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सुगंधा एक मौन – 32

चिराग बाइक से उतर रहा था और सुगंधा ऑटो से, ऐसा रोज ही होता कि उनके आने का समय एक ही होता…….सुगंधा इसे संयोग माँ ने बैठी थी जबकि चिराग का दिल ही जानता था इस लम्हे की कीमत……

चिराग जबतक बाइक को स्टैंड में लगाता तब तक सुगंधा जानकर उसकी ओर अनदेखा करती चिराग से आगे निकल गई, चिराग अब तेज क़दमों से अन्दर आते सुगंधा को अपनी नज़रों के परिदृश्य में न पाते ऑफिस की ओर चल देता है, जहाँ हमेशा की तरह उसकी छूटी किताबो के अलावा वहां कोई नही था, उन किताबों की ओर देखकर चिराग के चेहरे पर एक गहरी मुस्कान छा गई, वह तुरंत पलटकर गार्डन की ओर गया और चुपचाप सबकी नज़रों से छिपकर एक सुर्ख लाल गुलाब तोड़कर अपनी हथेलियों में छुपाकर लाता उसकी किताबों के बीच दबाकर झूमता हुआ बाहर की ओर निकल जाता है….अब उसकी नज़रे सुगंधा को तलाशती रहनवास की ओर बढ़ती अचानक रसोई से निकलते गनेसी को पुकारती हुई कह उठी – “गनेसी तुम चावल पूछ रहे थे न – ऐसा करो उसका डोसा बना लो….डोसा पता है कि नही दाल चावल से बनता है – समझे – तुम क्या समझते हो कि मुझे खाने की चीजों के बारे में कुछ पता ही नही |” चिराग लगभग झूमता हुआ उसकी नज़रों के सामने से गुजर गया और गनेसी ऑंखें फाडे उसे देखता रहा जब तक वह गलियारा पार नही कर गया| चिराग ने सब जानकर जोर से बोला ताकि अगर आस पास सुगंधा हो तो उस तक भी उसकी आवाज चली जाए…पर उसे अभी तक सुगंधा नज़र नही आई…उसको तलाशते अब वह रहनवास के पीछे के खुले मैदान तक आता है जहाँ अकसर सुबह की धूप में कुछ बुजुर्ग योगा इत्यादि करते रहते|

“वाह दादी ये तो बहुत सुन्दर बुना है आपने |” ये सुगंधा की आवाज थी जिसे सुनते चिराग की निगाहों ने तुरंत दिशा तय कर लिया| सुगंधा एक बुजुर्ग महिला के सामने बैठी उसके बुने स्वेटर को तल्लीनता से देखती हुई कहती है तो वे भी धीरे से मुस्करा देती है|

“मेरे पोते का जन्मदिन आने वाला है – उसी के लिए बुना है – सुन्दर है न !!””

“बहुत सुन्दर है….जन्मदिन पर अपनों के हाथ से बुना स्वेटर मिले इससे खूबसूरत बात और क्या होगी !”

जिस गहरे अहसास से सुगंधा कहती है उसे अंतरस महसूसते दादी कह उठी – “तुम्हारे लिए भी मैं एक स्वेटर बुनुंगी – पर जन्मदिन के लिए नही |”

ये सुन सुगंधा मुस्करा दी|

“तुम्हारे जन्मदिन पर पता है क्या देना चाहती हूँ ?”

वह जैसे आँखों से पूछ रही थी|

“चंदेरी साड़ी – पता है शादी के बाद मेरे पहले जन्मदिन पर उन्होंने मुझे चंदेरी की सुनहरे बोर्डर वाली साड़ी दी थी, जिसे अकसर बहुत संभालकर मैं पहनती ताकि जीवन पर्यंत उसे अपने पास सहेज सकूँ पर उनके जाने के बाद बहु ने घर ठीक करने में जाने कहाँ खो दी वो साड़ी….वो..|” दादी के शब्द गले तक आते जब रुँधने लगे तो गहरे उच्छवास छोडती कुछ पल को वे शांत हो जाती है|

