
सुगंधा एक मौन – 41
बेचैनी भरी रात बस आँखों आँखों में कट ही गई लेकिन दिल की तड़प ज्यों की त्यों बनी रही| आंख खुलते ही चिराग ने आज बस दिल की सुनी कुछ ज्यादा सोचा विचारा नही और सुगंधा को कॉल लगाने लगा, जबकि नही पता था कि वह क्या कहेगा उससे ?? अपनी धड़कती धड़कनों की बेसब्री किसी तरह से अंतरस समेटे हर घंटी के क्रम से उसकी सांसे ऊपर नीचे हो रही थी, कई बार लम्बी लम्बी घंटी जाने के बाद भी आखिर सुगंधा ने फोन नही उठाया….
आखिर सही समय पर वह संस्था आ कर ऑफिस में अपने काम में तल्लीन हो गया पर अधीर नज़रे बार बार उठकर दरवाजे से लेकर बाहर के क्षितिज तक सुगंधा का इंतजार कर आती पर आज वो नही आई, समय के बीतने के साथ लगभग तय हो गया कि वो नही आएगी, जिससे धीरे धीरे उदासी का एक छोटा बादल उनकी आँखों के मुहाने मंडराने लगा|
“अरे आज पता ही नही चला कब आए ?”
चिराग आवाज सुनते सर उठाकर देखता है वे मिश्रा जी थे|
“ये लो एक दम बढ़िया वाली चाय है साथ में कटलेट – ख़ास बनाए है – खाना जरुर बेटा |” वे ट्रे से एक कप चाय और नाश्ते की प्लेट उसके सामने रखते हुए आज कुछ ज्यदा ही खुश थे, चिराग को आज उनके बदले बदले स्वर पर आश्चर्य हो रहा था| हमेशा तो उसे उनकी संशय भरी आँखों की आदत सी हो गई थी| नाश्ता रखकर वे चले गए|
उनके जाते कुछ पल तक वह दरवाजे की ओर देखता रहा, बाहर कुछ हलचल सी बढ़ गई थी, जिसे जानने आखिर उसे दरवाजे तक आना पड़ा पर वह बाहर गया नही| गलियारे से लेकर प्रांगण तक सभी खुश नज़र आ रहे थे, वह उनके चेहरे के बदलावों को देख मुस्करा दिया| तभी सामने से दादी दिखी जो मोबाईल हाथ में थामे मेजर को लगभग डांटती हुई कह रही थी – “चुन्नू ने पहली मेरी फ्रेंड रिक्वेस्ट स्वीकार की थी मेजर तुम्हारी बाद में समझे – देखो सारे बच्चे सुबह होते बता देते है कि किस दिन फ्री होंकर आएँगे यहाँ फिर एक एक करके सबके लिए उनकी नाप का स्वेटर भी तो बुनना है मुझे !” कहकर वे मुस्करा दी|
“हाँ तो इस सन्डे दीपक सोनू सब आ रहे है – मुझे सबको क्रिकेट भी सिखाना है |”
कुछ बदल गया था उनके सूने जीवन में, उनका बेमतलब का इंतजार अब नामों से भर गया था, वे प्यार भरे रिश्ते थे, जहाँ सिर्फ और सिर्फ प्यार का लेन देन था|
चिराग अपना काम कर अब बाहर जाने लगा तो देखा गनेसी उसकी बाइक झाड पोछ रहा था| फिर चिराग को आते देख वह झट से बोल पड़ा – “भईया जी देखिए अब चमक रही है न !”
वह हलके से होंठों के किनारे फैला कर हाँ में अपनी स्वीकृति देता है|
चिराग बाइक के पास आता चाभी लगा रहा था| बगल में खड़ा गनेसी बोलता रहा – “भईया जी एक बात बोले ?”
