
सुगंधा एक मौन – 44
मौसी जी जैसे बिना अपने संशय का उत्तर पाए उस जगह से हिलने को बिलकुल तैयार नही थी, वह चिराग के लौटने तक अभी भी उसका इंतजार करती वही बैठी हुई थी| वापिस लौटते चिराग को भी आगे का अंदाज़ा था…वह घर के अन्दर जाने के बजाये मौसी के पास आकर बैठ जाता है|
“तो मेनेजर साहब आप खुद बताएँगे कि क्या गुल खिलाया आपने और कौन है ये लड़की ?”
मौसी जी संशय भरी नज़रो से अब उसे देखने लगी तो चिराग भी उसी तर्ज पर भोला बनता हुआ कहता है – “वही तो है – जिसकी फोटो दिखाती हुई आप कह रही थी कि बड़ी नेक प्यारी लड़की है |”
“अच्छा बच्चू – मैं जिस लड़की को नेक प्यारी कहूँगी तो उससे शादी कर लोगे क्या – और जो मैं दस लड़कियों को पसंद करती हुई यही कहूँ तो !!”
“तो थोड़ा सोचना पड़ेगा |” ये कहते मौसी का अवाक् चेहरा देख चिराग को बड़ी कसकर हँसी आ गई|
“अच्छा ये बात है और उस लड़की का क्या जिसे पहले पसंद करते थे…वो ….|”
“अरे अरे मौसी जी रुकिए कुछ और मत सोच लीजिएगा – मैं बताता हूँ आपको – |” चिराग उनके और पास चेअर खिसकाता हुआ अब मौसी के और ज्यादा सानिध्य में आता हुआ आगे कहता है – “ये वही है – सुगंधा – मेरी पहली और आखिरी पसंद – |”
“तो वो संस्था कैसे आई – क्या वो तुम्हें अचानक मिल गई या….!”
“मैंने उसे ढूंढ निकाला या वक़्त हमे बार बार मिला देता है…क्या कहूँ पर आज मैं आपसे सब कह देना चाहता हूँ – अपने मन की हर बात आपके सामने रखना चाहता हूँ फिर आप खुद ही हमाँ रे बारे में तय कर लीजिएगा – क्या करूँ चाहकर भी माँ से कुछ कह नहीं पा रहा |”
चिराग के गंभीर होते स्वर उसकी सुगंधा को लेकर गंभीरता अच्छे से प्रकट कर रहे थे इसलिए आज मौसी जी सब सुनना चाहती थी…वे मौन ही चिराग को आगे कहने की अपनी सहमति देती है|
“क्या बताऊँ – सुगंधा मुझे बारिश में धूप सी अचानक से मिल गई और शायद ये भाग्य की होनी ही थी कि दो एक मुलाकात के बाद उस भयंकर एक्सीडेंट से जब मैं सब भूल गया सिवाय उसके नाम के और होश आने के बाद इस एक नाम ने मुझे कभी चैन से बैठने नही दिया – हर एक बात मुझे उसकी याद से उसके नाम से जुडती हुई दिखती – इसी बेचैनी में मैंने उसको तलाशना शुरू किया और मुझे मिल गई – उसे देखते मुझे अपना बीता हर एक लम्हा याद आ गया – उस पल वो मेरे गुजरे पलों का जैसे आईना बन गई – मैं उस पल माँ को ये बताना चाहता था पर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था – अतुल ने जाने क्या माँ को कहा और उन्होंने मुझे उसका नाम तक न लेने की अपनी कसम खिला दी – मैं उस वक़्त बड़ी पशोपेश में पड़ गया एक तरफ उससे किया मेरा वादा था तो दूसरी ओर माँ की कसम जो अपनी जान देकर भी मैं कभी नही टूटने देता – उस दूसरे एक्सीडेंट में यही शायद माँ को भ्रम हुआ कि मैं उससे मिलने जा रहा था जबकि मैं अपने दोस्त अमित के पास जा रहा था – हाँ थोड़ा गुस्से में था इसलिए मेरा ध्यान भटका और ये एक्सीडेंट हो गया जो महज संयोग के अलावा कुछ नही था पर माँ तो इसी एक बात को लेकर अपने मन में ये भ्रम पाल बैठी कि सुगंधा मेरे लिए बद्शगुन है – क्या ऐसा हो सकता है जो मृत मन को जिला दे वह किसी के लिए भी बद्शगुन हो सकती है क्या !!” अपनी ही रौ में कहता कहता चिराग अपने प्रश्न का उत्तर तलाशने एक पल को रुकता हुआ मौसी का चेहरा ताकता रहा और वे भी जैसे सब सुनती जड़वत हो गई|
“और माँ ने तो जाने कब कैसे उसतक ये कहते हुए एक चिट्ठी भिजवा दी कि मेरी भलाई के लिए वह मुझसे ही दूर चली जाए और नादान चली भी गई चुपचाप बिना मुझे कुछ कहे |”
“क्या ये उसने तुमसे ये बात खुद कही !”
