Kahanikacarvan

हमनवां – 24

“गाँव जाने की तैयारी – उसकी क्या तैयारी करना !!” मोहित चौंकते हुए पूछता है जय से जो उसे अपने मार्किट जाने की बात बताते हुए उसे भी साथ चलने का निमंत्रण दे रहा था|

“हाँ हाँ तैयारी – तो क्या शादी में तुम अपनी यही स्पोर्ट्स टी शर्ट और हाफ पेंट पहन कर जाने वाले हो !!”

“तो बुराई भी क्या है इसमें |” मोहित आराम से कहता हुआ अपने हाथ में पकड़ी बास्केटबाल दीवार पर लगे बास्केट पर डालने के लिए निशाना बनाता हुआ कहता रहा – “हम भाई है – कोई बाराती नही – मुझे कुछ नहीं खरीदने जाना  –|”

हमेशा की तरह खरीददारी जैसे विषय पर अपनी बेरुखी जाहिर करता है तो जय बढ़कर उसके हाथ से बास्केटबाल झटके से लेता हुआ ड्रिब्लिंग करता हुआ कहता है – “यार तू बड़ा बोर है |”

घर के पीछे छूटे हिस्से को साफ़ कर मोहित ने बास्केटबाल कोर्ट जैसा बना लिया था अपनी प्रैक्टिस के लिए| ऑफिस से जल्दी आ जाने के बाद शाम को मानव को पढ़ा लेने से फारिग़ होकर वही देर तक पसीना बहाते जय और मोहित बास्केटबाल खेल रहे थे|

पसीने से तरबतर जय अपना पसीना झटकते जल्दी से एक फाउल करने आगे बढ़ता है तो मोहित फिर उसके हाथों के बीच से बॉल लेता हुआ तेज़ी से ड्रिब्लिंग  करता हुआ उस छोटे कोर्ट में भी जय से बचता हुआ चक्कर लगाने लगता है, जय उसकी तरफ  बढ़ता है, दोनों मुस्करा कर एक दूसरे की ओर देखते है पर मोहित फुर्ती से ऐसा शोर्ट लगाता है कि एक बार में ही बॉल बास्केट के आर पार हो जाती है|

“अबे नहीं |” जय एक मुद्रा में खड़ा देखता रह जाता है, मोहित अपने घुटनों पर हाथ रखे अब तेज़ तेज़ साँस लेता धीरे से मुस्कराता हुआ जय की तरफ देख रहा था कि तेज़ ताली की आवाज़ से दोनों का ध्यान उस ओर जाता है जहाँ अब शैफाली खड़ी थी|

उसके चेहरे पर भरपूर मुस्कान थी, तो मोहित अपनी सांसो को सँभालते अपनी टीशर्ट को कंधे से थोड़ा उचकाता हुआ उनमे हवा भरता है, जो पसीने से तर होकर उसके शरीर से चिपक कर उसका मांसल शरीर अब बाहर झलका रही थी|

“चल अपना तो टाइम पूरा हो गया – मानसी मेरा वेट कर रही होगी मार्किट में – अगर अबकि देर हो गई न तो अपना कोर्ट मार्शल होने से कोई नहीं रोक पाएगा |”

जय कहता हुआ शैफाली को हवा में हेलो कहता तेज़ी से वहां से निकल जाता है| जय के जाते मोहित चाह कर भी वहां से न निकल पाया बल्कि मुस्करा कर उसे शैफाली का अभिवादन करना पड़ा जो उसकी ओर बस मुस्कराते हुए ताक रही थी|

***

“फोन क्यों नही उठाते – कितना मसरूफ रहते हो – मुझे पता है खाना भी क्या ठीक से खाते होगे – क्या  पता |” हमेशा की तरह कई बार के मिलाने के बाद इरशाद अप्पी का फोन उठाता है|

“अप्पी सच में आज थोड़ा ज्यादा मसरूफ रहा – और खाने की चिंता आप बिलकुल न करे सुबह ही ऊंट की तरह खा लिया था ताकि दोपहर तक चले|”

इरशाद को पता था कि अगर उसके खाने की लापरवाही अप्पी ने जरा भी महसूस की तो झट से उसे अपने पास बुला भेजेंगी|

“अच्छा नूर से मिले !!’

इरशाद का दिल एकदम से धक से होकर रह गया|

“क्या हुआ – मिले कि नहीं !!”

