
सुगंधा एक मौन – 26
शाम का बड़ी बेसब्री से इंतजार करते आखिर शाम होते चिराग आसरा संस्था के मुख्य गेट से कुछ दूर कार खड़ी कर उसमें बैठा बैठा ही उस ओर नज़रे गड़ाए रहा| अभी कुछ पल बीता ही था कि एक ऑटो आकर आसरा के ठीक सामने आकर रुकता है, चिराग अपनी सांसे रोके थमकर उस ओर अपनी नज़रे टिकाए देखते उसे लगा कि उस पल दिल धक से बोल माँ नों कुछ देर के लिए धड़कना ही भूल गया, सुगंधा ऑटो से उतरकर सीधी अन्दर चली गई, उसके अन्दर जाते वह ऑटो भी वापस मुड़ गया|
चिराग का दिल खुद से ही कह उठा ‘दोस्त अबकि हर कदम फूंक फूंक कर रखना और इस बार अपने दिल को वक़्त के दरिये में खोने मत देना|’ चिराग उस पल कुछ सोच वापस अपनी कार मोड़ लेता है, कार की रफ़्तार से भी तेज उसका दिमाँ ग कुछ सोच रहा था जिसे क्रियान्वयन कर जब पुनः वही लौटा तो उसकी वेशभूषा पूरी तरह से बदल चुकी थी, एक बारगी तो खुद को फ्रंट व्यू में देख वह खुद पर ही हंस पड़ा| चिराग का चेहरा सफ़ेद दाढ़ी और लम्बे जटाधारी बालों से छुपा था तो केसरिया झाबा पहने वह पूरी तरह से किसी साधू के भेष में था| झट से कार किनारे लगाकर वह अपने आस पास किसी को न देख आसरा की ओर बढ़ जाता है|
“कहाँ बाबा जी ?”
बाहर खड़ा चौकीदार झट से उसे वही रोकता हुआ बोला तो चिराग जबरन आवाज मोटी करता हुआ ऑंखें मूंदे मूंदे कहता है – “बच्चा यहाँ कोई समाँ रोह हुआ था उसी की पूजा के लिए हमे काशी से किसी देवी ने बुलाया है – तुम रोकते हो तो मैं चला वापिस |” धीरे से ऑंखें मींचे वह चौकीदार के चेहरे से उसका मन टटोलता हुआ बोला|
“नही नही बाबा जी नाराज़ क्यों होते है – जाइए – जाइए अन्दर आप|”
हाथ में पकड़ा चिमटा हिलाते चिराग घनी मूंछों के पीछे मुस्कराता हुआ अब बिना किसी अवरोध के अन्दर आ जाता है|
चिराग इससे पहले यहाँ कभी नही आया था तो उसे अन्दर का बिलकुल भी जायजा नही था फिर भी वह अन्दर आता बस सबकी नज़रों से बचता हुआ एक सरसरी नज़र से अपने चारोंओर देखता है तो सामने की ओर गार्डन के पीछे कतारबद्ध कमरे बने उसे दिखते है, मन कह उठता है कि जरुर सुगंधा वही हो सकती है, ये सोच वह सबकी नज़रों से छुपता हुआ किसी तरह वहां पहुँचता है और सच में किसी कमरे से बाहर निकलते वह सुगंधा को देखता है जिसके साथ साथ चलती एक अधेड़ महिला उससे कुछ कह रही थी – “बिटिया तुम एक दिन नहीं आती हो तो अम्मा जी दवाई भी नही लेती – |”
तभी हाथ में चाय के दो प्याला लिए एक आदमी सुगंधा की ओर बढ़ता हुआ उसे पुकारता है – “लो बिटिया पहले चाय पियो – ये मेजर साहब के पास ले चल रहा हूँ – उनके किस्से और चाय दोनों तुम्हारा ही इंतजार कर रहे है|”
“काका आप चलिए मैं दादी को ये किताबें देकर आती हूँ -|”
