Kahanikacarvan

सुगंधा एक मौन – 27

चिराग को सुगंधा मिल तो गई थी जिससे उसे पाने की चाह उसमें और बलवती हो उठी पर उसका मन उसे दुबारा खो देने के डर से उसके सामने जाने से रुक गया, वह कुछ तय नही कर पा रहा था कि आखिर क्यों अब वह उससे दूर हो रही थी !! आखिर क्या था उसके मन में !! उसके मौन के गहरे अतुल में चिराग का दिल डूबने लगा था, उसकी ऑंखें में चाहत का ढेर समन्दर उमड़ रहा था फिर उसमें कहाँ से ठहराव के पथरीले जंगल उग आए…उसकी सुगंधा ऐसी तो नही थी !! ढ़ेरों ऐसे प्रश्नों के कवक उसके मन के जंगल में उगने लगे|

अगले दिन दोपहर ही वह संस्था के बाहर खड़ा था पर अन्दर जाने का हौसला नही कर पा रहा था यूँ तो उसे पता था कि सुगंधा अभी वहां आई नही है वह इसी कशमकश में उलझा धीमे क़दमों से संस्था की ओर बढ़ रहा था कि मुख्य द्वार से तेजी से बाहर की ओर आती मौसी उसे वहां आता देख चौंकती उसे पुकार उठी| वह उन्हें सामने से आता देख सड़क के उस छोर पर किसी पकड़े गए चोर की तरह थमाँ  रह गया| उस एक पल में जब चंद क़दमों का फासला पूरा कर मौसी उसकी ओर आती उतनी देर में वह अपने दिमाँ ग के घोड़े दौड़ाने लगा कि वह अपने यहाँ आने का आखिर क्या सबब बतलाएगा !!

“चिराग तुम यहाँ !!”

डरा मन चोर सा दुबक गया, यही स्थिति होती है जब मन में कुछ और हो और सामने वाले द्वारा उसे पकड़ लिए जाने की आशंका बन जाए तब नज़रे चोर की भांति इधर उधर डोलने लगती है और शब्द खुद ब खुद लडखडा जाते है| संस्था से कुछ क़दमों के फासले पर सड़क के पार चिराग थमाँ  हुआ मौसी को नज़र उठाकर देखता हुआ कुछ कहने ही वाला था कि मौसी जल्दी से कह उठी – “अभी तो कल्याणी से बात हुई और इतनी जल्दी आ गए तुम ?”

संशय भरे चेहरे से वह उनका चेहरा ताकता रहा|

मौसी उसकी बाजू पकड़कर हिलाती हुई कह रही थी – “रास्ता ढूंढने में दिक्कत तो नही हुई ?”

मौसी क्या कह रही थी उसके कुछ समझ नहीं आ रहा था दिल जंगल में बजते ढोल सा पल पल में धड़कता मन ही मन सोचे जा रहा था कि जाने माँ और मौसी में क्या बात हुई !!

“तुम इतनी तेज कार चलाते हो – अभी बात हुई और अभी तुम आ गए |”

“न – नही मैं तो यही पास में ही था |” वह जितना बात समझ पाया उससे खुद को सयंत करने का प्रयास करने लगा|

“तो ठीक है – नहीं तो आज मैं तुम्हारे कान खींचती – चलो अन्दर चलो – वैसे चाहती थी कि कल्याणी आती पर उसका कर्म से ज्यादा धर्म में मन लगता है |” मौसी कहती हुई संस्था के मुख्य गेट की ओर बढ़ रही थी और उनके पीछे पीछे अपने प्रश्नात्मक चेहरे के साथ चिराग चल रहा था| मुख्य गेट पर उनके आते चौकीदार उन्हें सलाम करता किनारे खड़ा हो जाता है इस एक पल चिराग पिछले दिन की अपने साधू बने वाली स्थिति सोच धीरे से मुस्करा पड़ा था|

चिराग के आगे चलती मौसी कहती जा रही थी – “दुविधा में फंसी नही होती तो कभी कल्याणी को नहीं कहती – पता है घर की जिम्मेदारी में फंसी है वो पर क्या करूँ मेरा शारजाह लौटना बहुत जरुरी हो गया है फिर वंदना भी नही है यहाँ |”

