
सुगंधा एक मौन – 6
इस भरी दुपहरी चिराग के बाहर निकलते दिशा की पुकार उस घर में गूंज उठी तो माँ झट से बाहर आवाज़ की ओर दौड़ी चली आई, दिशा उन्हें सारी बात जल्दी जल्दी समझा रही थी, जब तक वे बात समझती चिराग बाहर की ओर तेज़ी से निकल गया| मुख्य गेट तक पहुँचते ड्राईवर मामला समझते झट से कार लेकर उसके सामने लेकर खड़ा हो जाता है, कार में बैठते उसके निर्देश पर ड्राईवर अब कार तेज़ी से आगे रास्ते की ओर बढ़ा लेता है|
माँ और दिशा कुछ नहीं कर पाती लेकिन चिराग को ड्राईवर के साथ जाते देख उसकी सुरक्षा का उन्हें कुछ सुकून था, अब वे दिशा की ओर देखती है जो उदास खड़ी अभी भी उस ओर निहार रही थी जहाँ से निकलकर चिराग गया था|
ड्राईवर रास्ते भर बस चिराग के निर्देश का पालन करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था, कुछ समय बाद वे किसी इंटर कॉलेज के बाहर खड़े थे, कार से निकलकर चिराग किसी फोन ब्रूथ से एक कॉल लगाता है| उधर से अमित फोन उठाता है| चिराग उसे तुरंत बाहर बुलाता है, पर अपनी क्लास लेता अमित अपनी असमर्थता जताता है तो चिराग एक दम से उसे धमकी देने में उतर आता है|
“अरे यार समझ न नौकरी है मेरी – शाम को मिलते है फिर जो चाहे करा लेना |” अमित अपने आस पास देखता हुआ उससे निवेदन करता है|
लेकिन चिराग की दीवानगी कहाँ कुछ सुनने को तैयार थी – “अभी आ जल्दी नहीं तो मैं अन्दर आता हूँ |”
अमित के पास कोई रास्ता नहीं बचता|
“ओके ओके वही रुक मैं आता हूँ किसी तरह से |”
अमित किसी तरह से बहाना बनाता कॉलेज से फारिग़ होता बाहर आते चिराग पर बरस पड़ता है – “अगर मेरी नौकरी को कुछ हुआ न तो देखना अपनी बीवी बच्चे के साथ तेरे घर धरना देने आ जाऊंगा|”
“आ जाना – पर अभी अपनी बाइक ला – हमे तुरंत कही चलना है|”
अमित अब सारा माजरा अपनी आँखों से देख कर समझने की कोशिश करता है कि उसके आते चिराग अपनी कार भेज चुका था और अब उसे कही जाने की कुछ ज्यादा ही जल्दी थी इसलिए चिराग की बात मानने के अलावा उसके पास कोई रास्ता नही बचा तो वह अपनी बाइक लाने चला गया|
कुछ समय बाद चिराग के बताए रास्ते पर चलते वे किसी शॉप के सामने रुकते है|
“अब यहाँ क्या है ?” चिराग के उतरते अमित उसकी तरफ भौं उचकाते हुए पूछता है|
चिराग उसे कुछ बताने से पहले अपनी पॉकेट से एक फ्रेगरेंस की बोटल निकाल कर दिखाते हुए कहता है – “ये देखो ये फ्रेगरेंस |”
“हाँ तो इसमें क्या ख़ास बात है ?” अमित को बहुत जल्दी थी|
“तुम्हें तो पता ही होगा कि मुझे हमेशा नये नये फ्रेगरेंस लगाने का कितना शौक था – मैं तो भूल ही बैठा था ये बात पर इस बोटल के सामने आते मुझे ये बात अच्छे से याद आ गई – और साथ ही ये दुकान भी जहाँ से हमेशा मैं इसकी खरीददारी करता था|”
अमित चिराग की बात सुनता हुआ बाइक से उतर जाता है|
“हाँ ये तो सच है पर इतनी सी बात बताने के लिए तुम मुझे यहाँ लाए हो ?”
