
सुगंधा एक मौन – 5
अतुल अपने हाथ में शेविंग ट्रिमर लिए तबसे चिराग के पीछे पड़ा था उसकी दाढ़ी शेव करने के लिए, चिराग एकदम से उखड़ गया|
“तेरे को क्या प्रोब्लम है मैं और दाढ़ी बढ़ाऊँगा |”
“ठीक है तो ये लीजिए आप और जो चाहे कीजिए – मम्मी ने कहा था इसलिए मैं आया |” गुस्से में फुंकारते हुए पैर पटकते अतुल सच में तुरंत कमरे से बाहर निकल गया|
अतुल के जाते अपने हाथ में पकड़े ट्रिमर को देख तब से अपनी तैयोरियां चढ़ाए चिराग चुपके से मुस्करा दिया|
आज सन्डे के दिन अमित से मिलने उसके घर जाने के लिए तैयार होकर चिराग घर के बाहर तक आता है पर जाए कैसे यही सोचता उसे ख्याल आता है कि माँ ने उसे अभी गाड़ी चलाने से बिलकुल मना कर रखा है, यही सोचता वह बाहर ड्राईवर को देखने आता है तो उसकी नज़र अतुल पर जाती है जो खुद तैयार होकर बाइक से कहीं निकलने वाला लग रहा था, वह झट से उसके पास आ जाता है|
अतुल चिराग की तरफ देखता है, फिर उसकी करीने से ट्रिम की हुई दाढ़ी को देखकर झट से बोल उठता है – “ये स्टाइल मस्त है भईया – आजकल यही ट्रेंड में है – क्लीन शेव तो आउट डेटेड हो गया|”
“हाँ हाँ बस ठीक है – ये बताओ तुम कहीं जा रहे हो और क्या तुम बाइक चलाने लगे हो !!”
चिराग की आँखों का आश्चर्य अतुल का मन हिला गया, उसे याद आया कि तब वह बारहवीं में था और भईया अपनी बाइक उसे कभी छूने भी नही देते थे, किसी छोटे बच्चे की तरह उसे स्कूल छोड़ते जबकि तभी वह कई बार चुपचाप अपने दोस्तों की बाइक आराम से चला लेता पर इन दो सालों के वक़्त ने उसे कितनी जल्दी बड़ा कर दिया, वह उसकी आँखों की खामोशी समझता तुरंत बोला –
“हाँ आपको देख देख कर ही सीख ली थी और अब कॉलेज दूर है तो बाइक से जाना पड़ता है – |” अपने चेहरे से खुद को मजबूर दिखाने की वह भरपूर कोशिश करता है|
चिराग के मन में भी छोटा अतुल झट से बड़ा होता हुआ दिखा तो वह कह उठता है –
“चलो देखते है कितना ठीक से चलाते हो ?”
वह औचक हो उठता है तो चिराग आगे कहता है –
“और क्या मुझे अमित के घर तक छोड़ दो |”
बात समझते अतुल झट से हेलमेट पहनकर बाइक स्टार्ट कर तैयार हो जाता है| चिराग भी उसके पीछे बैठ जाता है| कुछ ही पल में बाइक हवा से बातें करने लगती है| अपने गंतव्य में उतरते अतुल जैसे अपना रिवार्ड पाने बाइक से उतरते चिराग की तरफ देखता है|
“बहुत तेज़ चलाते हो |”
ये सुन अतुल का मुंह लटक जाता है |
“अब ध्यान से चलाना – वैसे बाइक को लेकर तुम्हारी च्वाइस अच्छी है |”
बाइक के हैंडल पर हाथ फिराते हुए जब चिराग ये कहता है तो अतुल इसी को अपना रिवार्ड मानता हुआ खुश हो जाता है – “थैंक्स भईया – मेरे दोस्त भी यही कहते है |”
“ठीक है अब ध्यान से जाना |”
अतुल के बाइक मोड़कर सड़क में गुम होते चिराग अमित के घर की ओर अपना कदम उठा लेता है|
चिराग को देख अमित झट से उसे गले लगाकर जैसे ख़ुशी से नाच उठता है| वो लगभग उसका हाथ पकड़कर अन्दर लिवा लाता है|
चिराग उसके इस घर में कभी नहीं आया था, ये शायद उसने नया लिया होगा जब वह इस दुनिया में रहकर भी इस दुनिया में शामिल नहीं था| सब कुछ नया और मन को चौंका देने वाला था| वह अपनी क्लास मेट तृप्ति को सामने देख ज्योंही चौंकता है अमित उसका अपनी पत्नी के रूप में उससे परिचय करवाता है| तृप्ति भी उससे कितना खुलकर मिलती है, वे शायद यही कोशिश कर रहे थे कि चिराग के खोए वो दो साल कहीं से भी उनके बीच रुकावट न बने|
“बहुत अच्छा लगा तुम आए और हाँ आज हमारे साथ लंच करके ही जाओगे |”
तृप्ति की बात सुन वह कहने ही वाला था कि तुम दोनों ने शादी कब की कि तभी अन्दर के कमरे से एक बच्चे के रोने की आवाज़ सबका ध्यान उस ओर खीँच ले जाती है|
“ओह शायद बेबी जाग गई – तुम लोग बैठो मैं अभी आती हूँ |” तृप्ति हडबडाती हुई तुरंत निकल गई|
चिराग का आश्चर्य इस नई बात के लिए भी तैयार नहीं था, वह औचक सा अमित की ओर देखता है –
“हाँ मेरी बेटी है |”
“तेरी !!”
