
सुगंधा एक मौन – 39
समय को कौन पकड़ पाया और खुशहाल समय तो और जल्दी हाथों से रेत सा फिसल जाता है| ज्योंही धूप थोडा तीखी होने लगी सबको सुबह के नाश्ते की याद हो आई तो अब सबको घर वापस जाना ही था इससे अनजानी आँखों ने जैसे एक दूसरे को फिर जल्दी मिलने के वचन के साथ एकदूसरे से विदा ली|
सब वापस संस्था की ओर जा रहे थे लेकिन जिस भाव के साथ वे यहाँ से निकले थे वो जाने कहाँ उनके मुस्कराते चेहरों से फिसल चुका था, चिराग भी उनके साथ वापस जा रहा था, किसी ने खुलकर तो कुछ नही कहा पर सबकी आँखों में चिराग को लेकर भाव अब बदल चुके थे|
यही वक़्त था जब सुगंधा संस्था के पास अभी अभी कार से उतरी थी, वह सबको संस्था की ओर वापस आता हुआ देख रही थी उसकी नज़र उनपर थी पर किसी ने उसकी तरफ जैसे देखा ही नहीं| वे आपस में ही इतने खुश थे कि उनका अन्यत्र जगह ध्यान गया ही नहीं, सुगंधा ने भी इससे पहले उन्हें इतना अपने में मग्न और खुश कभी नही देखा था| वह खड़े खड़े हतप्रभता से देखती रह गई| किसी की भी नज़र सुगंधा पर नही गई पर चिराग की नज़रो ने उसे झट से घेर लिया| वो भीड़ की पीठ के पीछे से उसे निहारता रहा, सुगंधा को अहसास था इसलिए खुद को किसी तरह से जब्त किए वह जानकर आर्यन की ओर मुडती हुई कहती है – “शायद आज मेरी यहाँ जरुरत नही – आपको कल इस्कान टेम्पल नही दिखा पाई थी – क्या आज चले !”
अंधे को और क्या चाहिए एक आंख !! आर्यन को बिन उम्मीद के ख़ुशी मिल गई, उसने तो सुगंधा के बैठते कार माँ नों हवा की रफ़्तार से वापसी को घुमाँ ली| पर इस अदने वक़्त में भी चिराग की नज़र पल भर को भी सुगंधा से नही हटी इसका उन जुड़ते दिलों को अहसास था पर जानकर सुगंधा अपने हाव भाव को सख्त बनाए रही, उसे अहसास था कि ये जानकर विषपान करने जैसा था जिसे मीरा की तरह अपने हलक में वह उतार ले गई|
“आज शाम मैं वापस जा रहा हूँ – थैंक्स मेरे साथ चलने के लिए – वैसे आप चाहे तो हम कही और भी चल सकते है – मंदिर के बाद !!” आर्यन अपनी ख़ुशी के मद में बहककर कहता रहा और सुगंधा किसी पाषाण सी उसकी हर भावना से विरक्त बनी रही|
अगले पल वे फिर मंदिर के प्रांगण में थे| जब भी सुगंधा का मन विकल हो उठता तब उसका व्यथित मन सिर्फ ईश्वरीय शरण में ही सुकून पाता, वह सर उठाकर उस दिव्य मूर्ति को देखती रही…ऐसा करते उसकी आँखों में नमी उभर आई जिसे उसके पीछे खड़ा आर्यन नही देख पाया वह तो कुछ कहने को व्यग्र था|
“सुगंधा जी मुझे आपसे कुछ कहना है|” कहकर वह शब्दों का कुछ पल विराम लेता है ताकि उसकी ओर से कुछ जवाब आए पर सुगंधा की ख़ामोशी उसे स्वीकृति लगी तो उसने आगे कहना जारी रखा –“आप मुझे बहुत अच्छी लगी – एक्चुली आप है ही बहुत अच्छी – मैं आपको कहना चाहता हूँ…..|”
“मैं किसी और से प्यार करती हूँ |” एक दम से उसकी ओर पलटती सुगंधा कह उठी|
आर्यन के शब्द जैसे हलक में अटक के रह गए, वह निशब्द उसकी ओर देखता रहा माँ नों खुद को जो अभी अभी कहा गया उसके लिए यकीन दिला रहा हो |
वह नज़र उठाकर उसकी अवाक् नज़रों का सामना करती हुई जैसे उसे गवाह बना कर ईश्वर के आगे अपनी गवाही रख रही थी|
“मैं आपसे हाथ जोड़कर माँ फ़ी माँ गती हूँ |” ऐसा कहती वह उसकी ओर देखती अपने हाथ जोड़ लेती है – “मैं किसी और से बहुत प्यार करती हूँ इतना कि उसके बिना तो मैं अपनी कल्पना भी नहीं कर पाती पर उससे दूर जाने के लिए मैंने आपका इस्तमाँ ल किया – मैं इसके लिए आपसे हाथ जोड़कर माँ फ़ी माँ गती हूँ |”
उस एक पल आर्यन पर ये वक़्त किसी सुनामी सा गुजर गया जिसपर अपनी मुस्कान की गहरी परत चढ़ाता वह सुगंधा की उन निश्चल आँखों को देखता हुआ कहता है – “आपने मेरा इस्तमाँ ल किया – ये आप जैसी भोली लड़की ही बोल सकती है |” वह बढ़कर उसका हाथ पकड लेता है इससे सुगंधा चौंककर उसे देखती है |
“ये किसी अधिकार का हाथ नहीं बल्कि दोस्ती भरा हाथ है – आप ने मुझपर इतना विश्वास किया कि अपनी मन की बात मुझसे कही और रही बात मेरा इस्तमाँ ल करने की तो हर ऐसे पल का शुक्रिया कि किसी कारण से ही सही पर आप मेरे साथ तो रही – क्या उस खुशनसीब से मैं मिल सकता हूँ |”
सुगंधा न में सर हिलाती अपना हाथ धीरे से खींच कर समेट लेती है| आज ईश्वर की अदालत में वह इस सच से इंकार नही कर पाई थी जिसका अहसास उसके समस्त अस्तित्व पर हावी था आज|
उसके न में सर हिलाने पर आर्यन को हंसी आ गई|
“कोई बात नही – पर उस खुशनसीब के नसीब से रश्क जरुर हो रहा है खैर पर मुझे समझ नही आया कि जिससे इतनी मुहब्बत है तो फिर उससे ही क्यों भाग रही है आप – मैं समझा नही !!”