“अमित ये एक फ्रेगरेंस मुझे सुगंधा ने गिफ्ट किया था|”
“यार फिर वही नाम |” अमित बुरी तरह से झेलता हुआ कह उठा|
“अरे सुन तो यार कम से ये तो सोच अगर कोई लड़की किसी को फ्रेगरेंस गिफ्ट कर रही है तो वह उसके लिए कितना ख़ास होगा – समझ तो मेरी बात – इससे जुडी मुझे एक घटना की भी याद आ गई – तुम उस तिराहे को देख रहे हो|” एक दिशा की ओर अपनी उंगली से दिखाते हुए कहता है – “वही से वह अपने हाथ में मेरे लिए गिफ्ट लिए खड़ी थी और मैं उस ओर से आ रहा था |” उसके विपरीत दिशा की ओर दिखाते हुए कहता रहा – “तभी मेरे सामने उसका पर्स छीन कर दो गुंडे भागे – वे दोनों अपनी जल्दबाजी में विपरीत दिशा की ओर भागे उनमे से एक को मैंने दौड़ कर पकड़ा और पुलिस के हवाले कर दिया – और वो वक़्त भी मुझे याद है होली के आस पास का वक़्त था – यार अमित अगर हम यही के थाने में उस रिपोर्ट को निकलवा ले तो हो सकता ही सुगंधा का कुछ और क्लू मिल जाए |”
“वाह मेरे यार उस लड़की ने सच में तेरे दिमाग का फियुज़ उड़ा रखा है जो बात तुम इतनी आसानी से कह रहे है वो बात इतनी आसान है क्या !!” अमित चिराग को घूरते हुए कहता है|
चिराग भी खामोश होता अपने होंठ चबाने लगता है|
“अभी चलो हम कही और चल कर बात करते है|
चिराग अब उसकी बात मानता अमित के बाइक स्टार्ट करते चुपचाप पीछे बैठ जाता है| अब किसी सुनसान जगह खड़े अमित उसके कंधे को अपने दोनों हाथों से थामे कह रहा था – “चल तेरी दोस्ती के नाम – अब बोल करना क्या है – |”
अमित की बात सुन चिराग की आँखों में चमक आ जाती है|
“यार के लिए उस मोहतरमा को ढूंढ कर रहेंगे – अब बताओ कि करना क्या है ?”
दोनों दोस्त तय करते है कि किसी तरह से उन्हें थाने जाकर उस डेट की रिपोर्ट निकलवानी होगी पर कैसे यही सोचते विचारते वे थाने से कुछ दूर खड़े वही से उस थाने के आस पास की गतिविधि देख रहे थे| तभी अचानक से चिराग अमित से उसका मोबाईल मागता वहीँ से खड़ा ज़ूम करता हुआ दो तीन तस्वीर खीँचता हुआ वीडियो बना लेता है| उसे ऐसा करते देख अनबूझा सा अमित खड़ा रह जाता है पर चिराग अमित को कुछ कहने के बजाए उसका मोबाईल अपनी पॉकेट के हवाले करता हुआ अपनी नज़रों के सामने दिखती एक पान की दूकान की ओर बढ़ जाता है| जहाँ थाने का मुंशी कुछ नोट चुपचाप अपनी पॉकेट के हवाले करता अब पान की दुकान के पास खड़ा मुंह में पान दबाए कुछ बतोला कर रहा था|
चिराग उसके पास पहुँचकर दूसरों की नज़रो से छुपता हुआ उसकी तरफ झुकते हुए धीरे से मोबाईल का शॉट लिया विडियो उसके सामने चला देता है जिसमे वह किसी से कुछ रूपए ऐठते हुए दिखाई दे रहा था| अचानक पान की पीक बाहर थूकने के बजाए उलटे उसके गले के नीचे उतर जाती है जिससे उसे खांसी आ जाती है|
फिर इशारे समझते वह चिराग के साथ कुछ किनारे आता हुआ अपना पान से भरा मुंह थोड़ा तिरछा करते हुए लगभग घिघियाते हुए पूछता है – “ये विडिओ काहे लियो हो भईया –?”