वह मुड़कर उसे प्रश्नात्मक मुद्रा में देखकर अपनी भौं उचका लेता है|
“आप पर न ये पुरानी बाइक सूट नही करती – आप एकदम हीरो टाइप वाली बाइक लेलो – आपपर बहुत ही अच्छी लगेगी |”
“अच्छा !” चिराग को हलके से हंसी आ गई|
“हाँ भईया जी सच कहते है – कसम से – आप तो हीरो दिखते हो |” वह खींसे निपोरता कहता रहा|
चिराग को अब उसकी बातों के बचपने पर इंटरेस्ट आ रहा था, वह बाइक का टेक लगाए लगाए कहता है – “हाँ पैसे जोड़ रहा हूँ – सोचता हूँ एक कार ही ले लूँ |”
“हाँ भईया जी तब तो गज़ब ही रहेगा |” वह एक दम से खुश होता उछल ही पड़ा |
चिराग धीरे से मुस्कराता निकल गया और गनेसी पीछे दांत निपोरे देखता रहा|
वक़्त अपनी ही रफ़्तार से जा रहा था, वक़्त जैसे गुज़रते हुए अपना फैसला सुना रहा था, जिसे माँ नने के सिवा अब चिराग के पास कोई रास्ता ही नही बचा, वह दोपहर को लौटते वक़्त फिर शाम तक उसका इंतजार करता रहा पर वह सच में नही आई| दादी उसके पास पास से गुज़रते सुगंधा को फोन मिलाना चाहती थी पर चिराग नही रुका, और आगे बढ़ गया| वे अश्रु मिश्रित पलकों को झपकाती उसकी उदासी को बस देखती रह गई|
वह ऑफिस में यूँ बैठा था जैसे सच में अपनी सारी हँसी सुगंधा को दे आया हो और उसकी उदासी अपने हर हाव भाव में लिए था इस उम्मीद से कि अब शायद उसके हिस्से की सारी उदासी खत्म हो गई होगी|
अब सब कुछ बदल गया था वहां सब खुश थे चिराग से, वह अब सबका चहेता बन गया था, मेजर सुबह आते उसे मुस्करा कर खुद गुड मोर्निंग कहते, मिश्रा जी हर बात में उसकी बात को तरजीह देते| गनेसी तो उसकी हर बात दौड़कर माँ नता और जबतक वह संस्था में रहता वह उसके आस पास ही मंडराता रहता और अपनी बातोंसे उसको कैसे भी हंसा ही देता|
अभी भी उसकी पीठ की ओर की किताबों को पोछ्ते पोछ्ते वह बातों का शिगूफा छोड़ता जा रहा था|
“भईया जी आप बड़ा गज़ब का आइडिया लगाते है – आपने तो आसरा की काया ही पलट दी |”
चिराग अपना काम करते करते बस हाँ हूँ कर देता|
“भईया जी – एक बात कहे ?”
“हूँ |”
“आपकी वो आइडिया वाली जो किताब है उससे हमरे लिए कछु आइडिया निकालिए न !”
चिराग अपना काम करते करते हाँ कहता रहा और बात करते करते गनेसी के चेहरे के भाव बदलते रहे|
“ऐसा कछु आइडिया बताईए न जिससे हमे भी सुन्दर सी लड़की मिल जाए |” कहते कहते गनेसी का चेहरा शर्म से लाल हो आया|
उसकी बात सुन अचानक काम छोड़ चिराग उसकी तरफ पलटकर उसके चेहरे के भाव देखता रहा|
“बताइए न भईया जी – हमाँ री अम्मा कह रही थी कि हमाँ री उम्र हो गई सादी की |” हाथ में पकडे कपडे का कोना दांतों से दबाता वह शर्मा रहा था|
चिराग उसकी हालत पर हलके से मुस्करा दिया पर चिराग को कुछ न कहते देख वह अब उसके ठीक सामने आता हुआ कहता है – “आइडिया बताईए न भईया जी जिससे हमको भी प्यार हो जाए |”
उसकी बात सुन चिराग उठकर उसके सामने खड़ा होता उसके कंधे को दोनों हाथों से थामते हुए उसकी आँखों की सीध में देखता हुआ कहता है – “प्यार के लिए आइडिया नही दुआ चाहिए होती है दोस्त – मैं तुम्हारे लिए बस दुआ कर सकता हूँ कि तुम्हारी तरह ही कोई तुमसी प्यारी तुम्हें मिल जाए |” अपने आखिरी शब्द में मुस्कान को हलके से छोड़ता चिराग बाहर जाने लगता है|
गनेसी हतप्रभ उसकी ओर देखता रहा | वह देखता है कि दरवाजे पर कोई खड़ी थी जिसके सामने जाते जाते चिराग एकदम से रुक गया था|
“आप !!”