उस पल सुगंधा उनके चेहरे पर अन्यास आए दर्द को एकटक देखती अपनी हथेलियों के बीच उनका हाथ थाम लेती है जिससे फिर वे खुद को संभालती हुई कहती है – “जब तुम प्रोफ़ेसर बन जाओगी न तब अपने पहले दिन वही साड़ी पहनना |” वे अपनी ममतामयी आँखों में असीम दर्द छुपा ले गई|

“तो बता – कब आता है तुम्हारा जन्मदिन – मुझे साड़ी भी तो लेनी है |”

इतने प्यार और स्नेह का उसने कभी खुद को इतना अधिकारी नही समझा फिर भी नसीब से उसे मिल गया जिससे उसका मन भर आया, वह सकुंचाती अपना हाथ उनकी ओर से खींचने लगती है तो दादी झट से उसकी हथेली अपनी हथेलियों के बीच थामें रहती है|

“आज तो बताना पड़ेगा नही तो छोडूंगी नही|” कहकर उनके चेहरे की हर झुरियां जैसे मुस्करा उठी|

“पता नही दादी – माँ को भी सही तारीख नही याद थी इसलिए सेटीफिकेट में कुछ भी लिखवा दिया|” जन्म की तारीख की याद से अन्यास ही उसे माँ की याद हो आई और अपनी ही रौ में वह कहती रही – “पर माँ ने एक दिन बताया था कि मेरे जन्म के अगले किसी दिन गुरुपर्व था|”

“अच्छा तो दो दिन बाद ही तो गुरुपर्व है – तो इससे कल हुआ तुम्हारा जन्मदिन |”वे एकाएक खुश होती हुई बोली|

“अरे छोड़िए न दादी – सेटीफिकेट में तो फ़रवरी लिखा है |”

“तो इससे तुम साल में दो बार मनाया करो अपना जन्मदिन |”

इसी एक बात पर दोनों खुलकर हंस पड़ी, यही वो पल था जब कोई दीवाना उस पल को अपनी आँखों में सेतने लगा था|

चिराग के लिए ये एक मौका था जब उसे अपने दिल की कहने का अवसर मिल सकता था….वह भी चाहता था कि जल्द से जल्द वह अपने दिल की बात सुगंधा तक पहुंचा सके कि आखिर उसी के लिए तो आया है वह यहाँ…. ताकि उसका विश्वास जीत सके पर कैसे !! यही सोचने उसका दिमाँ ग फिर कुछ तिगडम भिड़ाने लगा|

सुगंधा के जाने का समय हो रहा था, बस ग्यारह बजने ही वाले थे, ये देख चिराग बाहर तक आता है जहाँ नियत स्थान पर सुगंधा को लिवाने ऑटो खड़ा था, ये देख अपनी पॉकेट से मोबाईल निकालकर वह हवा में बातें करता हुआ उस ऑटो वाले के पास पीठ करके खड़ा हो जाता है|

“क्या बात कर रहा है – सच में – चाणक्यपुरी स्क्वायर में एक ऑटो वाले ने हंगामाँ  किया है|” चिराग चौंककर अपनी बात थोड़े तेज स्वर में कहता है तो ऑटो वाले का ध्यान उसकी ओर चला जाता है, जिससे चिराग कहता रहता है – “एब रोड तक हंगामाँ  बढ़ गया है, पुलिस वाले आस पास के सारे  ऑटो वालों की धड्पकड़ कर रहे है, तब तो सुदामाँ  नगर कौन सा दूर है -|” फोन पर कहता हुआ वह कनखियों से ऑटो वाले के बदलते हुए तेवर देखने लगा, वह भी चौकन्ना होता अपने ऑटो से बाहर आकर चिराग की ओर अपना सारा ध्यान लगा दिया था|

“सही कह रहा है न – अच्छा मैं थोड़ी देर से निकलूँगा ओके बाय|” फोन काटकर अपनी जेब में रखता हुआ जानकर वह ऑटो वाले की ओर देखे बिना उससे आगे बढ़ने लगा तो ऑटो वाला उछलकर उसके सामने आता खड़ा होता पूछने लगा –

“साहब कहाँ हंगामाँ  हो गया ?”