“देखिये ये वीडियो मैं अभी डिलीट कर दूंगा बस मेरा एक काम कर दीजिए |”
वह आँख झपकाते हुए चिराग का चेहरा देखता हुआ फिर पूछता है – “कईसा काम भईया ?”
“दो साल पहले होली के किसी बाद के दिन में सिटी कॉलेज के पास तिराहे में एक लड़की का पर्स किसी गुंडे ने छीना था और उसे पुलिस के हवाले किया गया था – बस आप किसी तरह से उसमें लिखा उस लड़की का एड्रेस मुझे ला दीजिए |”
चिराग की बात सुन मुंशी दो पल तक अपना एक तरफ किए मुंह खड़ा रहा फिर धीरे से पूछता है – “कोई झोल तो नही भईया – देखो ये पैसे तुम्ही रख लो |” ये कहते हुए वह सच में पैसे निकालने लगता है तो चिराग उसे रोकते हुए कहता है – “तरीका मेरा गलत है पर ये पता लगना बहुत जरुरी है बस आप ये समझ लीजिए कि किसी के जीवन मरण का प्रश्न है|”
शायद वह चिराग की बात समझ गया या उसे उस वीडियो का डर था, आखिर वह दो दिन की मोहलत मागता वापस चल देता है और तबसे दूर से ही सारा नज़ारा देखते अमित की खोपड़ी बुरी तरह से घूम गई थी, चिराग के आते वह एकदम से उसकी पीठ ठोकते हुए बस इतना ही कह पाता है – “मान गए यार – तभी तो किसी शायर ने कहा है कि ये इश्क नही आसां बस इतना समझ लीजिए एक आग का दरिया है और डूब के जाना है |”
दोनों की हँसी एक सार हो उठी|
आखिर तय समय पर दो दिन बाद वे दोनों निश्चित जगह पर मुंशी से मिलते है|
“देखो भईया ऐसा है हमने समझ लो अपनी जान पर खेलकर ये पता लाए है|”
“अरे आप निश्चिन्त रहिए – आपका वीडियो मैं डिलीट कर चुका हूँ – आप बस पता दीजिए |”
“अच्छा |” उसके मुंह से अच्छा ऐसा निकला जैसे उसे लगा कि जब वीडियो डिलीट हो गया तो फिर काहे हम मेहनत किए, ये सोच एक पल चिराग का मन घबरा गया पर मुंशी शायद अपने वादे का पक्का था|
“ये लो भईया यही पता लिखा था उसमे बस – |”
झट से उसके हाथों में कागज पकड़ा कर वह उलटे पैर भाग लिया| अब दोनों उस कागज को देख एक दूसरे का मुंह देख रहे थे क्योंकि उसमें किसी लड़की का पता नही था बल्कि उस गुंडे का पता था|
“अब – अब क्या करना है और प्लीज ये मत कहना कि हमे उस गुंडे के पास जाना पड़ेगा |”
“तो पता कैसे चलेगा ?”
जितने साधारण तरीके से चिराग कह गया उससे अमित का शरीफ मन कई गज ऊपर उछल गया| अब आगे की सारी पुख्ता तैयारी कर के आया चिराग उसे अपनी शर्ट अन्दर पहने एक दूसरी शर्ट दिखाता है जिसे देख एक बार फिर अमित चौंक जाता है|
चिराग अन्दर खाकी रंग की पुलिस इंस्पेक्टर की शर्ट पहने था फिर उसकी खाकी रंग की पैंट देखता उसकी सारी तैयारी देख वह बिदक उठता है – “अबे करने क्या जा रहा है – देख अभी अभी मेरी पीएचडी एनरोलड हुई है और मैं जेल में उसे कतई पूरी नहीं करना चाहता |”
उसकी बात पर चिराग बस मुस्करा कर उसकी बाइक के पीछे बैठ उसे रास्ता बताता हुआ पूरी तरह से रिलेक्स बना रहता है|
मॉल रोड के रास्ते निकलते सहसा चिराग की नज़र अतुल पर पड़ती है तो आवाज़ देता वह अमित को वही रोक देता है|
“ये अतुल क्या कर रहा है यहाँ ?”
