Kahanikacarvan

हमनवां – 22

अन्दर आते मानसी मोहित के चेहरे की बुझी हालत देख एक दम से हँस पड़ी  – “ये क्या हालत बना ली अपनी – लगता है रात भर नही सोए – चलो जाओ अब मैं आ गई हूँ तो सब संभाल लुंगी |”

“थैंक्स मानसी – सच नही सो पाया – अभी दो घंटे बाद कॉलेज भी जाना है पता नहीं कैसे मैनेज करूँगा सब |”

मोहित कहता हुआ बाहर की ओर जाने को हुआ ही कि मानसी एकदम से कुछ याद करती हुई उछली – “अरे कॉलेज से याद आया मोहित – क्या तुम्हारी जय से बात हुई – मानव के ट्यूशन के बारे में !!” वह अपने प्रश्न के उत्तर के लिए उसकी तरफ देखती रही|

“हाँ हाँ बताया – पूछना क्या कभी भी भेज दो उसे – मैं देख लूँगा|”

“ओह थैंक्स मोहित ये कहकर तुमने मेरी बहुत बड़ी प्रोब्लेम सोल्व कर दी|”

दोनों विदा की मुस्कान के साथ अपनी अपनी दिशा की ओर बढ़ जाते है|

मानसी शैफाली को देखकर उसे ढ़ेरों बातें सुनाना चाहती थी जो शायद भावना होती तो वह उसे कहती लेकिन इसके विपरीत शैफाली की बात सुन उसे एक पल लगा जैसे वह कोई सपने में है, और शैफाली सपने में उससे कह रही है कि वह सच में इस नशे की दुनिया से बाहर आना चाहती है और क्या वह इसमें उसकी मदद करेगी ?? मानसी सन्न रह गई, फिर उसकी पुकार पर उसकी तरफ देखती हुई एक दम से खुश होती हुई बोली –

“जो चाहे मदद मांग लो – अगर सच में वह ऐसा करना चाहती है तो वह उसकी हर संभव सहायता करेगी|”

शैफाली धीरे से मुस्करा दी और मानसी किचेन में कॉफ़ी बनाने चल दी|

***

जैसे तैसे अपने निंदासे चेहरे के साथ मोहित ने अपना दिन निकाला कि घर पहुँच कर बहुत देर तक सोएगा लेकिन घर पहुँचते मानसी और मानव को देख उसकी नींद उड़ गई|

“आर यू ओके मोहित !!’

मोहित की कुछ हालत का अंदाजा मानसी को होता है पर वह खुद को जल्दी से सँभालते हुए खुद को सयंत कर लेता है|

मानसी के लिए वो घर बिलकुल भी अनजाना नहीं था, उसकी मौजूदगी उस घर के लिए आम बात थी पर मानव के सामने उसे यहाँ इरशाद की दोस्त बनकर ही दिखाना था, जिसकी मदद से वह मोहित से मानव को ट्यूशन पढ़वाने आई थी|

इस सबसे बेखबर तभी वहां जय आता है वह बस मानसी को देख उसका गाल छूता हुआ निकलने ही वाला था कि उसकी नज़र मानव पर पड़ जाती है और वह वही सावधान हो जाता है|

दोनों की नज़रे आपस में मिलती है और मानव के सामने दोनों औपचारिकता में एक दूसरे को हाय बोलकर चुप हो जाते है| ये सब कंखनियों से देखते मोहित की अन्दर से हँसी फूट पड़ रही थी|

मानव जय की ओर देखता है और संशय में प्रश्न करता हुआ पूछता है – “आप को मैंने देखा है|”

ये सुन जय मुस्कराता हुआ आँखों से जताता है कि हाँ देखा होगा पर मानव आगे जो कहता है उससे वह अपनी बगले झांकता रह जाता है|

“आपको मैंने मानसी दीदी के साथ देखा है|” मानव जय की ओर अपनी नज़रे और गड़ा देता है|

मामला बिगड़ता देख मानसी जल्दी से उनके बीच आती हुई अपनी सफाई पेश करती है – “अरे क्यों नही – पुलिस वालों से काम भी पड़ता रहता है मेरा |” कहकर धीरे से मुस्काई और आँखों से जय को जाने का इशारा करती हुई आगे कहने लगी – “और मानव तुम यहाँ पढ़ने आए हो तो इसलिए इधर उधर ज्यादा दिमाग मत लगाओ – पता है कितनी मुश्किल से मोहित राज़ी हुए है तुमको पढ़ाने के लिए – यहाँ ध्यान दो और तुमको जब घर आना हो तो या तो मुझे फोन कर देना या खुद ही बस से आ जाना – समझे|” हमेशा की तरह उस पर अपना रौब झाड़ती हुई मानसी झट से बाहर की ओर निकल जाती है| मानव मन मसोजे वही बैठा अब मोहित की ओर देखने लगता है|

