
सुगंधा एक मौन – 38
चिराग अगले दिन सुबह के साढ़े छह बजे ही संस्था पहुँच गया, सर्दियों का शुरूआती दिन और उस दिन रविवार होने से सभी बड़े आराम से अपना अपना काम कर रहे थे पर चिराग वहां पहुँचते गनेसी को सबको आधे घंटे में उसी पार्क में लाने को कहकर पार्क चला जाता है|
लेकिन जब गनेसी चिराग का सन्देश ये कह कर देता है कि उसने आज सभी को स्पोर्ट्स डे के रूप में मनाने के लिए कहा है तो ये सुनते सबकी तैयोरियां ही चढ़ जाती है और सबका गुस्सा गनेसी पर ही उतरता है|
“ये क्या मजाक है – हम कोई बच्चे है जो स्पोर्ट्स डे मनाए !”
“और क्या – उस मेनेजर के जो जी में आता है वही करता है |”
“कभी प्रवास सजवा देता है तो अब हमाँ री हड्डियाँ तुड़वाने का काम कर रहा है – जाकर बोल दो हममे से कोई नहीं आएगा |”
मेजर गुस्से में फुंकार उठे तो मिश्रा जी भी आज अपनी भड़ास निकाल बैठे – “अब तो हद ही कर दी – लगता है कनकलता दीदी को फोन कर सब बताना पड़ेगा कि नया मेनेजर क्या लफ्फाजी कर रहा है यहाँ – |”
सबकी बात सुन दादी जो खुद संशय में थी पर यही शायद उनके विश्वास की असल परीक्षा थी, वे सबके बीच आती हुई कहने लगी – “ऐसा क्या बुरा किया – लड़का है नहीं समझता पर गलत लड़का नही है वो – हम उसे वहां जाकर भी अपनी बात आराम से समझा सकते है |”
सब उनकी बात सुन आश्चर्य से सुनकर सोच में पड़ गए, किसी को भी ये करना स्वीकार्य नही था पर सबसे उम्रदराज दादी की बात कोई काट न सका तो आखिर सभी गनेसी के साथ पार्क की ओर चलने को तैयार हो गए| मिश्रा जी अपनी रसोई में चले गए और सबके साथ चलते गनेसी ने जैसे ही चिराग का लाया बैट, रैकिट और बॉल उठाया सबकी तीखी नज़रे उसी पर गड गई तो बिचारे ने डरकर सब वही रख दिया और सहमाँ सा उनके आगे आगे रास्ता बताता हुआ चलने लगा|
अभी सुबह का उजास धीरे धीरे जमीन पर अपना पैर पसारना शुरू कर चुका था, ठण्ड मिश्रित धूप हर देह को बड़ी सुहानी लग रही थी उस पर आज छुट्टी का दिन था जिससे पार्क में अच्छी खासी हलचल थी| आस पास की कॉलोनी के बुजुर्ग से लेकर हर उम्र के बच्चों की वहां मौजूदगी थी| सुबह से ही किशोर बच्चे क्रिकेट का बैट लिए मैदान के एक हिस्से पर अपना कब्ज़ा जमाँ ए थे तो उसके विपरीत कोने में बने दो चार झूलों पर नई उम्र के बच्चों की मुस्काने दोहरी हुई जा रही थी| तो पार्क के चारोंओर ओर बने पाथ पर कुछ बुजुर्ग आपस में बात करते करते टहल कदमी कर रहे थे| कुछ घरेलू महिलाऐं भी खिलखिलाती हुई आज देर तक अपनी मोर्निंग वाक करना चाहती थी क्योंकि आज न स्कूल का और न ऑफिस का ही झंझट था|
संस्था की ओर से आते दस बारह लोगों के झुण्ड पर अचानक सबकी नज़रे जम गई, वे सब भी अपनी ओर उठती नज़रों से अचकचा उठे पर चिराग द्वारा अपनी तरफ आने के निमंत्रण भरे हाथ के इशारे की ओर चलते रहे| चिराग गनेसी से इशारे से बैट इत्यादि के बारे में पूछ रहा था और वह जवाब देने के बजाय अपनी बगले झांकता रह रहा|
चिराग उन सबकी ओर कहने को बढ़ा तो मेजर आगे आते है, वहां के माँ हौल के कारण वे चाहकर भी अपने स्वर की पूरी तल्खी प्रकट नही कर सके बस दबे स्वर में कह उठे – “हम यहाँ तक आ गए यही गनीमत समझो |” कहकर आगे बढ़ गए बाकि भी उनके पीछे पीछे हो लिए| चिराग कुछ पल तो समझ नही पाया फिर धीरे से मुस्करा कर उनकी ओर देखता हुआ वही किसी बैंच पर आराम से टेक लगाकर बैठ गया|
मेजर पाथ पर वाक करने लगे कुछ उनके साथ हो लिए तो कुछ पार्क की हरी घास पर धीरे धीरे चल रहे थे, कुछ वही कही बैठे अपनी साँस पर नियंत्रण बैठा रहे थे| दादी भी अपनी छड़ी का सहारा लिए अन्यत्र बैंच पर पसर गई, आज चिराग की बात उनके भी समझ से परे थी|
