
हमनवां – 26
प्रेम इंतजार का दामन थामे कभी कभी अपने ही प्रेम के प्रति उग्र हो जाता है और यही ठीक इस समय इरशाद के साथ हो रहा था जब उसे नूर की प्रतिक्रिया का इंतजार था पर उसकी ओर की निष्ठुरता ने उसका मन विद्रोही बना दिया और बहुत दिन से नाज़ का सन्देश न देखने वाली उंगलिया उसे प्रेम भरा सन्देश लिख गई| जबकि नाज़ की ओर से बस उसके इंतजार का कोई सिम्बल भेजा गया था बस पर इरशाद ने तो पूरा ककहरा लिख डाला, ऐसा करते जैसे नूर की तल्खी के प्रति कोई बदला ले लिया हो उसने लेकिन प्रतिउत्तर अभी भी दोनों की ओर से नही आया|
इरशाद के लिए अब खुद को जब्त किए रहना मुश्किल हो गया और वह बिन कुछ विचारे नूर के ऑफिस चल दिया| वह बाहर इंतजार भी कर सकता था पर बेसब्र मन को बहुत देर संभाले रखना जैसे सारी सीमाएं पार गया और अपनी बेखुदी में नूर के मना करने के बावजूद वह उसके रूम तक आ गया|
वह बेदड़क उसके सामने खड़ा था जिससे सभी की सवालियां नज़रे उन दोनों पर टिक गई थी| नूर के दिमाग में तो जैसे एक साथ कई विस्फोट हो गए हो, वह उसको अपने पीछे आने का इशारा करती तुरंत बाहर की ओर गई और किसी एकांत में उसपर बरस ही पड़ी|
“मैंने कहा था न कि यहाँ नही आना फिर क्यों आए ?”
“तुमने मेरे मेसेज का जवाब नही दिया तो क्या करता !!” इरशाद मुस्करा कर अपना दर्द कह रहा था पर नूर के तन बदन में जैसे आग लगी हुई थी|
वह एकदम से भड़कती हुई बोली – “तुम कुछ सोचते भी हो कि नही – देखा सब मुझे यहाँ कैसे घूर रहे थे अब सबकी सवालियां नज़रों का जवाब कैसे दूंगी – मैं आज व्यस्त थी तो नही दिया कोई जवाब |”
“तो अब कह दो |” इरशाद के चेहरे पर दिलकश मुस्कान तैर गई|
“मुझे कुछ नही कहना जाओ यहाँ से और फिर यहाँ मत आना |” नूर बार बार पीछे पलट कर देख लेती इसके विपरीत इरशाद बेसब्री से उसका चेहरा ताके जा रहा था|
“क्यों !!” इरशाद की जैसे जान निकली जा रही थी|
“क्यों क्या मेरी मर्जी है – मुझे नही मिलना अब |”
“ऐसे क्यों कह रही हो नूर – मुझे अब एहसास हो गया कि मुझे तुम्ही से इश्क है और मैं तुम्हारे बिना नही रह सकता |” कहते कहते इरशाद अपने ही हाथों अपना दिल थाम लेता है|
इससे आस पास का ख्याल कर नूर और भड़क उठी और दांत पीसती हुई लगभग बोली – “तो मैं भी बता दूँ कि मुझे तुम से कोई इश्क विश्क जैसा कुछ नही है सो प्लीज़ लीव मी एलोन |”
वह जाने को बेचैन हो उठी तो इरशाद अपनी बेखुदी में आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ लेता है|
तबभी पीछे से कोई आवाज़ उसका ध्यान अपनी ओर खींचती है – “नूर – |”
वह घबराहट में पीछे पलट कर देखती है – “आई एम कमिंग |”
वह झटके से अपना हाथ छुड़ाती हुई बोली – “मुझे तुमसे अब कभी नही मिलना – जाओ यहाँ से |”
नूर की पलके भीग आई जिन्हें झपका कर किसी तरह से नियंत्रित करती वह पलट कर चल दी, पीछे इरशाद हतप्रभ खड़ा देखता रह गया |
वह जाती हुई बस इरशाद का आखिरी शब्द सुन पाई पर तब भी उसके कदम वहां नही रुके|
“नूर मैं तुम्हारे इंतजार में यही खड़ा रहूँगा देखना तुम |”
नूर बिना रुके चल दी और इरशाद दिल थामे वहीँ खड़ा रह गया|
***
मानव अपने स्कूल से निकल रहा था कि दो तीन उसी के क्लासमेट उसके ठीक सामने आकर खड़े हो जाते है|