इरशाद क्या बोले जब तक सोचता अप्पी अधीरता से फिर पूछ बैठी|

“मिला था मतलब नहीं मिल पाया था |”

“मतबल कि वो नही मिली तुमसे !!”

“नहीं अप्पी मैं बिज़ी था पर आज हाँ हाँ मिलकर बताता हूँ आपको – अच्छा अप्पी अभी एक जरुरी मीटिंग है – मैं शाम को आराम से बात करूँगा आपसे |”

“अरे ….|” अप्पी फोन हाथ में लिए रह गई और सलाम कहकर इरशाद ने फोन रख दिया|

फोन रख तो दिया पर अब सच में नूर से मिलने एक कसक सी उसके मन में उठने लगी और झट से उसके दिए नंबर पर शाम को मिलने की गुज़ारिश के साथ एक सन्देश छोड़ता हुआ एक ठंडी आह छोड़ता है| फिर तुरंत ही मेसेज को चेक करता है, सन्देश जा चुका था पर उसके न के डर से वह नूर को कॉल न कर सका अब एक एक धड़कन के साथ उसका इंतजार बेसब्र होता रहा|

***

जय के जाते मोहित बॉल को उठाने आगे बढ़ता है उससे पहले शैफाली झट से बॉल अपने पाश में लेती हुई कहती है – “मे आई !!”

उसकी नीली ऑंखें मोहित के चेहरे पर टिकी थी जो शैफाली को छोड़ अन्यंत्र जगह भटक रही थी|

“नो वे |” वह उसके पास से बॉल न लेकर घर की ओर बढ़ जाता है|

शैफाली अरे करती उसके पीछे पीछे आती है|

“मुझसे डर गए क्या ?”

मोहित सीढियाँ चढ़ते हुए पलटता है – “नही खुद से |” यही वो पल था जब शैफाली बॉल लिए नीचे खड़ी रह गई और मोहित की उड़ती नज़र उसके चेहरे पर टिक गई| चेहरे पर ढेर गुलाब खिल आए थे शैफाली के चेहरे पर, एक तरफ को किए पोनी में बंधा स्कार्फ हवा संग इठला रहा था|

अगली सांसो तक जैसे सारा तिलिस्म टूटता है और मोहित फिर पलट कर वापस चल देता है, पीछे पीछे शैफाली भी ऊपर आते आते बोल रही थी – “अजीब हो तुम और अजीब है तुम्हारा शहर – इस घर और तुम्हारे कॉलेज के अलावा कुछ और नही है इस धूल धुंए से भरे शहर में !!”

वे घर तक आ गए थे|

“बहुत कुछ है – इस एक दिल्ली शहर में सारा हिंदुस्तान समाया है और क्या चाहिए |” मोहित उसकी बात का जवाब देने उसकी ओर पलटता है|

“मुझे तो इस घर में सारा देश समाया लगता है |” वह यूँ मुस्करा कर कहती है कि मोहित भी मुस्कराए बिना नहीं रह पाता|

“फ़िलहाल मैं एक नंबर देता हूँ – रुको |”

शैफाली कुछ समझ नहीं पाती, वह बॉल नीचे छोड़ती हुई देखती रह जाती है कि मोहित अब बैठकर अपने मोबाईल से कुछ सर्च करके लिख रहा था – “ये टूर वाले का नंबर है इसे मिलाओ और पूरा शहर घूम लो|” कहकर मोहित उसकी तरफ कागज बढ़ाकर उठ जाता है|

मोहित उठकर आगे बढ़ा ही था कि उसका मोबाईल बज उठा| वह फिर पलट कर फोन उठाते हुए अब शैफाली को देखता है|

“क्या मुझे दिल्ली घुमा सकते है बदले में मैं बिलकुल परेशान नहीं करुँगी |”

शैफाली के चेहरे पर चंचल मुस्कान थी पर झेंपा हुआ सा मोहित उसकी ओर देख रहा था कि शैफाली ने उसी का नंबर मिला लिया था|

वह भौं उचका कर मानों फिर कोई सवाल करती है|

“कहीं ऐसा न हो कि मेरे संग परेशान हो जाओ |” उसे टालने को फिर कोई दांव फेंकता है पर सब बेकार करती शैफाली कह उठती है –

“लेट्स ट्रराय |”

“ओके कल |”

“आज क्यों नहीं – तुम्हारा शहर जल्दी सो जाता है क्या !!”

