Kahanikacarvan

हमनवां – 25

शैफाली बुरी तरह से थकी थी पर दिन भर की स्मृतियाँ उसके मन में अजब ही हलचल मचाए रही| घर आते अपने पैर सेंकती सेंकती कब सो गई उसे पता ही नहीं चला| पहली बार कितनी सुकून भरी नींद आई थी उसे जब बिना किसी व्यसन के उसका पूरा दिन बीता था|

एक ताज़ी सुबह में मुस्कराती हुई वह करवट बदलती है जिससे झीने पर्दों की दीवारों से छन छनकर आती धूप की सुनहरी किरणें आभा बन उसके चेहरे पर दमक उठती है| उसकी आंख खुलते ही किसी का ख्याल उसके चेहरे पर बरबस ही मुस्कान ले आता है, वो झट से तकिया अपनी सीने से चिपटाए लेटी ख्यालों की यात्रा में फिर किसी का हाथ थामे निकल पड़ती है, कभी सीढ़ियों से उतरते मोहित जब उसे संभालते उसका हाथ थाम लेता और उनके कदम एक सार हो उठते, कहीं भीड़ से बचाते उसे अपने से आगे कर उसके पीछे पीछे कैसे संरक्षक की तरह उसके साथ चलता, ख्यालों में फिर मोहित तीखी मिर्च खाता और आह शैफाली के निकल जाती…… उसे अपने चारोंओर जलतरंग से बजते सुनाई पड़ने लगते  है| वह अंगड़ाई लेती हुई उठती है, तो पता चलता है कि काफी देर से लगातार डोर बेल बज रही है, वह झट से दौड़ती हुई दरवाज़ा खोलती है तो सामने परेशान सी भावना खड़ी थी और उसके पीछे सामान से लदा पवन खड़ा था|

भावना के चेहरे पर चिंता की लकीरे गहरा गई थी वह शायद दरवाज़ा न खुलने की स्थिति में बहुत कुछ सोच ले गई थी, पर इसके विपरीत शैफाली उसका अपनी भरपूर मुस्कान से स्वागत करती है|

जब तक भावना समझ कर कुछ रीएक्ट करती शैफाली झट से उसकी गले लग जाती है| भावना अबूझ सी खड़ी रह जाती है|

“वेलकम टू होम |”

शैफाली अन्दर की ओर चलती हुई कहती रही और इसके विपरीत भावना और पवन के चेहरे एक साथ औचक उसे देखते रह गए|

“फेश हो तब तक ब्रेक फ़ास्ट मैं बनाती हूँ|”

शैफाली किचेन की ओर चली गई और वे दोनों प्रश्नात्मक मुद्रा में एक दूसरे की ओर देखते रहे|

“सच में हम अपने ही घर आए है न !!”

“लग तो मुझे भी यही रहा है |” कहती हुई भावना अब उस ओर देखती है जहाँ से शैफाली गई थी|

“क्या ये बदलाव मानसी की वज़ह से है – हमने तो पिछले एक हफ्ते से उससे बात भी नही की |”

पवन अभी भी सामान लादे वही खड़ा रहा|

दोनों मौन अब शैफाली को गुनगुनाते हुए सुन रहे थे|

***

नजमा आपा इरशाद की खनकती आवाज़ से ही उसके दिल का हाल समझ गई और झट से अपनी ख़ुशी बाँटने नूर की अम्मी को फोन लगा बैठी पर नज़मा अप्पी की ढेर ख़ुशी को राख करती उनकी ठंडी आवाज़ बता रही थी –

“नजमा अगर ऐसा है तो बड़ी ख़ुशी की बात है पर नूर की बात से मुझे ऐसा कुछ नही लगा – मुझे लगता है हमे थोड़ा और इंतजार करना चाहिए |”