मानव नज़र उठाकर देखता है उनके चेहरे पर बिगड़े हुए भाव थे, ये देख वह वहां से निकलने लगता है तो एक लड़का आगे बढ़कर उसके रास्ते पर खड़ा होता अपने हाथ सीने की ओर बांधता हुआ बोला –
“क्यों दीदी को बुलाने जा रहा है |” ये सुनते बाकी के लड़के एक साथ हँस पड़े|
मानव फिर दूसरी ओर से जाने लगा तो एक लड़का कह उठा –
“ज्यादा बन रहा है तू आजकल – आंसर क्यों नही बताया -|”
“मुझे नही आता था |” सपाट भाव से कहता है मानव|
“अच्छा सप्लीमेंट्री कॉपी क्या दिखाने के लिए लिया था – ज्यादा मत बन – तू सोचता है कि कोचिंग छोड़ कर तू हमसे बच जाएगा – तो भूल जा – समझा|”
“मुझे जाने दो|”
कहते हुए मानव उनके रास्ता रोकने पर भी किसी तरह से उससे छूटता भागने लगता है| स्कूल से बाहर भीड़ से वह टकराता एक बार गिर गया पर जल्दी ही संभलते हुए तेज़ी से वहां से निकल जाता है|
वह लगातार अपने ही क्लास के कुछ दबंग लड़को से परेशान होता आ रहा था इसी कारण उसने कोचिंग छोड़ी पर अपनी दीदी मानसी को नही बताया जानता था जैसे ही बताएगा वह सीधे उनसे निपटने चली आएगी और वह अपने को अपने ही स्कूल के बच्चों के सामने शर्मिंदा होने से खुद को बचाना चाहता था|
इसलिए अभी घर न जाकर वह सीधे मोहित के यहाँ आता है पर वहां ताला लगा देख वह वापस मुड़ ही रहा था कि कोई आवाज़ उसे रोक लेती है वह पलट कर आवाज़ की ओर देखता है|
“पढ़ने आए हो – मोहित भईया अभी आने वाले होंगे|” वह वर्षा थी और बोलती हुई उसके पास चली आ रही थी – “ वैसे आ जाते है इस समय तक पर आज कल देर हो जाती है उन्हें – तुम पढ़ने आए हो न !!”
मानव को उसकी बात से चिढ़ हो रही थी वह कुछ जवाब देने के बजाय हाँ में सर हिलाता अपने हाथ की बुक उसकी आँखों के सामने कर देता है|
“अच्छा – तो घर की चाभी है मेरे पास – मैं लाती हूँ|” खुद से ही बोलती वह झट से अपने घर की ओर भागती हुई गई और दूसरे ही क्षण वापस भी आ जाती है|
“हफफ – हफ्फ – चलो |”
मानव को पता नही था कि वह ऐसा क्यों कर रही है पर वह वापस घर भी नही जाना चाहता था तो उसकी बात मानता उसके द्वारा घर का ताला खोलते अन्दर आ जाता है|
“तुम मानसी दीदी के भाई हो इसलिए मैंने ताला खोला नही तो मैं किसी को भईया लोगो के न रहने पर अन्दर नही आने देती – भईया ने मुझे ही दी है इस घर की दूसरी चाभी|”
मानव उसकी बात का कोई जवाब नही देता फिर भी वह बोलती रही –
“तुम कही गिर गए थे – तुम जरुर किसी से लड़ाई कर के आए होगे – मेरा तो कभी किसी से झगड़ा नही होता|”
खुद में ही इठलाती हुई वह बोल रही थी पर मानव मुंह बनाता हुआ बेमन से सुन रहा था|
फिर किसी की पुकार पर आती हूँ कहकर वह झट से वहां से फुर्र भी हो जाती है तो मानव राहत की सांस लेता है|
***
मोहित शैफाली को उसके घर छोड़ता हुआ अपनी गहरी मुस्कान से कह रहा था – “तो आज से आपका टूर समाप्त हुआ – तो हम अब नही मिलेंगे |” हाथ हिलाते हुए मोहित झट से कार मोड़ लेता है और शैफाली उसे जाता देखती रह जाती है, उसे उस पल ऐसा लगा मानों एक ही पल में वह फिर अकेली रह गई| वह हताश बिल्डिंग की ओर बढ़ जाती है|
मोहित घर आते मानव को बैठा देखता है तो मानव वर्षा द्वारा ताला खोलने की बात बताता है|
“अच्छा किया तुम आ गए – आज तो तुम्हारा आखिरी प्री बोर्ड था न – तो कल से तुम मेरे साथ दो दो घंटे की क्लास लोगे|”
“ओके |”
“समझ तो आता है न मेरा पढ़ाना !!”
