
सुगंधा एक मौन – 31
रात के खाने के बाद गार्डन के थ्री सीटेड झूले पर लेटा चिराग अपनी ख्याली दुनिया में सोचता हुआ इतना गुम था कि माँ का उसके पास आना जान भी नही पाया जब तक वे आकर उसके सिरहाने नही बैठ गई| चिराग भी छोटे बच्चे सा उनकी गोद में सिर रखे लेट गया तो वह भी ममतामई मुस्कान से मुस्करा उठी|
बेटे के सर को सहलाते उसके बालों की गुत्थी को सुलझाते सुलझाते वे उसकी आँखों की उलझन को भांपती हुई आखिर पूछ उठी – “बात क्या है – क्या सोच रहे हो?”
माँ की बात सुनते जैसे विचारों की तन्द्रा पार करता वह होश में आते सर सहलाते माँ के हाथ को अपने दोनों हाथों से थाम लेता है – “माँ आपको क्या लगता है – क्या मैं कभी बुरा हो सकता हूँ ?”
ये सुनते पहले वे अवाक् रह गई फिर धीरे से ठसक कर हंस पड़ी|
पर माँ का हाथ थामे चिराग अपनी रौ में कहता रहा – “कोई बेटा ऐसा कैसा हो सकता है कि अपने ही माँ ता पिता को उनके जीवित रहते त्याग दे – ये मेरे लिए अविश्वसनीय है पर सच भी तो यही है|”
माँ के चेहरे की मुस्कान इंच भर कम हो गई वे हैरान आँखों से चिराग की आँखों का भाव पढ़ने का प्रयास करती हुई कह उठी – “लगता है जीजी के आश्रम जाकर तुम्हारे मन में ऐसे भाव आ रहे है |”
“हाँ माँ |” एकदम से उठकर बैठता हुआ माँ की ओर देखता हुआ कहता है – “कैसे संभव है कि उनकी अपनी औलाद उन्हें उनकी इस अवस्था में अकेला छोड़ दे जब उनको सबसे ज्यादा उनके साथ की जरुरत होती है|”
“बेटे नही बहु – शादी होते बेटे बदल जाते है – कल को तुम भी बदल जाओगे तो !!”
चिराग हैरान माँ के चेहरे की अनबुझी मुस्कान समझने का प्रयास करता रहा|
“बहु के लिए थोड़े ही वो माँ बाप होते है तो सास ससुर को त्यागने में उसे कौन सी ममता लगेगी !”
“ऐसा कभी नही होगा – मैं जैसा हूँ हमेशा वैसा ही रहूँगा माँ |” वह माँ का हाथ प्यार से थामे कहना तो चाहता था कि ऐसा होगा ही नहीं कभी माँ क्योंकि सुगंधा तो मुझसे भी अच्छी है पर सुगंधा की ख़ामोशी को महसूसते तालू से चिपकी उसकी जुबान मन में ही शब्दों का गडमड कर बैठी|
तभी उसकी नज़र वही आते अतुल पर जाती है जो अपनी मतवाली चाल से अपने हाथ में कोई कटोरी लिए खाते खाते वही आता दिखा तो चिराग भौं सिकोड़ता हुआ कह उठा – “मेरा तो पता है पर इसका मुझे कोई भरोसा नही – खाने के सिवा इसे कुछ सूझता ही नही|”
आखिरी शब्द कहने तक अतुल उनके पास आ चुका था जिससे रूककर उनकी तरफ देखता हुआ पूछता है – “क्या !!!”
“तुम्हें खाने के सिवा कोई काम नही है क्या – अभी तो डिनर किया था अब क्या खा रहे हो ?”
“कस्टड |” धीरे से मुंह बनाते हुए कहता उनसे कुछ दूर कुर्सी पर विराजते हुए फिर खाना शुरू कर देता है|
माँ मुस्कराती हुई उन्हें ही देख रही थी|
“बस सारा दिन खाना – पता नही पचा कहाँ जाता है खाना |” चिराग अभी भी मुंह बनाए उसके कसरती जिस्म को घूर रहा था|
“जिम जाता हूँ |” पर चिराग की बात सुन एकदम से चहकता हुआ अतुल बोल उठा|
“जिम….अच्छा बच्चू मुझसे ज्यादा ताकत है क्या ?” चिराग अब झूले से पैर नीचे करता अकड़ता हुआ बोला|
इस पर अतुल आंख झुकाए अपना कस्टड खत्म करने में लग गया|
“अच्छा चल देखते है किसमे कितना दम खम है?”