“अबे 100% |”
अमित तल्खी से कहता है तो चिराग की हँसी छूट जाती है इस पर तुनकते हुए वह धीरे से कहता है – “तू तो दो साल की स्नो वाइट की नींद में चला गया – अपने को मस्ती भारी पड़ गई |” फिर अपनी ही बात पर वह दबे स्वर में हँस पड़ता है|
फिर लिविंग रूम के सोफे पर दो दोस्त पसरते हुए कुछ पल की ख़ामोशी में जैसे अपने अपने अतीत में गोता लगाने लगते है, वो कॉलेज के दिन, वो दोस्तों संग मस्ती, देर तक बेकार सड़क पर घूमना, कभी क्लास बंक कर मूवी भाग जाना सब अनोखा नहीं था पर मन भावन और जीवंत था|
“यार क्या दिन थे न वो !!”
अमित की बात सुन चिराग भी अतीत से भागता वही वापस आ जाता है – “सच में मुझे याद आ रहा है तुम, तृप्ति, निखिल, केशव और दिशा सब एक साथ बैठे मुझे दिख रहे है और उनके बीच खड़ा मैं कितना खुश हूँ |”
“वाह यार तुझे तो सबके नाम याद है |” अमित झट से उसकी तरफ मुड़ता है|
चिराग धीरे से मुस्करा देता है, जैसे कॉलेज के प्रांगण में अभी भी वह अपने दोस्तों से घिरा खड़ा है|
तभी तृप्ति की आवाज़ सुन अमित जल्दी से उठता हुआ कहता है – “कमिंग डार्लिंग – यार बस अभी आता हूँ |”
थोड़ी ही देर में गोद में एक बच्ची लिए अमित आता है जिससे चिराग का सारा ध्यान अब उसकी तरफ चला जाता है, वह उसे अपनी गोद में लेने के लिए अपना हाथ बढ़ाता ही है कि अमित झट से टोक देता है – “यार अभी नहीं – बड़ी नखरीली है और अभी सो कर उठी है अगर अभी किसी और ने गोद में ले लिया तो सारा घर अपने सर पर उठा लेगी और तृप्ति मुझे नही छोड़ेगी |”
अमित की बेचारगी पर चिराग हँस दिया|
“हँस ले यार – सारे ऊंट कभी न कभी पहाड़ के नीचे आते ही है |”
तभी तृप्ति एक ट्रे में चाय नाश्ते के साथ आती ट्रे उनके बीच रखती उनके साथ न बैठ पाने की अपनी असमर्थता जताती हुई बच्ची को अन्दर ले जाती है| चाय पीकर अब दोनों टैरिस की ओर जाते है, वहां के खुले माहौल और किसी के न आने की अनुभूति से रिलेक्स होता अमित झट से अपनी पॉकेट से एक सिगरेट का पैकेट और लाइटर निकालकर एक सिगरेट सुलगा लेता है, लेकिन वह उस पैकेट को अपनी पॉकेट में वापिस डाल भी नहीं पाता कि चिराग उसके हाथ के पकड़े पैकेट से एक सिगरेट खींचता हुआ झट से उसे अपने होंठो में तिरछा दबाता हुआ सिगरेट सुलगाता हुआ एक गहरा कश लेता हुआ हवा में बड़े बड़े घुंघराले छल्ले छोड़ने लगता है|
अमित एक पल उसे देखता रह जाता है, वही तरीका, वही अन्दाज़, चिराग को सब याद आ रहा था पर उसका सिगरेट पीना उसे ठीक न लगा वह सिगरेट उसके हाथों से लेने लगता है|
“यार तुझे अभी नही पीनी चाहिए – |”
“क्या चाहता है खरीद कर पियूँ |”
चिराग के चेहरे का सुकून देखा तो अमित को उसकी बात माँ ननी पड़ी – “चल मान लिया पर इसके बाद नही |”
चिराग उससे बेखबर गहरे गहरे कश लेता रहा और उसके धुंधले कोहरे में बनती किसी आकृति पर अपनी नज़रे गड़ाए रह गया|
“लम्बे खुले कमर तक बाल जब चेहरे पर उड़कर आ जाते तो वह उन्हें झटके से पीछे की ओर धकेलकर मुस्करा देती – |”
“चिराग |” अमित ने उसके कंधे पकड़कर उसे हिलाया|
“अमित मुझे उसका चेहरा याद आ गया – उसकी गहरी काली ऑंखें हमेशा मुस्कराती लगती मानों वो उदासी के लिए बनी ही न हो – क्या वो मेरे साथ होने से ज्यादा खुश थी या सच में वह कोई खुशरंग बहार थी !!”