ये सुनते चिराग जैसे वक़्त की हँसी उड़ाते कह उठा – “काश कहती मुझसे पर आज तक उसने खुद मुझसे ये बात नहीं कही बल्कि जाने कैसे वो नूतन मैम को कह गई और उन्होंने मुझे ये बात बताई वरना उसके मौन का कारण तक मैं नही जान पाता |”
“नूतन मैम जिनकी बेटी है वो !” मौसी का मन जैसे प्रश्नों के मसाबो पानी से नहा उठा|
चिराग के चेहरे के हर भाव आज स्पष्ट थे, वह सच में सारा कुछ कह देना चाहता था|
“वह एक स्वाभिमाँ नी लड़की ही नहीं स्वाबलंबी भी है – उसकी माँ ने उसे बड़ी मेहनत से उसे इस मुकाम तक पहुँचाया पर अफसोस वे खुद नहीं है आज इस दुनिया में उसकी कामयाबी देखने के लिए तब उसकी यही नूतन मैम ही उसका स्वालंब बनी ताकि वह अपने पैरो पर पूरे अभिमाँ न से खड़ी हो सके – तभी वह उनका इतना सम्मान करती है – अगर मैं ये बात खुद नही जानता तो मैं भी उसे उनकी बेटी ही माँ नता |”
“ओह..फिर रुकावट किस बात की है – क्या मैं बात करूँ कल्याणी से ?”
“बात करने से क्या होगा – बात सहज स्वीकृति की है – न मैं करना चाहूँगा न ये सुगंधा को ही मंजूर है कि मैं बिना बड़ों के आशिर्वाद के अपने जीवन के नए सफ़र को शुरू करूँ – बस यही तो रुकावट है मौसी जी कि माँ के मन के वहम को कैसे दूर करूँ मैं |” चिराग का हर शब्द आज सिर्फ प्रश्न था या अपने बेरहम वक़्त से गुहार उसे खुद नही पता था|
“ओह तो सिर्फ माँ को ही नहीं प्रेयसी को भी मनाना है |”
“अगर बात सिर्फ सुगंधा को मनाने की होती तो मैं हर तरह से मना लेता उसको क्योंकि मैं जानता हूँ उसके दिल में भी बस मैं ही हूँ पर बात उसके माँ न की है और मैं चाहता हूँ कि माँ उसे मेरी जिद्द नहीं मेरे माँ न की तरह स्वीकारे |”
उस पल मौसी चिराग का चेहरा देखती रह गई, उन्हें लगा ही नहीं कि ये उनका अपना बच्चा है जो कितना दुनिया समझने लगा है, होता भी यही है माँ कभी अपने बच्चों में गंभीरता का आवरण देख ही नहीं पाती उनका बच्चा जो उनके लिए सदा दुनियावी बातों से दूर ही लगता रहता है उन्हें…..
वे चिराग की ओर झुकती उसका चेहरा हाथ से सहलाती ही अपनी आद्र आँखों से उसकी विश्वस्त आखों को देखती हुई बोली – “बच्चे सच में कितने बड़े हो जाते है – माँ समझ ही नही पाती – कल्याणी को कहाँ अहसास है कि उसका चिराग सिर्फ घर का चिराग नही हमाँ रे माँ न सम्मान का चिराग भी है |
“पर वो मुझसे हमेशा के लिए दूर जा रही है |”
“ऐसे कैसे |” मौसी जी एक दम से बरस पड़ी – “प्यार कोई मजाक है क्या जो सब छोड़ छाड़ कर चली जाएगी – ऐसे जाने देंगे क्या हम |”
अब चिराग की ऑंखें पूछ बैठी थी कैसे !!
