Kahanikacarvan

हमनवां – 14

जय टी वी के सामने बैठा बार बार चैनल अदल बदल रहा था, एक उकताहट सी उसमे तारी थी| वह पास में बैठे मोहित से अभी अभी अंश के बारे में बात कर फिर खामोश हो गया था| सभी को उसका जाना  खल रहा था|

‘यार ये समर कहाँ है – जब तक उसके हाथ की खौली हुई चाय न पी लूँ लगता नही कि दिन शुरू हो गया – वो जरुर किचेन में होगा|’

‘मैं देखता हूँ|’ मोहित उठने को हुआ कि इरशाद के हाथ में चाय के कप देख वहीँ रुक गया|

‘नहीं है – सुबह से ही निकल गया|’ चाय के कप दोनों को पकड़ाकर वह भी वही बैठ जाता है|

‘आज कल हुआ क्या है उसे – घर पर दिखता ही नहीं – पता नहीं कौन सी शिफ्ट कर रहा है?’

‘बस मेरे मोबाईल में मेसेज भेज दिया कि रात को देर हो जाएगी|’ अपने हाथ में पकड़ा मोबाईल का स्क्रीन उनके सामने करता हुआ इरशाद कहता है|

‘हाँ यार – दो तीन दिन हो गए – पता ही नहीं चलता कि कब घर आता है और कब घर से जाता है|’ मोहित सोच में पड़ जाता है – ‘कभी ऐसा करता तो नहीं था – कहीं ऋतु से कोई बात …!!’

‘अरे बात क्या होगी – ये लोग आमने सामने बात ही कितनी करते है|’ जय टेबल पर कप रख देता है –‘हो सकता है वाकई बिज़ी हो|’ कहते कहते जय का ध्यान इरशाद की तरफ जाता है वह झट से उसकी तरफ झुक जाता है – ‘ अबे तू फोन में हर दम क्या लगा रहता है – पहले तो मोबाईल कही और तू कही रहता था|’

इरशाद झट से मोबाईल अपनी तरफ झुका लेता है – ‘ कुछ नहीं |’

‘कुछ तो है – आज तो देख कर रहेंगे|’ अबकि  दोनों इरशाद के अगल बगल घुसकर बैठ जाते है|

‘दिखा दिखा – ये फोटो किसकी है?’ दावत के समय की खिंची तस्वीर में से नूर की तस्वीर को वह लगातार देखता पकड़ा गया था – ‘ये क्या तेरी नाज़ मैडम है!’

‘काश |’ दिल पर हाथ मार वह कह उठता है|

‘माज़रा क्या है|’ दोनों अभी भी उस तस्वीर को देख रहे थे|

‘बता न – नहीं तो अभी अप्पी को फोन कर तेरा हाल बता देंगे|’

‘कमाल करते हो यार – अरे ये नूर है – क्या बताऊँ देखते ही इनका नूर बस हम हम न रहे|’ इरशाद सच में शरमा जाता है|

‘और वो तेरी नाज़ मोहतरमा – उनका क्या होगा – एट ए टाइम दो जगह दिल लगाए बैठे है|’

‘काश दोनों एक होती पर क्या करूँ – एक अपने शब्दों से मेरा हाल बुरा किए है तो दूसरी ने अपनी  सपनीली आँखों के दीदार से घायल कर रखा है|’

‘गज़ब !!’ दोनों उसकी हालत देख ठहाका मार हँस पड़ते है और इरशाद मरमरी हालत में उनकी ओर देखता रह जाता है|

***

अंश नाश्ते की मेज़ पर उदास बैठा था पर अपने पिता को अपनी तरफ आते देख धीरे धीरे प्लेट का कुछ खाने लगता है|

पर उन आँखों से उसकी उदासी छुपी नहीं रहती|

‘क्या हुआ मेरे ब्रेव बॉय को – जय की याद आ रही है|’ वह प्यार से उसके सर पर हाथ फिरराते हुए कहते है – ‘मेरा प्रोमिस है कि जल्दी ही तुम फिर उससे मिलोगे|’

अंश का चेहरा ये सुन खिल उठता है|

वे मुस्कराते हुए उसे अपने हाथ से खिलाने लगते है|

खाते खाते वह अपने पिता की ओर देखता है – ‘क्या आपको उनसे नही मिलना?’