बेसब्र होती आवाज़ अब उनकी ठंडी आह में बदल गई थी| उधर दूसरी ओर से नूर की अम्मी फोन रख चुकी थी पर नज़मा अप्पी फोन पकड़े रह गई थी|

दूसरी ओर इरशाद सुबह से नूर को मिलने का सन्देश भेज बेसब्री से उसके उत्तर का इंतजार कर रहा था| वह अपने व्यस्त समय से बार बार समय चुराते अपना मोबाईल चेक करता पर वहां कोई सन्देश न पाकर ढेर निराशा से भरता फिर उसे अपनी पॉकेट के हवाले कर देता| सन्देश देखा जा चुका था पर अभी तक उसका कोई जवाब नही आया था| इस बेचैनी में इरशाद का मन भी नही लग रहा था| न चाहते हुए भी बार बार उससे टाइपिंग मिस्टेक हो रही थी| कभी सोचते रह जाने की मुद्रा में वह खड़ा रह जाता और सामने वाले को उसे हिलाकर उसकी चेतना में वापिस लाना पड़ता| पूरा दिन बीतते बीतते उदासी में उसका दिन डूबता चला गया पर नूर का कोई जवाब नही आया|

***

दोपहर के ढाई बजे ही शैफाली मोहित के कॉलेज आ गई| उसके जैसी विदेशी लुक वाली लड़की को कॉलेज में देख लड़कियां आपस में खुसुर पुसुर करने लगी थी, सब जानना चाहती थी कि वह यहाँ किससे मिलने आई है, और जैसे ही उसने मोहित का नाम लिया झट से लड़कियों के साथ कुछ टीचर के भी कान खड़े हो गए| पर उन सबके बीच से निकलती वह मोहित को पूछती पूछती कॉलेज के स्टाफ रूम की तरफ बढ़ रही थी, कि किसी रूम से हाथ में खुला रजिस्टर लिए मोहित उसी ओर आता दिख गया|

मोहित की एक नज़र रजिस्टर पर तो दूसरी नज़र साथ साथ चलते कर्मचारी मदन पर थी पर मदन की उड़ती नज़र शैफाली पर आती है जो अपने सामने से आ रहे मोहित पर अपनी बेसब्र नज़र जमाए खड़ी थी|

“सर जी |” मदन मोहित को टोकना चाहता था|

“ये सारा सामान जो मैं टिक लगा रहा हूँ – मेरे रूम में चाहिए – अभी नेशनल खेलने जाना है बच्चों को और यहाँ सामान भी नही पहुंचा|” मोहित का ध्यान अभी भी रजिस्टर से मदन तक गया था|

“सर जी |” उसकी आवाज़ जैसे बैठी जा रही थी, वह अब उसके हाथ से रजिस्टर लेता उसका ध्यान उसके सामने की ओर करता है|

मोहित अपने सामने नज़र उठाता है, बस कुछ कदमो की दूरी पर खड़ी शैफाली उसे देखकर मुस्करा रही थी, पर उसके वहां होने से मोहित के चेहरे का रंग उड़ गया| वह दो पल तक उस ओर देखता रह गया, नीली जीन्स पर स्लीवलेस टॉप में उसकी काया गज़ब की निखर कर आई थी| मोहित की नज़र उस पर थी और जितनी नज़रे उन्हें देख सकती थी उनकी नज़रे उन पर टिकी हुई थी|

वह तेज़ी से चंद क़दमों को सेकंडो में पूरा करता अब उसके बहुत पास खड़ा था|

“यहाँ क्यों आई ?”

“क्यों तुम्ही ने तो दिल्ली घूमने की बात कही थी|” बड़ी बेचारगी से वह बोली|

इसपर मदन धीरे से हँस पड़ता है तो मोहित का ध्यान उसपर जाता है|

“और तुम यहाँ खड़े खड़े क्यों दांत निकाल रहे हो – जाओ यहाँ से मैं आता हूँ अभी |”

मोहित की बात सुन अब मुंह लटकाता वह वापस चल देता है|

“तो चले !”

