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सुगंधा एक मौन – 42

नूतन मैम के पास ज्यादा कुछ कहने को था नहीं बस वक़्त से मौन गुहार थी और चिराग की आँखों का आश्वासन….जाने आगे क्या होने को है इसी संशय को समेटे आखिर वे वापिस जाने को बाहर खड़ी थी, सामने चिराग खड़ा उन्हें मुख्य द्वार तक छोड़ने आया था| वे कुछ पूछना चाहती थी, इसी उलझन में वे मुख्य गेट के सामने खड़ी अपनी कार की तरफ बढ़ रही थी, उनको जाते देख चिराग भी बाइक के पास खड़ा उसमे चाभी लगा रहा था, उनके असहज कदम एकाएक उसकी ओर फिर मुड़ गए, चिराग उनके चेहरे की हैरानगी को पढ़ता हुआ उनसे पूछ उठा –

“जी – कुछ कहना है !”

“हाँ – कुछ पूछना है !” उनका हर शब्द असमंज में डूबा हुआ था|

“कहिए |”

“बड़ा अजीब लगेगा पर सुगंधा की चिंता है मुझे इसलिए खुद को ढाढ़स देने बस तुम्हारे मुंह से सुनना चाहती हूँ – !”

“जी पूछिए |”

“तुम्हारी नौकरी तो अच्छी है न – तुम कितना कमाँ  लेते हो ?”

उनका प्रश्न सुन चिराग हौले से मुस्करा कर उनके सामने आता हुआ खड़ा अब उनकी निगाह की सीध में देख रहा था, उस पल उसकी विश्वस्त ऑंखें खुद में हर सवाल का जवाब था पर कभी कभी जब अहसास लतिका की तरह कमजोर होने लगते है तब अहसासों को शब्दों के सहारे की जरुरत होती है|

“बस समझिए इतना कमाँ  लेता हूँ कि अपनी पत्नी की हर ख्वाहिशें पूरी कर सकता हूँ |” वह इस वक़्त सारा सच कह सकता था पर उसके मन ने उसे ये कहकर रोक लिया कि अपना ये सच वह पहले सुगंधा को खुद बताएगा ये सोच मुस्करा कर अपनी बात पर वह मन ही मन हँस पड़ा था|

“ओह बस यही सुनना था मुझे |” उस एक पल ने उनके मन को राहत से भर दिया कि वह भरपूर मुस्कान से मुस्करा पड़ी| 

जिस पल लगता है पूरा दिन शांति से गुज़र गया उस पल कहीं न कहीं कुछ हलचल जरुर हो रही होती है| अतुल पानी का गिलास लिए रसोईघर से निकल ही रहा था कि मुख्य द्वार से आते जिसे उसकी नज़रों ने देखा तो वह एकाएक चौंक गया, गिलास टेबल पर रखकर वह लगभग दौड़ता हुआ उनके पास पहुँचते झट से उनके पैर की ओर झुक गया तो मौसी जी ने उसका सर प्यार से थामते हुए उसका माँ था चूमते हुए कहा – “देखा दिया न सरप्राइज !”

“हाँ – सच में !! कब वापिस आई आप !!”

हैरान अतुल उनकी बात सुनता सुनता गिलास का पानी उनकी तरफ बढ़ा देता है|

“बस जैसे ही वहां का काम निपटा तुरंत ही आ गई और चिराग कहाँ है – बेचारे पर बढ़ा बोझा छोड़कर गई थी कह देना अब संस्था जाने की कोई जरुरत नहीं है – मैं आ गई हूँ न |” मौसी आराम से सोफे पर धंसती हुई कहती रही और अतुल चिराग की ओर से परेशान हो उठा…

“और कल्याणी कहाँ है – कही बाहर गई है क्या ?”

“नही घर पर अपने कमरे में है मम्मी |” इससे पहले अतुल कुछ और कहता वे कल्याणी के कमरे की ओर चल दी|

वे सीढियाँ चढ़ती हुई उस कमरे की ओर बढ़ ही रही थी कि कमरे से बाहर आते चिराग के पिता कमरे का दरवाजा बंद करते ज्योंही पीछे पलटे उन्हें देख हैरान हो गए|

“अभी कल्याणी आराम कर रही है – आप आइये – अतुल जाओ मौसी के लिए चाय भिजवाओ |” अतुल झट से हाँ में सर हिलाता वापस चला गया तो वे मौसी को बरामदे के खुले स्थान पर पड़ी कुर्सी की ओर बैठने का निमंत्रण देते खुद भी वही बैठ जाते है|

उस पल उनके चेहरे पर बहुत गंभीर भाव मढ़े थे जिन्हें देखती मौसी जी सफ़र की बात छोड़ उनसे आखिर उसका कारण पूछ बैठी|

“आप आ गई – बहुत अच्छा हुआ – मैं इस वक़्त कल्याणी को लेकर बहुत परेशान हूँ |”

“मतलब !!” मौसी की आँखों में प्रश्नात्मक भाव उतर आए|

“असल में उसने अपने आप को एक कमरे तक सीमित कर लिया है – सिर्फ नर्स रहती है उसके पास |”

