Kahanikacarvan

सुगंधा एक मौन – 47

सुबह होते चिराग अतुल के साथ भोपाल के लिए निकल गया क्योंकि गोवा के लिए वहीँ से सीधी फ्लाइट बुक हुई थी, निकलते वक़्त अपने घर की दरो दीवार को वह यूँ स्पर्श करता हुआ निकल रहा था माँ नों सुगंधा के लिए वह सब जगह अपना स्पर्श का अहसास छोड़ना चाहता हो, एक पल को अपनी बेवकूफी पर उसे हँसी आ गई, निकलते वक़्त अतुल का ध्यान अपने भाई के चेहरे पर आई बेमतलब की हँसी पर गया ही नहीं वह तो खुद संजना को फोन न किए जाने की कशमकश से खुद को अभी तक बाहर निकाल नही पाया था…….

रात यूँही निन्दासी, उदासी में कट ही गई, सुबह उसने खुद को एक छोटे बैग के साथ जाने को तैयार कर लिया, नूतन मैम सुबह से ही खुश थी, कारण न उसने पूछा न उन्होंने बताया, वे आज किसी काम से जल्दी कॉलेज को निकल गई और सुगंधा तैयार नीचे आई ही थी कि दरवाजे पर बजती घंटी से वह दरवाजे की ओर बढ़ती है..

दरवाजा खोलते उसके सामने कोई हाथ जोड़े खड़ा था जो मौसी जी का नाम लेता सुगंधा को साथ चलने का निवेदन करता अपने पीछे की सड़क की ओर उसका ध्यान आकृष्ट करता है जहाँ चिराग की चमचमाँ ती कार खड़ी थी….उसके आग्रह पर सुगंधा अपना बैग लेने वापस को मुड़ी ही थी कि एक अन्य कार घर के ठीक मुहाने पर आकर रूकती है…वह जबतक कुछ समझने अपनी बुद्धि के तंत्र जोड़ती उस टैक्सी से कोई निकलकर सीधा उसकी ओर तेजी से आ रहा था…

वह अवाक् देखती रह गई, वह एक बैकपैक अपने पीछे लादे अपनी भरपूर मुस्कान से अब उसे देख रहा था, सुगंधा भी उस पल उससे अपनी नज़रे नहीं हटा पाई….वह देखती है कि उसके दूसरे हाथ में एक मोबाईल था जिससे चलते चलते वह मेसेज कर रहा था..

तब तक टैक्सी वाला उसका सारा सामाँ न निकालकर घर के बाहर रखता हुआ चला गया, सुगंधा की हैरत से फैली ऑंखें हौले से मुस्कराती हुई कह उठी – “प्रतीक भईया आप !!”

“कैसी हो सुगंधा – आज अचानक पोर्ट से जहाज लगा तो छुट्टी लेकर सीधा चला आया – माँ कहाँ है ?”

“वे तो आज कॉलेज जल्दी निकल गई पर भाभी है |”

वह जबतक आगे कुछ कहती छवि आवाज सुनकर लगभग दौड़ती हुई दरवाजे तक आ पहुंची, ये उसकी तेज धौकनी सी चलती सांसे बता रही थी कि एक पल उसे प्रतीक का मोबाईल से सन्देश मिला और दूसरे ही पल वह अब उसकी नज़रो के ठीक सामने था….उस पल छवि और प्रतीक की मिलती निगाह की बेसब्री ही उनकी स्थिति साफ़ साफ़ दर्शा रही थी, सुगंधा धीरे से मुस्कराती हुई बैग लिए बाहर निकलने लगी तो प्रतीक घर के अन्दर जाने लगा…घर से निकलते पीछे मुड़कर दरवाजा बंद करती सुगंधा की नज़रों के परिदृश्य में अचानक से घर के कोने का वह टुकड़ा आ गया जहाँ बेसब्र दिल तड़पकर एक दूसरे में बरसाती नदी से गडमड समाँ  गए थे….ये इंतजार क्या प्यार को खोने नही देना ?? क्या और बेचैन कर देता है ?? उस पल न चाहते हुए भी उसके दिलोदिमाँ ग में बस चिराग का ख्याल गुमड आया…और आज पहली बार चिराग को याद करते वह शर्माती हुई मुस्करा पड़ी…..

