Kahanikacarvan

सुगंधा एक मौन – 36

चिराग अन्दर आते अपने सधे क़दमों से ऑफिस की ओर बढ़ जाता है, सुगंधा का उसके आस पास होना जैसे उसे सारी दुनिया से काट देता था, ये उस वक़्त उसे ऑफिस में अकेला बैठते हुए अहसास हो रहा था| इन्ही ख्यालों की घनी छाँव में वह वहां के लिखित काम देखता हुआ अपने में ही गुम था कि कोई आवाज उसे अपने पास आती हुई सुनाई दी जिससे उसकी तन्द्रा भंग हुई तो उसने सर उठाकर दरवाजे के बाहर देखने का प्रयास किया, वहां दादी खड़ी गनेसी को आवाज लगाती हुई कह रही थी –

“क्यों नही आई सुगंधा – चलो फोन लगाओ उसे |” वे अपनी की रौ में कहे जा रही थी – “चल हट तेरे फोन में बेलेंस ही नही रहता – ओ मेनेजर अपना फोन दोगे – एक कॉल लगानी है |”

दादी आगे की ओर झुकती उसकी ओर देख रही थी और चिराग अपने होंठों पर थिरकती मुस्कान पर किसी तरह से काबू किए दादी की ओर अपना मोबाईल बढ़ा रहा था|

“अब मेरा मुंह क्या देख रहा है – ले न फोन लगा सुगंधा को – सुनूँ तो कि आखिर क्यों नही आई !” गनेसी को बराबर हड़काती हुई वे चिराग की ओर अब पीठ करे खड़ी थी|

और चिराग अपनी हथेली पर चेहरा टिकाए मुस्कराते हुए उनकी ओर ही देख रहा था| गनेसी झट से फोन लगाकर सुगंधा को आने को बोल रहा था, तभी दादी उससे फोन लेती अपनी आवाज को धीमी करती हुई उसे बुलाने की अपनी ओर से भी चेष्टा कर रही थी, अपनी बात कहती हुई वे फोन काटकर फोन चिराग की ओर बढ़ाती हुई वे भी धीरे से मुस्करा दी|

चिराग उनके चेहरे की मुस्कान देखता हुआ पूछता है – “आज बहुत खुश दिख रही है आप दादी !”

“हाँ आज मेरे पोते का जन्मदिन है न – वो आएगा मेरे पास – देखना |” कहती हुई वे खुद में ऐसी झूम उठी माँ नों उनका पोता अभी सामने ही खड़ा हो और उनकी निगाह बस उसे ताके जा रही हो |

दादी चली गई और चिराग फिर अपने काम में लग गया|

कार में आर्यन के बगल में बैठी सुगंधा खुद में ही इस कदर सिमटी थी कि उसकी मौजूदगी का अहसास चाह कर भी उससे नही हो पा रहा था, अभी अभी संस्था से आए फोन पर सीमित स्वर में हाँ कहकर वह फिर खामोश बैठी रास्ता निहारने लगी थी, ऑंखें तो बगल की खिड़की से बाहर टिकी थी उसकी पर वह खुद अच्छे से जानती थी कि उसका ख्याल सिर्फ और सिर्फ चिराग पर ही टिका था कि आज कैसा लगा होगा उसको !! क्या नाराज़ हो जाएगा !! अगर होगा तो यही तो चाहती है वो फिर आसान होगा उससे दूर जाना, उसे ज्यादा कुछ नही कहना पड़ेगा….वह उसकी यादों को धुंधला करके उस धुंध में सदा के लिए गुम ही तो हो जाना चाहती है….

“शायद संस्था से फोन आया था – एम् अ राईट !!” आर्यन को उस ख़ामोशी को तोड़ने कुछ तो कहना ही था|

पर हर बार कि तरह हाँ में सर हिलाकर वह खामोश हो गई|

आर्यन कार के कैमरा में मैप का रास्ता देखते हुए इस्कान मंदिर के रस्ते पहुंचकर पार्किंग में कार लगा रहा था और सुगंधा अपने चारोंओर एक सरसरी निगाह डालती है तो उस पल वह चौंक जाती है, चिराग….!! सामने मंदिर के मुख्य फाटक पर वह सीने पर हाथ बंधे खड़ा उसकी ओर देखता मुस्करा रहा था, वह हैरान आँखें फाडे उसकी ओर देखती रह गई|

आर्यन कार को लॉक करके सुगंधा की ओर बढ़ता उसे आवाज लगाता है, एक बार दो बार तब अचानक चौंककर अब वह आर्यन की ओर देखती है|

“क्या हुआ – आप के चेहरे की हवाइयां क्यों उडी हुई है – कोई बात !” वह उसका चेहरा गौर से देखता हुआ पूछ रहा था और वह अवाक् उसके सामने खड़ी थी|