“बीमाँ र है क्या वो और मुझे ये सब फोन पर क्यों नही बताया – मैं सारा कुछ छोड़छाड़ कर चली आती |” मौसी जी के चेहरे पर अब घबराहट उभर आई|

वे सयंत होते अपनी बात धीरे से कहते रहे – “यूँ तो ज्यादा कुछ परेशान होने जैसी बात नही है पर बात कल्याणी के रवैया की है |”

“हुआ क्या है साफ़ साफ़ बताओ – मेरा तो जी हलक तक आया जा रहा है|”

“बात ये है कि कुछ दिन पहले कल्याणी को शरीर में यहाँ तहां कुछ दाने हुए तो डॉक्टर को दिखाया – पता नही कब डॉक्टर के मुंह से बस निकल गया कि ये सोरायसिस हो सकता है बस यही बात कल्याणी के मन में घर कर गई – जबकि अभी तक रिपोर्ट से कुछ तय नही हुआ |”

“फिर !!!”

“आप तो कल्याणी का स्वभाव जानती ही है – एक बार जो मन में बात चढ़ गई तो जल्दी उतरती नही –हम कितना समझा चुके कि समय बीतते ठीक हो जाएँगे – कोई साधारण इन्फेक्शन हुआ होगा पर वो तो मन में ठाने बैठी है कि जबतक ठीक नही हो जाती सबसे अलग रहेगी |”

“क्या !!!!” मौसी जी चिन्तित हो उठी – “अभी देखती हूँ – ऐसे कुछ भी सोचकर सब खुद ही तय कर लेती है – |”

“अब आपको क्या बताए उनकी जिद्द – हम तीनों को उन्हें न छूने तक की कसम दे रखी है – अब आप ही कुछ समझाईए |”

कनकलता कल्याणी से उम्र में बड़ी होने से उसके लिए माँ सरीखी थी इसलिए वह साधिकार कल्याणी से अपनी बात कहती थी और इस वक्त उन्हें बस उनसे इसी बात का भरोसा था|

***

बिन स्पर्श के अहसास माँ नों जल में तेल की बूंद की तरह करीब होकर भी अनछुए से रह जाते है, मौसी जी कल्याणी जी के सामने बैठी थी पर उन्हें स्पर्श नही कर सकती थी, ज्योंही वे अपना हाथ आगे बढ़ाती वे हाथ जोड़कर उन्हें मना कर देती, बड़ा मुश्किल था इस वक़्त उनके ठीक होने का भरोसा दिलाना पर मन तो सिर्फ भरोसे पर ही चलता है, वे विश्वास से उनको ढांढस देती वे उतना ही विपरीत कहती खुद में उदास हो जाती|

तभी चिराग उस कमरे में आता मौसी जी को देखता वह भी चौंक जाता है| फिर उनके पैर छूता हमेशा की तरह माँ के पास चेअर लेकर बैठ जाता है….वे हर बार मना करती और हर बार की तरह चिराग का एक ही जवाब होता कि पास आने से रोक सकती है पर पास होने से नही…वह माँ का चेहरा देखता है जहाँ ढेरों अविश्वास के श्रोते शीर्ष पर थे….उस पल उसका मन सुगंधा का ध्यान करता विचार में गुम हो गया….आखिर कैसे माँ को अविश्वास के गहरे परदे के पार के विश्वास के सूरज से भेंट करा पाएगा….माँ की आँखों में कही कोई रास्ता नही दिखा जिससे उस पल उसमे गहरी निराशा घर कर गई…..माँ जो बच्चों का हाव भाव भी पढ़ लेती है, वे चिराग का मन तो नही पढ़ पाई पर उसके चेहरे की उदासी उनसे छुपी न रह सकी वह उन्हें बेकल कर गई और वे चिराग से पूछ बैठी –

“क्या हुआ चिराग – कुछ परेशान से हो बेटा !” वे नयन भर उसकी आँखों को पढने का प्रयास करने लगी पर शब्दों का कोई सुराग उनके हाथ न लगा तो वे फिर पूछ बैठी – “कोई बात है – कुछ कहना है !!”

उस पल सच में चिराग का दिल हुआ कि आज माँ के सामने मन की सारी गिरह खोल दे, कह दे कि जिसके जीवन की चिंता में आप सुगंधा को उससे दूर रखना चाहती है वो उसकी जीवन रेखा बन चुकी है, आखिर कैसे वह अपनी जीवन रेखा के बिना रह पाएगा…पर कुछ न कह सका…..बस किसी तरह मुस्कान का एक आवरण जबरन चेहरे पर लगाता उठकर चला गया इस उम्मीद में कि कभी तो वक़्त सही होगा जब वह अपनी उलझन माँ को समझा पाएगा…..

कभी चाहने वाली आंखे करीब नही तो कभी वक़्त सही नही आखिर दोनों का साथ होने का इंतजार ही तकदीर बन जाता है…इसी डूबी एक शाम को क्षितिज पर डूबता हुआ चिराग बालकनी पर कोहनी टिकाए बहुत देर से आकाश को निहार रहा था….