वे उसकी ओर देखते रहे मानों शब्द भाव बन चेहरे पर उतर आए हो|

‘आप भी तो उन्हें याद करते है फिर हम साथ क्यों नही रहते?’

वे अपने मन के भावों पर नियंत्रण करते हुए अपने चेहरे पर हलकी मुस्कान लाते हुए कहते है – ‘तुम उसके दोस्तों से मिले थे!’

‘हाँ |’ जैसे सबका चेहरा उसकी आँखों के सामने तैर जाते है उसकी मुस्कान खिल उठती है – ‘ वो सब तो बहुत अच्छे है उनके संग सच में मुझे बहुत मज़ा आया|’

‘यही तो वह अपने दोस्तों संग बहुत खुश है और तुम्हें भी तो अपने दोस्तों के पास वापस हॉस्टल पहुँचना है|’

अपने दोस्तों को याद कर उसका चेहरा एक बार फिर खिल उठता है|

खिलाते खिलाते उनकी नज़र अपनी ओर आते गौतम पर पड़ती है| वह उनसे कुछ दूरी में आकर रुक जाता है| वह समझ जाते है कि बहुत आवश्यक होगा तभी गौतम उनके खाने के वक़्त आया है|

वह धीरे से प्लेट अंश की तरफ सरका कर उठ जाते है|

कमरे के एकांत में अश्विन कुमार गौतम की तरफ पीठ पर हाथ बांधे बाहर खिड़की की तरफ देख रहे थे, गौतम अपनी बात कहे जा रहा था – ‘ वो कुछ ज्यादा ही अतीत की खोज खबर कर रही है – पता चला है कि जल्दी ही पूरे प्रूफ के साथ अपना आर्टिकल निकालने वाली है और अगर ये निकल आता है तो सबसे ज्यादा नुक्सान में आपका नाम ही रहेगा|’

‘नाम क्या है उसका?’ वह अभी भी खिड़की की ओर मुंह किए थे|

‘शैली|’

‘ठीक है पता करो और जरुरत पड़े तो समझाओ क्योंकि आने वाले चुनाव में मै कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहता|’

‘जी|’ कहता हुआ वह कमरे से बाहर निकल जाता है|

अश्विन कुमार अभी भी सोच में पड़े अपनी यादों की खिड़की से बहुत दूर तक का देखने लगते है| दूर से कही ट्रेन की आवाज़ में किसी बच्चे के रोने की आवाज़ घुली थी, स्टेशन पर एक पंद्रह सोलह साल के लड़के की चीख से प्लेटफ़ॉर्म गूंज उठा था लेकिन वह बेरहम शहर उसे ताकता रहा| उसे बिसूरते बस देखता रहा, अभी कल तक वही प्लेटफ़ॉर्म उनका घर था वहां उसके पिता की दुकान थी| बड़ा लड़का हर रूकती ट्रेन पर चाय लेकर दौड़ जाता, कभी किसी चलती ट्रेन से कूदते देख छोटा भाई प्लेटफ़ॉर्म पर खड़ा ताली बजा बजा कर खिलखिला पड़ता, आज वह अपने भाई की आँखों की उदासी देख कर उदास है, वह आगे बढ़कर भाई की ऑंखें पोछकर उसकी गोद में बैठ जाता है, ये देख वह उसे अपने अंक में समेट लेता है|

सभी उन भाइयों के प्यार को देख गद्गद् हो उठते है, आँखों में हमदर्दी समेटकर भीड़ छट जाती है| अब सच में वे अनाथ हो चुके थे, अपने छोटे भाई को गोद में उठाए वह निकल पड़ा अनजाने रास्ते की ओर| उसे अपने भाई के लिए खाना चाहिए था और इस तरह दुनिया का आसान लेकिन गलत रास्ता धीरे धीरे उसे अपने पाश में घेरता चला गया|