“हाँ बहुत अच्छे से – आप बहुत अच्छा पढ़ाते है दीदी तो डांटती ज्यादा है पढ़ाती कम है|”
ये सुन वह धीरे से बस मुस्करा दिया|
मोहित किचेन से गिलास में पानी लेता मानव की ओर देखता हुआ संकेत में उससे पूछता हुआ कहता है – “देखो कुछ पानी वानी चाहिए हो तो खुद ले लेना – शर्माना नही |”
“जब तक मैं आता हूँ तुम ये आगे का पढो क्योंकि हमारे पास बस कुछ ही दिन है फिर एक हफ्ते की छुट्टी तुम्हारी|”
“कहीं जा रहे है आप|”
“हाँ गाँव जा रहा हूँ अपने |” मोहित के चेहरे पर एक शांत मुस्कान तैर गई|
“तो आप चारों जा रहे है |”
“बिलकुल – चलो पढो – मैं आता हूँ |”
मोहित के अन्दर जाते वह अपनी किताबे खोल लेता है|
***
शैफाली बता कर नहीं जाती थी कहाँ गई और कब लौटेगी पर हर बार की तरह भावना को उसकी ओर से जरा भी चिंता नही हुई| वह शैफाली की नामौजूदगी में उसके कमरे में गई, जहाँ हमेशा की तरह सिगरेट के बड, राख़ और खाली बोटल की जगह जैसे कोई अनजानी खुशबू समाई हुई थी| वह शैफाली की बदली हुई जिंदगी को वहां खड़ी महसूस कर पा रही थी| भावना जिस बदलाव को महसूस कर पा रही थी उसे बस शब्दों से बयाँ नहीं कर पा रही थी, वह अपने आप में ही मुस्कराती हुई उसका कमरा ठीक कर रही थी|
“क्या बात है आज बड़ी खुश दिख रही हो |” वह आवाज़ की ओर देखती है पवन उसकी की ओर आता हुआ मुस्करा रहा था| वह उसे अपनी बाँहों के घेरे में समेट लेता है|
वह भी उसकी बाँहों में इठला जाती है|
“ख़ुशी का राज़ क्या है ?”
“शैफाली |”
उसकी पकड़ जैसे ढीली हो जाती है, प्रेमी मन शिकायत कर उठता है – “लो मुझे लगा गोवा की याद से खुश होगी पर यहाँ तो बहनापा जाग उठा|”
“अरे वो तो खुश हूँ ही मैं पर सच में क्या तुम्हें ये अप्रत्याशित बदलाव देखकर अच्छा सा नही लग रहा – मुझे तो कोई उम्मीद नहीं थी कि कभी मैं शैफाली जैसी लड़की को बदलते हुए देख पाऊँगी |”
“हाँ ये बात तो सही है |” वह उसके बगल में खड़ा होता हुआ कहता है|
“देखो हमने अभी तक मानसी से बात भी नही की और क्या पता वह इस समय भी उसी के साथ हो |”
“मे बी – चलो कल ऑफिस जाकर सामने पूछता हूँ कि आखिर ये चमत्कार किया कैसे उसने !”
“हाँ जरुर पूछना उससे – मैं तो बहुत खुश हूँ |”
दोनों की भरपूर मुस्काने जैसे एक सार हो उठी|
***
दिन भर की तपिश के बाद शाम को अचानक से आसमान में भारी गर्जन के साथ बादलों का जमावड़ सा हो गया मानों पनघट से अपनी अपनी गगरी लेकर पन्हारिने तैयार हो कर आपस में बतियाती चली जा रही हो| शैफाली बिस्तर पर औंधी लेटी अपने पैर हवा के डुलाती देर से खिड़की के बाहर देखती किसी सोच में डूबी थी इससे बेखबर की उसके सामने पड़ी किताब कई पन्नो के एक साथ उड़ने से अब अपने आप बंद हो चुकी थी| एक बार तो उसका मन हो रहा था कि इस बारिश में बाहर निकल जाए पर उसका अलसाया मन भी उसकी देह की तरह बिस्तर से जैसे चिपक गया था और वह वही से पड़े पड़े अपनी आँखों से बारिश का मजा ले रही थी|
इस बेख्याली में उसे पता ही नही चला कि कब भावना उसे चाय देने आई और कई बार उसके आवाज़ लगाने पर भी उसकी तरफ न देखने पर उसे न टोकते हुए वापस चली गई|
“क्या हुआ सो रही है क्या !!”
