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सुगंधा एक मौन – 50

काकी दो एक बार कांच की खिड़की के पार से देख आई थी कि सुगंधा अभी तक सोई नही थी, कभी उठकर कल्याणी को ठीक से कम्बल ओढा देती, कभी टहलती हुई किताब पढने लगती…कभी मेज पर की दवाई ठीक से रखती हुई मेज पर का खाली गिलास पानी से भरने लगती…ये देख अन्दर न जाकर काकी कनकलता मौसी के पास आती है जो बस सोने जाने की तैयारी कर ही रही थी..

एक आहट पर उनका ध्यान काकी पर जाता है |

“इतनी रात हो गई है और सुगंधा बिटिया अभी तक नही सोई है |”

“अच्छा !”

“कितनी फ़िक्र है उसकी आँखों में बिलकुल हमाँ रे चिराग बेटा जैसी है |”

“हाँ इसीलिए तो कहते है ऊपर वाला ही चुनकर जोड़ी बनाता है |”

“शाम को मैं कितना खाने की पसंद के बारे में पूछती रही पर हर बार चिराग बेटा जैसा उत्तर कि खाने की कोई पसंद नही – सब खा लेती है |”

“बेचारा अतुल इन दोनों के बीच तो बेचारा भूखा ही रह जाएगा |” कहकर मौसी हँस पड़ती है|

“सच ही है मौसी जी |”

:मौसी जी – मैं तुम्हारी कब से मौसी हो गई काकी |” चेहरे पर बनावटी गुस्सा लाती हुई कहती है |

“मैं भी तो आपसे छोटी हूँ तो आपकी काकी कैसे ?” वे भी उसी अंदाज में कह उठी तो मौसी जी मुस्करा उठी|

“चलो मैं जग मौसी सही और तुम जग काकी –|” ये कुछ अच्छा होने की उम्मीद की ख़ुशी थी जो हर बात से झलक रही थी|

“अच्छा मैं देखकर आती हूँ सुगंधा को |” कहती हुई मौसी जी कमरे से बाहर निकल गई|

मौसी जी का कमरा नीचे बैठक के पास था अब वे सीढियाँ चढ़ती हुई कल्याणी के कमरे की ओर आ रही थी| वे अभी कमरे में पहुंची ही थी कि दरवाजे के पास की कांच की खिड़की से वे अन्दर का दृश्य देखती हुई वही ठहर जाती है| कल्याणी चैन की नींद सो रही थी तो सुगंधा आराम कुर्सी पर ही बैठी बैठी सो गई थी और कमरे में मौजूद चिराग के पिता उसे धीरे से कम्बल ओढा कर कमरे से बाहर निकल रहे थे, बाहर निकलते वे मौसी जी को देख उन्हें शांत रहने का संकेत करते कमरे का दरवाजा अहिस्ते से बंद कर वे गलियारे की ओर बढ़ जाते है| अब कमरे से दूर निकलकर वे गलियारे के उस हिस्से में थे जहाँ के एकांत में वे आपस में बात कर सकते थे|

“मुझे फ़िक्र हो रही थी सुगंधा की – सोचा था उसे कमरे में जाने का बोल दूँ पर उसे इतना शांत सोता देख उठाने की हिम्मत नही हुई |”

मौसी जी मुस्करा रही थी|

अचानक वे मौसी के आगे अपने दोनों हाथ जोड़ लेते है, मौसी जी उस पल अवाक् रह जाती है|

“आपका कैसे शुक्रिया करूँ जीजी – बता नही सकता कितना दुविधा में था मैं – एक तरफ कल्याणी जी की जिद्द तो दूसरी तरफ बेटे का उदास चेहरा – कुछ समझ ही नही पा रहा था कि क्या करूँ मैं – आपने तो चुटकियों में सब हल कर दिया – इस परिवार को मुंहमाँ गी खुशियाँ दे दी आपने |”

वे उनके जुड़े हाथों पर अपने हाथ रखती हुई कहने लगी – “मैंने क्या किया – कुछ नही – बस दोनों का सामना करा दिया – बाकि ईश्वर की माँ या वो ही जाने आगे क्या होगा |”

मौसी जी के चेहरे पर चिरपरिचित मुस्कान थी और वे बस गद्गद् हुए जा रहे थे|

सुबह उठते ही कल्याणी अपनी नज़रों के सामने की कुर्सी पर सुगंधा को सोया देख चौंककर उठ बैठी, उस पल की आहट से सुगंधा की भी नींद टूट गई और वह उनकी ओर देखने लगी जो बेहद परेशान होती हुई उसकी ओर देखती हुई कह रही थी –

“तुम यहाँ रात भर ऐसे सोती रही – हे ईश्वर – रुको अभी पूछती हूँ मैं – क्यों किसी ने कमरा नही बताया तुम्हे !” वे हडबडाती हुई नौकर को आवाज लगाने उठकर बैठ ही जाती है, ये देख सुगंधा धीरे से कहने लगती है –

“इसमें किसी की गलती नही है – मैं ही नही गई |”

“क्यों !!”

