Kahanikacarvan

सुगंधा एक मौन – 37

चिराग की निगाह बस जैसे सुगंधा पर टिकी रह गई थी वे नजरे कही अन्यत्र जाना ही नहीं चाहती थी, उसे खबर थी इसलिए जानकर वह उन नज़रो से बचती हुई अपने को व्यस्त रखे थी| चिराग भी दादी से बात करता करता बीच बीच में अपनी नज़र घुमाँ कर उसकी ओर देख लेता था|

“सुन गनेसी – मैं हाट से सब्जी लेकर आता हूँ तब तक प्याज व्याज सब काटकर रखना समझा न|”

मिश्रा जी की आवाज पर अब सबका ध्यान बाहर गलियारे की तरफ जाता है, जहाँ वे गनेसी को काम की ताकीद देते हुए झोला लिए मुख्य द्वार की तरफ जा रहे थे| चिराग को गनेसी को देखते जैसे कुछ याद आया तो वह उसे आवाज देता तेजी से दौड़ता हुआ उसकी ओर बढ़ गया|

गनेसी जो रसोई की ओर बढ़ने को बेचैन था उसकी आवाज पर गलियारे में ही ठहरा रह गया|

“अरे सुन गनेसी – एक काम है तुमसे |”

“भैया जी अभी काम निपटा लूँ तभी बोलिएगा|” वह जाने को बेचैन हो उठा|

“सुन तो बात |” चिराग अपनी बात कहता कहता उसके कंधे पर हाथ रखे गलियारे से आगे की ओर जाते हुए कहने लगा – “अच्छा एक चीज बताओ यहाँ आस पास पार्क कितने है ?”

“काहे भैया जी !!” वह रूककर आश्चर्य से उसका चेहरा ताकने लगा|

“बताओ तो पहले |”

“ये बड़ी कालोनी है न भैया जी तो हर ब्लॉक में एक पार्क है|”

“अरे सबसे व्यस्त पार्क बताओ |”

“पीछे ही है बड़ा गोल चक्करदार पार्क है उसके चारोंओर घर ही घर बने है – काहे भैया !”

वह कारण जानने को अभी भी बेचैन था पर चिराग अपनी रौ में पूछता रहा – “गुड – चलो अभी दिखाओ मुझे – कहाँ है वो पार्क ?”

“अभी !!”

चिराग उसकी नानुकुर सुने बगैर उसे बाहर की ओर लगभग खींचते हुए ले जाते हुए कहने लगा – “अरे काम की चिंता मत करो – मिश्रा जी के आने से पहले ही मैं तुम्हारी हेल्प करा दूंगा |”

अब क्या करता उसे चिराग के साथ बाहर जाना पड़ा| चिराग उसे अपनी बाइक में बैठाए उसकी बताई दिशा की ओर जाता हुआ उससे बात करता रहा और वह भी उसे पूरी जानकारी देता रहा|

“हाँ भैया जी वो बड़ा है न तो आस पास के लोग आते रहते है – मैंने तो हमेशा ही लोग देखे है वहां |”

“अच्छा – !” वे बात करते करते पार्क तक पहुँच गए|

“हाँ अभी तो शाम भी ठीक से नही हुई लेकिन काफी लोग है |” चिराग एक बड़े पार्क के सामने रूककर देखता हुआ कहता है|

पर गनेसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि चिराग के दिमाँ ग के आखिर चल क्या रहा है ! वह पूछता रहा और चिराग उसे बताता हूँ कहता वापस आता हुआ कहता है – “अरे अभी चलो पहले नही तो मिश्रा जी तुम्हें क्या मुझे भी नही छोड़ेंगे आखिर मैं ही तुम्हें बाहर ले गया था|”

चिराग जिस बात पर हंस रहा था गनेसी उसे सोचता हुआ सही में घबरा रहा था|

दोनों झट से संस्था आते साथ में रसोईघर की तरफ बढ़ जाते है| गनेसी बहुत सा प्याज निकालकर उसे छीलने बैठ जाता है तो चिराग उसे अन्यत्र काम करने को भेजकर खुद प्याज छीलने का कहने लगता है|

“अरे भैया जी आप रहने दे हम कर लेंगे सब जल्दी जल्दी |”

“तो क्या ये मुझसे नही होगा क्या – मैं कह रहा हूँ तुम जाओ दूसरा काम करो – मैं देखो चट से ये सारे प्याज छीलता हूँ |”

आखिर उसे उठकर जाना पड़ता है तो वह भंडारगृह की ओर चल देता है| चिराग जल्दी से अपनी आस्तीन समेटता हुआ प्याज छीलने लगता है| उसे अपने न किए जाने वाले काम को भी कर पा लेने का पूर्ण विश्वास था|

कुछ ही पल बीते थे कि प्याज ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया| चिराग की ऑंखें आंसुओं से भरने लगी वो भी इतनी कि अब अपनी ऑंखें बंद किए वह टटोल टटोल कर प्याज छील रहा था| रसोईघर के गलियारे की तरफ खुलते हुए दरवाजे के पास से उसी वक़्त सुगंधा गुजर रही थी| अचानक चिराग की ओर देखती उसकी नज़र फिर उस पर से हट ही नहीं पाई, वह चिराग की बंद आँखों को बहता हुआ देखती लगभग दौड़ती हुई रसोई के अन्दर आती झट से सारे प्याज को पानी से भरे बर्तन में डुबो देती है| उस आहट से चिराग उसे गनेसी समझ बोलता है –