कार विजय नगर की ओर चली थी….सुदृढ़ कालोनी में एक से बढ़कर एक घर, बंगले कतारबद्ध थे, उन्हीं में से किसी एक बंगले की ओर बढती कार अब उसके अन्दर समाँ  गई थी…..पोर्च में कार खड़ी कर ड्राईवर झट से उतरता उसकी तरफ का दरवाजा खोलता आदर से उसे बाहर आने का रास्ता देता है…ये देख सुगंधा संकुचा जाती है, वह संकुचाती हुई बाहर आकर खड़ी हुई थी कि सामने मुख्य दरवाजे से आती कनकलता जी नज़र आ गई जो हाथ में पूजा की थाली लिए घर से बाहर निकल रही थी माँ नों उसका वहां आना उन्हें पता ही न हो, वह चौंकती हुई उसकी ओर बढ़ती हुई कहती है –

“अरे वाह निशा तुम आ गई – मुझे लगा नही था कि तुम इतनी जल्दी आ जाओगी |”

इसपर बस वह अदनी सी मुस्कान से मुस्करा कर रह जाती है ये उसका स्वभाव ही था कि बहुत सारे शब्द सिर्फ उसके हाव भाव बनकर ही प्रकट होते और वह मौन ही रह जाती|

“मैं बस पूजा करके बाहर निकल ही रही थी |” कहती हुई वे थाली से रोली लेकर उसके माँ थे के बीचो बीच लगाती हुई प्यार से उसके सर पर हाथ फिराती हुई उसे अन्दर लाती है, ये उनके स्वभाव की खासीयत थी कि बहुत कुछ वे जानकर करती हुई भी अनजान बनी रह जाती….

सुगंधा उनके पीछे पीछे चलती हुई अन्दर आ जाती है, वह उसे बैठक में बैठाती हुई कहती है – “निशा तुम कुछ देर आराम करो फिर मैं अपनी छोटी बहन कल्याणी से मिलवाती हूँ|”

“आराम क्या करना – मैं घर से ही तो आ रही हूँ आंटी जी – अभी उनके पास ही चलती हूँ |”

वे मुस्करा कर उसे अब कल्याणी के कमरे की ओर ले जाने लगती है, वे साथ ही सीढियों की ओर बढ़ रही थी| सीढियों से चढ़ते एक चौड़ी दीवार जो उस घर के सदस्यों की तस्वीरों से गुलजार रहती थी उसे आज छांट दिया गया था साथ ही मौसी जी के निर्देश पर माँ के कमरे से उनके बेटों की तस्वीर को दुबारा फ्रेमिंग के नाम पर हटा दिया गया था| वे घुमाँ वदार सीढियाँ चढ़ रही थी तो बीच में चिराग के पिता मिल गए जो औचक वही ठहरे एक पल मौसी जी को तो दूसरे पल उनके पीछे सुगंधा को देखते है…वे धीरे से मुस्करा देते है|

“ये…!!” वे जानकर अनजान बनते मौसी जी से पूछते है|

“ये निशा – मैंने बताया था न |”

“ओह हाँ हाँ – तुम्हारा घर में स्वागत है बेटी |”

सुगंधा हाथ जोड़कर उन्हें नमस्ते करती है|

“निशा – ये है इस घर के माँ लिक |” मौसी अपने अंदाज में उनका तारुख कराती है|

“अरे माँ लकिन तो ये…|” अपनी बेख्याली में वे कुछ ज्यादा ही कहने वाले थे उससे पहले ही मौसी जी जल्दी से उन्हें ऑंखें दिखाकर सावधान कर देती है जिससे सुगंधा की ओर उठता हाथ वे ऊपर की ओर उठाते हुए कह उठे – “मतलब सबका माँ लिक तो एक ही है न….|” अपने ऊपर खिसियाते हुए वे मुस्कान चेहरे पर जड़े जल्दी से सीढियाँ उतर जाते है|