ईमानदारी का सबूत मांगने वाले बेईमानी पर चुप्पी साध लेते है| वह भी ख़ामोशी से बेईमान जिंदगी भी ईमानदारी से जीने लगा| छोटा भाई उसे देवता मान शहर से बाहर पढ़ता था, वह उसके पास लौटना चाहता था लेकिन वह हर बार व्यस्तताओं की दुहाई दे देता, इसी बीच जिंदगी के किसी मोड़ पर उसे प्रेरणा मिली, उसके मन का जमा सारा दर्द, प्यार जैसे प्रेम की ऊष्मा से पिघल  गया, अब सच में वह लौटना चाहता था पर जिस दलदली जमीन में वह खड़ा था वहां बिना बलि के कहाँ वापसी थी और एक बार फिर वक़्त ने उसे ख़ुशी से महरूम कर दिया|

वह चीख पड़ा काश वह इस दुनिया को आग लगा सकता जिन्होंने उसके जीवन को आग में झोंका था| एक बार फिर वह अकेला रह गया| ग़लतफ़हमियों ने भाई को भी अपनी गिरफ्त में ले लिया| उस एक साधारण लड़के से अपने राजनैतिक जीवन तक के लम्बे सफ़र में ढ़ेरों बाधाए पार करते अब वह कुछ भी खोने को बिल्कुल तैयार नहीं था| सोचते सोचते उसके जबड़े कस जाते है, वह अब सीने में अपने दोनों हाथ बांध खड़ा रहता है|  

***

निर्माणाधीन पुल के पास उसकी इंतजार में ऑंखें बिछी हुई थी| इंतजार की बेसब्र घड़ी में धड़कने गहरी और मन छोटा होने लगता है| हर लम्हा एक पहाड़ लांघने जैसा बीतता है| जय बार बार मोबाईल में समय देखता, कई बार कॉल कर करके काट देता| बार बार फोन करने पर भी मानसी अभी आती हूँ कहकर फोन काट देती| खुले नील आकाश के नीचे अपनी बुलेट पर टेक लगाए अब उसकी नज़र सामने सड़क पर टिक जाती है जहाँ से इरशाद और मानसी साथ में कुछ बहस करते हुए आ रहे थे| उनकी आवाज़ वह दूर से सुन पा रहा था, उन्हें देख उसके चेहरे पर चिरपरिचित मुस्कान तैर जाती है|

‘रहती कहाँ हो तुम – तुम्हारी वजह से आर्टिकल खराब हुआ?’

‘तुम भी तो कर सकते थे – मैंने तुम्हारे हाथ में दिया था|’

‘कब दिया था?’

‘कहाँ से याद रहेगा – आजकल ये मोबाईल जो हमेशा तुम्हारे हाथ में रहता है – लाओ लाओ..|’

‘अ अरे |’

तभी उसके मोबाईल की मेसेज टोन बजती है, इरशाद की नज़र स्क्रीन पर जाते जैसे चमक उठती है और उन दोनों से छिटक कर वह जल्दी जल्दी कुछ टाइप करने लगता है|

ये देख दोनों लगभग कूदते हुए उसके बगल में खड़े हो जाते है – ‘ओह्हो |’ दोनों कोहनी मार एक साथ मुस्कराते है|

‘नाज़ ने तस्वीर भेजी है|’ ख़ुशी के मारे उसके पैर जमी पर नहीं पड़ रहे थे|

‘ये !!!’ तस्वीर देख इरशाद को छोड़ दोनों ही मायूस हो जाते है|

जय गौर से देखता हुआ कहता है – ‘ये भी कोई तस्वीर है डायरी लिखते हाथ की तस्वीर!’

‘तुम्हें उल्लू बना रही है वो!!’ मानसी भी चहक कर बोल पड़ी|

इरशाद मरी मरी हालत में उनकी तरफ देखता है – ‘तुमलोग दोस्त नहीं दुश्मन हो |’ मुंह बनाते इरशाद एक किनारे हो जाता है|

उसकी हालत देख दोनों की हँसी छूट जाती है|

फिर उसपर तरस खाती हुई मानसी उसके पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखती है – ‘ओके ओके – लेकिन हाथ से क्या साबित होगा?’