बाइक से उतरते वह सड़क के पार अतुल को अकेला खड़ा पाता है तो झट से उस ओर चल देता है अमित उसे रोकता ही रह जाता है| अमित चिराग का स्वभाव जानता था कि एक बार कुछ ठान लेने के बाद वह किसी की नही सुनता था|
चिराग देखता है अतुल वहां अकेला नहीं था उसके साथ एक लड़की और एक लड़का था और वे बेफिक्री से खड़े हँस रहे थे|
“अतुल – |” आवाज़ की तेज़ गर्म सलांखे उसके कानो तक सीधी उतरी और वह आवाज़ की दिशा की ओर देखने लगा, चिराग अब ठीक उसके सामने था|
“कॉलेज के टाइम पर तुम यहाँ क्या कर रहे हो ?”
अतुल सकपका गया, साथ में खड़े उसके दोस्त दो कदम पीछे हो लिए|
“बोलो !!”
“पेन खरीदने आया था – |”एक साँस में वह उगल बैठा कि दूसरी ओर से जयंत और अंकिता एक दूसरे का हाथ थामे चिराग की उपस्थिति से अनभिग्ज्ञ हँसते हुए अतुल के पास आते कह रहे थे –
“अतुल तुम इधर क्यों रुके हो – चलो न आरव उधर वेट कर -|” आखिरी शब्द बोलते चिराग की घूरती आँखों से नज़र मिलते जयंत के शब्दों को जैसे लकवा मार गया|
“हाँ – तुम्हारा क्या चल रहा है – तुम क्या खरीदने आए हो यहाँ ?”
मामले को थोड़ा समझते अब वह घिग्गी बंधे अतुल की ओर देखता है जो अपनी आँखों से धीरे से इशारा कर अपनी शर्ट के सामने की पॉकेट पर दिखते पेन की ओर इशारा करता है जिसे देख अपनी बुद्धि का अत्यधिक प्रयोग करते वह झट से बोल पड़ता है –
“शर्ट – हाँ शर्ट खरीदने आए थे हम यहाँ |”
जयंत की बात सुन अतुल बस अपना सर पीटने ही वाला था पर उनकी हालात देख चिराग की अन्दर से हँसी फूट रही थी पर अपनी हँसी को अन्दर से जब्त करते वह देखता है कि अतुल का एक और दोस्त अपने दोनों हाथों में ढेर सारे चिप्स के पैकेट समेटे ख़ुशी ख़ुशी अपने दोस्तों को पुकारता हुआ वहां चला आ रहा था –
“यार देखो इन चिप्स के साथ मुझे ये स्टीकर फ्री मिले -!!”
अब सब वहां खड़े चिप्स के लदे आरवको देखते तो कभी चिराग को जो उनको अपने भरसक सख्त अंदाज से देख रहा था| अब अपनी हँसी पर और काबू रखना जब चिराग के लिए मुश्किल हो गया तो बहुत तेज़ आवाज़ में वह कहता है – “ अच्छा तो ये करने आए हो अपना अपना क्लास बंक करके – चुपचाप से कॉलेज जाओ और दुबारा फिर मुझे इधर उधर घूमते नज़र मत आना |” कहकर तुरंत पीछे की ओर पलटते धीरे धीरे हँसते हुए अमित की ओर जाने लगता है|
और यहाँ खड़े दोस्त अतुल को अपनी खा जाने वाली आँखों से देख रहे थे, अब अतुल को पता था इसका खामियाजा उसे सबके लिए अपने पैसों से मूवी टिकट खरीदकर चुकाना पड़ेगा|
“खामखाँ उसकी जान लेते रहते हो – क्या मिला ये करके – खुद भूल गया अपने कॉलेज के दिन |” अमित दूर खड़ा ही सारा माज़रा समझते हुए धीरे धीरे हँस रहा था|
“बड़ा भाई हूँ उसका |” बाइक के पीछे बैठता हुआ चिराग बोला|
“हाँ तभी कुछ ज्यादा ही भाईगिरी दिखाते रहते हो|” अमित बाइक स्टार्ट करते अतुल की बेचारगी पर फिर हँस दिया|