“मुझे लगा रात में आपको कोई जरुरत हुई तो आप कैसे आवाज देंगी फिर मुझे तो देर रात पढ़ते पढ़ते ऐसे ही सोने की आदत है |”

“ऐसे कुर्सी में भला कोई कैसे सोता है – अगर मैं तुम्हारी माँ होती तो इस बात पर तुम्हें बहुत डांटती – रात को बहुत शांत मन से सही तरीके से सोना चाहिए – ये हमाँ री अच्छी सेहत के लिए हमाँ री शारीरिक जरुरत है |”

सुगंधा बस धीरे से सर झुकाती होंठों के किनारे दांतों से दबाने लगती है|

ये देख उन्हें लगा कि शायद कुछ जरुरत से ज्यादा ही उन्होंने कह दिया तो अपना अगला स्वर मध्यम करती हुई कहती है – “बुरा मत माँ नना बेटी पर माँ का दिल तो ऐसा ही होता है बच्चों की चिंता करने पर भी उन्हें ही डांटता है|”

“जी मैं आपकी बात से नही बल्कि ये सोचकर शर्मिंदा हूँ कि मेरे कारण उठते ही आपका मूड ख़राब हो गया|”

इस बात पर वे हलके से मुस्करा दी|

“हर दम दूसरों की ही चिंता करती रहती हो या कभी खुद की भी करती हो|” वे उठकर उसके पास आती उसके सर पर हाथ फेरती हुई कह रही थी – “अच्छा अब मेरी एक बात माँ नोगी अभी तुम कमरे में जाओ थोडा कमर सीधी करो तब आना नहीं तो सच में मुझे बहुत बुरा लगेगा |”

सुगंधा कुछ नही कहती बस उठकर बाहर निकलने लगती है, उसके जाने तक कल्याणी जी भी बस एकटक उसकी ओर देखती रही, उस अधखुले दरवाजे के पार वह पूरी तरह से जा चुकी तब वे पुनः बिस्तर पर आकर बैठी ही थी कि चिराग के पिता का उस कमरे में आगमन हुआ|

वे कल्याणी के पास बैठते हुए उनकी आँखों में देख रहे थे|

“कैसी है आप – अब तो कुछ गलत सलत नही सोच रही आप !”

“नही जी – अब मैं बिलकुल ठीक हूँ बल्कि लगता है दाने भी कम हो रहे है |”

“यही तो – मन एक गहरी गुफा है जिसके अन्दर क्या छुपा है कोई नही जानता – एक ग़लतफ़हमी दूसरों का ही नही पहले खुद का मन कलुषित कर देती है – मन साफ़ तो त्वचा साफ़ |” कहकर वे ज्योंही हँसे उनके चेहरे पर भी हँसी दौड़ गई|

“अच्छा अब बताईए आज के दिन आपको क्या करना है – मंदिर जाना है !”

“हाँ जी – सच में सबसे पहले मंदिर जाउंगी |”

“ठीक है – करा देते है व्यवस्था और बताईए |”

पति के मनुहार से निहाल तो वे हमेशा ही हो उठती थी, इससे मुस्कराती वह कुछ संकुचाती हुई पूछती है – “अच्छा जी एक बात पूछु आपसे – आपको निशा कैसी लगती है ?”

उस पल उन्हें अंदाजा भी नही था कि जीजी की दवाई का असर इतनी जल्दी हो जाएगा फिर किसी तरह अपने भावों पर नियंत्रण करते हुए कहते है – “कैसी मतलब – अच्छी लड़की है – पूरे  मन से सेवा की आपकी अब हमाँ रा भी फर्ज है कि उसे उसके घर पहुंचवा दे |”

वे औचक उनका चेहरा देखती रही कि क्या पूछा और क्या जवाब दे रहे है| कल्याणी जी को खामोश देख वे जल्दी से आगे कहते है – “ये सब छोड़िए – अब अपने बेटे के बारे में सोचना शुरू करिए – मैं तो कहता हूँ लगे हाथों आज भगवान से उसके लिए एक अच्छी लड़की माँ ग ही डालिए |”

