Kahanikacarvan

सुगंधा एक मौन – 40

वे मुहब्बत भरी दो जोड़ी एक साथ थी एक दूसरे की आँखों में झांकती हुई, माँ नों उस एक पल में सारी दुनिया उनकी आँखों में सिमट आई थी, जिसके परिदृश्य में बस वही एक सलोना चेहरा ही समाँ या था, वे अभी भी एक दूसरे का हाथ कसकर थामे थे, धड़कने सीने में धौकनी सी मचल रही थी जिससे सांसे माँ नों उफनी जा रही हो, क्या असर था उस स्पर्श में जिसमे समस्त अमृत सा समाँ  गया था| अतुल को याद नही कि क्यों थामाँ  था संजना ने उसका हाथ वह तो बस उसकी सपनीली आँखों के काले डोरों में खो सा गया था, वह बदल गया था, माँ नों मन दर्पण में अकस्मात ही कोई आकृति समाँ  गई, संजना का उदास चेहरा वह अपनी हथेली में भरना चाहता था पर उसके हाथ तो उसकी ठंडी हथेली के बीच जम से गए थे| जिस पल वे स्थिर थे चिराग की सारी दुनिया जैसे किसी भूचाल से लडखडा गई थी, वह अभी भी कस कर सुगंधा का हाथ थामे उसे कह रहा था – “ये अकेली तुम्हारी जान नही है जो तुम इतनी आसानी से दान दे दो -|” अपनी चिरपरिचित मुस्कान से वह मुस्करा रहा था और सुगंधा अनिमिख उसे देखती रह गई| स्कूटी में कोई किशोर नौसिखिया लड़का था जो खुद घबरा कर अब भाग चुका था, चिराग ने हादसा होने से बचा लिया पर उस लम्हे की घबराहट अब पसीने की बूंदों के रूप में सुगंधा के माँ थे पर स्पष्ट हो आई थी, जिसे बड़े अधिकार से वह अपनी उंगली के पोर से समेटता मुक्त कर देता है|

सुगंधा कुछ प्रतिक्रिया न कर पाई, चिराग ने उसे अपनी बाइक में बैठने का कहा और वे क्षण में साथ में वहां से निकल गए| यही पल था जब अतुल और संजना अपनी अपनी घबराहट अपनी अपनी झुकी आँखों के मौन में समेटे साथ में कार से निकल गए| उस पल अहसासों को शब्दों की जरुरत ही नहीं पड़ी, सब मौन ही आत्मसात कर लिया गया|

चिराग को पता था उसका घर ये उसके किसी परिचित की तरह ठीक जगह बाइक रोक देने से सुगंधा को अहसास हुआ| वह उतर गई| उस एक पल उनकी निगाह आपस में टकरा गई, चिराग उसके चेहरे के उदास भाव देख रहा था, वह उसके चेहरे की मौन उदासी उससे छीन लेना चाहता था पर उस पल सुगंधा के आत्मकेन्द्रित भाव के आगे वह बस इतना ही कह पाया –

“सुगंधा – तुम इतना खुद को परेशान मत करो – मैं तुम्हें परेशान नही देख सकता और रही बात मेरे साथ की या इन सात दिन की तो ये सब सोच सोच कर खुद को बेकल मत करो – मैं तुम्हारा सात दिन क्या सात जन्म तक भी इंतजार कर सकता हूँ…बस खुश रहो तुम – उदासी तुम्हारे चेहरे पर बिल्कुल नही जंचती |” अपने आखिरी शब्द के साथ अपनी मुस्कान भी जैसे उसके आस पास छोड़ता हुआ वह वापस चला गया और सुगंधा मौन खड़ी उसे जाता हुआ देखती रही|