“अरे आज कुछ काम है – मुझे यहाँ देर हो जाएगी|” मोहित किसी तरह से टालना चाहता था|

“ओहो आज मैं बोर हो रही थी तो |”

“फिर कभी |” इस बार वह मुस्करा कर बहलाता है|

“अरे ये वही तुम्हारी येलो सूट वाली मैम है न – चलो इन्ही से बात करती हूँ|”

मोहित झट से अपने पीछे पलट कर अब शैफाली की आँखों की दिशा की ओर देखता है, कुसुमलता किसी साथी मैडम से बात करती करती वही आती दिख रही थी, ये देख मोहित के होश उड़ गए कि इस बार शैफाली के साथ देख लिया तो जरुर कोई हंगामा खड़ा कर देगी|

“तुम इस वक़्त जाओ ये आ गई न तो |” मोहित फिर अपने पीछे पलट कर देखता है पर मुड़ते गलियारे के बीच खम्बे के कारण आता हुआ व्यक्ति सीधा इस ओर नहीं देख सकता था|

शैफाली समझ गई कि निशाना सही जगह लगा है – “तो क्या करूँ तुम तो आओगे नही तो किसी से तो बात करुँगी – आज मैं तुम्हारी इसी मैडम से फ्रेंड शिप कर लेती हूँ|”

“क्या !!” मोहित अब शैफाली की ओर देखता है जो आराम से खड़ी मुस्कराती हुई अब उसके पीछे देख रही थी|

“बस दस कदम अब नौ…. आठ|”

“अच्छा बाहर रुको मैं ठीक दस मिनट में आता हूँ – जाओ अभी|’

“ओके |” उसे इसी पल का इंतजार था वह झट से पलट कर वापस तेज़ कदमों से चली जाती है|

शैफाली के जाते मोहित एक गहरा उच्छ्वास छोड़ता है|

“क्या हुआ मोहित सर – आप इतने परेशान क्यों है ?”

मोहित झट से अपने सामने ऑंखें खोलकर देखता है, शैफाली जा चुकी थी और उसके सामने कुसुमलता खड़ी उसी की ओर ताक रही थी|

“आपकी तबियत तो ठीक है न !!” उसके स्वर में ढेर परेशानी उतर आई थी|

“अ – एक्चुली मुझे थोड़ा जल्दी जाना था पर आज मेरा सामान इशू होने वाला है तो |”

“अरे बस इसमें क्या परेशानी है मैं आपके नाम से इशू करा लुंगी – मैं कोई पराई थोड़ी हूँ |” वह यूँ मुस्कराई कि मोहित गले से थूक गटकता बस फंसी फंसी हँसी हँसता रह गया|

पर कुसुमलता अपनी भरपूर मुस्कान से वही खड़ी खड़ी यूँ हिलने लगी थी मानों सावन की लता पुरवाई पर डोलने लगती है|

***

अपने समय का पाबंद मोहित ठीक समय पर शैफाली के सामने खड़ा था और उससे अब क्या करना है पूछ रहा था|

“कही भी ले चलो – आज मैं तुम्हारा शहर घूमने के लिए पूरी तरह से तैयार हूँ|”

मोहित देखता है कि सच में वह आज कमर कस कर आई थी और आज तो वह हमेशा की तरह सैंडिल की जगह स्पोर्ट्स शूज पहन कर आई थी|

“लेकिन पहले मैं घर जाऊंगा – मैंने लंच भी तो नहीं किया – |”

“मैंने भी लंच नही किया सोचा आज तुम्हारे साथ ही करुँगी -|”

मोहित औचक उसकी ओर देखता रहा और वह कहे जा रही थी|

“कल जहाँ गए थे वही फिर चले – ये बताओ पंजाबी दोपहर में क्या खाते है – कुछ स्पाइसी खाने का मन है मेरा तो |”