“वो तो मैं भगवन से मनाती ही हूँ पर कर्म तो इंसान को ही करने होंगे न – ढूंढने का प्रयास हमे ही तो करना होगा – आस पास देखना पड़ेगा |”

“हाँ कोशिश तो हमे ही करनी होगी – ऐसा करते है अख़बार में निकलवा देते है – तब और भी अच्छे अच्छे रिश्ते आएँगे |”

“ओहो आप समझ क्यों नही रहे |” कल्याणी आखिर जिस ओर संकेत कर रही थी वे उतने ही बेखबर बने जा रहे थे जिससे वह कुछ झुंझला उठी|

“समझ गया मैं – देखो बहुत सारे रिश्ते आएँगे तभी तो उनमे से कोई एक अच्छा निकालेंगे हम – मैं समझता हूँ आने वाली घर की बड़ी बहु होगी तो उसे जिम्मेदार होना चाहिए – इसीलिए चाहता हूँ आप चुने उसे – क्योंकि कहते है न सास बहु का रिश्ता अच्छा हो तो समझो घर स्वर्ग हो गया|”

वे उनकी बात पर बस मुस्करा कर रह गई|

“आप भी तो अच्छी बहु रही – माँ के साथ बड़ा प्यारा रिश्ता था आपका – बस यही रिवाज आगे भी बना रहे इसलिए बहु ढूंढना आपकी जिम्मेदारी है |”

“हाँ हाँ तभी तो चुन रही हूँ न – सुनिए तो |”

“अरे बड़ी मेहनत का काम है यूँही मत चुन लीजिएगा – आप ऐसा आसान समझती है कि बस दरवाजा खुलेगा और बहु आपके सामने होगी |”

उन्होंने बस ये कहा और कल्याणी दंग देखती रह गई कि तुरंत दरवाजा खोले अब देहरी पर सुगंधा खड़ी थी| उस पल सब अपने स्थान पर स्तब्ध एक दूसरे की ओर देखते रह गए, पापा चुपचाप मुस्कराकर खामोश हो गए तो कल्याणी जी सुगंधा को देखती हुई कहने लगी –

“मैंने तुम्हें आराम करने को कहा था और तुम तो नहा धोकर आ गई – चलो अच्छा हुआ – क्या मंदिर चलोगी मेरे साथ ?”

सुगंधा हौले से हाँ में सर हिलाती है तो पापा खड़े होते जल्दी से कहते है –

“हाँ हाँ – साथ में मंदिर जाओ बेटी फिर शाम तक तुम्हें घर भी जाना है न |” कहते हुए वे कुछ ज्यादा ही मुस्कराते कमरे से बाहर निकल गए ये देखे बिना कि उनकी बात पर कल्याणी मन ही मन भुनभुना उठी थी ‘बार बार जाने की बात क्यों करते है पता है जाना ही है उसे|’

मौसी जी संस्था तो पापा ऑफिस को निकल गए अब साथ रह गई सुगंधा और कल्याणी जी मंदिर निकल गए| इतने दिन बाद मन की गुफा से निकलकर बाहर आना उनको कुछ ज्यादा ही उत्साहित कर गया था, वे बहुत सारी बातें करती जा रही थी और सुगंधा कुछ एक बात का उत्तर देती हमेशा की तरह बस मौन रह जाती|

“तुम्हारे जाने का सोचना यकीन ही नहीं आ रहा – लग ही नही रहा कि तुम बस कल ही आई हो – अच्छा शाम को मैं चलूंगी छोड़ने – थोड़ा नूतन जी से मिल भी लूंगी |”

वे साथ में घर वापिस आती है तो उन्हें खबर मिलती है कि उनके बेटे वापिस आ रहे है, ये सुनते उनकी बाँछे खिल जाती है फिर जल्दी से नौकर को आवाज लगाकर वे उनका कमरा ठीक करने को कहती अन्दर आ जाती है|

उनके उतरते कार गैराज में लगाई जा रही थी तो सुगंधा वहीँ उतरती फूलों की क्यारियों की ओर बढ़ रही थी कि तभी कुछ अप्रत्याशित उसकी आँखों को दिखा तो वह चौंक गई, वह चिराग की बाइक थी जिसे वह आसानी से पहचान सकती थी, आखिर घर अपने रहने वालों को कैसे छुपा सकता था, कल्याणी जी अन्दर जा चुकी थी पर सुगंधा तो वही ठहरी रह गई….उसकी आँखें धोखा नही खा सकती..वह चिराग से जुडी किसी भी चीज को कहाँ आसानी से भुला सकती है…..वही तो है….तो…!!!