मोहित को पढ़ाना पसंद था, और वह आधे घंटे तक तो पढ़ा लेता है पर अगले मिनट तक उसपर थकान हावी होने लगती है और वह धीरे से उसकी पढाई समेटने लगाता है तभी तेज़ी से वहां वर्षा आती है|

“भईया |” हमेशा की तरह किसी हवा के झोंके की तरह|

दोनों का एकसाथ ध्यान उसपर जाता है पर मोहित पुनः अपनी नज़र किताब पर गड़ा देता है लेकिन मानव उसकी ओर देखता रहा, वह झटपट कहती हुई अपने हाथ में पकड़ा कोई सामान वही रख रही थी|

“ये दी ने भेजा है और बोला है गर्म है तो अभी खा ले ठंडा हो जाएगा तो अच्छा नहीं लगेगा – वैसे आप ट्यूशन पढ़ा रहे हो !!”

“हूँ |’ संक्षिप्त उत्तर देता मोहित अपनी नज़र किताब से बिलकुल नही हटाता पर मानव की नज़र उसपर से नही हटती|

“ये लैसन – ये तो मुझे बहुत अच्छे से आता है – मैं तो कबका खत्म कर चुकी –|” किताब की ओर झांकती हुई हमेशा की तरह बिना सोचे बोलकर भी वह नहीं रूकती – “किसी बुद्धू को ही समझ नही आएगा|”

मानव की नज़रे कुछ तीखी हो जाती है|

“हो गया तो अब आप जाएंगी यहाँ से ?”

मोहित उसकी तरफ सर उठाकर कहता है तो तुनकती हुई वर्षा बोल पड़ती है –

“हाँ तो जा ही रही थी – मैं तो बता रही थी कि मैं बुद्धू थोड़े ही हूँ |”

वर्षा वही डटी कहती है|

“अच्छा !!” अबकि तंग होता मोहित किताब बंद करता हुआ उसकी तरफ देखता रहा तो वह धीरे से फीकी हँसी हंसती हुई फिर हवा के झोंके की तरह वहां से चली जाती है|

“मानव |”

मानव की आंख किसी एक दिशा में टंगी देख मोहित को उसे टोकना पड़ता है – “कहाँ ध्यान है तुम्हारा – यहाँ देखो और जो वर्क तुम्हें दे रहा हूँ उसे कर के देखना – न आए तब भी – बाकि नेक्स्ट दिन देखते है|”

मानव जल्दी से अपना सारा ध्यान मोहित की नज़र की तरफ उड़ेलकर धीरे से हाँ में सर हिलाता है|

***

दूसरा दिन छुट्टी का दिन था इसलिए ये दिन उनकी आम दिनचर्या से थोड़ा अलग था, इरशाद सुबह से ही परेशान इधर उधर डोल रहा था, शाम की मुलाकात अभी से उसका दिमाग मथे दे रही थी| वह तनाव में कभी जबरन रसोई में जाते कुछ भी मुंह में डाल लेता कभी एक ही साँस में गटक कर पानी से अपना गला तर कर लेता लेकिन तनाव था कि कम होने के बजाय बढ़ता हुआ ही जा रहा था| तब से उसकी हालत देखता जय उस पर हँसता हुआ कहता है –

“ऐसा कर जाकर फिनाइल पी ले उससे टेंशन चली जाएगी – तेरा पानी से कुछ न होगा|”

“हाँ हाँ ऐसा तो बोलेगा न – देखना अगर कुछ भी गड़बड़ हुआ न तो मैं तुझे नही छोडूंगा|” इरशाद सच में अपना हाथ मलता हुआ उसकी तरफ देखता रहा|

“अबे मैंने क्या किया !!!”

“कुछ नही किया इसलिए |” झट से जवाब देता है इरशाद|

“अच्छा इधर आ देख ऐसा कर एक ही रेस्टोरेंट में टाइमिंग अलग देकर बुला ले और मिल ले|”

जय की बात पर झट से चुटकी मरता हुआ इरशाद उछलता है|

“हाँ यही ठीक है |”

जय उसकी हालत पर फिर धीरे से हँस पड़ता है|

तभी वहां समर आता हुआ कहता है – “तुम लोगों को कुछ याद है कि नही अगले हफ्ते ही हमे गाँव जाना है, गुड्डी की शादी है – तुम लोगों ने छुट्टी ली कि नहीं ?”