कुछ ही पल बाद कई रास्तो से गुज़रते, गली गली घुसते वे किसी झोपडपट्टी के पास खड़े थे| अमित को उसकी बताई निश्चित जगह खड़ा करके चिराग अकेला ही अन्दर जाने लगता है तो अमित उसे रोकने लगता है पर जल्द ही उसे महसूस होता है कि चिराग की दीवानगी अब किसी के रोके नही रुकने वाली, वह उसके जाते वही उसके आने का इंतज़ार करता रहता है|
चिराग जल्दी से ऊपर की शर्ट अमित को थमाँ कर अब किसी पुलिस वाले की तरह दिख रहा था, इस ड्रेस में वह तनता हुआ उस झोपडपट्टी की ओर बढ़ने लगता है किसी भी रोक टोक के बिना|
अगले ही पल वह उस गुंडे के घर के बाहर खड़ा था, और दो चार बार उसका दरवाज़ा खटखटाने के बाद एक गुंडा जैसा आदमी तनता हुआ दरवाजे पर आते ही सामने वर्दीधारी को देख एक ही पल में उसकी अकड़ी गर्दन ढलक जाती है और वह उसके सामने हाथ जोड़ लेता है|
“दाता आप यहाँ कैसे ?”
“देख तू ही गुड्डू ढक्कन है ?”
‘हाँ – हाँ – म – मैं ही हूँ – मैंने कुछ नहीं किया मैं कल उस मॉल में गया भी नही |”
उसकी हक्बकाहट से चिराग का हौसला बढ़ता है , वह जोर से चिल्लाता हुआ बोलता है – “मुझे सब पता है – और मैं तुझे बचा भी सकता हूँ अगर तुम एक बात बता दो !”
“हाँ हाँ पूछिए |” उसे भी लगता है ताकि कुछ रास्ता आसान हो जाए|
“देख दो साल पहले होली के किसी दिन बाद सिटी कॉलेज के पास के तिराहे पर तुमने किसी लड़की का पर्स छीना था – मुझे उसके बारे में बताओ क्या याद है तुम्हें ?”
चिराग की बात सुन उसका दिमाग एकदम से घूम गया पर वर्दी से कौन बहस करे तो बड़ी जोर लगाकर जो भी याद आया वह बोल पड़ा – “देखिए साहब इतना पुराना तो ठीक से याद नहीं पर हाँ पर्स तो लड़की को वापस कर दिया था क्योंकि अपन लड़का लड़की के लफड़े में नहीं फसना चाहता था और हाँ उस लड़की को देखा नही था ठीक से – लेकिन वो लड़का जो मुझे पकड़वाया था वो कुछ कुछ आप जैसा — |” वह कहते कहते सच में चिराग के चेहरे को गौर से देखने लगा फिर उसके सीने की झुकी नेम प्लेट को पढ़ने की कोशिश करने लगा कि तभी उसके झोपड़े के अन्दर से किसी पुकार पर वह अपने पीछे मुड़कर उसे रुकने को कहकर अपने आगे देखता है तो देखता रह जाता है, सामने खड़ा व्यक्ति किसी भूत सा वहां से गायब था, वह सर खुजाता अपनी झोपडी के अन्दर आ जाता है|
चिराग अपनी भरपूर ताकत से भागता हुआ बाइक तक आता झट से अपनी शर्ट ऊपर से पहनता अमित को बाइक आगे निकाल ले जाने का इशारा करता हुआ कहता रहता है – “इतनी मेहनत का कुछ फायदा नहीं हुआ – कुछ पता नही चला सुगंधा का – उफ़ मुझे आखिर कब याद आएगा उसके बारे सब – आखिर कब ??”
अमित बाइक बढ़ाते बढ़ाते यूँ खामोश था मानों मन ही मन कोई प्रार्थना कर रहा हो|
क्रमशः……………..
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