मोहित को अपना दांव ही उल्टा पड़ता दिख रहा था| वह चुपचाप अब कार की तरफ बढ़ जाता है|

मोहित कार ड्राइव कर रहा था और बगल में बैठी शैफाली बातें करती जा रही थी जिसपर बस मोहित धीरे से हाँ हूँ कर देता|

शैफाली शहर की घुमक्कड़ी से अलग अब अपनी बातों का रुख मोड़ती हुई कहती है –

“जय और मानसी बहुत ही नाइस पेअर है – है न |” कहती हुई अपने गले से स्कार्फ खींचती हुई उससे अपने बाल बांधने लगती है|

“हाँ |”

“कितने टाइम से वे एक दूसरे को जानते है ?”

“यही कोई एक दो साल से |”

“बस – मुझे लगा शायद बहुत लम्बे समय से एक दूसरे को जानते है – कितना प्यार है उनमें |” अबकि कहते कहते वह मोहित का चेहरा कुछ पल तक देखती रही लेकिन मोहित की नज़र सामने रोड पर  जमी थी|

“अच्छा वो उस दिन – क्या वो इरशाद की गर्लफ्रेंड थी !” वह फिर उसका चेहरा देखने लगती है|

“पता नहीं |’ वही रूखे स्वर से फिर जवाब देता है|

“और तुम्हारी गर्लफ्रेंड !!”

अचानक मोहित कार अपने राईट टर्न में मोड़ लेता है और सीट बेल्ट से कसी शैफाली की देह भी एक ओर मुड़ जाती है|

“सॉरी ये ब्लाइंड टर्न था |”

अब कार फिर सपाट चलने लगती है और शैफाली खामोश सी मोहित के चेहरे के सपाट भाव के पीछे कुछ तलाशने लगती है|

***

मानव को स्कूल से निकलते मेसेज मिल जाता है कि मोहित आज की क्लास नहीं ले पाएगा फिर भी मानव मोहित के घर आता है और मानसी को वहां से निकलते देख दोनों जैसे अपनी अपनी जगह जड़ हो जाते है| पीछे जय खड़ा था| मानव एक पल उन्हें देखता है तो वे मानव को देख अपनी बगले झांकते रह जाते है|

पर मानसी किसी तरह से मामला संभालती आगे आती है|

“मैं तुम्हें ही देखने आई थी कि क्लास ही लेते हो कि इधर उधर घूमते हो|”

“मैं तो सीधा स्कूल से आ रहा हूँ|”

मानसी उसकी स्कूल ड्रेस को देखती है|

“आप क्यों देखने आई आज तो क्लास नहीं होना था – मुझे तो मेसेज मिल गया था|”

“हाँ तो फिर क्यों आया यहाँ ?” उल्टा उसी पर प्रश्न दागती वह पूछती है|

“मैं तो अपनी रिफरेन्स बुक लेने आया था – पर आप क्यों आई ?”

मानव अपनी प्रश्नात्मक नज़र मानसी के पीछे तक दौड़ाते हुए पूछता है तो मानसी कस कर भमक पड़ती है –

“अच्छा ज्यादा सवाल जवाब करना आ गया है – चलो मेरे साथ घर चलो – पढ़ाई पर ध्यान दो समझे – अभी प्री बोर्ड शुरू होने वाले है न |”

मानसी झट से मानव का हाथ पकड़ी उसे अपने साथ लेकर चलने लगती है|

पीछे जय कुछ कहने वाला पर समर उसे टोकता हुआ धीरे से कहता है – “ मानसी संभाल लेगी -|” अपने बेचारे चेहरे के साथ वह कुछ नही कह पाता, समर उनकी हालत का जायजा लेता हुआ कहता है –

“मानव यहाँ आ रहा है – ये तो होना ही था एक दिन – |”

जय झट से पीछे समर की तरफ देखता है|

क्रमशः………

One thought on “हमनवां – 25

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!