एक दम से सबके ख्याल में गाँव जाने की बात याद आते वे चहक उठे – “सच्ची दिमाग से बिलकुल उतर गई थी|”

“अब याद रखना – जाना ही है हमे|”

गाँव जाने की स्मृति से सभी के चेहरे पर मानों हलकी पुरवाई की लचक समा गई और इससे उनका मन झूम उठा|

***

आखिर वो वक़्त भी आ गया जिसका इरशाद को इंतजार भी था और डर भी|

घर पर पचास कपड़े बदलकर आखिर डल एलो शर्ट पर राज़ी होता हुआ इरशाद उसे पहन कर रेस्टोरेंट की निश्चित जगह पर बैठा अब नूर का इंतजार कर रहा था, नूर के जाने के दो घंटे बाद का उसने नाज़ को वही का समय दिया था, अब वह इंतजार में वही बैठा कभी अपनी कलाई घड़ी देखता कभी बाहर दरवाज़े की ओर|

“सर !!” सर बोलता अब वेटर तीसरी बार उसकी खोपड़ी पर खड़ा था|

“सर आपका ऑर्डर अभी ले आऊ !”

“भाई मेरे कुछ देर रुक जा |” इरशाद भारी तनाव से थोड़ा चिडचिडा सा हो उठा|

ओके सर कहता वेटर चला जाता है और इरशाद अब उसी ओर उसे खा जाने वाली निगाह से देखता रहता है|

“हेलो |”

इस आवाज़ पर वह यूँ चौंकता है मानों बिजली का नंगा तार छू लिया हो| अब उसके सामने नूर खड़ी थी, अबकि हक्बकाहट में वह उसके चेहरे की ओर देखता रहा पर उसे बैठने को न कह सका| इसपर वह फिर पूछती है –

“क्या बैठ जाऊं मैं !!”

“ओह सॉरी प्लीज़ |” वह जल्दी से उठकर उसकी तरफ की कुर्सी खींचता है पर नूर धीरे से मुस्कराती हुई अपने आप चेअर खीँच के बैठ जाती है|

अब दोनों खामोश से एक दूसरे की ओर न देखकर अपने आस पास देख रहे थे| नूर अपना गुलाबी फ्रिलदार सूट को थोड़ा और फैलाती हुई अब दुप्पटा ठीक करने लगती है, इसी बीच वेटर इरशाद द्वरा दिया पहले से दिया ऑर्डर अब उनके सामने सजा रहा था| वेटर के टेबल पर कटलेट, काफी, चिप्स वगैरा सजाते इरशाद के दिमाग में क्लीक करता है कि उसे नूर के मन का भी कुछ पूछना चाहिए था|

“नूर कुछ और भी मांगना हो तो – !!” पूछता हुआ वह वही बगल में रखा कैटलॉग उसकी तरफ बढ़ाता है|

“नही ठीक है |”

नूर की स्वीकृति पर वेटर सर झुका कर चला जाता है, उसके जाते नूर कॉफ़ी का कप अपने थोड़ा और नज़दीक सरका लेती है पर इरशाद सैंडविच की प्लेट से एक सैंडविच उठाकर उसे दांत से धीरे धीरे कुतरने लगता है|

फिर उसे लगता है कि नूर से भी उसे पूछना चाहिए – “यहाँ का न सैंडविच मुझे बहुत पसंद है – लो तुम भी ट्राय करो|”

नूर धीरे से मुस्कराती हुई एक सैंडविच उठा लेती है और जितने सलीके से खा सकती थी उससे कही ज्यादा सलीके से उसे खाती हुई कहती है – “हूँ – अच्छा है|”

फिर आधा खाया प्लेट पर छोड़कर फिर इधर उधर देखने लगती है, उसके इधर उधर देखती नज़र से इरशाद को झट से नाज़ की याद आती है और वह भी इधर उधर देखने लगता है|

बहुत देर की ख़ामोशी जब नूर को परेशान कर देती है तो वह खुद ही इरशाद से मुखातिब होती हुई पूछती है – “आप यहाँ अक्सर आते है ?”