मोहित तंग भरी नज़रों से उसे देखता हुआ कहता है – “चलो तुम्हारी ये भी तमन्ना पूरी कर देते है – बस पांच मिनट रुको – आता हूँ |”

शैफाली आँखों से हाँ कहती उसे जाते हुए देखती हुई वही बैठ जाती है|

***

शैफाली सच में घड़ी देखती रह गई और ठीक पांच मिनट में अपने सिम्पल लुक में मोहित तैयार खड़ा था बाहर जाने के लिए|

गर्मी की लम्बी शाम में हर सड़क, गली कूंचा लोगों से आबाद था, दिन भर की गर्मी से परेशान हैरान लोग बाग़ रौशनी भरी सड़क पर हर तरफ मस्ती करते नज़र आ रहे थे| हर तरफ भीड़ थी, लोगों का हुजूम सा बिखरा था, उसी में से गुज़रते मोहित जान कर शैफाली को भीड़ भरी जगह ले जाता है, जहाँ उसे कई जगह पैदल चलना पड़ता है| मोहित धीरे से मुस्कराते देख रहा था कि शैफाली अपनी हाई हील में किस तरह अपने छोटे छोटे कदमों से बार बार उसके पीछे रह जाती, फिर किसी तरह से दौड़कर उसके साथ साथ चलने लगती|

काफी देर चलते चलते शैफाली थक तक चूर हो रही थी पर मोहित के बार बार थक गई पूछने से उछलती झट से उठकर फिर चलने लगती और मोहित कंखनियों से ये देख धीरे से हँस देता|

खाने का शौक़ीन मोहित खाने की अपनी मनपसंद जगह आता है जहाँ शैफाली पहले झट से कुर्सी पर बैठती चैन की साँस लेती है| मीनू कार्ड शैफाली की तरफ बढ़ाने पर शैफाली उसे उसी की ओर धकेलती हुई कहती है – “आज मुझे कुछ बढ़िया अपनी पसंद का इंडियन खाना खिलाओ |”

“पक्का !!”

यहाँ भी मोहित जानबूझ कर पंजाबी मसालेदार खाने का ऑर्डर करता हुआ पहले ठंडी लस्सी मंगाता है| शैफाली लस्सी देख उसे किसी तरफ से आधा ही गटक पाती है पर मोहित उसे एक ही बार में खत्म कर अपने पंजाबियों वाली आह छोड़ता है जिसपर वह खिलखिला कर हँस पड़ती है| फिर दाल मखनी, पंजाबी छोले, बटर नान जैसे खाने से सजी मेज़ देखकर ही शैफाली का जैसे दम निकल जाता है, वह पूछ बैठती है – “ये खाना हम दो के लिए है !!”

“हाँ फुल पंजाबी खाना – अब तुम्हें खाना पड़ेगा |” कहते हुए वह उसकी प्लेट में खाना उझेलकर उसे

खाने के लिए कहता अब अपनी प्लेट में खाना डालता है|

शैफाली पहले कौर में ही आधा गिलास पानी पी जाती है| मोहित आँखों से बार बार उसे खाने को उसका कर खुद चटकारा लगाता खाने लगता है| शैफाली भी हार न मानती हुई किसी तरह से खाने को निगलती रहती है, कई बार नाक से कभी आंख से पानी आते टिशू से जल्दी से पोछकर जबरन चेहरे पर मुस्कान लाती फिर खाने लगती|

अपनी प्लेट का कुछ खाया कुछ छोड़कर हार मानती वह अपनी प्लेट सरका देती है जिसपर मोहित कह उठता है – “अरे ऐसे कैसे बिना पंजाबी हलुवा खाने मेनू कम्प्लीट कैसे होगा|”

“नही !”

शैफाली के चेहरे ही उड़ी हवाइयों को अनदेखा कर मोहित अपना ऑर्डर दे देता है|

हलुवा झट से आ भी जाता है, एक दम गरम गरम हलुए से धुँआ निकलता देख शैफाली उसे घबरा कर देखने लगती है|

“अब इसे नहीं खाया तो |” कहते हुए वह लगभग जबरन उसके मुंह की ओर चम्मच बढ़ा देता है|

मोहित ने भी अच्छे से ठान लिया था इसलिए शैफाली के लिए बचने का कोई रास्ता नहीं था  लेकिन शैफाली भी किसी तरह हिम्मत कर उसे आधा ही खा पाई|