अब तक वे चलते चलते एक कक्ष तक आ गए थे जिसे देखते चिराग समझ गया कि यकीनन ये ऑफिस होगा, मौसी चिराग को बैठने का इशारा करती ठीक उसके सामने बैठी कहे जा रही थी और चिराग हैरानगी से सारा माँ जरा समझने का प्रयास कर रहा था|

“वंदना यहाँ की मेनेजर है – यहाँ की सारी व्यवस्था वही संभालती है जब वो नही होती तो मैं आ जाती हूँ पर इस बार तो मुझे भी जाना पड़ रहा है और वह भी यहाँ नही रुक पा रही – |” वे चिराग के चेहरे पर आते प्रश्न को समझती लगातार अपनी बात कहती जा रही थी – “उसकी बेटी की शादी है अब बताओ ऐसे में मैं क्या करती इसीलिए मैंने कल्याणी से बात की थी कि कुछ दिन वह यहाँ का संभाल लेती या तुमसे कहकर ऑफिस से ही किसी व्यक्ति का प्रबंध करा देती |”

अब कुछ कुछ चिराग के दिमाँ ग की खिड़की खुलने लगी थी, इस एक पल उसे लगने लगा कि अचानक कड़कती धूप में चलते चलते उसे किसी पेड़ की घनी छांव मिल गई, वह मन ही मन मुस्करा उठा था, अवसर उसके सामने था बस लपक कर उसका फायदा उसे उठाना था, अब तो दिमाँ ग के घोड़े सरपट सरपट खुले मैदान में दौड़ चले थे|

“ये देखो मेरी आज रात की टिकट है – |”

“आपका जाना बहुत जरुरी है क्या !!”

“हाँ – |” वे  कहती दो पल तक उसका चेहरा तकती रही|

“ओह तो रुकिए मैं कुछ सोचता हूँ – वैसे मैं बहुत बिज़ी हूँ पर अपनी प्यारी मौसी के लिए कुछ तो सोचना ही पड़ेगा |” चिराग अवसर का पूरा लाभ उठाता जानकर अपने स्वर में तंगहाली ले आता है|

“हाँ बेटा जरा कुछ तो प्रबंध कर दो – देखो बस दस से बीस दिन के लिए कोई आदमी चाहिए – |” उनके स्वर में प्रार्थना उभर आई थी| 

जानकर सोचने की मुद्रा में चिराग ऊपर की ओर देखते हुए कहता है – “अभी इस समय तो कोई ऐसा नही है |”

“तो !!!” उनके चेहरे पर परेशानी दिखाई पड़ने लगी|

कुछ क्षण रूककर धीरे से कहता है – “मैं ही कुछ दिन आकर देख लूँगा |”

“तुम !! पर तुम तो पापा के साथ ऑफिस जाते हो और यहाँ तो फुल टाइम मेनेजर की जरुरत है|” वे बेबस सी कहती है|

“तो कुछ दिन के लिए अपनी मौसी के लिए मैं ये भी नही कर सकता क्या – ऐसा है आप बेफिक्र होकर जाइए और बीस दिन क्या एक महीने के लिए मैं यहाँ सब संभाल लूँगा –|”

“क्या सच बेटा !!” चिराग की बात सुन उनके चेहरे पर ख़ुशी दमक आई|

चिराग के लिए ये किसी बिन माँ गे पूरी हुई मुराद सा था, इस वक़्त सच में जो ख़ुशी उसके दिल को हो रही थी वह खुलकर उसे चाहकर भी अपने चेहरे पर जाहिर नही होने दे रहा था, उसे पता ही नहीं था कि भगवान उस पर इतना खुश है कि दोनों हाथों से उसपर अपनी नेहमते लुटा रहे है, उसका दिल तो बाग़ बाग़ हो उठा था पर किसी तरह से भी इसे जाहिर न होने देने से वह अपने चेहरे पर गंभीरता का भाव ओढ़े रहा|

“तुमने तो बेटा झट से मेरी समस्या हल कर दी और इस वक़्त तुमसे ज्यादा भरोसे वाला और कौन होगा मेरे लिए |”

“पर एक रिक्वेस्ट है आपसे |”

“हाँ – क्या बोलो |”

“मैं चाहता हूँ कि मैं अपना काम जिम्मेदारी से करूँ तो इसके लिए आप मुझे यहाँ का एक महीने के लिए मेनेजर नियुक्त कर दीजिए |”

“ऐसा क्यों भला बल्कि तुम तो सर्वोसरवा रहोगे ?”