चिराग उसकी आवाज सुनकर उसकी तरफ पलटकर यूँ देखता है जैसे उसके वहां होने से वह पूर्णतया अनभिज्ञ हो|

“बताओं न साहब कहाँ हंगामाँ  हुआ और ऑटो वालो को पुलिसवाले क्यों उठा रहे है ?”

“तुमने कहाँ सुना ?” चिराग जानकर अनजान बनता उसकी ओर से अपना ध्यान हटाने लगा तो ऑटो वाला फिर उसके पास आता जैसे मिमियाते हुए अपनी बात दोहराता है तब बेमनी दिखाते हुए चिराग कहता है – “मेरा दोस्त बता रहा है अब कितना सच झूठ है मुझे नहीं पता |”

ये सुनते अगले पल ऑटो वाले के चेहरे पर सुकून आने लगा ये देखते चिराग झट से अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहता है – “अगर सच हुआ तो रात भर के लिए फालतू में ऑटो रखा लेंगे, मुझे लगता है पता करने के बजाय अभी यहाँ से निकल जाना ही सही होगा|”

“पर अभी मेरी सवारी आने वाली है |”

“अरे दिन का वक़्त है सवारी को दूसरा ऑटो मिल जाएगा पर एक बार को तुम्हारा ऑटो रखा लिया तो फंस जाओगे तुम – बाकि तुम्हारी मर्जी |” अपने चेहरे पर पूर्ण हमदर्दी लाता हुआ चिराग बोला तो उसका असर ऑटो वाले के चेहरे पर भी दिखने लगा, फिर अगले ही पल ऑटो वाला कुछ सोचकर तुरंत अपना ऑटो लिए वहां से निकल गया, ये देख चिराग के चेहरे पर हलकी मुस्कान छा गई|

चिराग अपना तिगड़म भिड़ा चुका तो अन्दर आकर देखता है कि सुगंधा जाने के लिए अब बाहर निकल रही है इस बात को अनदेखा करता वह गनेसी को आवाज लगाता हुआ कहता है – “गनेसी मुझे कुछ काम है मैं आता हूँ अभी आधे घंटे में |”

सुगंधा तक भी उसकी आवाज गई थी उसे खबर थी फिर भी अनजान बना वह बाहर आता अपनी बाइक को स्टार्ट करने का उपक्रम करने लगता है| सुगंधा गेट के बाहर खड़ी उस सूनी रोड के दोनों किनारों पर देखती है पर ऑटो वाले को न देख कुछ पल परेशान हो जाती है, चिराग अभी तक बाइक स्टार्ट नहीं कर पाया था| फिर कुछ क्षण बाद स्टार्ट करता हुआ सुगंधा के सामने आता हुआ पूछता है – “कॉलेज तक छोड़ दूँ !”

यही पल था जब दोनों की ऑंखें आपस में मिली तो कुछ अन्तरस ह्रदय में सीधा उतरता चला गया| सुगंधा क्या चाहती थी उस पल भी वह तय नही कर पाई और चिराग की बात स्वीकारती बाइक पर बैठ जाती है, चिराग का दिल तो बल्लियों उछाल माँ र उठा, उस पल अपनी मंजिल के वह सबसे करीब था ये महसूसते हेलमेट में छुपे उसके चेहरे से मुस्कान हट ही नहीं रही थी पर सुगंधा के चेहरे पर अजनबी अहसासो का जमाँ वड़ सा हो गया था, खुद उसके लिए भी ये पल उसकी समझ से परे था, इस वक्त वह अपने दिल के सबसे करीब थी पर माँ नों उनसे धड़कने लापता थी|

वह बीच बीच में साईड मिरर में से उस सलोने चेहरे को निहार लेता था| वह रास्ता बताती रही चिराग मोड़ मुड़ता रहा उस पल उसका जी चाह रहा था कि ये रास्ता यूँही चलता रहे|

