
सुगंधा एक मौन – 35
घर आकर चिराग माँ को रात के खाने के वक़्त न पाकर पापा से पूछने लगा तो आज जल्दी खाकर वे जल्दी सो गई ये सुनकर वह उनके लिए परेशान हो उठा पर पापा उसे उनकी ओर से बेफिक्र होने का कहकर चले गए| अतुल भी चिराग की नज़र में आने से पहले ही वहां से खिसक लिया|
चिराग अब अपने कमरे में आते देर तक अपलक छत को निहारते अपने खवाबो के मौसम में सुगंधा का ख्याल पंखों सा अपने मन में घुमड़ने देता है| इन्ही ख्यालों से लिपटे वह नींद की आगोश में चला गया|
इधर आर्यन सुगंधा से बात करने की चाह लिए रात के खाने के बाद टेरिस में आया पर सुगंधा ने एक बार भी उसकी तरफ नही देखा, आखिर उसकी बेरुखी से तल्ख़ होता वह छवि से बात करने लगा, जिससे टहलते टहलते छवि रूककर एक बारगी जाती हुई सुगंधा को तो दूसरे पल आर्यन की ओर देखती हुई कह उठी –
“मुझे समझ नही आता कि इस लड़की में तुम्हे क्या ख़ास दिखता है जो तुम्हारा सारा का सारा ध्यान इसी पर लगा है !”
“काश अपनी नज़र आपको उधार दे पाता तब आप समझ पाती पर ये तो मेरी ओर देखती भी नही – उधर कैम्पस से ही मोस्ट एजिलिबल रहा हूँ मैं – बस आप दी एक बार आप ही बात करा दो इससे मेरी |” एक ठंडी आह छोड़ता हुआ वह सुगंधा की ओर अपनी नज़र जमाँ ए हुए कहता रहा और छवि हैरान उसके चेहरे के आते जाते भावों को देखती रह गई|
सुगंधा परेशान सी थी एक दिन वाकई किसी सदी सा बीत गया….अगले दिन वह कैसे सामना करेगी फिर चिराग का यही बात उसे परेशान कर दे रही थी…..हर एक दिन जितना वह उसके पास से गुजरती उतनी ही वह कमजोर पड़ती जाती….कब तक वह खुद को खुद में जज्ब रख पाएगी…इसी ख्याल में डूबती वह नींद की तलहटी में गहरी उतरती चली गई..|
चिराग के लिए हर एक दिन जैसे सालों से लम्बे बीत रहे थे…जाने क्या होगा इन सात दिनों के विस्तारित लम्हों के बाद….इसी सोच में डूबा वह नाश्ते की टेबल पर गुम बैठा था और काकी उसके सामने नाश्ते की प्लेट लगा रही थी|
“वाओ काकी – कचौड़ी….|” अतुल टेबल के नजदीक आते हवा में से ही खुशबू सूंघते हुए ही उछलते हुए बोल पड़ा|
काकी मुस्कराते हुए अब उसकी प्लेट लगाने लगी थी| वे पूरा परोस भी नहीं पाई कि अतुल लपककर सब्जी का एक बड़ा हिस्सा गप से अपने मुंह के हवाले करते ही आनंद से भर उठा था|
“ग्रेट काकी – इस कचौड़ी से बेहतर तो कुछ हो ही नहीं सकता |”
अतुल की बात पर बगल में बैठा चिराग उसकी बात पर सख्त होता हुआ बोलता है – “ये तो तुम हर खाने की चीज़ देखकर बोलते हो |” कहता हुआ अपनी प्लेट की ओर झुक जाता है|
अबकी चिराग की बात सुन मुंह बनाने के बजाए अतुल धीरे से मुस्करा पड़ता है|
“काकी बस अभी दो ही खा पाउँगा – बाकि आप टिफिन में कर दीजिए – मुझे भईया के साथ संस्था भी जाना है तो पूरे दिन में भूख लग आएगी न |”
कहते हुए अतुल के होंठों के किनारे खिले हुए थे और चिराग के गले में अगला कौर अटक गया वह हैरान अतुल की ओर देखता हुआ दबी आवाज में पूछ बैठा – “किसने कहा ??”
