Kahanikacarvan

सुगंधा एक मौन – 48

इंदौर से गोवा आते आते मौसम बिलकुल ही बदल गया….हवा में नमी उतर आई पर सर्दियों वाली तो बिलकुल भी नही….दोनों भाई गोवा में पहली बार आए थे और जल्दबाजी में बिना कुछ पता करने से वे ब्लेज़र पहने थे पर एअरपोर्ट पर कदम रखते उन्हें अपनी नासमझी पर खुद में ही उलझन हो आई|

प्लेन से उतरते अपना सामाँ न लेने को जाते दोनों अपना ब्लेजर उतारने लगते है, अपने पीछे चलते अतुल पर अपनी झुंझलाहट निकालते हुए चिराग उससे कहता है – “आने से पहले पता नही कर सकता था कि यहाँ का मौसम कैसा है – तभी तो मैं तुम्हें कहता हूँ – बेवकूफ |”

चिराग की बात सुन मुंह खोले वह चिराग की ओर यूँ देखता है माँ नों उसका ध्यान उसके ब्लेजर की ओर दिला रहा हो|

इससे उखड़ते हुए चिराग बोल पड़ा – “हाँ हाँ मैंने भी पहना है – ताकि तू अकेला बेवकूफ न दिखे |”

ये सुनते अतुल मुंह लटकाए खड़ा रहता है, चिराग अपना सामाँ न पहचानते दो ट्राली बैग उसकी तरफ बढ़ाता हुआ कहता है – “ले पकड़ – अब मुझे होटल भी बुक करना है |” कहता हुआ चिराग दोनों बैग उसे सौंपकर अपने एक हाथ में ब्लेजर टांगे काला चश्मा पहने उसके आगे आगे चलता रहता है और पीछे दोनों बैग को खींचते हुए अतुल जैसे मन ही मन सोच रहा था कि काश अगले जन्म मोहे बड़ा भाई कीजियो……

सुबह से दोपहर होने तक कल्याणी के बराबर पास बनी हुई थी सुगंधा, सुबह का नाश्ता होने के बाद कल्याणी को दवाई देकर वही आराम कुर्सी पर बैठी किसी किताब को अपनी गोद में लिए कही गुम थी, कल्याणी शायद दवाई के असर से झपकी ले चुकी थी पर सुगंधा वो तो जैसे कही और ही थी, किताब के बीच रखे सूखे गुलाब को स्पर्श करते वह चिराग को याद कर रही थी साथ ही मन ही मन उससे दूर जाने की मौन इल्तिजा भी…..

कनकलता जी संस्था जा चुकी थी और पापा ऑफिस अब घर में मौजूद काकी थी जो तब से कई बार उस कमरे का चक्कर काट चुकी थी कि कोई जरुरत तो नही सुगंधा को….वे आती इशारे से उससे कुछ पूछती और उसके न में सर हिलाने पर चुपचाप चली जाती….

अब तक मनमाँ फ़िक होटल मिल जाने पर दोनों भाई एक ही रूम में थे, चिराग कही बाहर जाने को तैयार होता होता बेड पर अनमना पड़े अतुल को देखता हुआ कह रहा था – “सुबह से देख रहा हूँ कि मुंह लटकाए हुए हो – मैं कोई जबरदस्ती लाया हूँ क्या !!”

चिराग शीशे से उसे देख रहा था, अतुल भी उसकी बात सुनकर बस हाँ कहने की मुद्रा में देखने लगा तो चिराग कह उठा – “तो कौन सी बेकार जगह लाया हूँ – अच्छी जगह तो है |” फिर उसकी तरफ मुड़ता हुआ कहता है – “मैं एक मीटिंग के लिए बाहर जा रहा हूँ तब तक जो जी चाहे ऑर्डर कर माँगा कर खा लेना फिर ये मत कहना कि मैंने कुछ खाने नहीं दिया |” कहता हुआ टेबल में पड़ा एक मेन्यु कार्ड उसकी तरफ उछालता हुआ दरवाजे की ओर बढ़ने लगता है फिर अचानक जैसे कुछ याद आते वह पीछे मुड़ता हुआ फिर उसे पुकारता है – “हाँ शाम को बीच पर चलेंगे – मजा आएगा समझे |”

अपनी चिरपरिचित अकड़ में कहता चिराग रूम बंद कर चला गया और अतुल एक गहरा उच्छवास छोड़ता और भी बिस्तर पर अनमना सा पसर जाता है|

शाम की चाय सुड़कती हुई कल्याणी अपने सामने बैठी सुगंधा को बीच बीच में देख लेती| इससे पहले नर्स उनके साथ कभी नही खाती थी, वह खाने के लिए उस कमरे से बाहर जाती थी पर वे तबसे देख रही थी कि सुगंधा ने उन्हें एक पल को भी अकेला नही छोड़ा था, वह भी अपनी चाय एक एक घूंट के साथ पी रही थी|

वे उसे और जानने शब्दों के तार छेडती है –

“तुम्हारे घर में और कौन कौन है ?”

“कोई नही – |”

“ओह तो अकेली रहती हो ?”

“नहीं माँ के जाने के बाद नूतन मैम के घर पर रहती हूँ |”

“अच्छा – वे जो उस दिन मिली थी – बड़ी संभ्रांत महिला है – वे तो बिलकुल तुम्हें अपनी बेटी ही माँ नती है |”

“जी – वे बहुत अच्छी है |”

फिर कुछ पल की ख़ामोशी छा जाती है, अगली बात का छोर किसी तरह से जोड़ती वे फिर पूछती है –

“कुछ पढाई कर रही हो ?”