सुगंधा बस अनजाने भाव से उस ओर देखती रह जाती है|

वे माँ हौल को सामाँ न्य करने मुस्कराती हुई उसकी ओर मुडती हुई कहती है – “आज से कुछ ठंडी बढ़ गई है न |”

फिर एक मुस्कान उसकी सहमति बन जाती है और वह उनके पीछे पीछे चलती रहती है|

वे कल्याणी के कमरे की ओर बढ़ रही थी जिससे सुबह ही वह सुगंधा का आना बता चुकी थी इसलिए कैसे भी  उससे पहले वह नर्स को वहां से रवाना कर चुकी थी| जबकि कल्याणी को बिलकुल विश्वास नही था कि वह यहाँ सच में आ जाएगी, उन्होंने अपने तर्कों से साबित करने का प्रयास भी किया कि उस वक़्त ताव में हाँ कह दिया होगा पर इसका ये अर्थ नही कि वह सच में आ ही जाएगी….पर अब खुद को गलत साबित होते देख वे सकपका गई थी|

“कैसी हो कल्याणी – ये देखो आ गई निशा – पहचाना ?”

सुगंधा ने अपने दोनों नामों संग खुद को इतना सहज कर लिया था कि जो जिस नाम से उसे पुकारता वह दोनों नामों संग सहज बनी रहती|

कल्याणी सच में हैरान सुगंधा को देखती हुई कहती है – “हाँ संस्था में देखा था न पर यहाँ !!”

“हाँ – अब तुम्हारे संग रहेगी – आदत डाल लो |” कहती हुई वे आवाज करती हँस पड़ी और हमेशा की तरह उनकी गूढ़ बात को सब सामाँ न्य समझते रह गए…

वे उस पल सुगंधा को बड़े गौर से ऊपर से नीचे निहारती हुई सोचती हुई खुद से प्रश्न करती है कि इस प्यारी सी लड़की को अपनी परिचालिका के रूप में देखना क्या भला लगेगा ??

सुगंधा को देखते हुए कल्याणी को चुप देख मौसी जी पूछ उठी – “अरे क्या सोचने लगी कल्याणी ?”

“क्या जीजी क्यों मेरे सर पाप चढ़ा रही है – ये मेरे बच्चों जैसी ही तो है अगर इसे मुझसे रोग लग गया तो क्या इसके माँ ता पिता के सामने मैं गुनहगार नही हो जाउंगी !!”

उनकी बात सुन मौसी जी कुछ कहने को हुई उससे पहले सुगंधा उनके आगे आती कल्याणी के समीप आती हुई बोली – “आप बेफिक्र रहिए मेरे माँ ता पिटा आपको कुछ नहीं कहेंगे |”

सब सुगंधा को सुनते औचक उसे देखते रहे|

“क्योंकि अब वे है ही नही |” एक दर्द से वह अपनी बात खत्म करती है और दोनों माँ तृत्व हृदय उस पल द्रवित हो उठते है|

“ऐसा क्यों कहती हो ?” ऐसा कहती मौसी जी प्यार से सुगंधा के कंधे अपनी बाजुओ की जद में कर लेती है|

“तब तो मेरी चिंता और बढ़ जाती है |”

कल्याणी का मन सच में उसकी ओर से नम हो उठा तो सुगंधा मुस्कराती हुई उसके पास बैठती हुई कहने लगती है – “मेरे कहने का अर्थ ये है कि आप मेरी ओर से बिलकुल फ़िक्र न करे – |”

“तुम समझ नहीं रही बेटी – मुझे जो रोग हुआ है वो…|” कहती कहती वे प्रश्नात्मक नज़रों से मौसी जी की ओर  देखती है|

“मुझे आंटी जी सब बता चुकी है – अभी तो फ़िलहाल रिपोर्ट भी नही आई है और अगर ऐसा है भी तब भी सेवा रोग देखकर नही की जाती |” कहती हुई वे उनका हाथ थाम लेती है उस पल उसके स्पर्श में क्या था कि वे विरोध भी नही कर पाई बस नम आँखों से उसे देखती रह गई….

क्रमशः………

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