आखिर मंजिल आ गई और चिराग को बाइक रोक देनी पड़ी| उस पल उसे लगा जैसे बाइक के इंजन की तरह उसकी धड़कने भी विराम हो गई, वह उसे जाता हुआ देखता रहा….वह पुकारना चाहता था पर आवाज माँ नों हलक में अटक सी गई…वह आगे बढ़ रही थी फिर भी वह उसे पुकार न सका कि तभी सुगंधा उसकी ओर पलटी, तो चिराग का चेहरा खिल उठा, वह हेलमेट उतारते उसकी आँखों की सीध में देख रहा था और वह कह रही थी –

“तुम वापस चले जाओ – वापसी में ही तुम्हारी भलाई है|”

वह तो कुछ और सोच रहा था पर ये क्या कहा सुगंधा ने ये सोचता वह अपलक उसकी ओर देखता रहा वह भी उसकी ओर से अपनी नज़रे न हटा पाई, उस पल उसे लगा जैसे उसके गले में कोई स्वर सा अटक गया है, जिसे न वह कह पा रही है न हलक तले ही उतार पा रही है….किस तरह की बेचैनी है ये !!

इससे आगे वह कुछ न कह पाई…..वह पलटकर फिर आगे बढ़ने लगी इससे चिराग की मदहोशी का तार झनझना उठा वह तन्द्रा से जागता उसे पुकार उठा…..सुगंधा के कदम कांप गए, उसे रुकना पड़ा…..

“सुगंधा रुको तो दो पल !”

इस पुकार पर उसके कदम वही जड़वत हो गए, वह चाह कर भी उसकी आवाज की सीमाँ  रेखा पार न कर सकी|

“चिराग तुमसे कह चुकी हूँ न कि तुम्हारे किसी सवाल का जवाब नही दे पाऊँगी मैं |” ये तड़प थी उसके घायल मन की|

“नही पूछूंगा कुछ पर कुछ कह तो सकता हूँ !!” आज वह सब कह देना चाहता था, अपनी बेचैनी का हर एक लम्हा उसे बता देना चाहता था|

पर सुगंधा का मन कांप उठा, उस पल उसे लगा अगर वह आज रुक गई तो सच में वह उससे दूर नही जा पाएगी…उसने बेरहमी से अपने मन को झंझोड़ा और बिना उसकी ओर देखे कहने लगी – “मुझे देर हो रही है |” कहती वह चिराग के विपरीत बढ़ती गई….किसी अज़ाब की गहन गहराईयों में…

वह चली गई और चिराग उसे जाते हुए देखता रहा| ये उसके तड़पते मन की असीम बर्दाश्त थी फिर भी दिल पर संभाल ले गया, अब वापस जाने के अलावा कोई चारा नही था, वह संस्था वापस आ गया|

सुगंधा को लगा वह चिराग से दूर तो आ गई पर उसे आभास था कि ये उसके लिए अपने ही हाथों अपना गला घोंटने जैसा था….पर इसके अलावा वक़्त ने उसके लिए कोई चुनाव नही रखा इससे उसका मन उदास हो उठा अब उसका मन कॉलेज में भी नही लग रहा था, उसे नूतन मैम से भी मिलना था पर बिखरे मन के साथ वह किसी के भी सामने नही आना चाहती थी इसलिए वह वापस घर जाना चाहती थी पर उसे डर था कि कहीं चिराग की इंतजार करती ऑंखें अभी तक उसी नेपथ्य में मौजूद न हो….वह कॉलेज के एकांत हिस्से में यूँही कुछ पल काटने लगी पर जब उसे अहसास हो गया कि अब चिराग जा चुका होगा वह घर वापस आ गई|

घर पर भी वह किसी की भी आँखों का सामना नही करना चाहती थी, और इस वक़्त छवि और मैम दोनों कॉलेज में होंती पर घर आते असमय छवि को देख वह चौंक गई….पर जबरन होंठों के किनारे थोड़े फैलाती छवि को देखती हुई टेरिस में अपने कमरे की ओर बढ़ गई|

चिराग को अब सुगंधा की वापसी का इंतजार था लेकिन बीतते समय के साथ उसकी उम्मीद जब डगमगाने गई तो बेचैनी से वह अन्दर बाहर करने लगा….पर सुगंधा नहीं आई…वह सामने से आते गनेसी को देखकर पूछ बैठा – “गनेसी राशन वाला रजिस्टर नही मिल रहा – वो तुम्हारी सुगंधा दीदी ने ही रखा था – पता नही अभी तक आई क्यों नही |”