“चिराग क्या बोले जा रहा है – होश में आ – तेरे दिमाग में अभी भी वह लड़की हावी है – भूल जा न उसे |”
“मैं कहाँ याद करता हूँ उसे – वो तो मेरी हर याद में खुद ब खुद अपनी जगह बना लेती है |” चिराग आखिरी गहरा कश लेता हुआ कहता है|
“देख यार वो क्या है कौन है मुझे नहीं पता पर तू खुद ही सोच अगर वो सच में तुम्हारी जिंदगी में इतनी ही शरीक होती तो क्या तुम्हें किसी तरह से एक बार भी मिलने नही आती – माना तुम बेहोशी में थे पर वो तो नहीं और उस दिन भी तुम उसी के बुलाने पर गए थे तो इन दो सालों में एक बार भी उसने तुम्हें खोजा !!” अमित बेहद तल्खी से अपनी बात कहता है तो चिराग सिगरेट का बड बगल के गमले की मिट्टी में दबाता हुआ ख़ामोशी से उसकी राख को देखता रहता है|
“यार सच को देख और महसूस कर – कभी कभी तो मुझे लगता है कि वह लड़की भी है या नहीं – कहीं तू किसी कब्रिस्तान के पास तो उससे नही मिलता था – सच बता ?”
“कह ले आज तेरी बारी है पर जिस दिन उसे खोज लूँगा न उस दिन देखना |”
अमित उसके जिद्दी शब्दों को उसके चेहरे से भी पढ़ पा रहा था|
लगभग पूरा दिन अमित के साथ बिताने के बाद अमित खुद उसे घर तक छोड़कर जल्दी में है कहकर तुरंत बाहर से ही निकल गया| अब चिराग थके क़दमों से घर के अन्दर आता है तो धीरे धीरे कोई हलचल उसके कानों से टकराती रहती है, वह अन्दर आते हॉल में प्रवेश करते किसी को अपने सामने पाते जैसे उछल पड़ता है| एक पल में ही वह दो साल पीछे पहुँच गया|
सामने दिशा खड़ी मुस्करा रही थी, वे एक दूसरे को देखकर झूम उठे, बस गले लगना छोड़ वह एक दूसरे का हाथ थाम लेते है|
“दिशा !!”
“चलो नाम याद है – मुझे लगा अपना परिचय देना पड़ेगा -|” वह इठलाती हुई बोली – “कैसे कब कहाँ सब बताउंगी – अन्दर तो आओ |”
वह उसका हाथ पकड़कर अन्दर लाती अपने मम्मी पापा के सामने खड़ा कर देती है|
“वाह चिराग – तुम्हें देखकर तो मन खुश हो गया – कैसे हो बेटा ?”
चिराग उन दोनों से मिलता है, उसे याद आ जाता है कि उसके घर से कुछ ही दूरी पर उनका बंगला था, तभी उसे बताया जाता है कि पीछे एक साल से वे अब भोपाल में शिफ्ट हो चुके है और आज सिर्फ उससे मिलने के लिए यहाँ आए है|
दिशा उस घर के लिए नई नही थी, वह हमेशा इस घर में बेधड़क समाँ जाती थी, आज फिर वह चिराग संग टेरिस की ओर चल दी जहाँ से दूर तक दिखता गार्डन आज भी उसे मनभावन लग रहा था|
इधर उनके साथ में जाते दोनों पेरेंट्स बिन माँ गे मुराद सा पा जाने की ख़ुशी से झूमते हुए एक दूसरे से कह उठते है – “चलिए बच्चें खुद ब खुद आपस में मिल लिए – हमारा काम आसान हो गया|”
सन्डे तो पूरा बीत गया था, कल उन्हें निकलना था पर दिशा से चिराग को मिलवाने का उन्हें ये समय बहुत छोटा लगा तो रात के खाने की टेबल पर चिराग की माँ दिशा को रोकने का इसरार करने लगी तो दिशा अपनी कनखियों से झांकती और चिराग के मुंह से यही सुनने को तड़प उठी पर चिराग चुपचाप अपनी प्लेट की तरफ झुका रहा तो दिशा से न रहा गया तो वह झट से बोल पड़ी – “रहने दीजिए आंटी कोई नहीं चाहता कि मैं रुकूँ !!”