‘ये हाथ मेरी किस्मत की इबारत लिखेंगे – कितने खुबसूरत है ये|’ इरशाद जैसे खोया खोया वापस जाने लगता है|

मानसी कुछ कहने आगे आती इससे पहले जय उसका हाथ पकड़ अपनी ओर खीच लेता है| मानसी पलट कर जय की ओर देखती है|

‘कबसे तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ – आजकल रोज मिलती भी नहीं|’ शिकायत थी या दर्द – ए – दिल की बयानी मानसी पिघलती हुई उसके पास आ जाती है|

‘आजकल घर जल्दी पहुंचना होता है – मानव की पढ़ाई देखनी पड़ती है – घर समय पर नहीं पहुंचती तो झट से मेरी जासूसी करता पापा के पास पहुँच जाता है|’

मानसी उस सुनसान राह में उसके कंधे पर अपना सर टिका लेती है|

‘और मेरा क्या!!’

‘तो बात करो आके न पापा से|’ मानसी अपने होंठ दबाती  हुई कहती है|

‘लगता है आना ही पड़ेगा|’ एक ठंडी आह छोड़ते अपनी बांह उसकी कमर के चारोंओर फैला लेता है| मानसी के होंठ लरज जाते है|

***

मिलन की आस भरी दृष्टि जैसे अपने स्थान से गायब सी हो गई थी| रसोई की खिड़की से समर क्या  गायब हुआ ऋतु का मन अधीर हो उठा, कुछ दिन तो उसे लगा कि शायद समर सच में व्यस्त है लेकिन उनके बीच का लम्बा अंतराल मन को इतना बेचैन कर गया कि अधीरता से वह उसे खोजने उसके द्वार तक आ गई|

वह सीढ़ियाँ भी नही चढ़ पाई थी कि पीछे से मानसी से उसे आवाज़ देकर रोका, ऋतु पीछे पलट कर देखती है| सीढ़ियों के नीचे मानसी के साथ कोई सुनहरे बाल वाली खड़ी थी| पहले पहल तो मानसी से मिलकर उनकी मुस्काने एक हुई फिर उसके एक ओर हटते ऋतु की नज़र शैफाली पर जाती है तो अचंभित भाव से वह उसे देखती रह जाती है|

“शैफाली ये है मेरी फ्रेंड भावना की सिस्टर|” उसपल जैसे बहन शब्द शैफाली और भावना के व्यक्तिव से मेल न खाने से वह सिस्टर कहकर उससे परिचय कराती है फिर आगे बढ़कर शैफाली का ऋतु से परिचय करा कर कहती है – “पता है ऋतु बहुत अच्छी कलासिकल डांसर है – मैं तो बस इसका डांस देखती रह जाती हूँ|”

“तुम भी मानसी – चलो घर चलो|” अचानक अपनी बात पर ही ऋतु शैफाली के छोटे किस्म के पहनावे को देख बुआ जी को याद कर अपनी बात यूँ पलट लेती है – “यहाँ इनलोगों से मिलाने लाई थी…!!”

“हाँ सबसे मिलाने आई थी – तुम्हारे पास ही आ रही थी लेकिन तुम्हे यहाँ आते देख मैं यहाँ चली आई|” उनकी बातचीत से उबती शैफाली इधर उधर देख रही थी|

“हाँ हाँ क्यों नहीं – चलो ऊपर चल कर ही बात करते है|” ऋतु शैफाली को अपने घर नही ले जाना चाहती थी क्योंकि उसे पता था कि उसके कपड़े देख बुआ जी का मुंह जरुर बन जाएगा, उसे बुआ जी का मन जरुर भांपना पड़ता है|

तीनों अब सीढ़ियाँ चढ़ती ऊपर आ जाती है| आते ही कमरे की बदहाली देख मानसी ऋतु की ओर देख फुसफुसा कर हँस पड़ती है|

“ये लोग कभी नहीं सुधरेंगे|”