“मेरा उसका साथ वक़्त को मंजूर नही बस यही बता सकती हूँ आपको – मुझे अब जाना है |” वह जाने को आगे बढ़ी तो आर्यन जल्दी से उसकी तरफ आता हुआ कहता है – “मैं आपको छोड़ देता हूँ – चलिए |”
स्टेरिंग पर हाथ घुमाँ ते घुमाँ ते आर्यन बीच बीच में सुगंधा की ओर अपनी घूमती नज़र से देख भर लेता, सलोने चेहरे पर आई ढेर उदासी उसके गले बिलकुल नही उतर रही थी पर सुगंधा का मौन उसे अपनी सीमाँ का अहसास करा रहा था जिससे वह आगे ज्यादा कुछ न पूछ सका| आखिर सुगंधा के कहने पर वह उसे कॉलेज उतार देता है| वह धीरे से शुक्रिया कहती उतर जाती है| वह जाने को आगे बढ़ी ही थी कि पीछे से आर्यन की आवाज उसे रोकती हुई कहने लगी –
“मैं भी आपसे विदा लेता हूँ सुगंधा जी पर जिस विश्वास से आपने अपने दिल की बात मुझसे शेअर की है उस विश्वास के लिए मैं आपका शुक्रगुजार रहूँगा इसलिए जब भी आपको इस दोस्त की जरुरत लगे बेहिचक किसी भी वक़्त याद कर लीजिएगा मुझे बेहद ख़ुशी होगी – ये मेरा कार्ड रखिए प्लीज् |” वह जबरन उसकी हथेली के बीच कार्ड थमाँ ता हुआ अपनी आखिरी मुस्कान उसके आस पास छोड़ता हुआ कार आगे बढ़ा देता है|
सुगंधा के लिए अब खुद को सँभालने के लिए अपना एकांत चाहिए था, उसका बिफरा मन कॉलेज के एक सुनसान हिस्से के आते बिलख कर रो पड़ा…उस एक पल खुद को उसने बहने दिया..बेसाख्ता दिल रो पड़ा…तब उसकी आँखों के सामने भी सिर्फ चिराग का ही चेहरा था पूर्ण विश्वास से ओतप्रोत जिसने उसका खुद पर से विश्वास हिला दिया था….ये उस बेरहम वक़्त से मौन गुहार भी थी जिसने उन्हें मिलाया भी तो न मिलने की वज़ह भी दे दी….उस बेरहम फैसले को अपने अंतरस उतारती वह देर तक यूँही बिसुरती रही…आंसुओं की उफनती नदी में कब वो कार्ड उसके हाथों से फिसल गया उसने ध्यान भी नही दिया|
कॉलेज के गेट से बाहर संजना अंकिता संग गप्पे लगाती हुई बाहर निकल रही थी कि एक कार तेजी से मुख्य गेट के पास आकर रूकती है, कार को ब्रेक लगाकर जिस तरह से रोका गया था, उससे संजना का ही नहीं बल्कि वहां मौजूद सभी का ध्यान उसपर चला गया| पर उस कार की ड्राइविंग सीट पर नज़र जाते संजना तेजी से उसकी ओर बढ़ गई| अन्दर बैठा अतुल मुस्कराता हुआ अपनी टी शर्ट का कॉलर उठाते हुए उसकी तरफ देखता हुआ पूछ रहा था – “कैसी है मेरी ड्राइविंग ?”