“हाँ |” झट से बोल देने बाद कुछ समझ आते वह अपनी बात को विस्तार देता है – “हमेशा ही अपने दोस्तों के साथ |”

“हाँ हाँ अप्पी ने बताया था कि आप अपने दोस्तों के साथ रहते है |” नूर जान कर अनजान बनती बात को बढ़ाती रहती है – “दोस्तों के साथ तो अच्छा लगता ही है|”

‘”हाँ |” इरशाद फिर अपनी गर्दन इधर उधर घुमाता है|

“आपको किसी और का भी इंतजार है क्या !!”

“नही – बिलकुल नही |” अपनी हरकत पर ध्यान आते वह सावधान मुद्रा में बैठ जाता है|

“आप मिलना चाहते थे मुझसे !!” तंग आकर नूर खुद ही इरशाद से पूछती है|

“नही |” इरशाद घबरा जाता है – “हाँ|”

नूर उसकी हालात पर धीरे से मुस्करा पड़ती है|

“वैसे अप्पी जैसा कुछ सोच रही है वैसा कुछ मेरे दिमाग में नहीं है |” नूर बेबाकी से अपनी बात रख देती है|

इसके विपरीत इरशाद झट से खुश होता हुआ कहता है  – “सच कहूँ तो मुझे भी यही लगता है|”

और इसके साथ अपनी अपनी स्थिति पर दोनों धीरे से आवाज़ कर हँस पड़ते है|

“चलो अच्छा हुआ इतना खुलकर तो बोला आपने – मैं तो सोच रही थी कि कैसे अपने मन की बात कहूँगी !”

वह मुस्कराई तो इरशाद का कुछ हौसला बना और वह भी उसी तरह मुस्कान बिखेरता हुआ आगे कहता है – “असल में मैं चाहता हूँ कि मुझे प्यार हो जाए |”

इरशाद की बेबाकी से उसकी हँसी छूट जाती है पर इससे अलहदा वह अपनी बात कहता रहता है –

“इसलिए आपको जानना चाहता था, मिलना चाहता था कि मुझे ऐसा कुछ है तो …|” वह धीरे से अपनी बात अधूरी छोड़ जैसे बाकि मन में पूरी करता है कि तब हम शादी करे|

इसके विपरीत नूर झट से खुश होती हुई बोली – “इज़क्ट्ली – मैं भी यही चाहती हूँ |”

दोनों की स्वीकृति की मुस्कान एक हो जाती है|

“तो तय रहा हम फिर मिलेंगे और जानेगे कि हम कितना आगे तक साथ चल सकते है – मंजूर|” इरशाद किसी डील की तरह उसकी तरफ हाथ बढ़ाता है तो वह भी उतने ही जोश में हामी भर्ती अपना हाथ उसकी तरह बढ़ा देती है|

वह उसका हाथ थाम कर आराम से छोड़ देता है और नूर धीरे से मुस्करा देती है|

“लेकिन न अप्पी को ये सब नहीं बता सकते – हम आज की मुलाकात बोल देंगे कि हम मिल ही नही पाए – ओके |”

नूर आँखों से स्वीकृति देती है, फिर सहज होते दोनों अपने अपने सपने बताते हुए क्रमश कहते रहे, जहाँ इरशाद खुद का पब्लिशिंग हाउस खोलना चाहता था, वहीँ नूर अपने फैशन डिजानिंग के कोर्से के बाद खुद का फैशन इशू निकालना चाहती थी|

अपने सपनो को खुलकर एक दूसरे के रखते दोनों की मुस्काने एकसार हो जाती है|

***

दो की जगह वह तीन घंटे एक साथ बैठ गए थे और समय परवाज़ बना जाने कहाँ उड़ गया था और ये बात नूर के वहां से जाने के बाद इरशाद को  अहसास हुई जो कोई बहाना बना कर वही बैठा रहा और नूर वहां से चली गई|

उसे लगा कि अब कोई नही आने वाला तो झट से मोबाईल का मेसेंजर चेक करता है जहाँ अभी अभी एक सन्देश चुपचाप आया था|

‘मुझे लगता है आप मुझसे मिलना ही नहीं चाहते, मैं वहां आई थी और आप किसी और के साथ बैठे थे, तो अलविदा मेरे अजनबी दोस्त, नाज़|’

ये पढ़ते आज पहली बार दर्द के बजाय उसे ये कोई समस्या लगी और आगे क्या होगा ये सोच वह अपनी बगलें झांकने लगा|

क्रमशः………….

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