
हमनवां – 23
शैफाली का दिन तो कट गया पर दुपहरी बीतते बीतते उसका मन उससे छूटने लगा तो घर में छुपाई रखी वोडका लेकर वह बैठ गई| ढलती दुपहरी की रौशनी खींचती हुई शाम दीवारों से सरकती सरकती अब बिलकुल ही लुप्त हो रही थी| वह जिस कमरे में बैठी थी अब वहां धीरे धीरे अँधेरा होने लगा था, पर मन की उदासी उसपर इतनी भारी गुज़र रही थी कि उसकी हिम्मत नहीं हुई कि उठकर कमरे की बत्ती जला ले| वह धीरे से बोटल अपने नजदीक सरकाती दो पल उसे एकटक देखती रही, जैसे खुद से किए कोई वादे की वादाखिलाफी करने जा रही हो, ऐसा करते उसके होठों पर दबाव आ जाता है|
वह बोटल खोलकर होंठों से लगाने ही वाली थी कि सहसा एक आवाज़ उसके कानों में गूंज गई और घबराहट में उसके हाथों से बोटल सरक कर उसकी गोद में आ गिरी, बोटल सीधी गिरी फिर भी कुछ बूंदे उसकी स्कर्ट पर फैल गई| वह बोटल के गिरने की आवाज़ और अचानक आई आवाज़ को अपनी तन्द्रा में अलग अलग करके सोचने लगी कि आवाज़ फिर गूंज उठी और उसका दिमाग सुनिश्चित कर लेता है कि डोर बेल की आवाज़ है, वह तुरंत बोटल उठकर किनारे रखती हुई उठ जाती है|
उस पल के अपने अकेलेपन में किसी की मौजूदगी उसमें इतना उत्साह भर देती है कि वह तुरंत दरवाज़े के पास पहुँचती उसे झट से खोल लेती है| सामने मोहित था…..मोहित का एक हाथ जैसे फिर कॉल बेल बजाने उठा ही रह गया, शैफाली तड़प कर उसके सीने से लग गई, वह भौंचक देखता रह गया| शैफाली बेचैनी से हौले से कह रही थी – “मुझसे मिलने आए हो – ग्रेसियस(शुक्रिया) !!!” शैफाली उसके सीने से लिपटी थी और वह किसी बुत सा खड़ा रह गया| दो धड़कने अनजाने की अब एक ही रिदम में धड़कने लगी थी|
“अरे तुम स्पोर्ट्स वाले भी न |”
मानसी की आवाज़ से उसकी तन्द्रा भंग हुई और वह झट से मोहित से छिटक कर दूर हट कर गहरी गहरी सांसे लेने लगी| मानसी सीढियों की ओर से आती दिख रही थी|
“ये देखो तुम मुझसे पहले पहुँच गए – इस कम्बख्त लिफ्ट को आज ही बंद होना था |”
शैफाली अब देखती है कि मोहित किसी बुत सा वहीँ खड़ा है जबकि शैफाली अपनी अजनबी निगाहों से उसकी ओर देख रही थी|
“अरे भई यही खड़े रखना है कि अन्दर भी बुलाओगी |”
शैफाली बिन शब्दों के अपने चेहरे पर हलकी मुस्कान लाती अब दरवाज़े के किनारे खड़ी हो जाती है| अब उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी किसी भी चेहरे की तरफ सीधा देख सके जबकि वह सुनिश्चित हो चुकी थी कि उसे ऐसा करते किसी और नज़रों ने बिलकुल नहीं देखा था पर अपनी बदहवासी पर खुद ही शरमा गई थी वह|
अपनी बेखुदी से हट कर अब शैफाली का ध्यान अन्दर आती मानसी की ओर जाता है जो लगातार कहे जा रही थी – “सोचा आज सन्डे है तुम अकेली बोर हो रही होगी – तो मिलकर कुछ पार्टी शार्टी करते है – तुम चिंता मत करो सारा इंतजाम मैंने कर लिया है – तुम बस कोई मूवी लगाओ – पिज़ा, कोल्डड्रिंक सब मंगा लिया है – मोहित तुम खड़े क्यों हो – और ये जय और इरशाद कहाँ रह गए – कहीं नीचे बैठे बैठे – अभी देखती हूँ |” कहती हुई मानसी मोबाईल निकालकर मुड़ती है तो शैफाली उसका हाथ थामती हुई कहती है –