उनके अलावा वहां कोई और भी था जो उन्हें देख रहा था| नूतन मैम दरवाजे पर खड़ी उनकी बात सुनती वही खड़ी रह गई, वे शायद दरवाजे के ऊपर छतरी सी फैली बोगेनवेलिया की बेल के कारण उनकी नज़रो में नही आ पाई पर उन्होंने उन्हें देख लिया था, इसलिए वे सुगंधा के पास आने का इंतजार करने लगी पर वह उन्हें देखकर भी अनदेखा करती सीधे टेरिस की ओर तेजी से चली गई| वे उसे रोक भी नही पाई|

मन को कितना पानी सा बहाए पर मन का सुनामी खत्म ही नही होता था| सुगंधा अपनी हथेली के बीच उस किताब को लिए देख रही थी जो जाते समय चिराग ने उसे दी थी, वो किताब जो जरिया थी उसका अहसास उस तक पहुँचाने का, उसके द्वारा रखे एक गुलाब से ही कितने गुलाबों को महक हर हर्फ़ में माँ नों समाँ  गई थी| किसी को भलेही एक नज़र में ये सूखे बेजान फूल लगते पर ये धड़कते दिल ही जानते थे कि उन फूलो की सुगंधा उनके ह्रदय में कितने अतुल तक समाँ ई थी|

“सुगंधा….!”

अचानक स्पर्श से सुगंधा पलटकर देखती है, वे नूतन मैम थी जो प्यार से अब उसके सर पर हाथ फिरा रही थी, उस पल दुखती रग माँ नों घाव सी फट पड़ी, वह बदहवास सी उनसे लिपट गई फिर कितनी नदियाँ आँखों के रास्ते दिल में समंदर में समाँ  गई ये बस उस पल को ही खबर हुई|

उन्होंने इससे पहले कभी सुगंधा को इतना टूटते हुए नही देखा था, वे घबरा कर उसको अपने अंक में समेटी रही लेकिन अभी बहुत से प्रश्न थे जिसके चिन्ह साफ़ उनके चेहरे पर पढ़े जा सकते थे|

उसका चेहरा अपने में समेटे वे उसे गौर से देखती हुई कह रही थी –

“ये आंसू उसी के लिए है न जो अभी अभी गया है !!”

सुगंधा ख़ामोशी से नज़रे झुका लेती है| देर तक रोते रोते अब सुगंधा की आवाज सिसकी में बदल चुकी थी|

“मुझे नही पता कि इस वक़्त तुम्हारे मन में क्या चल रहा है पर जो कुछ है तुम्हें बहुत परेशान कर रहा है – कभी सही लगे तो अपने मन की बात मुझसे कहना – माँ तो नही हूँ शायद माँ की तरह सुनकर समझ सकूँ तुम्हें !”

दर्द शब्दों की सीमाँ  पार कर गया बस वे मौन ही एक दूसरे का हाथ थामे बैठ गई|

“उसका नाम चिराग है – आज भी उसके नाम के अलावा ज्यादा कुछ नही जानती हूँ मैं उसके बारे में फिर भी यकीन की सबसे पुख्ता दीवार के बीच मैं खुद को उसके साथ सबसे सुरक्षित महसूस करती हूँ – पता नही क्यों है ऐसा पर सच यही है |” हलके से सिसकती हुई वह आज सब कह देना चाहती थी, वे भी पूरी ख़ामोशी से उसे सुन रही थी|

