
सुगंधा एक मौन – 7
हताश परेशान चिराग अमित के सामने उदास डूबते सूरज को देखता चुपचाप खड़ा था| अमित को भी कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या करें? जब शब्द मौन होते है अहसास मुखर हो उठते है, अमित अपना हाथ उसके कंधे पर रखता हुआ उसकी तरफ देखता है जिससे चिराग का मन बिखर उठता है –
“एक नाम जो मेरे अस्तित्व पर इतना हावी है पर मुझे उसके बारे में कुछ भी याद नही और यही बात मुझे बेचैन कर देती है आखिर मैं उससे जुडी हर बात कब याद कर पाउँगा – कब ??”
अमित चिराग का हताशा भरा चेहरा देखता हुआ कहता है – “यार दो साल – पूरे दो साल बीत गए इस बात को – माँ न लो अगर मिल भी गई तो क्या तुम्हें लगता है कि अभी भी उसे तुम्हारा इंतजार होगा !!”
चिराग सर उठाकर अमित की तरफ देखता रह जाता है|
“यार ये लड़कियां कहाँ रुक पाती है शादी के लिए – क्या पता उसके घर वालों ने उसकी शादी कर दी हो !”
“तब भी मैं उसे ढूंढना चाहता हूँ अपने अतीत को जानने के लिए भलेहि तब उसे देखकर ही वापस लौट जाऊं मैं |”
“भरोसा रख यार – जब इतना याद आया है तो आगे भी याद आ जाएगा बस तू टेंशन मत ले – मैं हूँ न तुम्हारे साथ – सोचते है आगे क्या करना है |”
सूरज पूरी तरह से क्षितिज में डूब गया था बिलकुल चिराग के डूबे मन की तरह|
प्रेम में एक नैसर्गिग ताकत होती है कि बिन शब्दों के भी वह अपनी उपस्थिति और अनुपस्थिति दोनों सहज ही भांप जाता है, यही दिशा का मन भी समझ गया और इस सच को स्वीकारता चुपचाप यहाँ से वापस अपने घर चला गया, न किसी ने रोका – टोका न उसने इसकी कोई उम्मीद ही रखी| माँ को भी सब बस ऑंखें खोले देखते रहना था, अब वक़्त और ईश्वर के हाथों सब सौंप कर वे भी ख़ामोशी से सब स्वीकारती चली गई|
चिराग उदास हुआ, हताश भी हुआ पर उसके मन ने पीछे हटना नहीं स्वीकारा| उसे यही बहुत लगता था कि कम से कम ये तो तय हो गया कि सुगंधा उस तिराहे के पास के ही किसी कॉलेज में पढ़ती होगी या उसका घर होगा वहां, ये सोच उसने अब वही से फिर अपनी तलाश को शुरू करने की ठानी लेकिन इस बार अकेले|
माँ को मनाना अब कोई ज्यादा मुश्किल नहीं था, वे सहज ही चिराग को अकेले कार चलाने देने पर राज़ी हो गई पर इस शर्त के साथ कि वह एक मोबाईल रखेगा और उनका हर फोन रिसीव करेगा|
चिराग को रोक पाना अब नामुमकिन था, खुद चिराग के लिए भी| न जाने क्या सोच वह नियम से तिराहे से तीनो तरफ की सड़क के पांच पांच किलोमीटर रोजाना कार से कभी पैदल चक्कर लगाने लगा इस आस में कि यही कही से कुछ तो पता चलेगा|
