Kahanikacarvan

हमनवां – 2

तेजी से ठहाका मारते हुए डॉक्टर नवीन डॉक्टर समर की ओर देखता है – “यार ये मेरा ऑल टाइम फेवरेट जोक है|” कहता हुआ एक बार फिर उनकी हँसी से केबिन गुदगुदा जाता है|

“हेलो गाईज़ -|” डॉक्टर दिव्या केबिन के अन्दर आते ही उनके साथ की कुर्सी पर बैठती हुई कहती है –“नवीन आज बहुत खुश हो – बात क्या है – आज फिर लड़की देखने जाना है क्या..!!” दिव्या नवीन की खिंचाई करती हुई कहती है|

“अरे पूछो मत – ये नाटक तो रोज ही लगा रहता है पर घर वाले कुछ समझते ही नही कि अपना भी कुछ सपना है यार|” दोनों की निगाहें नवीन की तरफ मुड़ जाती है|

“इस सरकारी हॉस्पिटल से निकल कर अपन को अपना हॉस्पिटल खोलना है इसलिए मैंने भी माँ को बता दिया है कि किसी डॉक्टरनी से ही शादी करूँगा – फिर लाइफ और फ्यूचर दोनों सिक्योर हो जाएँगे – क्या कहते हो समर यार – !” समर उसकी बात सुन धीरे से मुस्करा देता है| यही पल था जब दिव्या समर की ओर मुस्करा कर देखती है|

“वैसे आइडिया तो सुपर है|”

दिव्या की बात सुन नवीन उसकी ओर शरारत से झुकता हुआ कहता है – “वैसे तुम्हारे बारे में भी मैं सोच सकता हूँ|”

“हाँ – पर मेरा लास्ट ऑप्शन्स होगा तब|” दिव्या की बात सुन समर जो उनकी बातों के बीच बीच में अपने हाथ में पकड़ी फाइल को देख लेता था अपनी फंसी सी हँसी से हँस पड़ता है|

“अच्छा मैं चलती हूँ|” दिव्या अपनी कुर्सी से उठ जाती है|

“हाँ अब लंच टाइम खत्म हो गया|” साथ में समर भी उठ जाता है|

दोनों को उठता देख नवीन कहता है – “दोनों कहाँ चले – तुम लोग भी यार सरकारी अस्पताल में प्राइवेट की तरह काम करते हो – रुको न और थोड़ी देर|”

“यार मरीजों की भीड़ बढ़ जाएगी -|” दोनों को जाते देख थक हारकर वह भी उठ जाता है – “अब अकेले मैं क्या करूँगा – चलो फिर|” कहते कहते नवीन के गहरी साँस छोड़ने पर तीनों की मुस्काने आपस में मिल जाती है|

***

कॉलेज के विशाल प्रांगण में कतारबद्ध ड्रेस में खड़ी लड़कियों के बीच में वौलीबॉल पड़ी थी| कुछ दूर पीठ की ओर हाथ बांधें व्यक्ति के ठीक सामने मोहित झुंझलाया हुआ सा खड़ा कह रहा था –

“मदन ये हेड मैडम कब आ रही – कुछ निश्चित समय पता है? तब से सुन रहा हूँ आ रही आरही -|” मोहित इतना झुंझला गया था कि मदन के बोलने का इंतजार किए बिना ही वह बोलता रहा – “जब इनको समय पर आना ही नहीं होता तो हमे क्यों बुला लेती है समय पर – एक घंटा भी प्रैक्टिस नही हो पाती|”

मोहित अब कतारबद्ध खड़ी लड़कियों की ओर देखता है – “इन्हें ये समझ नही आता कि मुझे देर हो जाए कोई बात नहीं पर लड़कियाँ कॉलेज में देर तक नहीं रुक सकती|”

“मैडम आ गई…|” मदन मोहित की लम्बी काठी के पीछे उचक कर देखता हुआ जल्दी से कहता है|

मोहित पीछे मुड़ता है| एक स्थूलकाय महिला अपनी हील सैंडिल में भी जल्दी जल्दी उसकी तरफ आ रही थी|

“अरे मोहित सर – मुझे ज्यादा देर तो नहीं हुई -!!” कहती हुई उनके चौड़े चेहरे पर मुस्कान फ़ैल जाती है|