सुगंधा की आवाज़ सुन चिराग के कानों में जैसे कोई जलतरंग सा दौड़ गया| वह किसी दीवार के पीछे पीठ से टेक लिए सारी आवाज सुनता मन ही मन मुस्करा रहा था| एक पल को उसका भी जी हुआ कि दौड़ जाए सुगंधा की ओर और बता दे कि उसके बिना उसकी भी सुबह शाम अधूरी ही है| पर उस पल अपनी वेशभूषा देख खुद पर ही हंस पड़ा वह|
इधर उधर छुपते वह सुगंधा के आस पास घूमता उसे छुपकर निहारता रहा फिर घड़ी में छह बजते सुगंधा वहां से निकलने लगी| सुगंधा सभी कमरों की देहरी पीछे छोड़ती गार्डन के मुहाने तक पहुंची कि किसी पेड़ के पीछे से चिराग निकलता ठीक उसके सामने आकर खड़ा हो गया, सुगंधा चौंककर उसकी ओर देखती है|
सुगंधा की हैरान नज़रे उसकी ओर उठी रही क्योंकि चिराग अभी भी बाबा के भेष में ही था, चिराग बिना कुछ बोले अपने हाथ में पकडे कमंडल से एक गुलाब की सुर्ख कली निकालकर उसके हाथों को थमाँ कर घनी मूंछों के पीछे से मुस्करा कर उसके सामने से निकल गया और सुगंधा हतप्रभ उस ओर देखती रही और चिराग हाथो में चिमटा उठाए जैसे मस्तमौला की तरह झूमता हुआ उसकी आँखों के सामने से ओझल हो गया|
सुगंधा कुछ समझ नही पाई फिर कली को अपनी हथेली के बीच समेटे वह बाहर निकल आई| चिराग अब तक जल्दी से कार की ड्राइविंग सीट पर आकर जम चुका था अब वह देखता है कि वही ऑटो फिर उसके सामने खड़ा था और सुगंधा के बैठते वह तुरंत अपने गंतव्य की ओर बढ़ जाता है| ये देख चिराग भी जल्दी से अपनी कार उसके पीछे लगा देता है| हर मोड़ रास्ते से गुज़रते वह समान दूरी बनाए उस ऑटो का पीछा कर रहा था, गली से निकलते ऑटो मुख्य सड़क में अब सिग्नल से गुज़र रहा था, चिराग अपनी कार उसके पीछे लगाए था कि ऑटो के अगला मोड़ पार करते एक पुलिसकर्मी चिराग को हाथ देकर रोक लेता है, उसे मजबूरन कार किनारे लगानी पड़ती है|
“चलो बाबा जी बाहर आओ |”
आँखे तरेरता पुलिसकर्मी चिराग को कार से बाहर निकालता है तो उसे अपनी वेशभूषा का ख्याल आता है कि वह अभी भी उसी वेश में था, ये देख वह जल्दी से अपनी दाढ़ी खींचता सर से विग हटाता है तो पुलिसकर्मी उसे ऑंखें फाड़े देखता रह जाता है|
“देखिए सर मैं कोई साधू वाधू नही हूँ – |” कहता हुआ वह कार से पेपर निकालकर उसकी नज़रों के सामने रख्ता हुआ कहता है – “ये देखिए कार के पेपर और ये मेरा ड्राइविंग लाइसेंस |”
सारे पेपर हैरान नज़रों से देखता हुआ पुलिसकर्मी बोला – “तो ये साधू क्यों बने हो – मैंने रोका कि ऐसी बढ़िया स्पोर्ट्स कार को साधू कैसे चला रहा है – कही चोर तो साधू के वेश में चोरी नही किए ले जा रहा !”
चिराग की नज़र अब सामने की ओर उठी तो उसकी आँखों से ऑटो ओझल हो चुका था|
“शिट |”
पुलिसकर्मी चिराग को हैरान देखता है तो माँ ज़रा समझते चिराग जल्दी से कहता है – “असल में मैं अपने कॉलेज के किसी प्ले के लिए इस गेटअप में निकला था पर अब क्या मैं लेट हो गया अब मैं घर वापस जा रहा हूँ|”
“क्यों !!”
