
हमनवां – 27
पिछली रात की बेमियादी बारिश से गर्मी से तपती धरती को कुछ राहत हुई तो घर के बाहर के सारे पेड़ों की गर्द अच्छे से साफ़ हो कर अब वे सुबह की उजली उजास में खुलकर चमक रहे थे| वही मौसम की कुछ तल्खी उनके घर में जैसे समा गई थी जिससे समर आज बिलकुल भी उनकी कुछ सुनने को तैयार नहीं था| हमेशा की तरह जय उंघते हुए लिविंग रूम में आकर पसर गया तो मोहित कमरे का पर्दा हटा कर बाहर के मौसम का जायजा लेते हुए आलस में अभी भी पैर पसारे पड़ा था और किचेन से आती समर की नाराजगी भरी आवाज को जैसे कानों से वे दोनों झाड़ दे रहे थे|
हमेशा की तरह समर ने आज इस छुट्टी के दिन उन दोनों से भी नाश्ते में मदद के लिए बोला पर वे भी आदतन अपने आलस में पड़े पड़े अभी भी समर से नाश्ते की उम्मीद लगाए थे पर बहुत देर बाद किचेन से उम्मीद के बजाय जब खुशबू आने लगी तो उन दोनों के पेट भूख से और जाग्रत हो गए जिससे जय अहिस्ते से रसोई में जा पहुंचा तो देखा स्लैप पर एक कप कॉफ़ी और दो लज़ीज़ सैंडविच रखे थे और समर का सारा ध्यान रसोई की खिड़की के पार छत पर कपड़े फैलाती ऋतु पर था| ऋतु को भी अहसास था कि किसी की निहारती नज़रे उसी पर टिकी है इसलिए बीच बीच में वह अपनी नज़रे उधर फेंक देती जिससे प्रेमी मन हरहरा उठता|
इस प्रेम की लुकाछिपी का पूरा फायदा उठाता जय मोहित को भी चुपके से वही बुला लेता, वह भी तोता मैना का नैन मटका देख चुपके से हँस देता है| समर का ध्यान अभी भी उन पर नही था जिसका भरपूर फायदा उठाते वे दोनों एक एक सैंडविच आपस में बांटते हुए उस कप से भी कॉफ़ी अपने अपने कप में लेते हुए नाममात्र की कॉफ़ी कप में छोड़ते हुए झट से किचेन से निकल जाते है|
समर का ध्यान उन पर जब तक गया वे नाश्ता गटकते अब अपना पेट पकड़े समर की हालत पर हँस रहे थे इससे खफा वह उन दोनों के पीछे पैन लेकर दौड़ा, निशाना चूका और तेज़ खनन की आवाज़ के साथ पैन जमींन पर पड़ा था और समर के खा जाने नज़रो पर उनकी अभी भी हँसी छूट रही थी|
“वहाट हैपिनिंग गाइज |”
सबका एक साथ ध्यान दरवाजे की देहरी तक जाता है जहाँ खड़ी मानसी उन तीनों को घूर रही थी|
समर की हालात देखते मानसी को जैसे ही कारण बताते है तो उसकी भी हँसी बहुत देर तक नही रूकती|
हँसते हँसते मानसी पूछती है – “और ये चौथी पार्टी कहाँ है – कहाँ छुपा बैठा है इरशाद – उसको तो मैं आज छोड़ने वाली नही हूँ – फोन भी नही उठाता – सारा काम उल्टा सीधा करके छुपा बैठा है उसका छोड़ा सारा काम मुझे करना पड़ा ?”
“इरशाद !!!”