हैरतअंगेज भाव से वे चिराग को देखती रही और वह बढ़कर उनके पैर छूते हुए मुस्करा कर उन्हें अन्दर आने का रास्ता देता है|
“तुम मुझे जानते हो ?”
“जी – आप सुगंधा की नूतन मैम है न – आपने माँ की तरह उसका ख्याल रखा तो मेरे लिए भी आपका दर्जा वही है |”
उस पल वह चिराग के चेहरे के भाव देखती हुई बस इतना की कह पाई – “पगली कहती है बदनसीब हूँ – उसकी किस्मत को साक्षात् सामने है |”
चिराग अन्दर आते उनके बैठते वह गनेसी को इशारे से पानी लाने जाने को कहता है|
वे चिराग को अपने सामने बैठने का आँखों से संकेत करती है तो वह उनके सामने बैठ जाता है|
“जब से सुगंधा से तुम्हारे बारे में सुना तो बड़ी इच्छा हुई तुम्हें सामने देखकर जानने की पर अब जब तुम सामने हो तो लगता ही नही कि मैं तुम्हें जानती नही – बहुत अपनापन है तुम्हारे चेहरे में – |”
“ये आपका बड़प्पन है |”
“सच में बेटा पर क्या इससे भाग्य की होनी बदलेगी – !!”
चिराग अचरच भरी आँखों से उन्हें देख रहा था|
“अब तो सच में मुझे कहना ही पड़ेगा कि सुगंधा तुमसे नही बल्कि खुद से भाग रही है – चिराग तुमने जल्दी कुछ नही किया तो वह तुमसे बहुत दूर चली जाएगी – रोक लो उसे – आज अपने लिए भी तुमसे गुहार लगाने आई हूँ अब उसके बिना मुझसे भी नही रहा जाएगा – कम से कम एक शहर में रहे तो उससे मिल तो सकूंगी मैं !”
“कहाँ जा रही है ?”
“क्या फर्क पड़ता है कि कहाँ जा रही है – क्यों जा रही है इस बारे में सोचो – चिराग |” वह कहती कहती उसकी ओर सरकती हुई कहती है – “क्या तुम्हारी माँ उसे अपनाएगी जो उसे तुम्हारे लिए उसे बद्सगुन माँ नती है -!”
उनकी बात सुनते चिराग के चेहरे के भाव बदल गए, वह अनबूझा सा उनकी ओर देखता रहा|
“हाँ तुम्हारी माँ ने उसे यही कहकर एक चिट्ठी लिखी थी इसलिए वह उस घर से चुपचाप चली आई – जिसे उन्होंने देखा भी नही उसे कैसी उम्र भर की सजा सुना दी – वह ये कभी तुमसे नही कहेगी इसलिए मैं ये सच तुम्हें बता रही हूँ पर इसके साथ ये भी सच है कि वह तुम्हें तुम्हारे परिवार से अलग होता भी नही देख सकती – बड़ी पशोपेश में पड़ी है इसलिए बस सब कुछ छोड़छाड़ कर जाने वाली है |”
उनकी बात सुनते चिराग अब शून्य में ताकने लगा था, आज उसके पास वक़्त के किसी भी सवाल का कोई जवाब नही था, असल में उन दोनों में से किसी के पास भी किसी सवाल का जवाब नही था, बस इंतजार था इस बेरहम वक़्त के अपने मनमुताबिक होने का|
दरवाजे पर पानी का गिलास लिए गनेसी वही खड़ा रह गया|
क्रमशः…..
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