फिर दोनों मिलकर सोफे से लेकर टेबल तक का सामान समेटती है| जय की वर्दी समेट कर अन्दर ले जाती हुए मानसी शैफाली की तरफ मुड़ती हुई कहती है – “प्लीज तुम कुछ देर यहाँ बैठो हम अभी आती है|”

टेबल के बर्तन उठाकर ऋतु जल्दी से सिंक में डालकर एक नज़र भर कर रसोई की खिड़की की ओर देखती है| एक सूनापन सा उसमे तारी होने लगता है| मन ही मन जैसे समर को पुकारती हुई कह उठती है कि आखिर तुम हो कहाँ….ऐसा तो कभी नहीं करते….क्या हुआ है तुम्हारे मन को…क्या मुझसे कोई भूल हुई….!!..या हमारे नेह बंधन के सूने में कोई और समा गया..!! ऋतु का मनभर आया…वह धीरे से अपने दुप्पटे से अपनी आँखों के कोरे पोछती शैफाली के लिए एक गिलास में पानी निकालने लगती है|

“घर खुला छोड़छाड़ कर कहाँ छुपे बैठे हो – कुछ चोरी हो गया तो..?” मानसी जय की ड्रेस लेकर उसके कमरे में दाखिल होती हुई देखती है कि जय बिस्तर पर अधलेटा मोबाईल में कुछ देख रहा था|

“जनाब यहाँ टांग पसारे लेटे है और ड्रेस वहीँ छोड़ दी – ऐसा मेरे घर में किया तो घर में घुसने भी नही दूंगी – कितने लापरवाह हो तुम..|” जय आवाज़ पर मोबाईल किनारे रखकर अब एक हाथ पर अपना सिर टिका कर मादकता से मुस्कराते हुए उसकी ओर देखता है, वह ड्रेस दीवार पर टांग कर उसकी ओर मुड़ती है|

“आप हमारे घर में आए अब हम आपको देखे या अपने घर को….|” अपनी शायरी कहने की कोशिश में जय बढ़कर मानसी की बांह थाम लेता है|

“अच्छा ज्यादा शायराना हो रहा तुम्हारा मन..|” वह भी निढाल होती अपनी देह उसपर छोड़ देती है|

“कल ही तो मिले थे – एक ही दिन में हुजुर इतने बेकरार हो गए कि हमे ढूंढते यहाँ चले आए|” कहते हुए वह उसे अपने पाश में समेट लेता है|

“आप इस मुगालते में न रहे – आपसे मिलने नहीं आई |” कहती हुई जय से छिटककर बेड से दूसरे छोर पर बैठती हुई कहती है –“ शैफाली को लेकर आई थी – थोड़ा शहर दिखा रही थी उसे..|’ कहते कहते मानसी का ध्यान जय के चेहरे पर दिखते प्रश्न पर जाता है – “अरे भावना की बहन है न – पार्टी में गए थे, भूल गए..!!”

“अरे कभी हमे भी शहर घुमा दिया करें…|” जय उसका हाथ पकड़ कर अपने सीने पर रख लेता है|

“अच्छा जी – आज दिल बड़ा आशिकाना हो रहा है – रोज घुमा दूंगी – पापा से बात तो कर लो..|” अपने हाथ को खींचती हुई जय की ओर थोड़ा झुकती हुई कहती है|

“अरे यार हरदम कहाँ पापा पुराण ले बैठती हो – चलो न इस सन्डे छुट्टी है – कहीं चलते है दूर तक|”

“सन्डे अभी दूर है – अभी पहले उठो तुम –|” कहती हुई जय का हाथ पकड़कर उठाने का प्रयास करती है – “शैफाली बाहर ही बैठी है – क्या कहती होगी कि बुलाने के नाम पर मैं ही बैठ गई – अब चलो भी|”

जय उठकर बैठता अपनी गर्दन उसके कंधे पर रख लेता है – “क्या करूँगा उससे मिलकर..?”

“चलो…|’ अबकि मानसी जय को धकेलकर लगभग उठा देती है|

क्रमशः…………..

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!