“जब सवाल होते है तो उत्तर भी होंगे उसी तरह अगर मुश्किल है तो रास्ता भी वही कही होगा बस खोजना है हमे |”
“पर कैसे !!” व्याकुल मन झट से पूछ बैठा |
“अब तुम मुझपर छोड़ दो और अपने दिमाग के घोड़ों को आराम दो – बहुत दौड़ा लिए तुमने |” कहती अचानक मौसी जी चिराग के चेहरे से हाथ हटाती उसका कान पकड़ लेती है|
“ये क्यों मौसी जी !!”
“ये मुझे बुद्धू बनाने के लिए – उस वक़्त मैं बिचारी समझ नही पाई और संस्था सँभालने की प्रार्थना कर रही थी और मुझे क्या पता कि तुम्हारी शैतानी खोपड़ी खुद संस्था आने को लालायित थी |”
चोरी पकड़े जाने वाली दबी मुस्कान चिराग की आँखों में स्पष्ट हो आई….मौसी जी का हाथ थामे उसकी ऑंखें विश्वास की उम्मीद में उन्हें ताक रही थी, ये देखती वे धीरे से मुस्करा दी….
***
उनके बीच कुछ पल का मौन जैसे प्रमाँ ण था कि वे अपने अपने हिस्से का कह सुन चुके….पर अगले क्षण का मौन तोड़ती मौसी जी वहां से उठते हुए चिराग को पुकारती हुई पूछ उठी –
“एक चीज बताओ चिराग – क्या कल्याणी ने कभी सुगंधा को नही देखा क्योंकि संस्था में तो एक बार दोनों आमने सामने थी !!”
वे प्रश्नात्मक ऑंखें उसकी ओर उठाए थी जिससे चिराग फिर से उनके पास बैठता हुआ धीरे से कहता है – “असल में जितना मैं सुगंधा के बारे में जानता हूँ वो उसका आधा भी मेरे बारे में नही जानती – |”
“ऐसा भला क्यों ?”
“कभी उसने कुछ पूछा ही नही और न मैं बता पाया – वो बस अतुल मेरा भाई है उसी को जानती है |” चिराग हिचकिचाते हुए कह रहा था और मौसी जी औचक सुनती रही, असल में खुद को वे विश्वास नही दिला पा रही थी कि ये कैसा अनोखा प्रेम सम्बन्ध उनके सामने है जहाँ एक दूसरे को जाने बिना ही उन्होंने विश्वास का चरम छू लिया था, जहाँ एकदूसरे को पाने की कोई छीन झपट थी ही नही, एक दूसरे को पाए बगैर ही एक दूसरे का ख्याल था…ये सोचकर उनका मन प्रेम की अविरल धारा से माँ नों भीग गया…शब्द चुक गए….और ऑंखें नम हो उठी….
“कुछ ऐसे हालात बनते गए कि मैं उसकी नज़रों के सामने निम्न आयवर्ग वाला दिखता रहा…इसीलिए उसकी तरह सब मुझे सिर्फ मेनेजर ही समझते रहे…|”
“बड़ी मुश्किल से मिलता है ऐसा विश्वस्त प्रेम – अब तो मैं इसे किसी भी तरह से खोने नही दूंगी |”
उस पल मौसी के कहे एक एक शब्द से चिराग का बुझा मन ख़ुशी से नाच उठा…किसी तरह से वह खुद को जब्त किए रहा नहीं तो उसका जी चाह रहा था कि मौसी को पकड़कर ख़ुशी से नाच उठे…
मौसी चिराग के अंतर्मन को साफ़ साफ़ पढ़ पा रही थी पर फिर भी चेहरे पर गंभीरता का आवरण ओढ़े रही|
“अरे मैंने दुबारा चाय मंगाई थी – आई ही नही |”
“चाय…रुकिए मैं खुद अपने हाथों से आपके लिए चाय बना कर लाता हूँ |” चिराग यूँ झट से खड़ा हो गया माँ नों बस चाय ही चाहिए आज तो हनुमाँ न की तरह उड़कर संजीवनी भी खोज लाता वो…ये सोच कर उसका मन गुदगुदा गया|
“अच्छा एक महीने में चाय बनानी भी आ गई – हम्म लगता है जादू सर चढ़ कर बोल रहा है |” मौसी जी तिरछी मुस्कान से देखती रही और इस बार एक शर्मीली मुस्कान चिराग के चेहरे पर स्पष्ट हो आई, जिसे छुपाने वह झट से उठकर वहां से निकल गया चाय लाने…|
मौसी जी अपनी बहन के पास बैठी थी और हर बात के छोर पर अपनी बात कहना चाहती थी लेकिन कहीं कोई ऐसा छोर उनकी पकड़ में नही आया…
“कल्याणी – थोड़ा बाहर तो निकलो देखो कितना अच्छा मौसम है – यूँ खुद को कमरे में कैद किए किए खुद को क्यों बेवजह की सजा दे रही हो !”