“नही नही आप तो समय पर है हमीं थोड़ा जल्दी आ गए |” मोहित जल्दी से कहता हुआ मदन की तरफ देखता है तो लड़कियाँ भी अपनी फंसी सी हँसी में हँसने लगती है|

“अरे आपको प्रैक्टिस शुरू करा देनी थी न – आप तो जानते है न इन बच्चियों को ज्यादा देर नहीं रोक सकते|” कहती हुई वह जबरन अपना दांत निपोरने लगती है| मोहित उनकी बात का जवाब देने के बजाय लगभग दौड़ता हुआ वौलीबॉल की तरफ पहुँच जाता है|

***

सड़क के एक सुनसान किनारे में खड़ी बुलेट पर पीठ जोड़े जय और मानसी बैठे थे| कहीं दूर से रात की रानी की महक से लिपटे दोनों मानों अपनी आस पास की दीन दुनिया से बेखबर थे| मानसी एक हाथ से बुलेट का पिछला हिस्सा पकड़े थी तो उसका दूसरा हाथ जय के हाथ में था|

“अब चलती हूँ – बहुत देर हो गई है|” वह धीरे से जय से अपनी पकड़ ढीली करने लगती है|

“न -|”  जय अपनी गर्दन उसकी पीठ पर ढीली छोड़ देता है|

“जनाब आपकी है नाईट शिफ्ट पर मेरी नहीं|” मानसी धीरे से जय की गर्दन पीछे धकेलती बुलेट से उतर जाती है – “पापा घर आ चुके होंगे और मानव को भी देखना होता है न |” मानसी पर्स कंधे पर डालती हुई जय की ओर अपनी भरपूर मुस्कान से देखती है – “शादी कर लो तब नहीं जाउंगी|”

“हाँ लगता है अब कमिश्नर साहब को शीशे पर उतारना ही पड़ेगा|” झटके से बुलेट से कूदता हुआ कहता है जय|

“अच्छा ..|” चिहुँक कर मानसी अपने चेहरे पर बनावटी गुस्सा लाती पर्स उसकी तरफ मारने को उछालती है – “ज्यादा मस्ती नहीं – मुझे प्रेस छोड़ दो – मेरी स्कूटी वहीँ खड़ी है|” कहती हुई जय के पीछे बुलेट पर उसकी पीठ से सटकर बैठ जाती है| ऐसा करते मानों उनके दिल की धड़कने एक ही लय में धड़क उठी थी|

अगले ही क्षण बुलेट हवा से बातें करने लगती है|

***

मानसी घर में आते ही सबसे पहले ये देखती है कि घर में वह सबसे पहले आई है या आखिर में| रात के आठ बज रहे थे| अपने पापा के कमरे के अधखुले दरवाजे से वह धीरे से अन्दर झांकती है| वे अपनी ईजी चेअर पर इत्मीनान से बैठे अख़बार पढ़ रहे थे|

ये देख वह समझ जाती है कि उनको आए देर हो गई होगी| धीरे से वह वहाँ से अपने दबे क़दमों से निकलकर घर के कोने वाले कमरे की तरफ बढ़ती है जिसका दरवाज़ा खुला ही था| वह दरवाज़े की देहरी पर खड़ी खड़ी ही अन्दर का सारा जायजा लेती है|

उसका छोटा भाई मानव बिस्तर पर अधलेटा किसी किताब में मशगूल था| फिर अपनी घूमती निगाह से स्टडी चेअर पर उसका बेतरतीबी से टंगा स्कूल जर्सी देखती हुई तेज़ी से आवाज करती हुई अन्दर आते ही ठीक उसके सर की तरफ कमर पर दोनों हाथ रखे खड़ी हो जाती है|

“ये क्या है – इसे पढ़ाई कहते है – और दिखाओ क्या पढ़ रहे हो|”

मानव किताब में इतना मशगूल था कि अपनी बड़ी बहन का आना देख भी नहीं पाया और एकदम से हडबडा कर उठ जाता है|

मानसी उसके हाथ की किताब छीन लेती है – “ये क्या मैगज़ीन पढ़ी जा रही है|”

“दी – दीदी वो मैं – |” मानव हडबडा कर बिस्तर पर ही खड़ा हो जाता है|

“तुम्हेँ बार बार याद दिलाना पड़ेगा कि इस साल तुम्हारा बोर्ड है – अगर इस बार प्री बोर्ड में नम्बर सही नहीं आऐ न तो मैं तुम्हे बोर्ड में बैठने नहीं दूंगी – तब बैठकर अपने संगी साथियों को आगे बढ़ते देख नाचना|” हवा में हाथ लहराती हुई कहती है|

“दीदी !!”