गनेसी को कुछ समझ नहीं आया तो चिराग वाली बैच पर आकर बैठ कर जैसे अपने चेहरे के हाव भाव से ही जता दिया कि भईया जी बस यही उसके बस में था, पर चिराग तो भरपूर अंगड़ाई लेता उनकी तरफ देख रहा था| तभी किशोर बच्चों की गेंद मेजर के पैरों से टकराई तो अपनी ओर आते किशोर को वे घूर कर देखने लगे| सॉरी अंकल कहकर हँसता हुआ वह गेंद ले गया, अगले कुछ पल बाद फिर गेंद उनतक लुढकती हुई आ गई, अब तो वे गेंद उठाकर उनकी ओर बढ़ गए, पीछे पीछे उनके दो चार साथी भी|
वे किशोरों की भीड़ की तरफ बढ़ने लगे तो वे बच्चे डांट के डर से घबरा गए उल्टा गेंद लेने गए लड़के को हड्काने लगे, जिससे वो लड़का बिफर पड़ा – “मैं नई गेंद ले आऊंगा प्लीज् मुझे खिला लो न |”
उसके गिडगिडाते स्वर से मेजर को जो बात समझ आई उससे उनके तेवर कुछ कम हुए तो वे उससे पूछ बैठे तो वो वह बच्चा रुआंसा होता उनसे गेंद माँ गते हुए कहने लगा – “अंकल प्लीज् गेंद दे दीजिए नही तो हमेशा मुझसे फील्डिंग कराएँगे और मेरा कभी बैटिंग का नम्बर ही नहीं आएगा |”
“ऐसे कैसे ?” मेजर उसकी बार समझते उन लड़कों की ओर बढ़ते है – “लाओ बैट लाओ – लाओ |” वे सब घबरा गए कि लगता है अब बैट भी छिन जाएगा|
“लाओ बैट – दिखाता हूँ तुम लोगों को – देखे क्या मुझसे भी अच्छा खेलते हो क्या ?” मेजर के ये कहते सबके चेहरे के भाव आश्चर्य से भर उठे बल्कि उनके पीछे चल रहे साथी भी उस पल उनसे ये कतई उम्मीद नही कर रहे थे|
पर मेजर सबको सोचता पीछे छोड़कर उनके हाथ से बैट लेकर विकेट के सामने जम गए इससे अगले ही पल माँ हौल बदल गया और एक गेंद दूसरी गेंद के बाद एक ओवर तक सारे बच्चे उनके मुरीद हो उठे| सबके चेहरे खिल उठे थे तब मेजर अपनी तनी मुछों का कोना उठाते हुए बोले – “नेशनल खिलाडी के सामने कैसे टिकोगे |” अब ये सुनना था कि सारे किशोर उन्हें घेर लेते है| दूर से ही ये नज़ारा देखता चिराग सारा माँ जरा समझ रहा था| अब बैट गेंद लेने गए वाले लड़के के हाथ में था और मेजर बोलिंग के लिए बिलकुल तैयार थे| उनके साथ के साथियों ने फील्ड संभाल ली थी|
वही वृद्धा आश्रम की कुछ वृद्धा उन घरेलू महिलाओं से घिरी ठहाके लगा रही थी, बीच बीच में किसी न किसी पकवान के जिक्र से उनकी बातों का छोर कोई भी आसानी से समझ सकता था कि वे उनसे कुछ नया बनाने का सीख रही थी, अब तक सारा माँ हौल जैसे आपस में ऐसा गडमड हो गया कि संस्था के लोगों को अलग से पहचान पाना मुश्किल हो रहा था| दादी जो किसी नन्ही सी लड़की की गुड़ियाँ ठीक कर रही थी| वे उसे प्रोमिस कर रही थी कि वे उसकी गुड़ियाँ के लिए एक अच्छा स्वेटर बन देंगी इसे सुन वो लाड से उनसे लिपट गई तो बगल में खड़ी उसकी माँ उन्हें निहारती रह गई|
चिराग की नज़र सबको देख रही और सबको देखता हुआ गनेसी अब चिराग को देख रहा था, उसे भी सारा माँ जरा अब अच्छे से समझ आ गया तो वह लगभग उछलते हुए चिराग के पास सरकता हुआ बोला – “वाह भईया अब आपका आइडिया समझ आया – क्या गज़ब का आइडिया लगाए है – परिवार मिलने नहीं आता तो परिवार के बीच ही लिवा लाए आप – क्या दिमाँ ग दौडाए है भईया जी|”
चिराग उसकी बात सुन अभी भी मंद मंद मुस्करा रहा था|
“भईया जी कहाँ से लाते है ये आईडिया – बहुत ही गज़ब करते है आप – उस दिन भी केक का ऑर्डर पहिले से कर रखे थे न आप !”
उसकी बात सुन चिराग अब उसकी तरफ मुस्करा कर देखता हुआ कहने लगा – “मेरे पास दस हज़ार आइडिया की एक किताब है उसी से |”
“क्या बात कर रहे है – सही में – कहाँ है किताब भईया जी ?”
उसकी बेसब्र आँखों को देख चिराग तर्जनी से अपने माँ थे की ओर इशारा कर कसकर हंस दिया और गनेसी उसकी ओर औचक देखता रह गया|
क्रमशः…..
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