“सजा तो दूसरों के लिए हो जाएगी – नही जीजी मैं यही रहूंगी जब तक ठीक नही हो जाती |” वे अतिरेक चिंतित स्वर में कहती रही – “पता है अपना ही हाथ छूते वहां दाने फ़ैल गए – मुझे अभी यही रहने दीजिए |” वे दयनीय भाव से कहती है और मौसी जी से आगे कुछ नही कहते बनता|
तभी बाहर से हाथों के बीच कपड़ों का एक ढेर लिए नर्स आती उसमें से कुछ कपड़े कल्याणी की ओर बढ़ा देती है| मौसी देखती है कि कल्याणी बेड पर बैठे बैठे ही अपना कपड़ा बदल रही थी और नर्स उनसे दूर खड़ी उन्हें बस देख रही थी, कल्याणी अपने देह पर कसे स्वेटर को बड़े कष्ट से उतारती हुई परेशान दिखी तो मौसी जी को नर्स की बेरुखी पर बड़ा गुस्सा आया|
“ये क्या तुम खड़ी हो – थोड़ी सहायता कर दो |” वे इशारे से उसे कल्याणी की ओर जाने को कहती है पर वह असमर्थता दिखाती अपने स्थान से नही हिलती|
“रहने दीजिए – मैं अपना काम खुद ही कर लेती हूँ |”
कल्याणी का बुझा स्वर स्पष्ट बता रहा था कि उसकी अवस्था पर नर्स का व्यव्हार भी बस औपचारिक भर था, इससे उन्हें बड़ी तेज गुस्सा आ गया|
“तुम नर्स हो और यही तिमाँ नदारी करती हो – उसे वहम है और तुम यकीन माँ ने बैठी सिर्फ दूर से ही सहायता करती हो |”
उनके चढ़ते गुस्से को विस्फारित होने से पूर्व ही कल्याणी झट से बोल उठी – “रहने दीजिए जीजी – मुझे कोई आवश्कता नही है |”
सच में वे देखती रह गई कि नर्स के औपचारिक देखरेख से वे अंतरस कितनी व्यथित थी पर कर भी या सकती थी, ऐसे पल में उनके बेटे कितने भी सौहार्द हो पर इस वक़्त किसी स्त्री की सहायता ही उन्हें चाहिए थी…|
मौसी जी निराश ही वहां से उठकर चली गई|
वे कमरे से बाहर निकली तो सामने बेचैन से चिराग की पिता मिल गए माँ नों उनकी आँखों में भी उम्मीद का कोई कतरा आस लिए खड़ा था पर मौसी जी के चेहरे पर आवंटित निराशा उन्हें भी निराश कर गई|
“आपने बात की ?”
उनके प्रश्न पर उन्होंने बस न में सर हिला दिया और आगे बढ़ गई|
“तो अब क्या सोचा है आपने ?”