अतुल अपनी झपकती आँखों से सारा माजरा समझने की कोशिश कर रहा था कि ख़ामोशी को तोड़ते बिना सर उठाए चिराग कहने लगा – “रुक जाओ – मुझे कोई दिक्कत नही |”
दिशा को चिराग का सिर्फ पहला शब्द सुनाई पड़ा और उसका मन झूम उठा|
फिर दूसरे दिन उसके मम्मी पापा के जाते वह सुबह के नाश्ते की टेबल सजाती हुई चिराग के वहां आने का इंतजार कर रही थी| चिराग ऑफिस जाने की पूरी तैयारी के साथ वहां आता है तो सभी उसकी ओर देखते रह गए|
“बेटा आज ऑफिस न जाओ वरना दिशा तो बोर हो जाएगी – देखो मुझे भी अभी मार्किट जाना है |”
माँ किसी तरह से चिराग के आगे विवशता रखती है और चिराग सच में माँ न जाता है फिर दोपहर के बाद दोनों तय करते है कि वे अपने वही कॉलेज वाले पुराने अड्डे यानि उसी रेस्टोरेंट में जाएँगे जहाँ जाने कितने घंटे उन सब दोस्तों ने संग में बिताए थे|
साथ में बैठे जाने कितनी यादें स्वतः ही उसके सामने आ गई जब क्लास बंक करके वे फालतू के डिस्कशन करते कितना जोर जोर चिल्लाते पर रेस्टोरेंट उनकी वज़ह से ही गुलज़ार रहता पर वहां का माँ लिक उन्हें ज्यादा कुछ नही कह पाता| चिराग दिशा की सारी बातें सुन रहा था या नही पर दिशा धाराप्रवाह सब कहती रही|
काफी समय एक साथ बिताते वापस आते अपने अपने कमरे में आराम करने चले जाते है|
दूसरे दिन माँ को जाने क्या सूझता है वे टैरिस के साथ में बने नए कमरे की ओर चिराग और दिशा को ले जाती हुई उन्हें कमरा दिखाती हुई कहती है – “कैसा है ये कमरा – चिराग अब यही शिफ्ट करना है बेटा – तुम्हारे लिए ये बड़ा कमरा मैं बनवा रही हूँ – बस एसी फिट हो जाए|”
चिराग जिस बात को सामान्य लेता वही दिशा थोड़ा शरमा जाती है|
“दिशा बेटा तुम न चिराग का खास सामन थोड़ा यही सेट करवा दो बाकी शिफ्टिंग मैं करवा लुंगी |”
ओके कहकर दिशा चिराग की ओर देखने लगी पर चिराग अब वापस जाने लगा था|
चिराग के कमरे में चिराग चेअर पर आराम से बैठा कुछ पढ़ने में तल्लीन था वही दिशा उसकी अलमारी खोले कुछ सामान देख देख कर उसमें से निकाल रही थी|
“चिराग – देखो मुझे कुछ मिला है !!!”
“क्या !” उसके शब्दों में भी नाममात्र की उत्सुकता थी|
“आओ न प्लीज़ यहाँ |”
दिशा के इसरार पर उसे उठकर वहां जाना पड़ा जहाँ वह कुछ हाथ में पकड़े उसे डस्टर से पोछ रही थी|
“देखो ये तुम्हारे तरह तरह के फेग्रेन्स है न – लगता है तुम इनको भूल ही गए – याद है कॉलेज में रोजाना तुम कोई न कोई नई फेग्रेन्स लगा कर आते – उफ़ – लड़कियां तो पागल थी तुम्हारे पीछे – और मैं –|” दिशा के स्वर धीमे पड़ जाते है अब उसकी ऑंखें देखती है कि चिराग बेचैनी से उन फेग्रेन्स की बोतलों को हाथों में लिए ऐसे देख रहा था मानों वे कोई एल्बम थी जिनके परत दर परत अब उसके सामने खुलते जा रहे थे जिससे हैरान होती उसकी ऑंखें फ़ैल कर चौड़ी हो गई, वह बेचैनी में एक दम से बाहर की ओर भागा, उसके पीछे दौड़ती दिशा उसके मुंह से बस आखिरी शब्द सुन पाई – ‘सुगंधा ——-|’
क्या होगा आने वाले वक़्त में चिराग की जिंदगी में ??
क्रमशः…………
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