी तरह से अपने दिल को संभालता हुआ ट्रे हाथों के बीच लिए उनके बीच से उठ जाता है|
कमरे में आते जैसे दबा जज्बात खिलखिलाहट में बदल गया, वह अतिरेक जोश में उस तस्वीर को चूम बैठा|
दोपहर से शाम हो गई पर उस दीवाने दिल को वक़्त के गुजरने का भान ही नही रहा, उसे खुद भी नही पता चला कि कितनी देर से वह उस तस्वीर पर अपनी नज़रे जमाँ ए उसे ताकता रह गया| वह तो मन ही मन उससे बातें करने लगा|
‘देखो जितना दूर जाती हो मेरा प्यार तुम्हें मेरी ओर खींच ही लाता है – अब मैं तुम्हें अपने से दूर नही जाने दूंगा – आ रहा हूँ पास तुम्हारे – अब जल्दी से मिल जाओ सनम – कही तुम्हारी याद में जोगी न बन जाए ये दिल – सुगंधा…|’ दिल से वह पुकार उठा यही पल था जब माँ नों चिराग की साँसे हवा का झौका बनती सुगंधा के तन से यूँ लिपट गई कि छत पर बैठी सुगंधा के तन में झुरझुरी सी दौड़ गई और वह चिहुंककर अपने चारोंओर देखती रह गई|
शाम से रात हो गई और तस्वीर अपनी तकिया के नीचे छुपाए चिराग अभी भी उसी में खोया था कि किसी आहट पर मुस्कान भरे चेहरे से वह दरवाजे की ओर देखता है, जहाँ से प्रवेश करता अतुल उसकी उपस्थिति से अनजान उस कमरे में कुछ खोजने आता है, ये देख चिराग उसे व्यवधान माँ न उसको गुस्से भरे अंदाज में देखता हुआ पुकारता है – “इस वक़्त क्या कर रहे हो यहाँ – ?”
आवाज पर चौंककर चिराग की ओर देखता रहा|
“पूरा दिन बाहर घूमना और रात में घर में – कोई काम नही है क्या तुम्हारे पास – |”
अतुल सकपकाया चिराग की डांट सुनता यही भूल बैठा कि वहां वह क्यों आया|
“नींद नही आ रही तो जाओ जाके पढ़ो और दुबारा फालतू घूमते दिखे तो देखना |”
ये सुनते अतुल ने तुरंत वहां से निकलने में अपनी भलाई समझी, उसके जाते चिराग फिर तस्वीर पर अपनी नज़रे जमाँ ए अब और पसरकर लेट जाता है|
सुबह का सूरज जल्दी उठा या चिराग कहना मुश्किल था, चिराग झूमता हुआ तैयार होता बार बार खिड़की से आसमाँ न को निहारता जैसे पूछ रहा था कि कब तलक शाम होगी और कब वह अपने दिल के ताजमहल को अपने सामने देख पाएगा…एक ही क्षण में उसकी सारी दुनिया खूबसूरत हो उठी…वह बस किसी तरह अपने जज्बातों को जब्त किए बार बार खुद को बेइंतहा मुस्कराने से रोक लेता…आज ऑफिस के लिए तैयार होते उसे शर्ट ढूंढनी पड़ी नही तो जो हाथ लगती वह पहन लेता….कई शर्टों को नकारता उन्हें बेतरतीबी से बिस्तर पर फेंक वह जिस शर्ट को पहने था उसे ढेर फ्रेगरेंस से सराबोर करता खुद को सूँघता अपने में ही मुस्करा दिया|
सीढ़ियों से वह तेज क़दमों से जैसे उतर नही रहा था बल्कि किन्ही आसमाँ नों पर पैर धरता वह बस उड़ा जा रहा था..अचानक सीढ़ियों की ओर आती माँ ठिठक गई और पलटकर फिर उन्होंने चिराग की ओर देखा पर अपनी बेख्याली में वह आगे बढ़ता नाश्ते की टेबल पर आते पता नहीं क्या मुंह में डाला क्या निगला पर मुस्कान जैसे उसके चेहरे पर चिपकी रह गई…काकी औचक देखती रही कि पानी में डुबो कर वह सैंडविच खा रहा था और गर्म कॉफ़ी पानी सा वह सट से पी गया….न वह टोक पाई न बता पाई बस ऑंखें फाड़े अपने सामने के दृश्य को देखती रही जब तक चिराग उठकर बाहर नही चल दिया…एक एक कदम हवाओं में रखता चिराग मुख्य दरवाजे से जिस तेजी से निकला कि खुशबू का एक तेज भभका अन्दर आते अतुल को भी चौंका गया, उसके पीछे पीछे उसकी टोली जड़वत अपने स्थान पर जमी रह गई…पर अपनी बेख्याली में चिराग ने एक बार भी उनकी तरफ नही देखा….संजना तो हैरान मुस्कराती चिराग के चेहरे की रौनक देखती रह गई…..चिराग पत्थर के पथ पर चलते चलते अचानक अगल बगल सजे गमलों को कूद कर लांघता जैसे ठसक कर हंस पड़ा…माँ नों उछलकर वह अपने क़दमों से भी तेज भागते अपने दिल को पकड़ लेना चाहता था पर आज दिल उसका बस में ही कहाँ था….सब अन्दर चले गए पर संजना रूककर तब तक उस ओर देखती रही जब तक चिराग उसकी आँखों से ओझल नही हो गया…ये देख उसका दिल कह उठा यकीनन भईया को सुगंधा जी मिल गई है…वह अब अपनी मुस्कान संभालती अन्दर चल देती है| अब एग्जाम की वज़ह से वह सुगंधा के पास भी नही जा पा रही थी पर चिराग को देख उसके दिल को बड़ा सुकून मिला था|
क्रमशः……………………