वह गार्डन में क्यारियां सँभालते माँ ली के पास आती है और सीधे उससे इस बाइक किसकी है पूछती है….वह बस छोटे माँ लिक कहकर चुप हो जाता है…इससे पहले सुगंधा कुछ और पूछती माँ ली हवा में आता हूँ कहता आवाज लगाता वहां से तेजी से निकल जाता है…सुगंधा अवाक रह जाती है क्योंकि उसने तो कोई पुकार की आवाज सुनी ही नही…..

उस पल वह अन्दर तो आ जाती है पर अपने प्रश्न का उत्तर वह हर जगह खोजने लगती है…..पर उस पल उसे अपनी बेचैनी का उत्तर नही मिलता…वह फिर कल्याणी जी के पास चली जाती है|

उसके मन में अज़ब द्वन्द मचा था…एक बार मन ये कहता कि चिराग सच में कोई मज़बूरी में तो नही कि उसे अपनी बाइक बेचनी पड़ी…कुछ भी न तय कर पाने की स्थिति में उसका मन बेचैन बना रहा….जब कल्याणी दोपहर का खाना खा कर आराम कर रही थी तब सुगंधा कमरे से बाहर निकली…उसका मन किसी चीज में नही लग रहा था…तभी उसकी नज़र घर के उसी नौकर पर जाती है जिसे सुबह कल्याणी जी अपने बेटों के कमरे ठीक करने को कह रही थी….वह शायद अपना काम खत्म कर किसी कमरे से बाहर निकल रहा था…उसके निकलते सुगंधा न चाहते हुए भी उस कमरे की ओर बढ़ती है….

घर अपने रहने वालों की निशानियों से लबरेज होता है तो कमरा उस शख्स की अपनी दुनिया….चिराग का कमरा पूरी तरह से उसे अपने में समेटे था…..दीवार पर की उसकी तस्वीर से ड्रेसिंग पर रखे उसके खुशबू के असाब, हुक में टंगी शर्ट…और कमरे में समाँ ई उसके जिस्म की गंध….सब उसकी पहचान की जद में था…..सुगंधा उस पल हर दरोदीवार को बस ऑंखें फाडे देखती रह गई…दीवार पर की किसी तस्वीर में वह स्टाइलिश बाइक में था तो दूसरी तस्वीर में किसी स्पोर्टस कार के बोनट पर ख्याल में डूबा बैठा था….एक और तस्वीर जिसमे पूरा परिवार साथ था…अतुल भी….वह हैरान देखती रह गई…..अब सशब्द वह खुद को बता रही थी या जाने पूछ रही थी कि क्या ये चिराग का घर है….!!!

बहुत सवाल उस पल उसके दिलोदिमाँ ग में गुमडने लगे…..उसे लगा वह बस रो ही देगी…जिससे वह दूर जा रही थी आज उसी की देहरी पर खड़ी है….क्या ये अनजानवश हुआ या……..

इससे पहले उसका दिमाग कुछ और अंतरस खंगालता कोई आहट हुई और वह पलटकर देखती है…..बस धड़कने रुकने को ही हुई…..चिराग अपनी भरपूर मुस्कान से अब दरवाजे के पार खड़ा उसी को देख रहा था मानों उसका वहां होना उसके लिए कोई आश्चर्य की बात ही न हो…..उसके चेहरे की मुस्कान बिन कहे सब कह दे रही थी……उस पल पहली बार उसे चिराग पर बहुत गुस्सा आया, वह बस खामोश अपने होंठ चबाती बाहर निकलने के लिए दरवाजे की ओर बढ़ने लगी….वह चिराग से बिना कुछ कहे उसके बगल से निकलने ही वाली थी….

“ओह सुगंधा …|”वह दिल से निकली आवाज थी, वह हाथ से दरवाजे की दीवार बना देता है|

“वो आए हमारे घर में..खुदा की कुदरत है..कभी हम उनको कभी अपने घर को देखते है…|”

इससे सुगंधा के गुलाबी कपोल और सुर्ख हो आए वह उसके हाथ की बाधा के सामने खड़ी किसी तरह से बस इतना कह पाई – “मुझे जाने दो |”

चिराग हाथ नही हटाता बल्कि उसे अपने हाथ की बाधा के बीच दीवार की ओर समेट लेता है…वह उसके हाथों के बीच फंसी दीवार पर पीठ टिकाए थी….वह उसके कितना पास था इतना कि उसकी सांसे वह अपनी पेशानी पर साफ़ साफ़ महसूस कर रही थी…धड़कने किसी धौकनी की तरह बस पसलियों की दीवारों पर बार बार आ सिमटती थी….उनकी नज़रे नीची थी वह गुस्से में अभी भी अपने होंठ काट रही थी….