वह कार खड़ी कर अब पैदल ही तिराहे से सिटी कॉलेज के आस पास घूम रहा था| कॉलेज के अन्दर बाहर भीड़ का हुजूम था, शायद एग्जाम चल रहे थे, और कुछ रेहड़ी वाले सड़क के किनारे अपना सामान जोर शोर से बेच रहे थे| भीड़ की न ऑंखें होती है न कान वे सिर्फ कुछ कदम होते है जो इधर से उधर होते रहते है अपने आस पास के माँ हौल से बिलकुल बेखबर| उसी भीड़ का हिस्सा बना चिराग भी यूँही इधर उधर घूम रहा था तभी कुछ किशोर लड़के अपने हाथों में पैम्प्लेट लिए जबरन लोगों को बांटते दिख रहे थे| कुछ पेपर सड़क पर लोगों के पैरो तले सुकड़ें जा रहे थे, कुछ उत्सुकता में पढ़े जा रहे थे, ऐसा ही एक पैम्पलेट भीड़ में से कोई उसकी मुट्ठी के बीच थमाँ ता आगे बढ़ जाता है|
झल्ला कर चिराग उसे एक नज़र देखकर मोड़कर फेंकने ही वाला था कि तभी उसके मन की ऑंखें कुछ देख लेती है जिससे झट से सड़क से वही पेपर उठाकर वह एक किनारे खड़ा होकर उसे ध्यान से देखने लगता है|
वह किसी मैथ्स की कोचिंग का एड था, जिसे कोई निशा मैम करा रही थी, यही से कोई 500 मीटर की दूरी पर| पर जो बात उसके मन को अंतरस हिला गई वो उस पेपर में छपी निशा मैम की तस्वीर थी, जिसे वह ऑंखें फाड़े देखता रह गया, उसका मन पुकार उठा – यही सुगंधा है पर निशा क्यों लिखा है|
उसे कुछ नहीं सूझता तो वह झट से अमित को फोन लगाता है लेकिन चिराग की बात से वह खुश होने के बजाये वह उसे दुबारा सोचने को कहता है, उसे लगता है कि आखिर एक लड़की अपना नाम क्यों बदलेगी, अगर बदलता है तो सरनेम बदलता| लेकिन चिराग को अपनी आत्मा की आवाज़ पर शत प्रतिशत विश्वास था कि वह चेहरा बिलकुल सुगंधा का ही है| चिराग की जिद्द पर अमित उसके सामने ढ़ेरों ऑप्शन रख देता है यहाँ तक कि उस चेहरे को उसकी जुड़वाँ बहन तक माँ न लेता है पर सुगंधा नही|
आखिर वह अमित की बात से इत्फ़ाक न रखते हुए खुद उस बात की तहकीकात तक जाने का तय करता है| वह पैदल ही गलियों से गुज़रते तेज़ तेज़ चलते कुछ ही पल में उस कोचिंग के बाहर खड़ा था|
उसकी नज़रे सामने बड़ी सी होल्डिंग में चार पांच बच्चों की तस्वीर के ठीक नीचे निशा कोचिंग क्लास लिखा देख रही थी, और उस होल्डिंग में भी उस चेहरे की छाप थी जिसने एक पल में उसके होश उड़ा दिए थे| वहां भी वही निश्चल विश्रांति चेहरे पर विधमाँ न थी जो उसके जेहन में कोहरा बन सदा मंडराती रहती थी|
बाहर से वह कोई घर था, जिसके बाहर वाले कमरे को शायद कोचिंग में बदल दिया गया था| चिराग का बहुत मन था कि वह झट से अन्दर जाए और उस चेहरे को साक्षात् अपने सामने देखे पर यही उसके कदम डगमगा गए और वह बहुत देर वही खड़ा रहने के बाद वहांसे वापस अपनी कार की तरफ चल दिया|
पेपर तुरंत अपनी पॉकेट के हवाले कर चिराग कार चलाता रास्ते की ओर बढ़ चला| अगले ही पल वह अतुल के कॉलेज के बाहर आकर रुकता है, और चंद की सेकण्ड में उसकी नज़र पार्किंग एरिया में अपने दोस्तों संग खड़े अतुल पर चली जाती है| वह उसे पुकारता है तो सारे दोस्तों का उसकी तरफ ध्यान चला जाता है| अतुल जान कर अनदेखा करना चाहता था पर चिराग उनके पास न आए ये सोच उसके दोस्त अतुल को ही उस ओर धकेल कर अपनी समझदारी का परिचय देते हुए उस ओर से पीठ कर खड़े हो जाते है|
“चल मेरे साथ |”
“कहाँ – ?”