“कहना क्या भईया – मुझे समझ आ गया कि मुझे आपकी हेल्प करनी चाहिए आखिर ऑफिस और संस्था दोनों आप अकेले सँभालते है |” अपनी आवाज को थोडा गंभीर करता हुआ कहता है|
यही वक़्त था जब पापा भी नाश्ते के लिए वही आ रहे थे और अतुल की बात सुनते हुए उसकी हाँ में हाँ मिलाते है जिससे चिराग के गले में अटके कौर से उनकी साँस ही रुकने लगी तो वह गिलास भर पानी अपने गले में उतारने लगता है| किसी तरह से अपना गला तर करता हुआ चिराग अपनी बेचारगी को छुपाते हुए धीरे से अतुल से कहता है – “कोई बात नहीं – मैं अकेले सब मेनेज कर ले रहा हूँ – तुम्हें अभी अपनी पढाई पर ध्यान देना चाहिए |”
कहते हुए चिराग अपनी बात की सहमति के लिए अपने पिता की ओर देखता है जो सपाट भाव से नाश्ते की ओर झुके थे पर अतुल के चेहरे पर तो आज मुस्कान हट ही नहीं रही थी|
“नही भईया आप अकेले क्यों परेशान होते है – बल्कि ऐसा करते है आप ऑफिस जाओ मैं संस्था चला जाता हूँ |”
“नही….|” चिराग के गले से एकदम से जैसे चीख निकल गई|
“तुम ऐसा नही कर सकते |”
“क्यों !!” चिराग की बात सुन अब अतुल के साथ साथ पापा भी हैरान उसका चेहरा देखते रहे|
ये देख चिराग किसी तरह से अपने चेहरे के भाव को नियंत्रित करते हुए अतुल की ओर देखता हुआ कहता है – “तुम बहुत अच्छे भाई हो तो मैं भी तुम्हारा बड़ा भाई हूँ न तो माँ नों मेरी बात कि तुम अभी अपनी पढाई पर ध्यान दो फिर समय आने पर सब संभालना ही है तुम्हें – है न डैड – मैं भी तो अपने कॉलेज के टाइम पर बस कॉलेज ही जाता था |” चिराग अपनी स्वेक्षा से कुछ ज्यादा ही मुस्कराते हुए अपनी बात कह रहा था और अतुल का पेट अन्दर ही अन्दर गुदगुदी से गुदगुदा उठा था आज पहली बार अपने भाई के शब्दों को लड़खड़ाते देख उसे बड़ा मजा आ रहा था|
“तो सच में आप चाहते है कि मैं कॉलेज जाऊं !”
अतुल की बात पर तेजी से हाँ में सर हिलाते चिराग उसी की ओर देखता रहा|
“मतलब आपको मेरी मदद नही चाहिए |”
फिर हाँ में सर हिलाता है चिराग|
“मतलब कि मैं आपकी कार भी ले सकता हूँ !” जल्दी से अतुल कहता है तो हाँ में सर हिलाते हिलाते एक पल को चिराग रुककर उसे अपनी तीक्ष्ण आँखों से घूरने लगता है|
पर इसे अनदेखा करता अतुल टेबल पर रखी चाभी उठाते हुए कह रहा था – “अरे आप तो चाभी भी ले आए – मेरे लिए न भईया – थैंक्यू भईया – डोंट वरी भईया अपनी गाड़ी की तरह ही मैं इसका ख्याल रखूँगा |”
चिराग अरे करता रह गया और अतुल झट से कार की चाभी अपनी उंगली में नचाता हुआ उसकी आँखों के सामने से फुर्र हो गया, अपनी बेचारी हालत के साथ वह पापा की ओर देखता है जो अभी किसी फोन पर व्यस्त थे तो काकी हाथ में टिफिन लिए उसे पुकारती रह गई, जिन्हें देखकर वह दांत पीसते हुए कहता है – “उसे जो चाहिए था मिल गया अब कहाँ रुकने वाला है वो |”
इधर सुबह सुबह तैयार होती सुगंधा के मन की हालत ऐसी थी कि वह संस्था जाने को व्यग्र भी थी और नही भी उसका मन एक ही समय दो विपरीत छोर की ओर भाग रहा था, उस पल क्या फैसला ले वह कुछ समझ नही पा रही थी| आखिर अपने में गुम वह सीढियाँ उतरकर नीचे आती है तो छवि उसे पुकारती हुई कह रही थी – “संस्था जा रही हो – चलो आज मैं छोड़ देती हूँ – अरे तो आज मना कर दो न उस ऑटो को – कौन सा तुम नही जाओगी तो उसे सवारी नही मिलेगी – चलो |” सुगंधा का मौन इंकार समझती हुई छवि उसे अपनी बात कहती बाहर की ओर चल दी|