“अरे यार ये क्या चीज है – काट मैं इसे रहा हूँ और आंसू मेरे निकल रहे है -|” कहता हुआ चिराग हवा में हाथ से टटोलता हुआ रसोई का कोई कपडा जान सुगंधा के दुप्पटे को उस पल थाम लेता है, और सुगंधा बुत बनी खड़ी रह जाती है| चिराग अब अपनी ऑंखें उससे पोछ रहा था| सुगंधा को उस कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या करे !! वह तो बस मन भर कर उस चेहरे को आज देख पा रही थी यही सुकून उस पल उसकी आँखों में छा रहा था|

“भैया जी !” आवाज के साथ दरवाजे पर आता आता गनेसी एक दम से रसोई का दृश्य देख वही थमाँ  रह गया, उसका खुला मुंह उसकी स्थिति बयाँ कर रहा था|

पर गनेसी की आवाज सुन चिराग ऑंखें पोछता हुआ धीरे से आंख खोलकर एक पल उसे तो बगल में खड़ी सुगंधा को देखता रह गया| उस पल सुगंधा अपना दुपट्टा समेटती हुई किसी तरह से खुद को संभालती हुई गनेसी की ओर जाती हुई कहने लगी –

“गनेसी भईया – नए प्याज को छीलते समय अगर पानी में डाल दिया जाए तो आंसू नही आते – |” कहती हुई वह एक बार भी चिराग की ओर नहीं देखती और बाहर की ओर निकल जाती है|

चिराग उसे जाता देख जल्दी से सिंक में अपने हाथ धोता हुआ अपने चेहरे पर पानी की छींटे डालकर बाहर की ओर तेजी से बढ़ जाता है पर इस वक़्त तक गनेसी मुंह खोले उनकी ओर देखता रह गया|

बिना ऑफिस जाए अब वापस घर जा रही थी, चिराग उसे जाते हुए देख दौड़कर उसके पास जा रहा था, उसने उसे पुकारा और सुगंधा अंतरस काँप गई….चिराग सवाल करेगा…क्या पूछेगा वह…उसे अधिकार है…फिर भी वह जानकर तल्ख़ बनी रहेगी…वह जता देगी कि उसे उसके सवालों से कोई फर्क नही पड़ता…ये सोचती हुई वह अपने अन्दर से जैसे भरपूर ताकत खींचती हुई अपने शब्दों को होठों के भीतर इकट्ठा करने लगी….

“सुगंधा…|”

वह उसके पास आकर ठहर गया तो सुगंधा को रूककर पीछे पलटना पड़ा|

अब उनके बीच बस एक हाथ का फासला था जो सुगंधा के लिए मीलों लम्बा फासला जैसा था, वह उसके सामने थी फिर भी नज़र उठाकर वह उसकी ओर नही देख पाई……

चिराग अपनी भरपूर मुस्कान से उसके सलोने चेहरे को बस निहारे जा रहा था, उस पल की ख़ामोशी बिन शब्दों के भी मनोभावों से लबरेज थी जो उस पल उनकी आँखों, उनके चेहरे पर चस्पा कोई भी देख सकता था…

“ये कल तुम अपनी एक किताब भूल गई थी – लो – वर्ना तुम्हारे स्टूडेंट समझेंगे कि उनकी मैम भुलक्कड़ हो गई है |”

उसने देखा भी नही कि कब से चिराग के हाथ में कोई किताब थी जो वह उसकी तरफ बढ़ाते हुए हँस रहा था और वह हतप्रभ उसे हँसता हुआ देखती रही जबकि उसके हाव भाव में शिकायत होनी चाहिए फिर भी वह कैसे उसकी ओर इतने प्यार और विश्वास से देख पा रहा था, चिराग के विश्वास ने उसका खुद पर से विश्वास हिला कर रख दिया, वह सारे शब्द थूक की गटकन से गले से नीचे उतारती चुपचाप किताब लेती बाहर की ओर चल दी, चिराग वही खड़ा उसे अपनी आँखों से विदा देता मुस्करा रहा था|

“गनेसी….|”

तेज आवाज की सरगोशी से चिराग का ध्यान टूटा तो आवाज की दिशा की ओर वह देखता है कि उसे ही घूरती हुई आँखों से देखते हुए मिश्रा जी गनेसी को बुला रहे थे| चिराग उन्हें अनदेखा करता ऑफिस की ओर जाने लगा तो मिश्रा जी आवाज लगाते हुए बोले –

“हमको लगा जा रहे है मेनेजर साहब !” तंज कसते हुए उनके होंठों के किनारे थोडा फ़ैल गए|

पर चिराग सहज भाव से कह उठा – “मैं नही सुगंधा गई है|”

उस पल मिश्रा के चेहरे से साफ़ पता चल रहा था कि उसे ये बात कुछ ख़ास पसंद नहीं आई थी, शायद उन्होंने चिराग को हमेशा लड़कियों को देखते उनके पीछे पीछे घूमने वाला आवारा बादल समझ रखा हो पर चिराग उनके चेहरे के हाव भाव को नजरअंदाज करता ऑफिस की ओर मुड़ जाता है|

मिश्रा फिर से सब्जी गिनाते गिनाते झल्लाहट से गनेसी को डांटते हुए बोले – “ज्यादा इधर उधर न किया करो समझे – अपने काम से काम रखा करो समझे |”

किसे ये बात कही गई और किसने इसे समझा उस पल की ख़ामोशी सब अपने अन्दर जब्त कर ले गई और गनेसी मुंह बनाए सब्जियां समेटने लगा|

क्रमशः…

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