तीनों एक दूसरे को देखते है|
“हमे लगा तुम्हेँ पता होगा – कल दोपहर से स्विच ऑफ जा रहा है उसका फोन|”
“क्या कह रहे हो – मैंने तो दोपहर के बाद से उसे नही देखा |”
मानसी की बात सुन सबके चेहरे पर जैसे बारह बज जाते है तो मोहित कह उठता है –
“पता तो है – लापरवाह है – जरुर आपा के यहाँ चला गया होगा और मोबाईल उसका ऐसे ही कहीं पड़ा होगा|”
मोहित की बात सुन मानसी के चेहरे पर सुकून आने के बजाय चिंता की और गहरी परछाई छा जाती है|
“लेकिन इरशाद वहां नही है|”
“तुम्हें कैसे पता ??” जय जल्दी से पूछता है|
“अरे सुबह ही अप्पी का फोन आया था – फोन स्विच ऑफ़ मिला तभी तो मुझे किया – आश्चर्य है कि तुम लोगों को कुछ नही पता – मुझे लगा घर पर ही सो रहा होगा |”
“पता कैसे चलेगा – संडे का सोचकर हमे लगा आपा के यहाँ चला गया होगा और रात तो हमेशा ही देर से आता है |”
मोहित तबतक फिर से उसका नंबर मिलाता पर फिर वही स्विच ऑफ़ आने पर अब सभी के चेहरे पर गहन भाव छा गए थे|
“ऐसा तो कभी नही करता |”
“मैं थाने जा रहा हूँ -|”
जय के कहते समर जल्दी से कहता है – “ मैं हॉस्पिटल जाकर कुछ पता करता हूँ |”
“हो सकता है नूर को उसके बारे में कुछ पता हो – मैं उसका घर जानती हूँ – मैं वहां जा रही हूँ |”
तीनों जल्दी जल्दी निकलने लगते है तो मोहित तेजी से पूछता है – “और मैं !!”
सभी उसकी ओर देखने लगते है तो वह खुद से बोल उठता है – “मैं भी इधर उधर जाकर देखता हूँ |”
चारों चेहरे पर संशय समेटे तेज़ी से वहां से निकल पड़ते है|
***
मानसी अगले ही पल नूर के घर के बाहर खड़ी थी| दरवाजा नूर की अम्मी खोलती है और अपने सामने
अनजान चेहरा देख कर सवाल करती है तो मानसी जल्दी से संभलती हुयी कहती है – “मैं नूर की फ्रेंड हूँ मानसी|”
वे मुस्करा कर मानसी को अन्दर बुलाती है|
मानसी उनके पीछे पीछे चलती हुई देखती है कि उस वक़्त घर में मेहमान आए हुए थे इसलिए वे उसे नूर के कमरे तक लाती हुई कहती है – “बेटी असल में मैं अभी खुद अपनी बड़ी बेटी दामाद के साथ बाहर से आई हूँ – नूर थोड़ी देर कहकर गई थी – अभी आती होगी तुम चाहो तो तब तक तुम यहाँ बैठो |” फिर किसी को आवाज देती हुई वहां से चली जाती है|
मानसी देखती है कि घर पर मेहमानों की वजह से वे खासी व्यस्त थी ये देखती हुई किसी को कॉल करती वह कमरे के अन्दर आ जाती है|
“हाँ बोलो मानसी|”
“मोहित ऐसा करो तुम नूर के ऑफिस जाकर देख लो क्योंकि नूर भी अभी यहाँ नही है – मैं उसके ऑफिस का एड्रेस तुम्हें मेसेज से भेजती हूँ |”
इतनी देर में मानसी कमरे में टहलती हुई जय और समर को फोन कर इरशाद के बारे में पूछती है पर उसका अभी तक कुछ पता नही था| वह कुछ देर तक वहां इंतजार करती बैठ जाती है, उतनी देर में घर की नौकरानी उसके लिए सेवई और शरबत रख जाती है| तबसे बेचैनी और घबराहट से सूखते अपने गले को तर करने मानसी शरबत उठा लेती है कि बेड पर तिरछा रखे लैपटॉप के स्क्रीन पर बरबस ही उसकी नज़र चली जाती है|
तभी कमरे का दरवाजा खुलता है और उस पार से नूर उसे दिखती है|
“मानसी !” वह उसे देखती तुरंत पहचान जाती है|
जिसका इतनी देर से उसको इंतजार था अब उसे सामने देख मानसी की एकदम से भौं तन जाती है|
“अचानक यहाँ कैसे !!”
“ओह तो जरा देखूं मेरे सामने कौन खड़ा है |” कहते कहते मानसी के तेवर सख्त हो जाते है – “नूर कहूँ या नाज़ – बोलो !!”
ये सुनते नूर के चेहरे का नूर उतर जाता है और वह अगली नज़र में बेड पर रखे लैपटॉप की ओर देखने लगती है|
“क्यों किया तुमने ऐसा – अगर आज मैं यहाँ नही आती तो ये कभी जान ही नही पाती – कैसे कर सकती हो तुम इरशाद जैसे इनोसेंट शख्स के साथ ऐसा ?”