“थैंक्स मानसी – तुम आज बिलकुल सही समय आई |”
मानसी को लगा उसकी उदासी मिटाने वह सही समय पहुंची|
“थैंक्स क्या – आफ्टर आल वी आर फ्रेंड्स यार – बिन कहे ही सब समझ लेते है – समर भी आता पर उसकी ड्यूटी है आज – और ये मोहित महाराज आ ही नहीं रहे थे मैं पकड़ कर लाई हूँ – मैंने कहा कि दो तीन घंटे बिताते है सब साथ – सन्डे का मज़ा आ जाएगा|”
मोहित की ओर इशारा कर अब वह जय को कॉल लगाती लगाती बुद्बुदाती है – “पता है मौका पाते दोनों हवा में छल्ले उड़ा रहे होंगे |”
मोहित अभी भी बुत सा बैठा जाने किस धुंध को निहारते खोया खोया शून्य को निहार रहा था इससे बेखबर की कोई नज़र अब उसी को ताक रही थी तबसे|
***
आज हॉस्पिटल से समर समय से पहले आ गया था, आते ही थका होने के बावजूद वह तुरंत रसोई की खिड़की तक आ पहुंचा वही खड़ा खड़ा बेसिन में मुंह धोते धोते देर तक अपनी नज़रे उस खिड़की के पार लगाए रखे था लेकिन काफी देर तक खड़े रहने के बाद मायूस होती नज़रे अपने को रोक नहीं पाती वह किसी के दीदार के लिए बेसब्र होती झट से सीढ़ियाँ उतरती ऋतु के घर तक चल दी| ये सोच कि उसके पैर का हाल लेने का बहाना शायद अभी भी काम कर जाए| पिछले दिनों ऋतु के पैर के चक्कर में जाते जाते अब उस घर में बेधड़क जाने का उसका हौसला होने लगा था|
रात के आठ बजने ही वाले थे, मन संकोच से कभी अपने कदम धीमे कर लेता पर तभी जज्बात हौसलों की रवानगी भर देते कदमो में और वह ऋतु के घर तक जाने से खुद को रोक नहीं पाता अब वह उस घर के बाहर खड़ा बस वहां दस्तक देने ही वाला था कि कुछ अधखुले मुख्य दरवाज़े से दो आवाज़े आपस में टकराती हुई उसे सुनाई देती है, उसके कदम वही थम जाते है| उन आवाजो में उसका नाम भी लिया गया ऐसा सुनते उसके कदम अब उस वार्ता को सुने बगैर पीछे भी न हट सके|
बुआ जी की आवाज़ में तल्खी थी तो ऋतु की आवाज़ में ढ़ेरों मिन्नतें|
“अब क्या करना है वो भी बता दे – अभ्युदय भी चला गया उसके जाते मेरी तुमपर से सारी उम्मीद भी – उस समर हाँ हाँ जानती नही क्या मैं – जब सब कुछ तुमने सोच ही लिया है तो मेरी इस घर में जरुरत ही क्या है !!”
ये सुनते समर के पैर भी जैसे कांप गए, क्या ऋतु सच में सिर्फ उसकी वज़ह से किसी दोराहे में खड़ी थी|
“क्या कह रहीं है आप !!”
“मैं तो वही कह रही हूँ जो देख रही हूँ – तुम्हारी मनमानी देखती हूँ तो दिल तार तार हो जाता है – जाने क्या सोच भईया भाभी के जाते तुम दोनों की परवरिश का ठीकरा अपने सर ले लिया – नहीं तो पड़ी रहती आश्रम में न जूझती रहती किसी सांसारिक पचड़े में !!”