“हम अकस्मात् ही मिले थे एक दूसरे से न हमाँ रे घर पास थे और न हम कॉलेज से ही एक दूसरे को जानते थे पर जाने वक़्त की कौन सी लीला थी कि जब एक नज़र मिले तो दो चार मुलाकात में ही मैं उसके साथ विश्वास के चरम पर पहुँच गई, उस पल लगा अगर मैं आंख मूंद कर किसी पर विश्वास कर सकती हूँ तो वो सिर्फ और सिर्फ चिराग ही है – सब ठीक था पर उस रात जब हालात ने ऐसी करवट ली कि बेरहम वक़्त के हाथों मैं बस कठपुलती बन कर रह गई – वो आधी रात जब मेरे पिता मेरी ही माँ के हन्ता बन गए और वे मेरी बाँहों में अपना दम तोड़ रही थी उस पल सबसे पहले मुझे चिराग का ही ख्याल आया – इसी विश्वास से मैंने उसे फोन करके मदद के लिए अपने पास बुलाया पर वक़्त को तो जाने क्या मंजूर था – मैं इंतजार ही करती रह गई और अगले दो साल तक मुझे पता भी नही चला कि चिराग जिंदगी और मौत के बीच झूलता रहा – ये तो तब पता चला जब दो साल बाद मुझे ढूंढते हुए वह एक बार फिर मेरे सामने था तब पता चला कि उस रात वह आ रहा था मेरे पास पर उसका एक्सीडेंट हो गया और दो साल मेरे ही ख्यालों में लिपटा वह कोमाँ  में रहा – उस पल की चिराग की वापसी जैसे वक्त की ओर से सबसे बड़ा उपहार था मेरे लिए – लगा अब सब कुछ ठीक हो जाएगा – शायद बेरहम वक़्त को मुझपर रहम आ गया है – चिराग भी मुझसे फिर आने का वादा करके गया पर इस वक़्त को कहाँ मुझपर रहम आया और एक बार फिर चिराग नही आया आई तो उसकी खबर कि उसका फिर एक्सीडेंट हो गया – उस पल लगा ये धड़कने रुक क्यों नही जाती – क्यों बार बात अपनों का खोना मैं तटस्थ बनी सहती रहूँ – पर सब सहना लिखा ही था मेरी किस्मत में तो मैं कर ही क्या सकती थी – बदनसीब सुगंधा का तमगा एक बार फिर मेरे माँ थे पर और गहरे से मड दिया गया – आखिर मेरे पिता भी तो कहते थे कि मुझ बदनसीब की वज़ह से कभी बेटे के पिता न बन सके – मेरा जन्म ही उनके लिए अभिशाप बना रहा तो आप की कहिए कि कैसे मैं एक बार फिर अपनी बदनसीबी के काले बादल उसपर मंडराते देख सकती थी !!” वह बिलखते हुए पूछ उठी|

“पर किसने कहा तुम्हें बदनसीब ?” वे औचक उसका चेहरा देखती रही|

सुगंधा उनके हर प्रश्न का आज उत्तर दे देना चाहती थी, वह उठकर अलमाँ री की तह से कुछ निकाल कर उनके सामने कर देती है| वह एक कागज का टुकड़ा था जिसे उनकी नज़रों के सामने करती हुई वह कह रही थी –

“ये चिराग की माँ ने मुझतक पहुँचाया था – ये एक माँ की फ़रियाद थी – आखिर अपने बेटे के जीवन की चिंता करना उनके अधिकार में था – आप भी तो माँ है क्या आप किसी मनहूस साये को जानबूझकर अपने बेटे के आस पास भी रहने दे सकती है !!”

माँ का ह्रदय अपनी संतान की खैरियत के नाम पर तूफान में तिनके के सामाँ न नाजुक हो जाता है, वे क्या कहती पर सुगंधा को जिसे उन्होंने अपना ही माँ ना था उसे भी दर्द में सिमटा वे कैसे देख सकती थी, वे इसी विश्वास से उसका हाथ कस कर पकड़ती हुई बोली – “मुझे तो बस इतना पता है कि मैं जिस सुगंधा को जानती हूँ वो किसी के लिए मनहूस हो ही नहीं सकती |”

उनकी बात पर वे हौले से होंठों के किनारे फैलाती हुई कहती है – “ये आपका प्यार है मेरे लिए जिसके कारण आप ऐसा कह रही है पर यही सच है – आपने मुझसे पूछा था न कि आखिर वो घर मैंने क्यों छोड़ दिया तो बस इसी कारण मैं चिराग की दुनिया से दूर चली आई लेकिन वक़्त ने एक बार फिर उसे मेरे सामने ला दिया |” दर्दीली आवाज़ में लिपटा था उसका हर स्वर |

“हो सकता है एक बार फिर उसने तुम्हें खोज निकाला हो !!”