नूर जवाब में कुछ नही कहती बस चुपचाप खड़ी रहती है|
“मुझे किसी की निजता में झाँकने का कोई शौक नही वो तो अगर स्क्रीन में इरशाद की तस्वीर नही दिख रही होती तो ….|” तभी उसका मोबाईल बज उठा जिससे उसकी बात अधूरी रह गई| वह झट से फोन उठाती हुई पूछती है जिसके जवाब में उधर से मोहित बता रहा था कि इरशाद उसे नूर के ऑफिस के बाहर मिला जहाँ सारी रात भीगने से उसे अभी बहुत तेज बुखार है|
ये सुनते मानसी के क्रोध की आग और जल उठी वह फिर नूर पर बरस पड़ी जो औचक उसकी ओर देख रही थी|
“सुन लो – पड़ गई कलेजे में ठंडक – बस जिन्दा है यही गनीमत मानों – पूरी रात तुम्हारे ऑफिस के बाहर खड़ा रहा – डिसगसटिंग नूर |”
इतना कहती मानसी झटके से कमरे से बाहर निकल गई, नूर चाह कर भी उसे रोक नही पाई|
***
मानसी का गुस्सा जैसे अभी भी उतरा नही था| वह कमरे में टहल रही थी और बेड पर लेटे इरशाद के आस पास तीनो बैठे थे| वह लगातार बडबडा रही थी और उसके बीच में बोलने का मतलब वे जानते थे मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालना|
“जान देने के लिए और कोई तरीका नही मिला तुम्हें – चले थे अपनी जान देने वो भी ऐसी लड़की के लिए जो तुम्हें बेवकूफ बना रही है तब से ये भी न जान पाए |”
“एक बार पूछ तो लेती उससे |”
धीरे से इरशाद कहता है जिससे वह उसपर और बरसती हुई कहती है – “बेवकूफ कही के – खुद तो जान नही पाए कि वही नूर और नाज़ है और मुझसे उम्मीद करते हो कि मैं पता करूँ उसके बारे में – खबरदार जो तुमने उससे बात की |”
इसपर इरशाद धीरे से कहता है – “कैसे करूँगा फोन तो भीगकर खराब हो गया|”
एकदम से उसकी तरफ मुड़ती हुई मानसी कहती है –“ तो अभी इश्क से जी नही भरा तुम्हारा |”
जय धीरे से इरशाद को चुप रहने का इशारा करता है तो इरशाद छोटे बच्चे की तरह मुंह लटका लेता है|
“अरे जाने दो न – बिचारे की वैसे भी जान निकली जा रही है|” समर बीच में पड़ता हुआ कहता है|
“झूठ तो मुझसे बर्दाश्त ही नही होता – मेरा तो मन कर रहा है कि नजमा अप्पी को बता दूँ वही इसकी खबर लेगी अच्छे से |”
ये सुनते ही इरशाद की जैसे दबी चीख निकल पड़ी इससे उसकी हालात पर बाकी की हँसी छूट गई|
मानसी जब इरशाद पर भरपूर गुस्सा निकाल चुकी तो गुस्से में पैर पटकती वहां से निकलने लगी तो दरवाजे पर ही आती ऋतु से लगभग टकराती टकराती बची पर फिर भी वह बिना रुके निकलती चली गई|
अंदर आती ऋतु हैरत से पूछ बैठी – “अरे मानसी को क्या हुआ – इतना गुस्से में क्यों है ?”