संजना उसकी बात का जवाब देने से पहले एक नज़र कार की हालत पर डालती है, कार बुरी तरह धूल से नहाई हुई थी, कार की हालत देख वह अतुल की मंशा अच्छे से समझ गई बस कारण जानने उसकी तरफ अच्छी वाली मुस्कान डालती हुई कहती है – “ग्रेट – पर क्या फायदा मुझे बैठाकर ड्राइव पर ले जाओ तब पता चलेगा ठीक से कि कैसी ड्राइविंग करते हो तुम ?”
“तो आ जाओ – तुम्हें आज तब तक सिटी घुमाँ ता रहूँगा जब तक तुम्हारा मन नही भर जाएगा |”
अतुल पूरी तरह से अपनी रौ में था तो संजना भी मौका नही गवाना चाहती थी, झट से उसके साथ की सीट पर बैठ गई|
“वाह क्या भईया ने आज पूरे दिन भर के लिए तुम्हें कार दे दी !”
“दिन भर क्या – हमेशा ही समझो – |”
“कोई मैजिक किया भईया पर क्या !” संजना बातों बातों में अतुल के पेट से बात निकलवाना चाहती थी|
और अतुल भी अपनी मस्ती में कहता रहा – “मैजिक नही कमजोरी पकड़ ही भाई की – अब तो कोई टेंशन नही – जो चाहूँगा वो मुझे दे देंगे |”
“चल झूठा – भईया नहीं देने वाले तुम्हें कार – बताओ उनकी अनुपस्थिति में ही ले ली होगी तुमने !”
“ऐसा नही है |” अतुल के चेहरे के भाव सख्त हो उठे|
“मैं नही माँ नती – भईया के आगे तो तुम्हारी आवाज भी नही निकलती |” जानकर उसे चिढ़ाती हुई बोलती है|
“नही माँ नती चलो अभी दिखाता हूँ – तुम्हारे सामने जो कहूँगा भईया वो मुझे दे देंगे |”
संजना जानकर उसकी ओर से मुंह मोड़ लेती है जिससे अतुल थोडा चिढ़ जाता है|
सुगंधा संस्था आना तो नही चाहती थी पर उसके मन की तरह उसके क़दमों का फैसला भी उसका नही रहा, वह चिराग के पास थी पर मन कहीं दूर बेचैन बिसूरता पड़ा था| वह जिस अविश्वास को उसके चेहरे पर ढूंढना चाहती थी वहां अभी भी विश्वास का चरम मौजूद था, इससे उसका मन ही उसे धिक्कार उठा कि किसे चिढ़ाने चली थी !!! वो तो आंख मूंदे उसपर विश्वास कर रहा है तब उसका जीवन उसके लिए और अनमोल हो उठा|
वह वापसी को फिर अनमनी सी जा रही थी और चिराग गेट तक उसे छोड़ने आया, वह दुखी मन से अपनी नज़रे इतनी नीची किए थी कि आंख उठाकर सड़क भी न देख पाई, वह गेट पर खड़ी थी और कुछ दूरी पर संजना अवाक् खड़ी उनकी ओर देख रही थी तो उसके बगल में खड़ा अतुल मुस्कराते हुए कह रहा था – “यही है सीक्रेट – अभी मम्मी को बता दूँ तो देखना….!!”
“अतुल !!!” संजना बेचैन होकर उसकी ओर मुड़ती उसका हाथ कसकर थामती हुई उसे गली के छोर तक खीँच कर ले जाने लगती है और उसके इस आकस्मिक व्यवहार से औचक अतुल बस उसके साथ चलता जाता है| वह गली का एकांत था वह उसके ठीक सामने बहुत पास खड़ी थी, इतने पास कि उनकी उफनती सांस अब एक दूसरे से टकरा रही थी| अतुल संजना के हाव भाव देखता रह गया| संजना अभी भी उसका हाथ कसकर थामे कह रही थी – “तुम ऐसा नही कर सकते अतुल – प्लीज उन्हें वक़्त के हाथो छोड़ दो मेरी खातिर – प्लीज् कह दो तुम नहीं कहोगे किसी को…|” उसका अंतिम स्वर गले तक आता भर्रा उठा था| अतुल आज इतने पास से संजना के चेहरे के पीछे किसी और को देख रहा था जो बरबस ही उसे अपनी ओर तेजी से अपने में समेट रहा था और वह भी तूफान में तिनके सा पस्त बहा जा रहा था|
इसके विपरीत सबसे बेखबर चिराग की नज़र बस सुगंधा पर टिकी थी और सुगंधा तो जैसे कही देख ही नहीं पा रही थी, उसकी आँखों के सारे परिदृश धुंधले हो उठे तभी तो रोड के विपरीत जाती हुई वह गली से गुजरती एक स्कूटी को नही देख पाई, एक ही पल में दो बाते हो गई, सुगंधा के सामने स्कूटी का आना और चिराग का उसे तेजी से अपनी ओर खींचना, ऐसा होते वे सड़क पर साथ में लडखडा कर गिर पड़े थे…..
क्रमशः…..
Very👍👍👍🤔🤔🤔🤔