अगले ही पल चिराग अतुल के सामने की कुर्सी पर बैठा उसे पंजा लड़ाने को उकसा रहा था पर इसके विपरीत अतुल और माँ हैरान उसे देखती रह गई|
“चल – शुरू हो जा|”
अतुल पहले तो समझ नही पाया कि सच में ऐसा कुछ होगा पर अगले ही पल चिराग उसका हाथ पंजा लड़ाने की स्थिति में थामे बैठा उसे मुस्कराते हुए देख रहा था जबकि अतुल के चेहरे की हवाइयां उड़ी हुई थी, अभी कस्टड का मीठा मीठा रस्वादन उसकी जबान से गया भी नही और चिराग की तीखी आँखों का उसे सामना करना पड़ रहा था| यही पल था जब पिता भी टहलते हुए वहां आ गए और अब उनके माँ ता पिता साथ में इस दिलचस्प नज़ारे को देखने अपनी नज़रे उनकी ओर जमाँ ए थे| अतुल को छोड़ सबके चेहरे पर मुस्कान थी वह घबराया हुआ बस चिराग का पंजा थामे बैठा रहा|
आमने सामने बैठे दोनों एकदूसरे का पंजा थामे थे, अतुल कुछ पल तो चिराग को डरते हुए देखता रहा फिर जब उसे अहसास हुआ कि चिराग भी उसका हाथ नही हिला पा रहा था तो उसके चेहरे पर भी हलकी मुस्कान छा गई, दोनों बराबर से एक दूसरे का हाथ थामे थे न कोई कम न कोई ज्यादा दिख रहा था| इससे चिराग का गुस्सा चढ़ने लगा अब वह अतुल को अपनी तीखी आँखों से और कसकर घूरने लगा जिससे अतुल के चेहरे की मुस्कान गायब हो गई, वह घबरा गया इससे उसकी पकड़ ज्यों ही थोड़ी ढीली पड़ी चिराग ने उसका हाथ झटके से झुका दिया और अतुल अवाक् देखता रह गया|
“देखा – बिग इज ऑलवेज बिगर |” हाथ झाड़ते हुए उठता चिराग उसके सर पर एक चपत जमाँ ता निकल गया और अतुल हैरान उसकी ओर देखता रहा पर माँ तापिता इस दिलचस्प मुकाबले से खिलखिला कर हंस पड़े|
अगली सुबह नाश्ते की मेज पर अतुल को पहले से मौजूद देख चिराग अपने चिर परिचत अंदाज़ में उसके सर पर एक चपत लगाता उसके बगल में बैठता हुआ बोलता है – “आराम से खा – खाना कोई छिनने नही जा रहा|”
उसकी आवाज़ सुन काकी उसके सामने भी नाश्ते की प्लेट लगाती हुई बोली – “ये लो चिराग बेटा – डोसा – तुम्हारा मन था न ये खाने का !”
काकी की मुस्कान को देखते उसे पिछले दिन का ख्याल आया जिससे संस्था और सुगंधा का ध्यान एकसाथ उसके मस्तिष्क में तरंग सा दौड़ गया, काकी प्लेट उसकी नज़रों के सामने सजाते अब पलटकर जाने वाली थी तो चिराग उन्हें पुकार उठा – “काकी !”
वे तुरंत पलटकर अब उसी की ओर देख रही थी|
“थैंक्यू काकी – आप सभी का कितना ख्याल रखती है |”
काकी हैरान चिराग को देखती रही फिर धीरे से मुस्करा दी|
“अच्छा काकी ये बनता किससे है ?”
“दाल और चावल को पीस कर |” चिराग के प्रश्न पर त्वरित उत्तर देकर कुछ पल को उसका चेहरा देखती रह गई |
“अच्छा !!”