“कुछ सामाँ न छूट गया |” दबी झल्लाहट से चिराग कहता मन मसोजे कार में बैठ वापसी की ओर मोड़ लेता है|
उसे जाता देख पुलिसकर्मी सोचता हुआ धीरे से बुदबुदाता है – ‘लगता है बाबा वाला कमंडल भूल गया होगा|’
जितनी ख़ुशी से चिराग को सुबह जाते देखा था उतने ही गुस्से में अब उसे वापस आते देख अतुल सहमता हुआ उसकी नज़रों से छुप जाता है कि अगर इस वक़्त वह अपने भाई के हत्थे लग गया तो ऊपर वाला भी उसे बचा नहीं पाएँगे| आते चिराग सीधे अपने कमरे में चला गया तब जाकर अतुल ने राहत की साँस ली|
चिराग अगले दिन फिर से सुगंधा का घर का रास्ता देखने के लिए उसी मोड़पर अपनी कार के साथ तैयार खड़ा था| ऑटो के वापसी को मोड़ते चिराग फिर से उसके पीछे अपनी कार लगा देता है| अबकी पूरी मुस्तैदी से चिराग ऑटो का पीछा कर रहा था| आखिर किसी बंगले के सामने ऑटो के रुकते सुगंधा उस घर में हक़ से समाँ जाती है इससे वह सुनिश्चित हो जाता है कि यकीनन यही घर है उसका| उसके अन्दर जाते चिराग उस बंगले के बाहर खड़ा उसके बाहर लगा पत्थर पढ़ता है जिसमें नूतन निवास के नीचे डॉक्टर नूतन वोहरा फिर प्रतीक जिसके बगल में मर्चेंट नेवी लिखा था फिर डॉक्टर छवि लिखा देख वह समझ लेता है कि हो न हो इस बार सुगंधा अपनी टीचर के घर पर रह रही है| सोचते हुए चिराग मन ही मन मुस्करा कर खुद को कह उठा कि ‘सनम तुझे इस बार कहीं नही जाने देंगे हम..|’
फिर से दिमाँ ग के घोड़े दौड़ते चिराग कार में बैठते कहीं फोन लगाता है, फोन लगाने से दस पंद्रह मिनट में उसकी नज़रों के सामने कोई पिज़्ज़ा डिलेवरी बॉय आकर ज्योंही रुकता है चिराग लगभग दौड़ता हुआ उसके पास पहुँचता उसे रोकता हुआ कुछ समझाता हुआ पिज़्ज़ा का पेमेंट करता है| पहले हैरानगी से वह उसका चेहरा देखता रहा फिर उसी के अगले क्षण मुस्कराते हुए चिराग को अपनी जैकेट, कैप और पिज़्ज़ा का एक डिब्बा थमाँ ते उसको जाता हुआ देखता है|
इस समय चिराग के दिमाँ ग में कौन सी खिचड़ी पक रही थी ये बस उसे ही पता था| वह कैप से अपना चेहरा छुपाए अब उस घर की कॉल बेल बजाता है| अगले ही क्षण दरवाज़े के उस पार छवि दिखती है|
“हाँ !!”
“मैम ये पिज़्ज़ा का ऑर्डर हुआ था आपके पते से |” चिराग हलके से आवाज बनाता हुआ पिज़्ज़ा का डिब्बा उसकी नज़रों के सामने करता हुआ कहता है|
“पिज़्ज़ा !! मैंने तो नहीं किया |” वह हैरानगी से देखती रही|
“हो सकता है घर से किसी और ने किया हो – |”
“नही – मुझे पता है न कि मेरे सिवा कोई नही करता ऑर्डर |” ऊबती ही आवाज में छवि बोली तो चिराग यूँ खड़ा रहा कि पूछ तो लीजिए आप आखिर झेलती हुई छवि वही दरवाजे से खड़े खड़े ही आवाज लगाती है – “सुगंधा – तुमने किसी पिज़्ज़ा का ऑर्डर किया था ?”
वैसे ही उत्तर में दूर से आवाज आती है – “नही भाभी |”
वो आवाज सुगंधा की थी जिसे उस दीवाने दिल के रिकॉर्डर में जैसे सदा के लिए संरक्षित कर लिया गया|
“नही किया – बोला था न |” उसकी तरफ पलटती हुई छवि कहती है|
“ओके मैम |” कहता चिराग वापस मुड़ने लगा तो छवि उसे पुकार उठी जिससे चिराग का दिल डर गया कि कहीं वह पकड़ा तो नही गया फिर भी व डरते डरते उसकी तरफ पलटता है|
“रुको यही |” कहती छवि दरवाजा छोड़कर अन्दर गई और तुरंत ही वापस आती उसके सामने एक नोट देती हुई बोली – “अब लाए हो तो वापस क्यों ले जाओगे – कीप चेंज |” कहती उसके हाथों से डिब्बा लेती घर के अन्दर समाती दरवाजा बंद कर लेती है|
एक पल नोट को देख चिराग मुस्करा पड़ता है फिर दूर खड़े पिज़्ज़ा डिलेवरी बॉय के पास तेज क़दमों से आता उसका जैकेट, कैप वापस करते नोट उसकी पॉकेट में डालता लगभग झूमता हुआ अपनी कार की तरफ बढ़ जाता है|
डिलेवरी बॉय एक पल को उस शानदार कार में बैठे नौजवान को तो दूसरे पल उस बंगले की छत की ओर अपनी नज़र दौड़ा देता है जहाँ किसी सलोने चेहरे को पौधों को पानी देते देख वह धीरे से मुस्करा कर अपना स्कूटर स्टार्ट कर देता है|
क्रमशः…………………………..
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