समर अगले पल तक ऋतु की कोई आवाज़ नही सुनता फिर भी उसका मन ऋतु की हालत का अंदाजा लगा पा रहा था|
“बस मुझे तो यही ख्याल आता है कि जब मनमानी से मैं तुझे न रोक पाई तो कल को वर्षा को क्या कह पाऊँगी – अब तो राम जाने क्या होगा |”
माचिस की आवाज़ से समर अंदाजा लगाता है कि बाहर आंगन में दियाबाती के समय शायद वे आपस में बिफ़र पड़ी थी|
ऋतु की ख़ामोशी वह दीवार के पार से भी सुन पा रहा था, पर बेबसी उसके कदम वही जमाए रखे रही, वह चाह कर भी उसके टूटे मन को सँभालने अपने कदम आगे न बढ़ा सका|
वह वापस मुड़ने लगा कि उसकी आवाज़ ने फिर उसके कदम थाम लिए|
“बुआ जी रिश्ते जोर जबरदस्ती से जोड़े जा सकते है पर निभाए नही जा सकते – बस आपको अपनी ओर से इतना वचन दे सकती हूँ कि मैं आपकी हाँ के बिना समर की ओर और अपना कदम आगे नहीं बढ़ाऊंगी – इसे आप मेरा वचन ही समझिए |”
वह इन शब्दों के एक एक हर्फ़ का दर्द आसानी से समझ पा रहा था और मौन ही ऋतु से वो भी वादा कर बैठा कि मैं भी इस वचन में साथ हूँ तुम्हारे ऋतु|
अब सहज ही उसके कदम वापसी को मुड़ गए|
***
एक रात और ढेर बेचैनियाँ उसके दिल में उमड़ रही थी, उस एक पल के अहसास से मोहित का अतीत बीते वक़्त की सीमा लांघता जबरन उसके दिलोदिमाग में उमड़ आया| वहां सब हँस रहे थे, बात कर रहे थे पर मोहित अपनी ही खामोशियों में कहीं गुम होता जा रहा था, उसका पहला प्यार उसकी आँखों के सामने चलचित्र सा चल दिया| कितना अनजान था इस अहसास से लेकिन उसके आने से और उस चेहरे के दिल में समाते जैसे सारी दुनिया से पराया हो गया था मोहित|
अपनी नौकरी के पहले दिन वे दो जोड़ी ऑंखें आपस में मिली थी जब एक ही सीट के लिए संध्या को अस्वीकार कर उस सीट के लिए उसका चयन कर लिया गया था, तब कितना बुरा लगा था उसे, वह छोड़ भी देता ये जॉब पर उसने जाने कैसे समझ लिया और मुस्करा कर कहा – “यू डिज़र्व इट |” वह चली गई और चाह कर भी वह उसे रोक न सका|
पर वक़्त ने उनकी मुलाकात शायद आगे भी सोच रखी थी तभी जब मोहित उसके ख्याल से लिपटा बस पर चढ़ा ही था कि सहसा उसी बस में वही चेहरा फिर उसे दिख गया, बस में कितनी भीड़ भी, जाने कितने चेहरे समाए थे पर उनमें से उसी चेहरे को जाने कैसे पहचान लिया उसने, वे मुस्काने दूर से एक दूसरे से गले मिल ली| वह अपने हाथ की पकड़ी फाइल उठाकर बताना चाह रही थी कि अभी भी नौकरी ढूंढना उसने छोड़ा नहीं है, वह मुस्करा पड़ा और आँखों से ही बेस्ट ऑफ़ लक कह दिया|
अब ये अनजानी मुलाकात सुबह सुबह अक्सर ही हो जाती जिससे उसकी सुबह और तरोताजा हो उठती तब उसका जी चाहता कि उसके बीच के ये सारे चेहरे गायब हो जाए, पर वह सोचता ही रह गया, न चेहरे गायब हुए न कभी वह अपने दिल की कह सका उससे| उस दिन भी क्यों नहीं गया बस से !!! उसे बहुत तेज़ बुखार था और चाहकर भी वह अपने बिस्तर से न हिल सका|