“काकी एक और …|”
अतुल की आवाज सुनकर अब उनका ध्यान अतुल की ओर जाता है तो वे झट से रसोईघर की ओर ‘अभी लाती हूँ’ कहकर मुड़ जाती है पर इसके विपरीत चिराग फिर से अपनी कड़क आँखों से अतुल को घूरने लगता है|
“तुम दिन भर जो खाते रहते हो कभी सोचा भी है कि ये सब किन चीजों से बनी होती है|” इस तरह पूछते एकपल को उसे लगा जैसे वह खुद से ही पूछ रहा हो क्योंकि इससे पहले उसने खुद ये कभी नही सोचा था पर अतुल को खींचने का कोई मौका भी वह नही छोड़ने वाला था|
इसपर अतुल तुरंत चहकते हुए बोल उठा – “हाँ क्यों नही – ये दाल चावल से बनता है और समोसा मैदा और चटपटे आलू से बना होता है तो पिज़्ज़ा चीजी लेअर से और बर्गर..यम्मी…|” कहते कहते अतुल की ऑंखें उनके स्वाद से यूँ चमक उठी माँ नों ये सब अभी उसकी आँखों के सामने सज़ा हो|
पर चिराग हैरान अतुल को देखता हुआ कह उठा – “तुम धरती पर खाने के लिए ही आए हो क्या !!!”
“तो !!! आप किसलिए आए हो ?” चिराग के सवाल पर तुरंत पूछता अतुल का ध्यान अब काकी द्वारा लाए डोसे की ओर जाता है जिससे लपककर प्लेट को अपनी ओर समेटकर अपना सारा ध्यान वही लगा देता है|
पर इसके विपरीत अतुल के सवाल पर चिराग के मन में एक ग़ज़ल तरंग सी लहरा उठी…होश वालो को खबर क्या कि बेखुदी क्या चीज़ है इश्क कीजिए तो समझिए बेखुदी क्या चीज़ है….
यही पल था जब सुगंघा का सलोना चेहरा उसकी आँखों के विस्तरित आसमाँ न में चाँद सा उग आया जैसे सच में उसकी सारी दुनिया ही सुगंधा के आस पास सिमट आई थी ये सोचते वह मन ही मन मुस्करा उठा| उस पल कोई अनजानी लहक से उसका समस्त जिस्म जैसे लहक उठा हो..उफ़ क्या रवानगी है इस इश्क में पर अतुल पर उसका ध्यान जाते जैसे उसकी जबान का स्वाद ही बदल जाता है, वह अभी ही चटकारे लेता पूर्ण तन्मयता से अपनी नाश्ते की प्लेट की ओर झुका था ये देख वह फिर उसके सर पर एक चपत जमाँ ता ‘बेवकूफ’ कहता उठता हुआ उसे कहता है –
“अतुल अपनी बाइक की चाभी दे |”
अतुल स्वाद की दुनिया में खोया बिना किसी प्रश्न से तुरंत अपनी पॉकेट से चाभी निकालता चिराग की ओर बढ़ा देता है माँ नों इस ख़ुशी के पल में उससे कोई भी कुछ माँ ग लेता तो वह इनकार नही करता|
पर चिराग के दिमाँ ग में तो कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी वह अपनी कलाई घडी में छोटी सुई को आठ बजाते देख अतुल की बाइक लेकर घर के निकटम मेकेनिक के पास ले जाता है|
अभी तुरंत दूकान खोले अकेला बैठा मेकेनिक पंचर बना बना रहा था ये देख चिराग उसे पुकारता है|
“हाँ साहब क्या ठीक कराना है ?”
“ये बाइक |” चिराग दूकान के मुहाने में खड़ी बाइक की ओर इशरा करता है तो आँख झपकाते मेकेनिक चमकदार बाइक को एक नज़र देखता अपने अभ्यस्त हाथों से पंचर बनाता रहता है|
“तुम ऐसा करो क्लच कवर हटा देना फिर विंड स्कीन के साथ साथ लेफ्ट साईड का व्यू मिरर भी हटा देना और ये सीट कवर भी बदल देना कोई पुराना हो वही लगा देना….|”
चिराग अपनी रौ में कहता रहा और मेकेनिक ऑंखें फाडे उसे देखता हुआ सोचने लगा कि लोग अपनी नई बाइक को ठीक कराने लाते है और ये उसकी एक तरह से धज्जियां उड़वा रहा है, या वही कुछ गलत सुन रहा है कहीं कल रात के देशी का नशा अभी तक उसके दिमाँ ग से नही उतरा क्या !!!
“समझे तुम अभी एक घंटे में बाइक को जैसा मैंने कहा वैसा करके मैं जो पता बताता हूँ वही ले आना –मैं तुरंत वही पैसे दे दूंगा |”
चिराग अपना पता बताता चला गया पर मेकेनिक हतप्रभता से कभी जाते हुए चिराग की पीठ तो कभी सामने चमचमाँ ती बाइक को देखता रहा|
अतुल नाश्ता निपटा कर होश में आते कॉलेज निकलने के लिए अपनी बाइक खोजता हुआ गार्डन में बैठे अख़बार पर अपनी खोपड़ी घुसाए हुए चिराग के पास आता है|
“भईया मेरी बाइक ?”
