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सुगंधा एक मौन – 4

डॉक्टर चिराग के हाथ से ब्लडप्रेशर का पट्टा खोलते हुए चिराग की प्रश्नात्मक आँखों को पढ़ते हुए कहते है – “बिलकुल ठीक है ब्लडप्रेशर – |”

उनके इतना कहते ही अतुल तुरंत उछलते हुए बोला – “ बिलकुल ठीक है न तो अब नही करूँगा मैं इनका कोई काम -|”

“हाँ हाँ – बड़ा काम करता है मेरा -|”

चिराग के कहते अतुल छोटे बच्चे सा मुंह फुला लेता है जिसपर डॉक्टर को भी हँसी आ जाती है जबकि वे जानते थे कि चिराग की बेहोशी में अतुल अपनी हद से गुजरकर चिराग के सब करता आखिर ये असीमित, अविरल प्रेम था दो भाइयों का…..

रेगुलर चेकअप करके वे अब उसके माँ ता पिता के सामने खड़े उनकी जिज्ञासा शांत कर रहे थे|

“आप चिंता करना छोड़िये – चिराग अब बिलकुल ठीक है – बहुत जल्दी उसकी बॉडी ने अपनी रिकॉवरी की है|”

“अच्छा !!” वे दो जोड़ी ऑंखें ख़ुशी से चमक उठी|

“लेकिन !”

“लेकिन क्या !!!” पल में बारिश के बाद चटक धूप निकल आई जैसे उनके चेहरे पर|

“अरे चिंता वाली कोई बात नहीं बस यही थोड़ा ध्यान रखिए कि कोई भी बात से उसके दिमाँग पर अनावश्यक जोर न पड़े – कुछ समय के लिए उसकी हर बात माँ न लीजिए क्योंकि हो सकता है वह अपने जीवन की पिछली कई यादें खो चुका हो तो हो सकता है उसे याद करने में वह परेशान हो जाए तो बस यही ख्याल रखिए वह कुछ भी याद करने में अपने मष्तिष्क में अनावश्यक जोर न डाले बाकी उसे बाहर निकलने दीजिए – दोस्तों के संग घूमने फिरने से हो सकता है स्वतः ही उसकी सारी याद वापस आ जाए – |”

“जी बिलकुल हम तो अपने बच्चों को वैसे भी जबरन कभी अपने विचारों से नही बांधते |” पिता अपना मत देते है|

“हम तो शादी की बात सोच रहे थे उसकी – अब नही सोचेंगे – जब उसके जी में आएगा तभी करेंगे – मेरा बेटा सही सलामत रहे मुझे और कुछ नही चाहिए|” माँ भी अपना दर्द खोल कर बैठ गई|

“अरे नहीं आप शादी की बात करिए – कई बार ऐसे केसेज में देखा गया है कि मरीज भावात्मक साथ से जल्दी रिकवर करता है खुद को – बस किसी बात के लिए जोर मत दीजिएगा |” अपनी बात पूरी तरह से समझाते हुए अब डॉक्टर बाहर की ओर चल देते है और चिराग के मम्मी पापा का चेहरा ख़ुशी के आभास से ही दमक उठता है|

***

उनसे इंतजार नहीं होता और शाम के खाने के बाद वे चिराग संग टहलते बार बार अपनी बात रखने के मौके को तलाशते रहे|

मम्मी कनखियो से पति को बेटे के सामने खड़ी करती है|

वे हिचकिचाते हुए चिराग संग टहलते टहलते उसकी तरफ प्रश्नात्मक रूप से देखते है जिससे चिराग पूछ बैठता है –

“कुछ पूछना है मुझसे आपको डैड ?”

चिराग के रुकते कदम से उनकी जुबान भी रुक जाती है, वे एकदम से सकपका जाते है|

चिराग अब मुड़कर उनकी तरफ देख रहा था|

वे उलझे हुए एक पल चिराग को तो दूसरे पल अपनी पत्नी की तरफ देखते एकदम से बोल पड़े –

“तुमने टेंडर की फाइल गुप्ता जी को दे दी थी !”

“यस डैड उसी वक़्त दे दी थी जब आपने कहा था|” वह कहता हुआ अब भी उनकी तरफ देख रहा था और वे अपनी पत्नी की तरफ मरमरी हालत में देख रहे थे|

माँ झट से जोश में आगे आती है|

“चिराग बेटा सुन |”

आवाज़ सुन चिराग अब पलटकर अपनी माँ की तरफ देखता है|

“जी माँ कहिए -|”

चिराग उनकी आँखों की ओर देखता रहा और माँ हडबडाहट में अपने शब्द खो बैठी|

“बेटा कल राजमा बनाऊ या माहं की दाल |”

“कुछ भी बना लीजिए माँ – आपके हाथों का सब मुझे अच्छा लगता है|” चिराग अपनी भरपूर मुस्कान के साथ अब उनसे आगे टहलता हुआ कुछ दूर खड़े अतुल की तरफ बढ़ जाता है|

चिराग के जाते वे अपनी पत्नी की तरफ थोड़ा तिरछा होते हुए कहते है – “क्या हुआ – आप तो बड़ी शेरनी बन रही थी पर बेटे के आगे तो -|” वे मुंह दबाकर हँस पड़े तो वे भी फंसी फंसी सी हँसी से उनकी तरफ देखने लगी|

“लगता है हम तो नहीं कर पाएगें अपने बेटे से बात |”

“तो क्या खुद लड़की आकर करेगी बात |” वे शिकायती लहज़े में बोली|

“हाँ |” वे एकदम से चहकते हुए कहते है – “सही कहती हो – अब लड़की ही आकर खुद बात करेगी – अरे दिशा |” वे याद कराते हुए उनकी तरफ देखते है|

“हाँ दिशा |”

“अभी सक्सेना को फोन करता हूँ परसों सन्डे है यही बुला लेता हूँ – और एक दिन काफी है भोपाल से इंदौर आने के लिए -|” वे खुद में ही खुश होते हुए कहते रहे – “अब समय आ गया है कि हमाँ री व्यावसायिक दोस्ती रिश्तेदारी में बदल जाए |”

“सही कहते है जी आप – और दिशा चिराग तो साथ ही पढ़ते थे |”

दोनों आभासी ख़ुशी के आगाज के लिए तुरंत घर के अन्दर की ओर चल देते  है|

…अब आगे क्या चिराग दिशा से मिलते अपने दिलो दिमाग से सुगंधा को निकाल पाएगा ???

क्रमशः………..

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