“सुगंधा दीदी – वो आज नही आएगी |”

उसके शब्दों ने जैसे उसे उचाईयों से जबरन नीचे खींच लिया हो, ये सुनते उसकी ऑंखें उदास हो उठी|

“मुझे फोन करके बताया कि बच्चों का कोई एग्जाम है तो आज नही आ पाएंगी दीदी |” गनेसी ने अपनी बात जानकर यूँ कही जैसे चिराग को चिढ़ा रहा हो कि वह इतना महत्वपूर्ण है कि उसे फोन करके बताया|

गनेसी चला गया पर इससे चिराग के चेहरे पर गुस्सा चढ़ने लागा, वह मन ही मन बुदबुदा उठा कि जिस दिन सुगंधा का मोबाईल उसके हाथ में आएगा न तो सबसे पहले वह इस गनेसी का नंबर डिलीट करेगा| वह ये सोचते खुद में ही खोया खडा था कि मेजर की आवाज से उसकी तन्द्रा भंग हुई| वे अपनी घूरती हुई आँखों से उसकी हालत को देख रहे थे|

“क्या बात है मेनेजर बहुत खाली खड़े हो !”

उनकी बात से चिराग कुछ सकपका गया जिससे अपने चेहरे का हाव भाव वह झट से बदल लेता है|

“इतना ही फ्री हो तो चलो मेरे साथ चैस की एक एक बाज़ी हो जाए !”

चिराग उसकी तरफ देखता है, वे अपनी मूंछों पर ताव देते उसकी हालत पर अब हौले हौले मुस्करा रहे थे जिससे  चिराग अपनी झेंप हटाने जल्दी से कह उठा – “हाँ हाँ – ठीक है अंकल |”

“चलो इसी बहाने कुछ सीख तो जाओगे |”

उनकी बात पर चिराग के चेहरे पर हलकी मुस्कान आ गई वह बातों का सिरा जोड़ता हुआ कह उठा –

“अगर आप को हरा दिया तो !”

“मुझे !! मुझे कोई नही हरा पाया अभी तक |”

“हरा दिया तो अंकल !!” चिराग के चेहरे पर मुस्कान डटी रही|

“तो तो जो कहोगे कर दूंगा – उस डॉक्टर की बात माँ नता बिना चीनी की चाय भी पी लूँगा |”

“तो अंकल आज बिना चीनी की चाय के लिए तैयार हो जाइए |” चिराग उन्हें अपनी बातों से तंग करने लगा जिससे उनका तना चेहरा और कड़क हो उठा, फिर आस पास मौजूद लोग भी इस रोचक बाज़ी को देखने मुस्कराते उनके पीछे पीछे हो लिए|

नूतन मैम उसे बहुत देर सामने न देख सुगंधा को आवाज लेकर नीचे बुला रही थी, अगर वे न होती तो सच में वह सदियों अपने अकेलेपन में गुमनाम पड़ी रहती पर उनकी पुकार को वह चाह कर भी अनसुना नही कर पाई| जब सुगंधा नीचे आई तो आवाजों से शोर से उसे अहसास हुआ कि उनके अलावा कोई और भी वहां मौजूद था पर सब अनदेखा करती वह रसोई की ओर चल देती है| इस घर में सभी काम के लिए नौकर थे पर खाना वे तीनों ही बारी बारी से बना लेती थी, सुगंधा सुबह के नाश्ता तो रात के खाने में सहायता कर देती, नूतन मैम को उसके हाथ की  सब्जी बहुत अच्छी लगती, छवि भी वैसा ही बनाती पर उनके टेस्ट में हमेशा फेल हो जाती तब उसकी चिढ़ी आँखों को वे ये कहकर आश्वासन देती कि खाने में सब समाँ न है पर एक ही चीज की कमी है वो है दिल – जब दिल से कोई काम करो तो उसका एहसास उस काम में भी आ जाता है पर ये बात छवि के सर के ऊपर से निकल जाती और एक बार फिर वह सुगंधा से चिढ जाती| पर सुगंधा हर बार उसके बनाए खाने को तवज्जो देती जो छवि के लिए हमेशा नावाकिफ होता|