“बस से चला जा – मुझे अभी काम है बाद में दूंगा |” सहजता से उत्तर देता वह फिर अख़बार पर अपनी नज़र जमाँ देता है|
“अच्छा तो !!”
अतुल की आवाज से उसकी नियत को भांपता चिराग अख़बार से ध्यान हटाकर उसके सामने तन कर खड़ा होता हुआ बोला – “जो तू सोच रहा है कि मैं अपनी कार दूंगा तो सपने में भी मत सोचना – समझा|”
ये सुन अतुल मुंह लटकाता हुआ बोला – “तो मैं कॉलेज कैसे जाऊंगा ?”
“आधी दुनिया बस और ऑटो से जाती है उसी तरह |” एक पल को ऑटो कहते चिराग के होठों पर फिर हलकी मुस्कान आ जाती है|
“मैं बस से नही जाऊंगा – मुझे अपनी बाइक चाहिए – नहीं तो मैं मम्मी को बताऊंगा|” तुनकते हुए अतुल कहता एक बार फिर अपनी बात का असर देखने चिराग का चेहरा गौर से देखता है पर चिराग को फिर से अख़बार लेकर बैठते देख वह बोल उठता है – “मैं जा रहा हूँ मम्मी से कहने !!”
“हाँ जा |”
अतुल जाने को मुड़ ही रहा था कि मेकेनिक बाइक लाता उसे मुख्य फाटक के पार दिखता है जिसे इशारे से अन्दर बुलाता है| अतुल ये देख वही ठहर कर सब देखता है कि चिराग बाइक लेकर उसे पैसे देकर बाइक देख रहा था, ये देख अतुल पेट पकड़कर हँसता हुआ कहता है – “भईया आपने ये घटिया सी सेकेण्ड हैण्ड बाइक लेली तो अब तो मेरी बाइक वापिस कर दे |”
“ये तुम्हारी ही बाइक है |”
जिस बात को चिराग सपाट भाव से कह गया उसे सुनते अतुल के गले में स्वर का कोई गोला सा अटक जाता है जो गहरे चीत्कार के रूप में निकलते वह बाइक को छू छू कर यूँ देखता रुआंसा हो उठा जैसे तिनका तिनका समेटे आदमी का अचानक सब नदी में बह गया हो|
“मेरी बाइक का क्या किया – अब तो जरुर से मम्मी को बताऊंगा |” गुस्से में फुंकारते हुए अतुल जाने लगा तो पीछे से चिराग उसे आवाज लगाता हुआ बोला – “अरे दे दूंगा कुछ दिन बाद |”
“मुझे नही चाहिए ऐसी खटारा – अब देखना मैं नई बाइक लूँगा वो भी इससे भी अच्छी|”
“बोल तो रहा हूँ – कुछ दिन में वापिस कर दूंगा |” चिराग कहता रह गया और अतुल रूठा हुआ सा चला गया|
चिराग बाइक में सवार बस निकलने ही वाला था कि माँ और अतुल को अपनी तरफ आता देख रुक जाता है|
“ये क्या चिराग तुमने इसकी बाइक क्यों ले ली?”
चिराग देखता है कि माँ के पीछे खड़ा अतुल अब मंद मंद मुस्करा रहा था इससे चिराग झट से अपने चेहरे का भाव बदलता हुआ कहता है – “अरे माँ आपको पता है ये कितनी तेज बाइक चलाता है – चीजो की परवाह ही नहीं है इसे – आप खुद ही बाइक की हालत देख लो – इसीलिए मैंने कुछ दिन के लिए इसे अपने पास रखा है जब ये अपना सबक सीख लेगा तब वापिस कर दूंगा|”
अब मुस्कारने की बारी चिराग थी अतुल अवाक् उसकी बात सुनता रह गया और चिराग आराम से उसकी नज़रों के सामने से निकल गया अब माँ उसकी तरफ मुड़ती हुई कह रही थी – “बड़ा भाई है इसलिए चिंता करता है तुम्हारी – दे देगा कुछ दिन में |” माँ भी कहती चली गई और अतुल मनमसोजे खड़ा रह गया|
क्रमशः…..
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