“पता नही – बड़ी उपापोह की स्थिति है – कैसे और कब कहूँ कुछ समझ नही आ रहा |”
अब तक बात करते करते वे दोनों सीढियाँ उतरते डाईनिंग टेबल तक आ पहुंचे थे, जहाँ चिराग बैठा कुछ धीरे धीरे अनमना सा नाश्ता कुतर रहा था|
उसे देख मौसी जी झट से अपने चेहरे पर मुस्कान का आवरण चढ़ाती हुई चहक उठी – “अरे वाह तैयार हो गए चिराग |”
“जी |”
कहकर चिराग सर झुकाए प्लेट की ओर झुका रहा, जिससे पता नही मौसी जी को क्या सूझा वे चिराग के पिता की ओर देख कुछ इशारे में कहकर मुस्करा दी|
“जीजी – कुछ सोच रहा हूँ इनदिनों मैं |”
“क्या !!” वे अनजान बनती प्लेट अपने आगे रखती है|
“कल्याणी बहुत अकेली पड़ जाती है और आप तो यहाँ रूकती ही नही तो सोचता हूँ चिराग की शादी कर देते है |”
अचानक खाते खाते जैसे उसके गले में कुछ अटक गया, वह मुंह बनाए उनकी तरफ देखने लगता है|
पर वे उसकी तरफ ध्यान दिए बिना ही कहते रहे – “मैंने तो चिराग के लिए लड़की पसंद भी कर ली है – सोचता हूँ चट मंगनी पट ब्याह कर देते है |”
“अच्छा !” वे जानकर बेचारा मुंह बनाए बनाए चिराग की ओर देखती है जो अब मौसी की ओर देखता हुआ जैसे पूछना चाह रहा था कि क्या आपने सुगंधा के बारे में उन्हें नही बताया ??
“मैं तो कहता हूँ बस इसी महीने कर देते है आपकी वापसी से पहले ही |”
अचानक कौर चिराग के हलक में जैसे फंस गया और उसे बड़ी तेज खांसी आ गई, उसकी खांसी से अब सभी का ध्यान उसकी ओर जाता है, काकी तो आवाज सुनते झट से रसोई से गिलास में पानी लिए वहां भागी भागी आती है| वे गिलास चिराग के मुंह के पास लगा रही थी तो मौसी जी उसकी पीठ हलके से ठोकती हुई सहला रही थी|
“अचानक क्या हो गया !!”
“बस बहुत हुआ – आपके मजाक से बच्चे की जान पर बन आई |” पिता की बात पर मौसी जी हलके से झिड़कती हुई बोली तो वे कसकर मुस्करा दिए, चिराग जल्दी से गले को तर कर ऑंखें फाड़े उनकी ओर देख रहा था| अब उसे छोड़ सभी के चेहरे पर मुस्कान खिल उठी थी|
“मैं तो सुगंधा की ही बात कर रहा था – |” वे जिस तरह से चिराग की ओर देखते है उस पल उसकी ऑंखें सच में शर्माती नज़र आई..
“बेटा हम भी तुम्हारे बाप है – कुछ छुपा नहीं पाओगे – तभी कहूँ जीजी क्यों चिराग रोज टाइम पर संस्था निकल जाता था |”
वे हँसते हुए कहते रहे और चिराग के लिए अब वहां रुकना मुश्किल हो गया, अब उसके चेहरे की हैरानगी की जगह एक छुपी मुस्कान ने जगह ले ली थी जिसे छुपाने वह जल्दी से वहां से खिसक लिया| दरवाजे से निकलते वह बस अतुल से टकराने ही वाला था, एक दम से दोनों दमसाधे एक दूसरे के सामने ठहर गए|
“बेवकूफ |” हमेशा की तरह अतुल को देखते अपने हाव भाव सख्त करता उसके सर पर टीप माँ रता हुआ चिराग निकल गया|
अतुल कुछ समझ नही पाया बस हैरान चेहरे से आता अन्दर सबको धीरे धीरे मुस्कराते देख और हैरान रह जाता है|
पापा धीरे धीरे मुस्करा रहे थे, अतुल को हैरान देख मौसी को भी बड़ी तेज हंसी आ रही थी|
“क्या हुआ ?” वह सबकी ओर औचक देखने लगा|
“हुआ नही होने वाला है |”
“क्या !!”
“शादी |”
“किसकी ?”
“सोचते है तुम्हारी ही कर देते है |”
“मेरी |” अतुल ने इस अंदाज़ में रुआंसा चेहरा बना लिया जैसे अचानक एग्जामनर ने एग्जाम का पेपर उससे छीनते हुए उसके हाथ में एग्जाम का रिजल्ट थमा दिया हो| उसकी ऐसी हालत देख वहां मौजूद सभी ठहाका मारकर हंस पड़ते है| उस पल उनकी हंसी का एक कतरा चिराग की माँ तक भी जा पहुंचा जिससे वे बिना वज़ह जाने भी धीरे से मुस्करा दी|
क्रमशः……..