सुगंधा रसोई में थी तो पीछे पीछे छवि भी वही आ गई साथ ही कोई अज़नबी एक जोड़ी ऑंखें भी| वे तब से लगातार सुगंधा को घूरे जा रही थी, जिसका आभास छवि को हुआ तो वह सुगंधा को टोकती हुई बोल पड़ी – “सुगंधा – इनसे मिलो मेरा कजिन आर्यन है सॉफ्टवेयर इंजिनियर – आज ही पुणे से आया है और आर्यन ये है सुगंधा – बस सुगंधा – पीएचडी कर रही है|” छवि जानकर उसका परिचय बेमन से कराती है पर सुगंधा उन अनजान आँखों की ओर बिना देखे नमस्ते करती वहां से चली जाती है|

“सुगंधा….ब्यूटिफुल नेम – बहुत रेअर नेम है |”

“हाँ रेअर खुद भी है |” चिढ़े स्वर से वह बोली|

“किरायदार है तुम्हारी दी !” वह बात करता करता अक्वा से पानी गिलास में लेता हुआ पूछता है|

छवि सुगंधा के द्वारा कटी सब्जियों को कढाई में उझेलती हुई भांप की की तरह मुंह फुलाती हुई बोली – “मेरी नही मम्मी जी की – वो भी हज़ार रूपए महीने पर ऐसे घर में – सुना है तुमने कभी ऐसा किरायदार !”

छवि के चिढ़े स्वर पर आर्यन को हलकी हंसी आ गई|

“इंटरेस्टिंग |”

“तुम्हें बड़ा इंटरेस्ट आ रहा है|” एकदम से कमर पर हाथ धरे वह उसकी ओर मुड़ती हुई बोली|

“क्यों शादी वादी नही करनी क्या मुझे ?”

वह रोचक आँखों से मुस्कराया तो छवि एक दम से कढ़ाई का ढक्कन हटाती हुई उछल पड़ी – “ तुम्हें लड़कियों की कमी है क्या कोई जो इस पर तुम्हारा दिल आ गया|”

“वो तो पता है दी मुझे |” वह अपने स्टाइल किए बालों पर हलके से उंगलियाँ फिराता हुआ बोला – “पर शादी के लिए ऐसे ब्लैंक डाकुमेन्ट सही होते है नहीं तो शहरों की और लड़कियाँ को पहले से लोडेड होती है |” कहकर वह तिरछी मुस्कान से मुस्करा पड़ा|

“छी…कोई अपनी दीदी से ऐसी बात करता है क्या !!”

“अरे तुम मेरी कोई ओल्ड फैशन दी थोड़े ही हो |” वह छवि के कंधो पर अपने दोनों हाथ रखता हुआ मुस्कराया |

“लेकिन तुम्हारे टाइप की नहीं है वो |” कहती हुई वह अपने काम में फिर लग गई|

“क्यों….कहीं इंगेज है क्या !!” वह प्रश्नात्मक मुद्रा में उसकी तरफ देखता रहा|

पर ये सुनते छवि मुंह बनाती हुई कहने लगी – “इंगेज – वो भी इसके जैसी – कौन लड़का देखता होगा ऐसी बोर टाइप की लड़की को -|”

“अरे दी एक बार बात तो कराओ – मैं भी जानू क्या चीज है ये !”

छवि अतिरेक भाव से उसका चेहरा ताकने लगी तो इससे आर्यन एक दम से हडबडा गया – “अरे कुछ गलत मत सोचना – बिना इजाजत तो मैं किसी लड़की का हाथ भी नहीं पकड़ता – आपका भाई एडवांस है पर इतना भी नहीं|”

ये सुन छवि धीरे से मुस्करा दी, तब शायद उसे भी अहसास हुआ कि सुगंधा को वह इतना भी नापसंद नही करती|