शायद यही वक़्त था जब नज़र उठाकर उसने आर्यन की ओर देखा इससे आर्यन के चेहरे पर मुस्कान छा गई थी| सुगंधा उससे नज़र हटाकर फिर चिराग की ओर देखती है, ये क्या वहां कोई नही था….एकाएक उसे लगता है कि दुकानों की ओट लिए वह खड़ा है, अगले ही पल गौर से देखने पर वह कोई ओर चेहरा था, सुगंधा परेशान हो उठी…क्यों क्यों हर जगह उसे चिराग ही दिख रहा है….उस पल उसका चेहरा जैसे रुआंसा हो उठा….आर्यन जो लगातार उसके चेहरे पर आते जाते भावों को देख रहा था, उस पल कुछ समझ नही पाया|

सुगंधा बेचैन होती आर्यन से कह उठी – “मुझे वापस जाना है |”

आर्यन उस पल कुछ समझ नहीं पाया कि आखिर क्यों वह परेशान है, फिर लगा शायद मौसम की तल्खी उस पर असर कर रही हो….फिर चुपचाप वह कार की तरफ बढ़ जाता है|

सुगंधा भी चुपचाप फिर उसके बगल की सीट पर बैठ जाती है| कार को वापसी की ओर मोड़ते कुछ पल तक उनमे ख़ामोशी बनी रहती है, जिसे आखिर तोड़ते आर्यन कह उठता है – “कुछ परेशान है आप –|”

शब्दों से टूटती ख़ामोशी से सुगंधा जैसे होश में आती एक गहरे उच्छवास से वह खुद को सम्भालती हुई उसकी ओर बिना देखे ही कहती है – “क्या आप संस्था तक छोड़ देंगे मुझे|”

“हाँ क्यों नही पर एक बात कहना चाहता हूँ प्लीज़ आप बुरा मत माँ निएगा – मैं चाहता था कि आप एक बार मेरे साथ बाहर चले !” उसका प्रश्न उसकी आँखों में झलक आया था|

“आप कल भी मुझे संस्था तक छोड़ देंगे ?” सुगंधा जैसे खुद में हिम्मत खींचती चिराग से दूर होने की हर बेज़ा कीमत अदा करने को तैयार थी और आर्यन मन ही मन मुस्करा रहा था|

चिराग अपना काम निपटा कर ऑफिस से निकलकर कुछ पल बाहर निकलकर गलियारे की ओर बढ़ गया था| दोपहर का समय था, सभी खाना खा कर उस लम्बी दोपहरी को अपने अपने तरीके से काट रहे थे, कोई शतरंज की बाज़ी बिछाए बैठा था, कोई समूह गप्पे लगाता हंस रहा था, कही कोई लम्बी दोपहरी की तल्खी से बचने बिछावन पर खुद को समेटे था, ये वो उम्र था जब असीमित समय था पर काम जरा भी नही, क्योंकि इस पल खुदको संभालना ही उनके लिए बहुत बड़ा काम था, सबकी आँखों में अनेक तरह के भाव थे पर सब ऊपरी माँ नों वो हंसी, मिलनसारिता, गपशप सब ऊपरी दिखावा माँ त्र थी, अंतरस जैसे सबकी चाह एक ही थी….अपनों का बेहिसाब इंतजार….चिराग को ये बात उस पल उदास कर गई….उसे लगा कि अगर वह यहाँ नहीं आता तो सच में इस सच से वह कितना अनजाना रह जाता…भलेही उसके पास सब कुछ है पर जो कमी थी वो यही आकर उसे महसूस हुई…..सब पा लेने की संतुष्टि से कही अधिक कुछ पा लेने की आरजू ने उसे जयादा जीवंत बना दिया….यही बात शायद सुगंधा को भी यहाँ से जोड़े रखती है….वह सोचता सोचता गलियारे से चला जा रहा था कि उसके पैर कुछ उथले पर पड़ते डगमगा जाते है, वह झट से नीचे देखता है, उसे वह झुककर अपने हाथ में लेता कुछ पल तक निहारते हुए याद करता है, वह एक स्वेटर था, जिसे हमेशा उसने बीनते हुए दादी को देखा था, उस पल हतप्रभ उसे हाथ में लिए देखता रहा, फिर झाड़कर उठाकर महिला रहनवास की ओर बढ़ जाता है|

वह दूर से ही दादी को बिस्तर पर सर टिकाए लेटा देखता हुआ उस ओर बढ़ रहा था कि सलमाँ  उसे इशारे से वही रुकने को कह रही थी|

“सलमाँ  आंटी ये स्वेटर दादी को देने जा रहा था |”

“लाओ मैं कल दे दूंगी – अभी नही लेंगी |” वह उसके हाथ से स्वेटर लेती हुई बोली|

“कल ही क्यों !”

चिराग हैरान उनकी आँखों का सपाट भाव देख रहा था और वे ख़ामोशी से एक एक पल दादी को तो दूसरे पल उसे देखती हुई माँ नों तय कर रही थी कि क्या उन्हें कहना चाहिए उससे ! वह नई उम्र का कितना समझ पाएगा ये बात !

“बताईए न – कल ही क्यों !”