उनका प्रश्न अब सुगंधा की उठी हुई नज़रों में भी स्पष्ट हो आया था|

“वो तो मुझे पता नही इसलिए तो अब इतना दूर जाना चाहती हूँ कि चिराग की खुशहाल दुनिया से हमेशा के लिए मैं दूर हो जाऊं |”

“सुगंधा !!”

वे घबराए चेहरे से उसे देखती रही जो किसी किताब के बीच में से कोई लिफाफा निकालकर उनकी तरफ बढ़ाती हुई कह रही थी – “ये मेरा लेक्चर का कालिंग लेटर है मुझे यहाँ दस दिन के अन्दर ज्वाइन करना है |”

वे जल्दी से लिफाफे को खोलकर लेटर को सरसरी निगाह से देखकर चौंकती उसकी ओर देखती हुई पूछती है – “ये तो पोंडिचेरी यूनिवर्सिटी का है – इतनी दूर !!”

“दूर ही तो जाना चाहती हूँ – |”

“पर …!!”

उनके हर प्रश्न को वह स्पष्ट होने से पहले ही रोकती हुई उनका हाथ फिरसे थामती हुई कहती है – “ये जरुरी है कि मैं उसकी दुनिया से दूर चली जाऊं – मुझे उसकी दुनिया के लिए उसकी दुनिया से ही दूर जाना होगा – आखिर ये सिर्फ दो लोगों का रिश्ता नही बल्कि परिवारों का मिलन होता है और मेरा तो कोई है नहीं फिर मैं चिराग को उसके परिवार से कैसे दूर कर सकती हूँ – क्योंकि मुझे डर है कि जिस दिन उसे ये पता चलेगा कहीं कोई गलत कदम न उठा ले तब मैं जीते जी मर जाउंगी – मैं अकेली उदासी में जीवन काट सकती हूँ पर मेरी वजह से कोई परिवार बिखरे ये मैं कभी बर्दाश्त नही कर पाऊँगी |” आखिरी शब्द तक उसका गला रुंध आया, वह ऑंखें कसकर बंद कर दर्द पी लेना चाहती थी|

सुगंधा अपने हिस्से का सब कह चुकी थी, वह ख़ामोशी से उनके विपरीत माँ नों शून्य में ताक रही थी तब धीरे से वे उसका चेहरा अपनी तरफ करती हुई कहती है – “मैं नही जानती ये चिराग कौन है पर जिस चिराग को तुम्हारे शब्दों से मैंने जाना है उसके बारे में ये जरुर यकीन होता है कि इस बार समुद्र पार भी वह अपनी सीता को खोज लाएगा तब क्या करोगी तुम सुगंधा !!”

सुगंधा औचक उनका चेहरा देखती रह गई|

“तुम अपनी ही परछाई से भाग रही हो – ठहर जाओ सुगंधा |”

माँ नों उनकी आँखों के प्रश्न सुलझ चुके थे अब उनकी मुस्कान में ढेर आश्वासन उभर आया था पर निशब्द सुगंधा उनके चेहरे के भाव देखती रह गई|

ये रात मानों मीलों लम्बी खिंच गई थी, तभी तो तनहा चलते चलते उनमे ये चार दिन बेचैनी में बस करवटे बदल रहे थे आज की रात उनकी आँखों से नींद जैसे कही खो सी गई थी| सुगंधा को अहसास था कि उसका दूर जाना चिराग पर कैसा गुजरेगा तो चिराग उसके इंतजार में हर एक दिन जैसे उँगलियों में गिन कर काट रहा था, ऐसी ही कुछ बेचैनी अतुल और संजना के दिल पर भी आज एक सी गुज़र रही थी, उस पल का स्पर्श जैसे अभी भी उनके हाथों से दूर हुआ ही नहीं था………

क्रमशः….

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