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सुगंधा एक मौन – 34

सुगंधा के क़दमों के साथ कदमताल करते चिराग के कदम भी उसके ठीक पीछे थे सुगंधा को आभास था इसका  जिससे उसकी धड़कने धौकनी बनी जा रही थी पर एक बार भी उसने नज़र पलटकर उसकी ओर नही देखा, आलम ये था कि इस वक़्त अगर वह आईने के सामने भी होती तो नज़र उठाकर उसे भी न देख पाती, तब भी तो आखिर वही चेहरा उसकी आँखों में चस्पा दिखता, सोचते गर्दन में जुम्बिश करती ये ख्याल वह अपने मन से माँ नों झटककर अपने क़दमों को तेज करती वह आज जानकर ऑफिस में किताबे न रखकर महिला रहनवास की ओर बढ़ जाती है| चिराग अब भी उसके पीछे था, उसके कदम भी यूँ आगे बढ़ रहे थे माँ नों हर अगला कदम उसका बालू में धंसता जा रहा हो जिसे बरबस खींच खींच कर वह अपना हर अगला कदम रख रही थी, चिराग के कदम अब गलियारे तक भी उसके साथ साथ चलते आ रहे थे, अब उसकी बेचैनी उसे इतना परेशान कर देती है कि वह तेजी से चिराग की ओर मुड़ती जैसे उसे अपने पीछे आने को टोकना चाहती थी, पर उससे पहले चिराग झट से रसोईघर से निकलते गनेसी की ओर मुड़ जाता है जो कंधे पर बोरा लादे भंडार गृह की ओर बढ़ रहा था, सुगंधा अपलक देखती रह गई अब बोरा चिराग कंधे पर लिए भंडार गृह की ओर बढ़ गया, पर उसकी ऑंखें माँ नों उसकी पीठ पर चिपकी अभी भी उसे ही निहार रही थी…..उस पल सुगंधा की आंखे और उदास हो उठी…आखिर कब तक वह उस नेह बंधन की ओर से ऑंखें बंद किए रह पाएगी….उसे इन आँखों से दूर जाना ही होगा…..

सुगंधा को अपनी सोच विचार की दुनिया में गुम होने से पहले रहनवास की सभी वृद्धा आकर उसे अपनी दुनिया में खींच लेती है विशेषकर दादी जिन्हें सुगंधा से खासा लगाव था, वे उसे वही पैकेट फिर से थमाँ  रही थी जो वह वही छोड़ गई थी…..सुगंधा उसे बिलकुल नही लेना चाहती थी पर दादी हठात उसके हाथो में उसे थमाँ ती हुई कह रही थी – “मैं चाहती हूँ कि अपने सबसे ख़ास दिन तुम इसे पहनों इसलिए मेरे लिए तुम इसे रख लो सुगंधा |” पैकेट से झांकती सुनहरे बोर्डर वाली चंदेरी की साड़ी पर हाथ फेरती दादी के शब्द गले तक रुंध आए थे माँ नों अतीत से धीरे धीरे विदा होती वह वर्तमाँ न में चली आ रही थी| सुगंधा के लिए अब इंकार मुश्किल हो जाता है, दादी एक गहरे उच्छवास के साथ नज़र उठाकर सुगंधा की पीठ की ओर के दरवाजे की ओर देखती है जिसकी ओट लिए चिराग सीधा उनकी आँखों में देखता हौले से मुस्करा दिया था| ये मौन वार्ता सुगंधा के छुपा रह गया| अचानक एक आवाज पर चिराग की नज़र ठीक मुख्य फाटक की ओर चली गई, जहाँ से आते शक्स पर उसकी नज़र जाते उसका सर घूम गया और वह दौड़ता हुआ मुख्य फाटक तक पल में पहुँच गया|

“तुम – यहाँ क्या कर रहे हो ??”

सामने अतुल खड़ा था जिसे अपनी तीक्ष्ण आँखों से चिराग घूर रहा था जिससे उसके शब्द हकबकाते हुए निकलने लगे –

“म मैंने सोचा आप ऑफिस नहीं आए तो…|”

अतुल के शब्द पूरे भी नहीं हो पाए थे कि घबरा कर चिराग अपने आस पास की नामौजूदगी से राहत की साँस लेता अतुल का बाजू पकड़कर लगभग उसे खींचता हुआ ऑफिस के अन्दर ले आता हुआ उसपर दबी आवाज में अपनी नाराजगी व्यक्त करता है –

“क्यों आए यहाँ जब मैंने वही रुकने को कहा था |”

“आपको देर हुई हो सोचा यहाँ आ जाऊ |” कहते हुए अतुल अन्दर ही अन्दर घबरा रहा था कि बेकार ही उसने विनी की बात माँ नी, उसी पल उसने ठान लिया कि जितना उसका भाई उसे खीचेगा वह उससे कही अधिक विनी की खबर लेगा…

“अरे तो घर चला जाता – यहाँ क्यों आया – अब तुरंत जा यहाँ से – समझा |” चिराग की आवाज में जितना गुस्सा था उसका स्वर उतना ही दबा हुआ था|

“पर मैं आपकी मदद के लिए आया था |”

“मुझे तुमसे कोई मदद नही चाहिए – जाओ |” कहते हुए चिराग एक बारगी दरवाजे की ओर देखकर अतुल की ओर देखता है|

उस पल आंशिक घबराहट के भाव चिराग के चेहरे पर नज़र आने लगे थे जिससे अतुल को कुछ हौसला हुआ |

“फिर आप गुस्सा होगे !!”