सुगंधा जो तय नही कर पा रही थी उस पल उसे लगा जैसे आज ईश्वर ने उसके मन की बात पढ़ ली, जिसे उनका फैसला माँ नती वह बाहर निकल कर पहले से ही ड्राइविंग सीट पर बैठी छवि के बगल में आकर बैठ जाती है| छवि ने उसके बैठते चाभी घुमाँ कर गाड़ी स्टार्ट की ही थी कि आर्यन आवाज लगाता उसकी ओर भागा आ रहा था –
“दी – रुको मुझे भी लिफ्ट दे दो – |”कहता हुआ वह झट से पीछे की सीट पर बैठता हुआ कहता रहा – “क्या दी तीन दिन हो गए और आपने इंदौर घुमाँ या भी नही – अब क्या करूँ अकेला ही घूमना पड़ेगा – आपके लिए ही आया था मैं |”
आर्यन अपने स्वाभाविक स्वभाव में बोलता रहा और छवि मंद मंद मुस्कराती रही जबकि सुगंधा उनकी ओर से तटस्थ बनी रही माँ नों वह उनके बीच हो ही न |
अगले कुछ पल बाद अपने कॉलेज के सामने कार रोकती हुई छवि झट से ड्राइविंग सीट से उतरती हुई सुगंधा की ओर देखती हुई कहती है – “सुगंधा आर्यन तुम्हें संस्था छोड़ देगा – सॉरी मैं थोडा लेट हो रही थी नही तो तुम्हें पहले संस्था छोड देती |” छवि अपनी बात कहती चाभी आर्यन के हाथ में सौंपती कार से दूर हो गई तो आर्यन भी सुगंधा के उतरने से पहले ही ड्राइविंग सीट पर आकर जम कर बैठता हुआ छवि की ओर देखता हुआ कार स्टार्ट कर देता है – “डोंट वरी दी मैं इनको सही से इनके गंतव्य तक छोड़ दूंगा – वैसे मुझे आज कार की जरुरत भी थी थैंक्स दी – बाय दी |”
सब कुछ इतने कम पल में ही तय हो गया कि सुगंधा कुछ रिएक्ट भी नही कर पाई और कार अगले ही पल सड़क पर दौड़ने लगी| उसका असमंजस उसके चेहरे जब स्पष्ट हो आया तो आर्यन उसका चेहरा देखता हुआ धीरे से मुस्कारते हुए कहता है – “आप बेफिक्र रहिए – मैं खतरनाक बिलकुल नही|” कहकर बिन आवाज के वह हंस पड़ा पर सुगंधा का चेहरा यूँही भावहीन बना रहा|
कुछ पल की ख़ामोशी के बाद वह बातों का सिरा जोड़ता हुआ कहता है – “पता है मैं पहले इंदौर में पढ़ता था इसलिए कुछ रास्ते मुझे आज भी याद है पर संस्था को जाने वाला रास्ता आप बता दीजिएगा |”
इस बार सुगंधा हाँ में सर हिलाती बिन स्वर के उसे दाए बाए बताती रही और आर्यन बस उसकी ओर बीच बीच में देखता स्टेरिंग घुमाँ ता रहा|
“वैसे आप तो इंदौर से ही है तो आप तो पूरा इंदौर घूम चुकी होंगी !”
सुगंधा न में सर हिलाती है जिससे आर्यन चौंक उठता है|
“क्या मतलब – आपने अपना शहर ही नही घूमाँ |” धीरे से हँसता हुआ वह कहता रहा – “शायद किसी ऐसे का आपको साथ न मिला हो जिसके साथ आप घूम पाती तो चलिए मुझे ही घुमाँ दीजिए अपना शहर |”
बिना उसकी बात का उत्तर दिए वह उसे बाई ओर मुड़ने का इशारा करती है और अगले क्षण कार ठीक संस्था के सामने खड़ी थी और सुगंधा नज़र उठाकर मुख्य फाटक के अन्दर के गलियारे की ओर देखती है जहाँ उसी के इंतज़ार में नज़रे बिछाए चिराग खड़ा था, उस पल उसका दिल जैसे सीने की कोटर में डरकर दुबक गया, ये ऑंखें कहीं उसका मन न डिगा दे…
“ओह यही संस्था है – मुझे तो ये जानकर बड़ी हैरत होती है जब आप जैसी खुबसूरत लड़की अपना समय सीनियर सिटिजन के साथ बिताती है तो ख़ुशी भी होती है आपकी इस अलग सोच पर |”
“क्या आपने इस्कॉन टेम्पल देखा है !”