“चिराग…|”

वे पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखकर जैसे उसे वापस लाती है, वह चौंककर मौसी जी ओर देखता है|

“क्या सोच रहे हो – परेशान हो माँ को लेकर ?” जो करीब होते है वही समझते है, बिन शब्दों के भी वे दर्द को भांप लेते है पर बेजुबान दर्द भी शब्दों का मोहताज होता है….वे उसी का कारण जानना चाहती थी|

वह पलटकर अपनी मजबूत बाँहों से उनका कन्धा थामता हुआ अपनी चिरपरिचित मुस्कान से मुस्कराता कह रहा था – “इंतजार कर रहा हूँ जब विश्वास के पुख्ता साक्ष्य अविश्वास को परस्त कर देगा |”

“मतलब !!”

“मतलब मेरी प्यारी मौसी कि माँ की रिपोर्ट्स का इंतजार है जो एम्स से आनी है जब आ जाएगी तब तो माँ को विश्वास हो जाएगा न |”

“हाँ सही कह रहे हो |” वे भी मुस्करा कर सहमति में सर हिलाती है|

अगली सुबह चिराग अतुल को ढूंढता हुआ घर के गैराज के पास आता है|

“अतुल |” चिराग अतुल को पुकारता है, उसकी ऑंखें कुछ अलग ही दृश्य देख रही थी, अतुल गार्डन में पाईप लगाए उसकी कार साफ़ करने में लगा था, चिराग की पुकार पर दौड़ता उसके पास आता है|

चिराग एक पल उसकी हालत देख हँस पड़ा, ऊपर ने नीचे पूरा पानी से भीगे उसके शरीर पर कहीं कहीं सफ़ेद झाग लगा था|

“ये क्या कर रहे हो – आज सूरज पच्छिम से कैसे निकल आया !” तिरछी हँसी उसके होठों पर खिल आई थी|

“आपकी कार साफ़ कर रहा हूँ – एकदम चमचमाँ  दूंगा आज मैं |”

“अच्छा |”

ये सुन किसी बाल सुलभ बच्चे की मुस्कान उसके चेहरे पर खिल आई थी|

“कुछ काम था मुझसे ?” अचानक उसे चिराग द्वारा बुलाया जाना याद आ गया|

“हाँ – ये बाइक की चाभी पकड़ |”

“क्यों – आपको नही चाहिए ?”

“नही – |”

“आपको संस्था नही जाना क्या ?” अतुल उस पल अपने भाई के चेहरे के अनजाने भाव पढ़ने की भरसक कोशिश करने लगा |

“नहीं अब वहां मेरी कोई जरुरत नही – मौसी जी तो आ ही गई है|”

उस पल अतुल को सच में अपने भाई के बहुत बुरा लग रहा था, जिन भावों से वह कबसे अनजाना बना था आज उसकी टीस उसके दिल में भी क्यों उतर आई, क्यों भाई की उदास आँखों की परछाई में उसे सुगंधा दिखी और उसके साथ ही उसे संजना की बड़ी तेज याद हो आई….उस पल उसे लगा जैसे उसका भाई ही नहीं वह भी किसी तट पर अकेला तनहा खड़ा है किसी की यादों में निपट अकेला खड़ा……

अतुल के हाथो को चाभी सौंपकर चिराग आगे बढ़ गया| चाभी लिए अतुल गैराज की ओर बढ़ा वहां कवर से ढंकी बाइक खड़ी थी, वह अनमना सा उसका कवर हटाता है जो उस पल जैसे नींद से जाग उठा….उस कवर के नीचे उसकी बाइक नही थी बल्कि कोई नई चमचमाँ ती बाइक खड़ी थी…उस क्षण भर में उसने झट से सब समझ लिया कि ये सरप्राइज जरुर उसके भाई की ओर से है वह तो बस ख़ुशी से उछल ही पड़ा, उस पल तक चिराग अभी पूरी तरह से वहां से गया नही था, ये देख अतुल बस दौड़ता हुआ भाई के पास गया और उसे पीछे से ही पकड़कर यूँ उसके गले लग गया, जैसे वह बचपन में अपने भाई के कभी लगा था….

चिराग को अहसास था अतुल की आकस्मिक ख़ुशी का पर हमेशा की तरह अपने चेहरे के भाव को सख्त करता उसे हलके से झिड़कता हुआ उसे अपने से दूर करता हुआ बोल पड़ा – “हट अतुल – मुझे भी गीला कर दिया पगले |”

वह पलट गया और अतुल आज अपने बालहट से उसके गले लग गया, अब चिराग भी उसे नही रोक पाया|

“अच्छा अच्छा ठीक है – देखा मैंने कहा था न कि वापस कर दूंगा तेरी बाइक |”

“थैंकयू भईया – ये तो पिछली बाइक से भी एक मॉडल ऊपर है |”

चिराग उसकी ख़ुशी देख हलके से मुस्करा उठा, बिलकुल वैसा ही जब बचपन में उसकी साईकिल टूट जाने पर वह गुस्सा दिखाता हुआ अपनी साईकिल देदेता था और चुपके से उसकी ख़ुशी देख मुस्करा उठता था|

क्रमशः…..

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