“नहीं गुस्सा हूँ |” खींजते हुए चिराग अपना स्वर थोड़ा नरम करते हुए बोला – “नही नाराज हूँ – अब जाओ तुम |”

चिराग की हालत अब अतुल से छुपी नही रह गई, वह भी अब जल्दी हाथ में आया मैदान छोड़ने वाला नही था|

“मेनेजर साहब ये बचा हुआ केक कहाँ रखे – फिरिज में !!”

दोनों का ध्यान कमरे में प्रवेश करते गनेसी पर जाती है जो हाथ में थामी प्लेट में बचा केक लिए खड़ा उनकी ओर ही देख रहा था|

केक देखते तपाक से अतुल उसके हाथों से वह प्लेट लेता हुआ बोल उठा – “वाओ केक – अरे बचा केक फ्रिज में नहीं पेट में रखते है |” कहते हुए अतुल झट से केक खाने लगता है और दोनों हैरान उसकी ओर देखते रह जाते है|

चिराग से अब कुछ कहते नही बना वह बस किसी तरह से गनेसी को इशारा कर उसे वहां से रुक्सत कर अतुल के पास आता हुआ फिर दबे स्वर में लगभग उससे विनती करता है – “अब हो गई पेट पूजा तो जाओगे यहाँ से |”

अतुल भी केक सफाचट करके ही चिराग की तरफ देखता है – “हाँ अच्छे से हो गई – हाँ तो क्या कह रहे थे भईया आप ?”

ये सुनते चिराग को इतना गुस्सा आ रहा था कि कोई और जगह होती तो शर्तिया वह उसे पीट ही देता पर किसी तरह से अपना गुस्सा जब्त करता हुआ अपने स्वर में नरमी लाता हुआ बोला – “मैं ये कह रहा था कि तुम्हें अब घर चले जाना चाहिए – तुमने केक खत्म करके भी मेरी बहुत मदद कर ली – तो जाएगे अब आप !”

“कोई बात नही भईया – केक कम था पर अभी के लिए थोड़ा तो पेट भर ही गया |” अतुल अपनी बात कहता जितना मुस्करा रहा था चिराग को अन्दर से उतना ही गुस्सा आ रहा था|

“तो जाओगे तुम !!”

अतुल को पहली बार अपने भाई का ऐसा बेचारा चेहरा देखने को मिल रहा था जिसका वह भरपूर फायदा उठाना चाह रहा था चाहे बाद में कुछ भी तो पर इस वक़्त तो उसे मज़ा आ रहा था, वह विनी को भी थैंक्स बोलेगा क्या सही नब्ज पकड़ी उसने |

“कहाँ जाऊंगा – आज एक दोस्त को ट्रीट देनी थी पर आज तो मेरी जेब खाली है |”

“बस इतनी सी बात |”

अतुल आंखे फाडे देखता रह गया और चिराग ने कई नोट जबरन उसकी पॉकेट में डालकर प्यार से उसके कंधे पर हाथ रखते उसे गेट तक छोड़ भी आया, एक पल को तो अतुल को इस पल पर यकीन नहीं आया पर गेट से बाहर निकलते नोट को वापिस अपने हाथों में निकालकर वह ख़ुशी से उछल ही पड़ा|

किसी तरह से अतुल को भगा कर वह वापिस भागता हुआ महिला रहनवास की ओर आते अपनी नज़र इधर उधर घुमाँ  घुमाँ कर वह सुगंधा को ढूंढने लगा था|

“मुझे ढूंढ रहे हो !!”

आवाज पर चौंककर वह अपने ठीक पीछे देखता है तो सामने दादी खड़ी मुस्करा रही थी| उनकी मुस्कान से चिराग के चेहरे पर झेंपी हुई मुस्कान फ़ैल जाती है|

“बैड बॉय – लेडिज की बातें छुपकर सुनते हो – |”

“मैं !!” चिराग भरसक चौंकने का अभिनय करता है|

“दादी हूँ मैं – अपने बाल धूप में सफ़ेद नही किए – सब समझ रही हूँ – बड़ी चालाकी से अपना गिफ्ट मेरे हाथों दिलवा दिया |” वे मुस्करा रही थी|

चिराग झट से उनका हाथ थामता कह उठा – “प्यारी दादी – |”

वे उसकी आँखों में देखने लगी, जैसे कुछ तलाश कर रही थी – “सुगंधा बहुत प्यारी लड़की है – तुम उसका ख्याल रखोगे न !”

“खुद से भी ज्यादा |” वह और कसकर उनका हाथ थामे रहता है|

“तुम बहुत पहले से उसे जानते हो तभी उसके लिए यहाँ आए न !”

दादी की बात सुन चिराग के चेहरे के भाव थोड़े हैरान हो उठे – “बैड गर्ल – किसी की बात छुपकर नही सुनते |” चिराग उनकी नाक की नोक पर टिप माँ रता मुस्करा पड़ा तो दादी भी हँसे बिना न रह सकी|

क्रमशः………

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