चिराग का इंतजार आज बस इन्तजार ही रहा लेकिन सुगंधा की अनुपस्थिति में आज संस्था उसे कुछ अलग सी लगी…तब उसे अहसास हुआ कि जब सुगंधा सामने रहती है तब उसके सिवा उसे कुछ नज़र ही नही आता….वह मेजर के साथ चैस खेलते…सबके बीच अलग ही दुनिया में पहुँच गया…जहाँ उनकी छोटी छोटी खुशियाँ उनके लिए हर लम्हा कीमती रहती….माँ नों अगला हर पल उनके लिए ईश्वरीय वरदान है….खुलकर हँसना….रोना सब साथ में….ऐसा करते उसे अपनी दादी की याद हो आई…वह उनके लिए कुछ नही कर पाया क्योंकि तब वह छोटा था पर इस सब के लिए वह कुछ करना चाहता था…कुछ ऐसा कि उसकी दादी आसमाँ न से उसे देख मुस्करा पड़े….ये सोचते सोचते चिराग खुद में ही मुस्करा पड़ा….अब उसकी नज़र शाम के डूबते सूरज को निहारते एक वृद्ध जोड़े पर चली जाती है वे जीवन की साँझ एक साथ काटने इस वृद्धा आश्रम के साथ जुड़े थे, चिराग कुछ पलक उन्हें निहारता हुआ सुगंधा का ख्याल कर फिर मुस्करा दिया…मैं जीवन के हर क्षण में ऐसे ही तुम्हारे साथ रहूँगा….पर कब सुनोगी तुम मेरी….उस पल उसका जी हुआ कि वह सुगंधा का आंचल थामे रूठ जाए और अपनी सुगंधा को फिर कभी खुद से दूर न जाने दे…..

ऐसी बेखुदी के ख्यालों में लिपटा चिराग कब घर वापिस आ गया उसे पता ही नहीं चला….गेट पर अतुल को विनी के साथ देख उसे अपने घर आने का आभास हुआ….चिराग को एकदम से आता देख पहले विनी भागने के चक्कर में था पर अतुल ने उसे भागने के पहले झकड़ लिया|

चिराग भरपूर मुस्कान से उनकी तरफ देखता हुआ बाइक रोकता हुआ पूछता है – “तो अतुल बस मिल गई थी न आज !”

इससे पहले कि अतुल कुछ कहता चिराग चिढ़ाने वाली हंसी हँसता हुआ बाइक खड़ी करता उसकी नज़रों के सामने चाभी उछाल कर कैच करता हुआ चला जाता है|

चिराग के उनकी नज़रों से ओझल होते विनी धीरे से अतुल के कानों के पास आता फुसफुसाता है – “यार ये तेरी बाइक है – क्या हो गया इसे !!”

“हो नही गया करा दिया – बाकायदा मेकेनिक से कबाड़ कराई है मेरी बाइक |” कहता हुआ अतुल जैसे फिर रुआंसा हो उठा|

“ऐसा क्यों ?”

“मुझे क्या पता – मेरी बाइक क .. |” कहते उसका थोबड़ा जैसे नीचे को लटक आता है|

“यार ऐसा भला कोई करता है क्या – |”

“और क्या अपनी कार तो छूने भी नही देते और बाइक का ये हाल करा दिया|”

“यार तेरे भाई को कही फिर से इश्क तो नही हो गया ?”

विनी जिस गहन सोच से कहता है उसे सुनते अतुल का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह जाता है|

“और क्या आदमी इश्क में ही ऐसा ऊंटपटांग काम करता है – मैं सारी फिल्मो में ये देखते आया हूँ|” किसी वक्तव्य की तरह वह अपनी बात रखता है|

“यार ये इश्क है क्या बला – मुझे भी मिलना है इससे – ये होता किसी और को है और बैंड मेरा बज जाता है|” मुंह बनाते हुए अतुल कहता है|

“तो पता कर न कि आखिर झोल क्या है – हो सकता है कुछ ऐसा पता चल जाए जिससे तू अपने भाई को अपनी मुट्ठी में कर सके |” कहते हुए विनी अतुल की निगाह में देखता है, अब दोनों के चेहरे पर एक शैतानी भरी मुस्कान खिल आई थी|

क्रमशः……….

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