“और ये क्या हाल बना रखा है कमरे का – स्कूल ड्रेस तक सही जगह नही रखी – टेबल किताबों से अटा पड़ा है – क्या सुनीता मौसी पूरा दिन तुम्हारा रूम ही ठीक करती रहेंगी|” मानसी गुस्से में धाराप्रवाह बोलती गई|

हल्ला सुनकर वहाँ तेजी से एक प्रौढ़ स्त्री प्रवेश करती है|

मानव ये देख जल्दी से उनके पास जाकर खड़ा हो जाता है|

“अरे हुआ क्या?” वह एक पल गुस्से में तमतमाती मानसी को तो दूसरे पल हवाइयां उड़े मानव के चेहरे को देखती हुई पूछती है|

“मौसी आपने सुबह इसका कमरा ठीक किया होगा न अभी देखिए क्या हाल कर रखा है कमरे का – पूरा कबाड़ नज़र आ रहा है – और सूरत देखो|” एक दम से कहती हुई मानव के पास आते जो उसके सर से भी ऊँचा था उसके कान पकड़ लेती है – “देखो जंगली की तरह बाल बढ़ा रखे है – स्कूल का आखिरी साल है तो क्या तुम्हेँ वहाँ कोई कुछ नहीं कहता|”

“आह दीदी छोड़ो -|” अपना कान छुड़ाता मानसी से छिटककर खड़ा होता हुआ कहता है – “अब मेरे बालो से क्या प्रॉब्लम है – ठीक तो है – आज कल सभी ऐसे ही रखते है|” अपने बालों को हाथों से फिर सेट करने लगता है|

“अरे छोड़ दे न बिटिया – मैंने आज कमरा ठीक भी नहीं किया था|” मानव की ओर दुलार से देखती हुई कहती है|

“हाँ आप तो ऐसे ही कहेंगी – आपने ही इसे सर पर बिठा रखा है|” मानसी अभी भी गुस्से से उसकी तरफ देख रही थी|

“अच्छा अच्छा चलो बहुत समय हो गया मैं खाना लगाती हूँ – अभी आई हो न तो जाकर पहले मुँह हाथ धो लो|” कहती हुई मौसी कमरे से बाहर चली जाती है लेकिन उनकी कही बात से मानव एकदम से चिंहुक पड़ता है – “आप अभी आई हो – इतनी देर से – मैं पापा को बताता हूँ – वे आपको पूछ रहे थे|” मानव झट से बाहर की ओर निकलने लगता है तो मानसी जल्दी से उसे रोक लेती है – “अरे मुझे कुछ काम था इसलिए देर हो गई  – तू रुक जरा – पहले अपनी किताबे ठीक कर मैं तेरे कपड़े ठीक कर देती हूँ|” मानसी सकपका गई थी|

मानव को अपनी बहन की कमजोरी मिल गई थी जिससे वह मुस्करा उठा – “दीदी किताबे मुझसे अभी ठीक नहीं होगी|”

“हूं …|” मानसी गुस्से से उसकी तरफ देखती हुई कहती है – “ओके किताबें भी ठीक कर देती हूँ |” दांत पीसती मानसी टेबल की तरफ मुड़ जाती है और मानव मन ही मन मुस्कराता मैगज़ीन उठाकर कमरे से बाहर दौड़ जाता है|

***

छुट्टी का दिन खत्म होते एक भागमभाग भरे दिन की शुरुआत होती है तब पूरे सप्ताह शायद ही कोई दिन ऐसा होता जब चारों एक साथ घर पर मौजूद होते हो| समर तब से हॉस्पिटल जाने के लिए अपनी कार की चाभी खोज रहा था| कमरों से लेकर बाथरूम तक खंगाल चुका था| समर के एक हाथ में मोबाईल था जो फिर दुबारा कभी भी बज सकता था इसलिए उसे निकलने की जल्दी थी| मोहित अपने कॉलेज के लिए निकलने ही वाला था| वह हमेशा की तरह अपनी कार को दुबारा पोछते ड्राइविंग सीट पर बैठा ही था कि समर लगभग दौड़ता हुआ उसकी तरफ तेज़ी से आवाज़ लगाता हुआ आता है – “यार मेरी चाभी देखी तुमने?”