बालकनी तक उसे कप लाते हुए देख पवन ने प्रश्न पूछा तो जवाब में भावना मुस्कराती हुई उसके ठीक सामने बैठती हुई बोली – “खोई है कहीं |”
“मतलब – क्या तबियत खराब है उसकी !!” पवन उसके आँखों की पहेली अभी तक नही समझ पाए|
“इश्क के मर्ज से बड़ा कोई मर्ज है क्या |” कहती हुई भावना इस बार भरपूर मुस्कान से मुस्करा दी|
“तुम किसकी बात कर रही हो !!” संशय में पड़े पवन ने जल्दी से पूछा|
“और किसकी – शैफाली की बात कर रही हूँ – |”
“शैफाली !! अरे इतना घुमा फिरा कर क्यों बोल रही हो साफ़ साफ़ बताओ न |”
पवन की उत्सुकता चरम पर थी जिसपर आराम से अपनी बात कहने के अंदाज में भावना ईजी चेअर की पीठ से सटती हुई कहती है – “मेरी पारखी नज़रों ने तो पहले ही समझ लिया था कि ये बदलाव यूँही तो नही कोई तो है इसके पीछे |”
“तो कौन है हमे भी बता दीजिए |” चुहलबाजी से पवन ने पूछा|
“मोहित |”
पवन ने जैसे ही नाम सुना तो ऐसे उछल पड़ा मानों करंट छू लिया हो|
“नही होगा विश्वास पर मैंने देखा कल लेने भी वही आया और छोड़ने भी फिर मैं मानसी से भी क्म्फर्म कर चुकी हूँ कि इतने दिन ये दोनों ही आपस में मिल रहे थे – मैं तो ये सुनकर बहुत खुश हूँ – प्यार तो अच्छो अच्छों को बदल देता है |”
भावना ख़ुशी में लहकी जा रही थी पर इसके विपरीत पवन का चेहरा संजीदा बना रहा|
“अगर ये सच है तो शैफाली के लिए मोहित एक दम सही लड़का है|”
“और मोहित के लिए !!”
अचानक से पवन के प्रश्न से भावना हतप्रभ उसकी ओर देखती है|
“देखो डियर बुरा मत मानना – मुझे अच्छा लगा कि शैफाली के प्रति तुम बहन वाला स्नेह रखती हो पर इसी के साथ तुम्हें उसके अतीत को भी नही भूलना चाहिए |”
“मतलब !!”
“मतलब साफ़ है कि शैफाली जिस परिवेश से आई है वो स्वछंद लड़की कितना प्यार की गहराई को समझती होगी – याद रखो वो यहाँ कुछ निश्चित समय के लिए आई है और हो सकता है वो समय काटने के लिए ही मोहित के साथ हो बल्कि तुम्हें उससे बात करना चाहिए इस बारे में |”
“किस बारे में ?” भावना जैसे झल्ला उठी थी|
“कि ये खिलवाड़ मोहित के लिए कही महंगा साबित न हो जाए – मैं जानता हूँ मोहित जैसे संजीदा लड़के को इसलिए ये बात कह रहा हूँ कि जिस दिन मोहित सीरियस हो गया वह अपने कदम पीछे नहीं ले जा पाएगी|” बेहद तल्खी से पवन ने अपनी बात खत्म की|
पर भावना के चेहरे से लग रहा था जैसे वह पवन से बिलकुल भी इत्तफाक नहीं रखती हो|
“हम ऐसा भी तो सोच सकते है कि वह बदल रही है|”
“अच्छा तो क्या समय पूरा कर लेने के बाद भी उसका यहाँ कोई रुकने का प्लान है – ऐसा कुछ लगा है तुम्हेँ !!”
अबकि भावना वाकई निशब्द होती अपने होंठ चबाने लगी तो पवन अपना हाथ उसके हाथ पर रखते हुए कहता है – “तुम बहुत भोली हो – सब कुछ वही देखती हो जो सामने दिखता है पर हर बार ऐसा नही होता डियर – |”
कहते हुए पवन उसके चेहरे को गौर से देखता हुआ कहता है – “मैं खुद चाहूँगा कि जो तुम सोच रही हो वैसा ही हो पर |”
उसी पल आसमान में एक कड़कड़ाती बिजली चमकी और पवन के बाकी के सारे शब्द जैसे आखिरी आवाज़ में गडमड होकर रह गए| धीरे धीरे बारिश तेज होने लगी जिससे उनकी बातों का छोर मोहित शैफाली से सरकता बारिश पर केन्द्रित हो गया पर भावना मन ही मन फिर भी कुछ गुनती रही|
क्रमशः…..