सुगंधा देख तो चिराग की ओर रही थी और प्रश्न आर्यन से कर रही थी, सुगंधा की बात से पहले पहल तो आर्यन सकपका गया, पर उसपर टिकी उसकी नज़र उस पल खुश हो उठी|
“नही |”
“तो चलिए – आज वही दिखाती हूँ आपको – शहर से बाहर है थोड़ा ज्यादा समय लगेगा |” सुगंधा अभी भी भावहीन कह रही थी|
पर आर्यन जिसका ध्यान चिराग पर गया ही नहीं था वह तो उसकी बात सुनकर झूम ही उठा था –
“मुझे भी कोई जल्दी नही |” कहता हुआ वह उसी क्षण कार को तुरंत रिवर्स कर लेता है|
चिराग खड़ा खड़ा उनकी ओर देखता रह गया, फिर कार के आँखों से ओझल होते सीने पर हाथ बांधें वह हौले से मुस्करा कर खुद से ही कह उठा – “अब ये भी कर के देख लो – पर ऐसी दिल्लगी करती पता है तुम मुझे और भी प्यारी लग रही हो क्योंकि जिस सुगंधा को सारा जहाँ चाहता हो उसके दिल में तो सिर्फ मैं हूँ – मुझे गुरुर से भर देने को यही काफी है |” वह काफी देर खड़ा उस रास्ते की ओर निहारता रहा जहाँ से अभी अभी वह लौट गई थी|
अतुल चिराग की कार को ठीक कॉलेज के गेट पर खड़ा कर बोनेट पर बैठा अपने दोस्तों से घिरा था, विनी को तो वह बॉस माँ न बैठा था अब कार की चाभी उसके हाथ में थी और वे सब कहीं दूर जाने का प्लान बना रहे थे, बस इसी की बहस चल रही थी तभी संजना के साथ अंकिता भी वहां आ रही थी|
संजना चिराग की कार को देखते पहचानती हुई आश्चर्य से अतुल से पूछती है – “भईया की कार तुम्हारे पास – कैसे !!”
“कैसे क्या – खुद दी है भईया ने |” अतुल अपना कॉलर सीधा करता हुआ कहता है|
“ऐसे कैसे – हुआ कैसे ये !!” संजना का मुंह तो आश्चर्य से खुला रह गया|
“हुआ कैसे – मैंने करवा लिया |” अतुल बहकता हुआ कही आगे और न कह दे तो विनी अपनी कोहनी उसे माँ र कर आँखों से सचेत कर देता है तो अतुल जल्दी से संभलते हुए आगे कहता है – “भईया से खुद दी है मुझे – चलो चलो यारों – लेट हो रहे है हम |”
“हाँ बे – जल्दी चल फिर शाम तक लौटना भी है पातालपानी से |”
ये कहते पवन, आदित्य, कार्तिक और जयंत पीछे घुसकर बैठ जाते है तो ड्राइविंग सीट पर विनी और उसकी बगल वाली सीट पर अतुल बैठा था| ये देख अंकिता लगातार जयंत को घूर रही थी जिससे वह दोस्तों के बीच में खुद को फंसा हुआ दिखने का भरपूर प्रयास कर रहा था|
“और हम !!” आखिर संजना बोल पड़ी |
“आज के लिए सॉरी – नो गर्ल्स एलाऊ |” कहकर अतुल कसकर हंस पड़ा और विनी ने कार स्टार्ट कर दी| अगले ही पल कार उनकी आँखों के सामने से निकल गई और दोनों ऑंखें फाडे उन्हें जाता हुआ देखती रह गई|
अंकिता तो रुआंसी बोल पड़ी – “आने तो जयंत को – बात ही नहीं करुँगी |”
पर संजना की तो सोचते हुए भौं तन गई – “हो ही नही सकता कि भईया अतुल को अपनी कार को टैक्सी बनाने के लिए इसे दे दे – कुछ तो गड़बड़ है – पता करना पड़ेगा |”
क्रमशः….
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