“अब ये मत कहना कि मेरा क्लास है नहीं तो मैं करूँ जाकर पता |”
अतुल सकपका गया, समझ गया कि आज फिर वह अपने भाई के हाथ लग गया|
“पर मैं तो बाइक से आया हूँ |” अतुल को सुकून मिला कि चलो परेशानी में भी कुछ तो दिमाग काम करता है|
“अपने दोस्त को कह दो पहुंचा देगा – तुम चलो अभी मेरे संग |”
अतुल को पता था ये पूर्णतया हुकुम है तो इंकार का सवाल ही नहीं उठता, वह छोटे छोटे क़दमों से अपने दोस्तों के पास पहुँचते अपना चेहरा बुरी तरह से बिगाड़ते हुए बोला – “तुम लोग मेरी बाइक से मेरे बिना इधर उधर घूमें तो देख लेना बेटा एग्जाम आ रहे है – तब एक एक को देख लूँगा |”
सभी चुपचाप सर हिला कर उसके हाथ से बाइक की चाभी ले लेते है|
कार में भाई के बगल में बैठते उसे कोई प्रश्न नही सूझता बस चुपचाप बैठा रहता है| कार कुछ रास्ता तय करने के बाद कही रूकती है, वहां सिर्फ चिराग उतरता है, अतुल गुस्से में उस ओर देखता भी नहीं कि तभी कोई जानी पहचानी लज़ीज़ खुशबू उसके मन को मुस्कराने पर मजबूर कर देती है|
“समोसा !!” चिराग एक पैकेट उसकी तरफ बढ़ाता हुआ फिर स्टेरिंग संभाल लेता है|
अतुल सबसे पहले एक समोसा खुद खाने के बाद दूसरा चिराग की तरफ बढ़ाता है|
“सब तुम्हारे लिए है क्योंकि लंच का टाइम है और हमे बाहर देर लग जाएगी|” सपाट भाव से कहता वह स्टेरिंग घुमाता रहता है|
“सच्ची पर हम कहाँ घूमने जा रहे है |”
अतुल के चेहरे की भरपूर मुस्कान पर चिराग अदनी सी मुस्कान के साथ उसकी ओर देखता हुआ कार रोक देता है|
“ये कौन सी जगह है ?”
अतुक उत्सुकतावश कार की खिड़की से झांक झांक कर देख रहा था|
“सामने वो कोचिंग देख रहे हो – निशा कोचिंग – अब से तुम वहां पढ़ोगे |”
अतुल को लगा उसे चक्कर आ जाएगा, हाथ का और गले का समोसा दोनों अपनी जगह अटक कर रह गए|
अतुल बड़ा हौसला कर उस बोर्ड को पढ़ने की कोशिश करता है, तभी उसका दिमाग ठनकता है और उसका लहजा एकदम साफ़ हो जाता है – “अरे भईया आप को याद नही मैं तो बायो का स्टूडेंट हूँ और ये मैथ्स की क्लास है – बात ही खत्म अब चले घर भईया |”
अतुल को कतई अंदाजा नही था जो अब उसके साथ होने जा रहा था|
“मुझे पता है फिर भी मैं कह रहा हूँ इसलिए तुम इसकी क्लास जॉइंट करोगे समझे |”
“मैं मम्मी को बताऊंगा |” अतुल रुआंसा हो उठा|
“अच्छा |” चिराग उसकी तरफ बिना देखे ही अपनी आस्तीन ऊपर करने लगता है|
ये देख अतुल झट से कार से उतर जाता है|
“अब जा अन्दर और हाँ ये पैसे रख – फीस के लिए – और हाँ बाकी के चेंज मुझे वापिस चाहिए – अब जा अन्दर|”
अतुल को लग रहा था कि आज उसे पता चला कि उस व्यक्ति को कैसा लगता होगा जिसके सामने खाई और पीछे कुआं होता होगा| उसे बार बार लग रहा था कि ये धरती फट क्यों नही जाती जहाँ वह अपने समोसे के साथ समाँ जाए| कितनी मुश्किल से बारहवीं में मैथ्स निपटाई और आज वही फिर उसके सामने भूत बनी सवार होने चली थी| उसे भगवान पर भी ये सोच सोचकर गुस्सा आ रहा था कि उन्हें यही भाई मिला उसके लिए क्या कोई और अच्छा ऑप्शन नही था उनके पास !!!