“तू कब से चाभी से चलने लगा|” जैसा सवाल वैसा जबाव देता मोहित मुस्करा उठा|

“यार दिमाग का दही मत कर – चल मुझे छोड़ दे – आ जाऊंगा किसी तरह से|” समर कहता हुआ मोहित के बगल वाली सीट का दरवाज़ा खोल लेता है|

भईया … कोई आवाज़ समर को कार पर बैठने से पहले ही रोक लेती है| समर तुरंत आवाज़ की दिशा की ओर देखता है|

वर्षा हाथ में कोई कागज लहराती हुई उसकी तरफ तेज़ी से आती है – “समर भईया आपका ये लेटर आया था  – हफ हफ – कल|” वर्षा समर के सामने आकर रूकती है|

“और आज दे रही हो – देखूँ किसका है – !!”

समर उसके हाथ से लेटर लेकर झट से कार में बैठ जाता है, कार तुरंत ही सड़क की तरफ निकल पड़ती है|

“वैसे तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूँ कि जिस वाहन की तुम चाभी ढूंढ रहे थे वो वाहन तो वहाँ था ही नहीं|” मोहित हल्के से मुस्कराते हुए कह रहा था|

समर की गर्दन प्रश्नात्मक मुद्रा में उसकी तरफ मुड़ जाती है|

“सुबह इरशाद की बाइक स्टार्ट नही हो रही थी|” मोहित का इतना कहना ही काफी था आगे की सारी बात समर समझ गया| इरशाद की लापरवाही से सभी वाकिफ थे| उसकी बाइक में आखिर तक खत्म होने तक पेट्रोल रहता, कितनी ही बार बाइक घसीटते हुए भी ला चुका था| जब उसे घर से निकलता होता तो जिसकी चाभी हाथ लगती लेकर निकल जाता| लेकिन इन सबके बावजूद इन दोस्तों में कभी कोई तकरार नहीं हुई| यही उनके इस घर की नींव थी| अब शाम को इसके बदले में समर को पता था इरशाद से रात के बर्तन धुलवाने है|

भीड़ से कार गुज़र रही थी| फिर रेड लाइट पर कार के खड़ी होते मोहित मुड़कर समर की ओर देखता है, समर उस लिफाफे के अन्दर के कागज को तन्मय हो कर पढ़ रहा था| मोहित उसके चेहरे के भावों को  देखता है जहाँ बहुत सारी खलिश और बेचैनी के मिले जुले भाव मौजूद थे|

“समर..|’’ मोहित की पुकार पर भी वह उसकी तरफ नहीं देखता – “समर – किसका लेटर है ?” मोहित की पेशानी पर भी लकीरे जमावड़ बना लेती है|

“समर..|” मोहित स्टेरिंग से हाथ हटा कर समर को हिला कर उसकी तन्द्रा भंग करता है – “क्या लिखा है इसमें?”

अभी भी रेड लाइट थी| चारों ओर गाड़ियों का जमावड़ सा लग गया था| कार के शीशे बंद होने से वे बाहर के शोर से बेखर अपने बीच की ख़ामोशी सुन रहे थे|

“समर बोल न|”

“डैड का है|” दो शब्दों में समर ने जैसे बहुत कुछ कह दिया और मोहित ने सारा समझ लिया – “आ रहे है चौबीस को|” समर बेहद शुष्कता के साथ अपनी बात खत्म करता है|

“अरे चौबीस तो आज ही है – लगता है लेटर लेट आया – अरे यार छोड़ न गिले शिकवे – हम उनका बहुत अच्छा स्वागत करेंगें – मैं आज कॉलेज से जल्दी आ जाऊंगा और सबको खबर कर दूंगा – तू बस नाटक मत करना – जल्दी आ जाना|” मोहित सामने बदलती बत्ती देख एक हाथ से गियर तो दूसरा हाथ स्टेरिंग पर जमा देता है|

समर के चेहरे के भाव जैसे शून्य हो चुके थे| वह अपने बगल के शीशे के पार देखता है, अपनी रफ़्तार से जाती कार के पीछे सड़के छूटती जा रही थी उसी क्रम में मष्तिष्क में बनती तस्वीर भी बनती बिगड़ती पीछे छूटी जा रही थी|

क्रमशः……………

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