“इसी से पूछो इसी की वजह से है |” जय इरशाद की तरफ इशारा करता हुआ कहता है जो एक पल अपना सर उठाकर उनकी तरफ देखता है और फिर वैसे ही झुका लेता है|
“बाप से कितने गुस्से में है – रोक तो लेते उसे जय|”
“मेरा दिमाग खराब है जो इस समय उससे उलझुंगा – एक बार उसे गुस्सा आ जाए तो जल्दी नही उतरता – अब तो मुझे उसकी फ़िक्र है जो उसके सामने पड़ेगे – ऊपर वाले रक्षा करना|”
ऊपर की ओर देखता जय हाथ उठाता हुआ कहता है जिससे ऋतु की हँसी छूट जाती है जो किसी की नज़रे चुपके से अपने दिल में कैद कर लेती है|
“अच्छा ये लो |” खाने का टिफिन इरशाद की तरफ बढ़ाती है तो अगले ही पल इरशाद की बुझी आँखों में जैसे चमक आ जाती है|
“ज्यादा खुश न हो – खिचड़ी और काढ़ा लाई हूँ – अभी आंख बंद करके खा लेना जल्दी ठीक हो जाओगे|”
इरशाद की मरमरी हालात पर मोहित चिढ़ाते हुए कहता है – “हाँ हाँ और क्या दो दो डॉक्टर लगे है तेरे पीछे अब तो ठीक हो जा – हमारा क्या – हम तो कढ़ाई पनीर, दाल मखनी नान वैगरह खा कर गुजरा कर लेंगे|” कहते हुए मोहित और जय एक दूसरे के हाथ पर ताली मार कर तेजी से हँस पड़ते है|
हँसी की फुहार के बीच समर और ऋतु की नज़रे आपस में मिलती है तो खुद में ही जैसे खो जाती है|
***
इरशाद की तबियत का सुनकर उसे देखने भावना, पवन और साथ में शैफाली आई थी|
पवन इरशाद के बगल में बैठता उसका माथा छूता है तो भावना जल्दी से पूछ बैठती है – “क्या अभी भी बुखार है ?”
“ये इश्क का बुखार है मैडम इतनी जल्दी कहाँ उतरेगा |” कहकर पवन धीरे से हँस दिया जिससे इरशाद झेंप दिया|
“ये तो है |” अबकि जानकर भावना एक नज़र से मोहित और शैफाली का चेहरा देख डालती है पर उनके चेहरे के भाव सपाट बने हुए थे|
“आखिर इश्क का रोग लगा ही लिया – अब जल्दी से ठीक हो जा – वैसे कब निकलना है तुम लोगों को ?” पवन मोहित की ओर देखता हुआ पूछता है|
“दो दिन बाद निकलना है लेकिन पहले इरशाद ठीक तो हो जाए |”
“अरे ठीक हो जाएगा और अगर नही भी हुआ तो गाँव की ताज़ी आबोहवा इसे ठीक कर देगी|”
“कहाँ जा रहे है ?” भावना बीच में ही पूछ पड़ी|
“पंजाब जा रहे है – मोहित के ताया जी की बेटी की शादी है|” पवन कहता है|
“अरे वाह पंजाब और वो भी शादी में – ये तो दुगने मजे की बात है – मेरा तो अभी से मन डोलने लगा|” भावना के चेहरे पर सच में एक हर्षोल्लास छा गया|
“अरे मैडम खुद को संभालो – अभी तो बाहर से घूम कर आए है|”
पवन की बात पर कमरे पर हलकी फुलकी हँसी तैर जाती है|
पर इसी बीच एक आवाज़ सबका ध्यान कमरे के उस कोने तक ले जाती है जहाँ शैफाली बैठी थी|
“क्या मैं जा सकती हूँ – मैंने गाँव नही देखा|”
सब इससे पहले कुछ समझते और कहते मोहित झट से बोल पड़ा –
“वो गाँव है – इतना आसान नहीं है वहां रहना – |”
“मैं रह लूंगी |”
शैफाली झट से कहती है तो इसपर मोहित भी कह उठता है – “पक्की सड़क पर तो चलते पैर दुःख जाते है – कच्ची मिट्टी पर कैसे चलोगी – !!”
दोनों की तकरार से सभी चुपचाप उनकी ओर देख रहे थे इससे बेखबर दोनों आपस में उलझते रहे|
“लाईट भी नही रहती और मच्छर काट काट कर बुरा हाल कर देंगे|”
“मैं वो सब देख लूंगी |”
“अरे बस बस – |” जय जल्दी से उनके बीच में पड़ता हुआ कहता है|
“तो तय हो गया – शैफाली चल रही है हमारे साथ |”
“ऐसे कैसे!!” मोहित ने फिर विरोध किया|
“अरे वो हमारी गेस्ट है – इसी बहाने वह गाँव देख लेगी फिर ऐसा मौका कब मिलेगा|”
जय की सहमति में सबकी ओर अपनी गर्दन घुमाता है तो मोहित को छोड़कर सबके चेहरे पर हँसी तैर जाती है|
क्रमशः……