उसकी मरमरी हालत पर मोहित को अन्दर से भरपूर हँसी छूट रही थी|

वहां से निकलते अब मोहित इंडिया गेट जाने के लिए निकलता है, शैफाली के लिए अब चलना दूभर था पर वह किसी भी तरह से मोहित के आगे हार मानने को बिलकुल तैयार नहीं थी|

अपने छोटे छोटे क़दमों से उसके साथ को लपकती वह अब इण्डिया गेट पर थी| चारोंओर की रौनक कुछ पल में उसमें अजब सी ताजगी भर देती है| रौशनी के बीच जगमगाते इण्डिया गेट को बरबस वह निहारती रही फिर अमर ज्योति को दूर से देखती वह अपने चारोंओर नज़र दौड़ाती है, बच्चे बड़े सब मिलकर मस्ती के मूड में थे वहां, मानों रात न होकर सुबह हो गई हो| तरह तरह के रेड़ी वाले, कोई गुब्बारे लिए जाने कितने चेहरे कितने भावों को समेटे लोग वहां मौजूद थे पर सब अपने में मस्त| कही जोड़े एक दूसरे का हाथ थामे टहल रहे थे| उन्हें देखते देखते वह आगे बढ़ रही थी कि किसी जोड़े पर उसकी निगाह ठहर जाती है, उसे लगता है वह उन चेहरों को पहचानती है, फिर झट से मोहित का ध्यान भी उसी ओर करती है|

जय और मानसी एक ही आईसक्रीम को साथ में बारी बारी से खाते एक दूसरे का हाथ थामे टहल रहे थे कि जय की पीठ पर मोहित का हाथ पड़ता है और वह झटके से पीछे देखता है|

अब वह चारों एक साथ खिलखिला रहे थे| वे बाहर की ओर निकल रहे थे कि स्टैंड पर उनकी नज़र और किसी से भी टकराती है और जय झट से उसे अपनी ओर करता हुआ पूछता है|

वहां इरशाद के साथ नूर थी जो सबको अपनी ओर देखते बुरी तरह से झेंप गई थी|

इरशाद सबको नूर से मिलवाता है तो झट से उसको कोहनी मारती मानसी कह उठती है – “तो इन्हीं नूर से तुम्हारी जिंदगी में नूर है|” मानसी धीरे से कहती है पर नूर इशारे समझ धीरे से मुस्करा देती है|

शैफाली को सब बहुत अच्छा लग रहा था, उसकी थकान कुछ पल के लिए जैसे गायब सी हो गई थी, सब एक दूसरे से ऐसे मस्ती कर रहे थे ये देख उसे लगने लगा जैसे वे कोई एक ही परिवार है, जिसका तो कभी वह सपना तक नही देख सकी|

“अच्छा नौ बज गए मैं जा रही हूँ|” मानसी झट से बोली तो नूर को भी समय का ख्याल आया|

“मुझे भी जाना है – मुझे टैक्सी लेनी है|” नूर भी जल्दी से बोली|

“मैं छोड़ देता हूँ !” इरशाद लपक कर बोला|

“लेकिन !!”

“एक मिनट एक मिनट – मैं बताता हूँ|” मोहित बीच में आते हुए कहता है – “इतनी रात टैक्सी से कैसे जाएगी नूर – मेरे ख्यालसे मानसी तुम इन्हें घर छोड़ दो – तुम तो स्कूटी से हो – इरशाद शैफाली को घर छोड़ देगा और जय मेरे साथ घर चला जाएगा – राईट |”

एक पल ये सब उलट फेर सुन जय और इरशाद मोहित का चेहरा देखते रहे तो मानसी और नूर के चेहरे पर मुस्कान थिरक उठी|

लेकिन सबको सोचता छोड़ता हुआ मोहित सबको जल्दी जल्दी करने को कहता है और फिर मानसी नूर के साथ चली जाती है, तो शैफाली को इरशाद के साथ जाते देख मोहित जय की ओर देखता है जो उसके कंधे पर हाथ रखता हुआ कह रहा था – “सब चले गए अब हम भी चले !”

जय उसका हाथ झटकते हुए तुनक उठा – “अबे तुझे तो प्यार करने वालो की हाय लगेगी – सब उल्टा पुल्टा कर दिया |”

जय की हालत पर मोहित हँसते हुए आगे बढ़ने लगा|

क्रमशः…….

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