“हुजुर आपका फैसला शिरोधार्य है – ठीक सातवें दिन आप हमाँ रे घर आ गई…और इस दिल को क्या चाहिए – तुम्हें बता नही सकता अभी कुछ समय पहले आंख लगी तो ख्वाब में तुम्हें अपने कमरे में अपने बहुत पास देख रहा था – लोग सुबह का सपना सच होना बताते है – तुमने तो शाम बना दी मेरी |” उसके एक एक शब्द सांसों का तूफान थे जिनसे उसकी जुल्फे अपनी तय जगह से हिल जाती और सुगंधा के तन में सिराहन पैदा कर देती…वह कितना पास था बस इंच भर ही तो फासला शेष था…उसका मन दो विपरीत दिशा में भागने लगा…एक ने उसे उसकी पनाह में डूबने का इसरार किया तो दिमाग उसकी माँ का ख्याल कर फिर उससे दूर जाने को फडफडाने लगा…..कितनी बेचैनी थी उस एक पल में जब उसका दिल सच में उसके बस से बाहर हुआ जा रहा था….

“तुम्हारी ख़ामोशी इजहार बन जाएगी..|” कहकर वह धीरे से हँस पड़ा|

“ये ख़ामोशी नही नाराजगी है |” वह सच में गुस्से से उबल रही थी – “तुम्हें सब पता था कि मैं यहाँ हूँ – बस मुझे ही कुछ नही पता था न तुम्हारे घर के बारे में न काम के बारे में – तुम जैसे दिखे मैं वैसे तुम्हें स्वीकारती गई – कभी कुछ पूछा ही नहीं – सोचती रही कि पता नही संस्था की नौकरी के बाद तुम कहाँ होगे कैसे होगे – और तुम…|” बाकि शब्द उफनते आक्रोश में वह चबा गई|

“मेरी मुहब्बत के सिवा हर चीज फानी हो सकती है – क्या करूँ जब पहली बार मूवी हॉल के बाहर तुम्हें देखा था बस वही एक पल से मेरा दिल मेरा न रहा – इन आँखों ने चुना था तुमको दुनिया देखकर – तब तुम्हारे मुंह से बिगड़े रईसजादे शब्द से दिल डर गया तुम्हें पाने से पहले खो देने के डर से – इसलिए बस इसी बेख्याली में तुमसे ये छुपाता रहा –|”

“तुम कुछ नही जानते – मेरा यहाँ होना मुझे कितना गलत साबित कर देगा – तुम्हारी माँ ये परिवार सब तुम्हे बहुत चाहते है और जब उन्हें पता चलेगा कि ये मैं हूँ – बद्शगुन सुगंधा तब कैसे और किससे नज़रे मिला पाऊँगी मैं – ये सोचा तुमने !!”

“माँ के सिवा सबको पता है ये मेरी सुगंधा है – मेरी खूबसूरत किस्मत |” वह उसी दिल नशीनी से कहता रहा|

ये सुन सुगंधा चौंक कर अवाक् अपनी नज़रे उसके चेहरे की ओर उठा लेती है, कितनी प्रेम की उमड़ती बरसाती नदियाँ माँ नों पहाड़ों से उतर कर वसुधा को अपने अंक में भरने को बेचैन दिख रही थी….

“इस वक़्त मुझे जाने दो चिराग |”

उसने कहा और चिराग ने झट से अपने हाथों की बाधा हटा ली, सुगंधा जड़ रह गई…न आगे न पीछे हिल पाई..

वह उसकी हथेली पकड़कर अपनी उंगली से कुछ लिखते हुए कह रहा था – “अगर इस वक़्त तुम्हें जाकर सुकून मिलता है तो नही रोकूंगा क्योंकि अब मैं नही मेरी मुहब्बत तुम्हें रोकेगी |” कहता हुआ वह उसकी हथेली पर अपना नाम लिख रहा था|

किस बेचैनी में सुगंधा उस देहरी को लाँघ कर बाहर चली गई ये सिर्फ उस दिल को खबर थी……

क्रमशः………………………..

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