“इससे मैं पूरी निष्ठा से यहाँ का काम संभाल पाउँगा बल्कि आप यहाँ किसी को ये पता भी नही चलने दीजिएगा कि मैं आपका भांजा हूँ इससे क्या होगा सब मुझे अलग से तवज्जो नही देंगे साथ ही मेरी गलती को नज़रअंदाज भी नही करेगे – नही तो आपका भांजा जान कोई कुछ कह भी नही पाएगा और  इससे मैं ढंग से यहाँ को समझ भी नहीं पाउँगा|”

वे तन्मयता से उसकी बात ध्यान से सुनती रही फिर उसके शांत होते वे उससे सहमत होती हुई कहती है – “जैसा तुम्हें ठीक लगे – मैं कह दूंगी कि तुम्हें टेम्परेरी मेनेजर नियुक्त कर रही हूँ पर पेमेंट नही दूंगी |” कहकर मौसी कसकर हँस पड़ी उनकी हँसी संग चिराग की हँसी भी मिल गई पर ये उसी का दिल जानता था कि उसका दिल किस ख़ुशी से लहक उठा था| आज तो बिन पंखों के ही मन ब्रमाँ ड में उड़ा जा रहा था, एक पल को उसका दिल हुआ कि बढ़कर मौसी का गाल चूम के थैंकयू बोल दे पर जबरन  वह चेहरे पर गंभीरता का आवरण चढ़ाए रहा|

“चिराग पन्द्रह लोगों में पांच लोगों का स्टाफ है – मैं उनसे तुम्हें मिलवा देती हूँ – मेरे पास अभी एक आध घंटा है |” वे अपनी कलाई की घड़ी देखती हुई कहती है|

“अरे अब आप यहाँ से बेफिक्र हो कर सब मुझपर छोड़ दीजिए – फिर वंदना जी तो लोकल ही रहती है अगर कोई मुश्किल हुई तो मैं फोन करके उनसे पूछ लूँगा – मेरे ख्याल से आपको जाने की तैयारी करनी चाहिए |”

“हाँ वो तो है वैसे भी आज की व्यवस्था तो कर दी है मैंने कल से बेटा थोड़ा देखना तुम – चलो फिर चलते चलते मैं कुछ चीजे वर्बली समझा दूंगी|”

सहमति में सर हिलाता चिराग मौसी के साथ अब बाहर की ओर निकलने लगता है|

“ये नए मेनेजर साहब है पांडेय जी – मैं जा रही हूँ तो कल से ये आएँगे तो थोड़ा इनकी मदद करना – समझे |”गेट पर चपरासी को कहती है तो चिराग मुस्करा उठता है|

“अरे दीदी आप कोनो फिकर मत करो – |” वह हाथ जोड़ उनको विदा देता है|

कार में ड्राइविंग सीट पर चिराग के बगल में बैठती मौसी कहती रही – “ये पांडेय है बहुत पुराना कारिन्दा है – इसका काम गेट पर है और बाकि समय ये माँ ली की तरह संस्था में काम करता है और रसोई में मिश्राजी के साथ गनेसी दोनों रसोईघर सँभालते है – बाज़ार से सौदा लाना, सबको खाना देना भी उन्ही का काम है, माँ या और सलीमाँ  देखभाल का काम करती है – यूँ तो सभी एक दूसरे की सहायता कर देते है – |” मौसी अपना कहती रही पर अपनी ही दुनिया में खोया चिराग यंत्रवत कार चलाता हुआ बीच बीच में मुस्करा उठता तो मौसी जी स्वीकृति समझ वे भी धीरे से मुस्करा पड़ती|

क्रमशः………….

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