“जी पीएचडी पूर्ण होने वाली है – अभी फ़िलहाल नौकरी लग गई है मेरी |”

“वाह – किस कॉलेज में लगी है ?”

“पोंडिचेरी यूनिवर्सिटी में |”

“पोंडिचेरी…. “हे ईश्वर इतनी दूर – क्या तुम्हारा विषय यहाँ के कॉलेज में नहीं था – कैसे रहोगी अकेली वहां – क्या कोई रिश्तेदार है वहां ?” वे पल में परेशान हो उठी|

लेकिन सुगंधा अपने स्वाभाविक शांत बनी रही|

“जी नही होस्टल में रहूँगीं |”

“होस्टल में रहोगी अकेली !” वे कप पकडे पकडे हैरान उसका चेहरा देखती रही जहाँ न कोई शिकायत थी न पाने की उमंग….

तभी अचानक कमरे में चिराग के पिता और पीछे पीछे कनकलता जी प्रवेश करते हुए कल्याणी की ओर बढ़ रहे थे, उनकी पुकार पर वह औचक उनकी ओर देखती है उसके हाथ में कोई कागज लहलहा रहा था|

“कल्याणी जी खुशखबरी है |”

वे जरुरत से कहीं ज्यादा खुश थे और कल्याणी आश्चर्य से उनकी ओर देख रही थी|

“ये देखिए आपकी रिपोर्ट आ गई – आपको कोई सिरोसिस विरोसिस जैसा कुछ भी नहीं है – बस कोई एलर्जी हुआ है |”

“क्या सच में !!” अब खुश होती वे भी पूछ बैठी|

“और क्या मैं कोई झूठ बोल रहा हूँ – एम्स की रिपोर्ट है – अब तो अपने मन से भ्रम निकाल दीजिए |”

“देखा कल्याणी – सब समझाते थे पर तुम किसी की नहीं सुनती – सच को अच्छे से ऑंखें खोलकर देखो अब तो अपना भ्रम दूर कर लो |” आगे आती अब कनकलता जी कह रही थी – “निशा तुम तो हमाँ रे लिए बहुत लकी हो – दो बार कल्याणी की रिपोर्ट कभी बदल गई तो कभी खो गई पर आज तुम्हारा गृहप्रवेश हुआ और ये खुशखबरी आई |”

सुगंधा बस हलके से मुस्करा दी पर कल्याणी तो सच में बड़ी खुश होती हुई बोली – “सच कहती है आप जीजी – अब तो खुद जाकर मंदिर में प्रसाद चढ़ाउंगी |”

“हाँ हाँ क्यों नही – साथ में निशा को भी ले जाना – क्या पता इसकी भी कोई मुराद पूरी हो जाए |” वे बातों के गुच्छे यूँही छोडती रही और मुस्कान सबके चेहरे पर चमकती रही….

चिराग शाम को आया तो अतुल उसे वैसा ही बेड पर पड़ा हुआ मिला उसने देखा कि मेन्यु कार्ड भी यूँही पड़ा था और खाने पीने का कोई नामोनिशान नही था तो वह उसकी ओर से कुछ डर गया और सीधा उसके पास आता उसका माँ था छूकर देखता हुआ बोलता है – “कुछ भी नही हुआ तुम्हें – फिर कुछ खाया क्यों नही – क्या पसंद का नही था तो कहीं और निकलकर चला जाता |”

चिराग के छूते वह अनमनी नींद से उठता हुआ उसकी ओर देखने लगा|

“अच्छा – चलो – बाहर चलते है – अच्छा लगेगा |”

चिराग की बात कभी इंकार ही नहीं की उसने, मन नही था फिर भी बाहर जाने को तैयार हो गया| अगले ही कुछ पल में वे किसी बड़े फास्टफूडसेंटर में थे और चिराग अतुल की पसंद की चीजे ऑर्डर कर रहा था|

अगले कुछ क्षण में मेज खाने के सामाँ न से सज जाती है पर हमेशा की तरह खाने पर टूट पड़ने वाला अतुल आज सभ्य बना बस खाने को घूर रहा था, ये देख चिराग हैरत से उसकी ओर देखता हुआ पूछता है –

“क्या हुआ – सब तुम्हारी ही पसंद का तो है – खाओ |”

हुक्म सुनता वह बस धीरे धीरे खाने को निगलने लगा|

“बस दो एक दिन की बात तो है – तुम तो ऐसे रियक्ट कर रहे हो जैसे घर से स्कूल लाया हूँ मैं – अभी देखना समुद्र को देखकर कितना अच्छा लगेगा – फिर वहां से जाने का मन नही करेगा|” वह बच्चों की तरह उसे बहला रहा था और अतुल हाँ में सर हिलाता बस खाना गटक रहा था|

समुद्र का आकर्षण किसी नन्हे बच्चे के हाथ में ठहरी चमकीली वस्तु की तरह था….समझ भलेही न आए पर उसके हाथ से वह वस्तु छूटती बिलकुल नही है…प्राकृतिक नजारों के बीच नारियल के झुरमुट से घिरे एक शांत बीच की चिराग को तलाश थी पर सर्दियों में यहाँ का खुशनुमाँ  मौसम होने से ये पीक सीजन था इसलिए हर कहीं भीड़भाड़ मौजूद थी…फिर आखिर कैडोलिम बीच चिराग ने चुन लिया था….यूँ तो ढेरों बीच थे पर शांत बीच पर समय बिताने की इच्छा से चिराग इस बीच पर आया..जो लम्बाई में लम्बा होने से जिससे और बीचों की अपेक्षा यहाँ लोग दूर दूर ही नज़र आ रहे थे…

क्रमशः……..

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