चिराग की आवाज़ से उसकी तन्द्रा भंग हुई, अब चिराग उसे अपने पास बुला रहा था, उसे लगा शायद भाई को उस पर तरस आ गया हो|
“ये समोसा कहाँ लेकर जा रहे हो – इसे इधर लाओ और ये पकड़ो |” कहते हुए वह मैथ्स की एक मोटी किताब उसके दोनों हाथों के बीच थमाकर कहता रहा – “वहां जाओ और किसी भी तरह से एडमिशन लो और |” थोड़ा स्वर को खींचते हुए कहता है – “हो सके तो वहां की कुछ फोटो ले लेना|”
“अब पहले ही दिन फोटो किस बात की |” उसका स्वर झल्ला उठा|
“अच्छा अच्छा – तुम एडमिशन लो पहले |”
“पर कहूँगा क्या ?”
“मुझे नहीं पता – बस अन्दर जाओ|”
“लेकिन !!”
“जाओ |”
चिराग की गरज के आगे उसके कदम अब कुएं के बजाए खाई की ओर बढ़ गए|
चिराग किसी कुर्बानी के बकरे की तरह खुद को ही घसीटता हुआ उस कोचिंग की ओर बढ़ गया| आवाज़े बता रही थी कि क्लास स्टार्ट हो चुकी थी, वह फिर भी न रुक सका और किसी मुजरिम की तरह उस चेहरे के ठीक सामने खड़ा हो गया|
“एस – !!”
वह बोर्ड के पास थमती अब उसको देख रही थी|
“आप ही है निशा मैम – मुझे आपके क्लास में एडमिशन चाहिए|” अतुल जैसे सारे शब्द किसी स्क्रिप्ट की तरह पढ़ने लगा|
“ओके पर सेशन के बीच में क्यों – पहले कहाँ कोचिंग लेते थे?”
अब अतुल सोचने लगा कि उसे को किसी भी मैथ्स की कोचिंग का नाम नही पता वह सकपका गया|
“क्या मैम अभी मेरा एडमिशन नही हो सकता ?” वह चाहता तो था कि काश वे हाँ बोल दे पर
“क्यों नही हो सकता पर जो क्लासेज हो चुकी है उनके तुम्हे बस नोट्स मिल जाएँगे आज तुम डेमो क्लास ले लो फिर चाहो तो कल एडमिशन ले सकते हो |”
हार माँ नता हाँ में सर हिलाता वह सबसे पीछे की सीट पर बैठा जाता है, क्लास फिर शुरू हो जाती है, जो उसके एकदम सर के ऊपर से जा रही थी| उसका तो मन हो रहा था कि मैथ्स के सारे नोट्स के ऊपर गर्म गर्म समोसा चटनी रखकर खाए|
आखिर क्लास खत्म हुई और उसकी सजा भी| वह भी भीड़ का हिस्सा बनता बाहर आ जाता है|
जहाँ चिराग की उत्सुक नज़रे उसकी बाँट जोह रही थी पर अपने भाई की उत्सुक नज़रों को जान कर अनदेखा करता वह आराम से कार में बैठता समोसे का पैकेट ढूंढकर खाने लगता है| चिराग अभी भी उसकी तरफ उत्सुकता से देख रहा था और चिराग आराम से चटनी लगा लगा कर ठंडे समोसों का मज़ा लेता खा रहा था|
क्रमशः ………………….
Very very nice😊😊😊😊😊👏