पूरा दिन ऑंखें बंद किए जैसे उसकी यादों से लिपटा रह गया और सुबह जब नींद खुली तो डर और बदहवासी ने घेर लिया उसे, अख़बार की पहली खबर थी| वे चंद शब्द उसके दिल पर भूचाल से ले आए| उसकी रोजाना की बस का भयंकर रोड एक्सीडेंट हो गया था, काफी लोग हताहत हुए थे| असल में दो बसों की आपस में टक्कर हो गई थी| सवारियों से भरी बस टकराई तो कई बेबजाह जाने चली गई, अखबर वालों ने मरने वालों की लिस्ट निकाल दी|
न चाहते हुए भी वह उसमें उस एक नाम को नही देखना चाहता था फिर भी सारी लिस्ट एक एक बढ़ती धड़कन के साथ देख गया| संध्या……नाम के साथ उसका सब वही जल कर राख हो गया, दर्द किसी दरिया सा दिल से बह निकला| एक ही पल में आबाद दुनिया बर्बाद भी हो गई थी| मोहित किसी तरह से दर्द को जब्त किए हुए देखता है कि इरशाद और मानसी किसी बात पर आपस में उलझ रहे थे तो शैफाली खिलखिला कर हँस रही थी|
वह धीरे से उनके बीच से उठता हुआ अपने लिए पानी लेने चल देता है|
***
इसी काली रात में कही किसी कमरे की मध्यम रौशनी में कुछ लोग बैठे जोर शोर से चर्चा कर रहे थे, कमरे में तीक्ष्ण शराब की गंध और सिगरेट के घुंघराले धुंए के बीच वहां बिन चेहरे की बस कुछ धीमी और तेज़ आवाज़े थी जो आपस में कड़ाई से कह रही थी –
“यार रखो तुम्हारे महंगे शौक तुम्हारी पत्रकारिता से नही बल्कि मेरे नोटों से पूरे होते है और बिन काम के मैं कीमत नही देता |”
ये सुन दूसरी आवाज़ जैसे लड़खड़ाते हुए बोल उठी – “कैसी बात कर रहे है आप – मैं अपने काम में लगी हुई हूँ |”
“तो मुझे दिख क्यों नहीं रहा ?” पहली आवाज गरज उठी – “चुनाव आने वाले है और मैं अब किसी भी कीमत में अश्विन कुमार का उससे पहले तख्ता पलटना चाहता हूँ इसलिए अपने काम में तेज़ी लाओ या मुझे ही तेज़ी से तुम्हारा रिपल्समेंट लाना पड़ेगा – |”
दूसरी आवाज़ बुरी तरह से घबरा गई, उसके शब्द लडखडा गए – “मैं आपको यकीन दिलाती हूँ कि अब आप जल्दी ही देखेंगे कि मैं कैसे अश्विन कुमार का राजनैतिक जीवन अपनी कलम से बर्बाद करती हूँ – आप तो जानते ही है मैं खबरे ढूंढती नहीं बल्कि बनाती हूँ -|” वह आवाज़ अब धीरे से हँस पड़ी थी – “असल में उसका अतीत खंगालने में समय लग गया – कम्बख्त ने हज़ार तह के नीचे छुपा कर रखा था पर मुझे ज्यादा देर नहीं छुपा नहीं रह सकता – आप बस देखते जाए – अगली हर खबर के साथ अश्विन कुमार के नाम को मैं कैसे इस्तेमाल करती हूँ |”
“चलो देखते है |”
अब वहां ठहाकों के जोर हवा में गुबार बन गूंज उठे थे|
क्रमशः………..