चिराग को उनका अटपटा जवाब हज़म नही हुआ तो सलमाँ  उसे इशारे से थोडा पीछे की ओर बुलाती धीरे से कह रही थी – “इसलिए कि वो आज दुखी है तो कल ही लेंगी ये स्वेटर – वैसे भी कल ये स्वेटर कहाँ होगा – कल तो उसे पूरा उधेड़ कर ऊन बना देंगी |”

चिराग खामोश उनको सुनता रहा वह उन्हें टोक कर रोकना नही चाहता था|

“पता नही कभी किसी वक़्त इनके पोते ने कह दिया होगा कि अपने जन्मदिन वाले दिन आऊंगा – तब से बस हर साल यही दिन आस लगाए बैठी रहती है कि वह आएगा…पर जो अपनी अस्सी साल की दादी को अपने माँ ता पिता के बाद वृद्धा आश्रम छोड़ दे उस पोते से पता नही कौन सी उम्मीद लगाए बैठी है…यही होता है हर साल – मैं तो पिछले पांच साल से यही देख रही हूँ कि साल भर अपने दीदे लगाकर स्वेटर बुनती है फिर उसके जन्मदिन वाली दिन यूँही नाराज़ और उदास हो जाती है…अगले दिन फिर स्वेटर उधेड़कर एक अंगुल बढ़ाकर फिर बीनने लगती है….क्या बताए..|” कहकर सलमाँ  उदास हो गई, अब शायद दर्द जो शब्दों से बयां नही किया जा सकता था उनकी आँखों में स्पष्ट हो आया था|

चिराग को तो कुछ कहते नही बना कुछ क्षण तक वह यूँही खड़ा रहा जब सलमाँ  आंटी जाने लगी तो उनके हाथ से स्वेटर लेता हुआ फिर दादी की ओर बढ़ जाता है, सलमाँ  आंटी कुछ समझ नही पाती बस उसे जाता हुआ देखती रह जाती है|

चिराग दादी के सर पर हाथ फिराते हुए उन्हें जगा रहा था, वह शायद सोई नही थी बस अपने वक़्त से रूठी उदास लेटी थी, चिराग के स्पर्श से वे ऑंखें खोलकर उसे देखती है फिर अचानक उनकी धुन्धियाती ऑंखें चौंक जाती है, वह चिराग की देह को छू कर सच में खुद को यकीन दिला रही थी कि ये सच है या कोई सपना कि उनका बुना हुआ स्वेटर चिराग पहने उनके पास बैठा कह रहा था –

“क्या दादी – कितना मन से पहना स्वेटर – पर थोड़ा सीने से ढीला करो न बहुत टाईट है |”

उसका मनुहार वे धुंधली ऑंखें अपने अन्दर और न समाँ  पाई और धीरे से आँखों की कोरो से उफन ही पड़ी|

“मुझे तो इसकी डिजाईन बेस्ट लगी – अब बस जल्दी से सीने से ठीक कर दीजिए आप ताकि मैं पहन सकूं |”

“बड़ा है न तेरा सीना तो कैसे समाँ एगा इसमें |” दादी बच्चे से उसके सीने में समाँ  गई….,उस पल शब्द मौन हो उठे माँ नों भाव के आगे कुछ भी कहना कमतर ही होता|

यही वक़्त था जब सुगंधा वहां आई और वहां का दृश्य देख खुद की आँखों को भी सयंत नही रख पाई|

उदासी के बाद की ये खिलखिलाहट थी जो चिराग की मौजूदगी में दादी के होंठों पर तैर गई, आज चिराग अपने मोबाईल से पढ़कर उन्हें कोई जोक सुना रहा था और दादी एक और कहती उसे जाने नही दे रही थी, दोनों देख चुके थे कि सुगंधा उनके बगल से गुजरती अब अन्यत्र के पास बैठी थी|

“क्या दादी मुझे जाना है |”

“कहाँ जाना है ?” दादी भी उतने ही तेज स्वर में पूछती है|

“अब क्या यही बैठा रहूँगा क्या – वैसे भी संस्था से ही मुझे जाना है तब क्या करेंगी आप -!” वह जानकर सुगंधा तक अपनी आवाज पहुंचा रहा था और दादी भी उसका पूरा साथ दे रही थी|

“मतलब !!”

“मतलब क्या दादी – अब हमेशा थोड़े ही आऊंगा – कभी कभी आ पाउँगा – शादी वादी नही करनी क्या – तब जिम्मेदारी बढ़ जाएगी न |”

चिराग अपने चेहरे पर भरपूर मुस्कान लाता कह रहा था, और सुगंधा चुपचाप सर झुकाए सुन रही थी..दादी उसका साथ देने हंस रही थी पर कहीं कुछ उदासी उनके चेहरे पर ये सोचकर झलक ही आई कि सच में कब तक ये उनके पास रहेंगे फिर वही इंतजार और अकेलेपन की उदासी रह जाएगी….|

क्रमशः……

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