
हमनवां – 28
मानसी अपने केबिन में बैठी थी कि चपरासी आकर उसे बताता है कि कोई उससे मिलने आई है| उसके जाते मानसी अपने सामने नूर को देख एक दम से हैरान रह जाती है| कुछ पल तक वही खड़ी मानसी की ओर से कोई प्रतिक्रिया न पाकर नूर कह उठी –
“हाय – क्या आ जाऊं अन्दर ?”
“हाँ हाँ – प्लीज़ कम इन |” मानसी एक कुर्सी उसकी ओर बढ़ाती हुई कहती है|
कुर्सी पर बैठती हुई नूर मानसी को खड़ा देख कहती है – “कही मैं गलत वक्त तो नही आई – तुम बिजी हो तो |”
अपनी बात अधूरी छोड़ती वह मानसी की ओर देखती रही तो मानसी झट से उसके सामने की चेअर पर बैठती हुई कहती है –
“नही नही एक्चुली तुम्हें अचानक सामने देख हैरान हो गई मैं |”
“मुझे कुछ कहना था |”
बीच में टोकती हुई मानसी जल्दी से कहती है – “इससे पहले तुम कुछ कहो – मैं उस दिन के लिए माफ़ी मांगती हूँ – उस दिन गुस्से में कुछ ज्यादा ही बोल गई मैं |”
“कोई बात नही – इनफैकट अच्छा लगा ये देखकर कि इरशाद के आस पास उसके कितने अच्छे दोस्त है जो उसकी उससे ज्यादा फ़िक्र करते है और वैसे भी तुम तो उसकी बहुत अच्छी दोस्त हो आखिर सात आठ साल से एक दूसरे के साथ हो |”
“हाँ – देखो तुम्हारे फैसले पर मैं कोई सवाल खड़ा नही करती बस मुझे इतना कहना है कि अगर तुम्हें इरशाद का साथ पसंद नही था तो उसे बिना हर्ट किए भी तो मना कर सकती थी|”
“किसने कहा कि इरशाद को मैं पसंद नही करती |”
नूर की बात सुन मानसी औचक उसकी ओर देखती रही पर कुछ कह नही पाई|
“मैं तो इरशाद से बेपनाह मुहब्बत करती हूँ वो भी कई सालों से|” कहती हुई नूर की पलके लजाती थोड़ा नीचे झुक जाती है|
मानसी एकदम से उसका हाथ पकड़ती उसकी गहरी गहरी आँखों में देखती हुई कहती है – “क्या कह रही नूर – क्या सच में !!!”
अबकि नूर हौले से मुस्कराती सर हाँ में हिलाती है|
“मैं कुछ समझी नही फिर तुम नाज !!” अपने प्रश्न के उत्तर में मानसी उसकी ओर देखती रही|
“इरशाद के उसके इनोसेंट नेचर के कारण मैं सालों पहले से उसे पसंद करती आई हूँ पर इरशाद ने कभी मेरी ओर ध्यान ही नही दिया – वह तो हमेशा अपने में ही व्यस्त रहा|”
नूर जैसे पुराने वक़्त में खोती हुई किस्से की तरह अपनी बात कहने लगी|
“इरशाद खुद में ही मस्त रहने वाला इन्सान था और यही बात मुझे उसकी बेहद पसंद थी – उसने मेरी ओर भलेहि ध्यान न दिया हो पर मुझे उसके बारे में एक एक बात पता है|”
नूर ज्यों ज्यों कहती जा रही थी मानसी की ऑंखें हैरत में फैलती जा रही थी|
“इरशाद का घर छोड़कर सबसे अलग खुद की पहचान बनाना मुझे इतना प्रभावित किया कि मैंने भी उसे देखकर ही घर से बाहर निकलकर पढ़ने जाने का हौसला किया|”
“क्या सच में |”
“हाँ – मैं तो उसकी हर बात की खबर रखती थी पर वही मुझसे बेखबर रहा|”
नूर के धीमे पड़ते स्वर में तेजी फूंकने मानसी कहती है – “मुझे तो कुछ समझ नही आ रहा प्लीज़ नूर मुझे ठीक से सब समझाओ|”
मानसी का उतावलापन देख नूर धीरे से मुस्कराती हुई कहती है – “ऐसे ही पारिवारिक फंग्शन में मैंने इरशाद को जब पहली बार देखा तो उसका दूसरों से अलहदा होना मुझे शुरू से ही प्रभावित करता रहा पर इरशाद अपने ही मस्त रहा उसने कभी मेरी ओर इससे पहले ध्यान ही नही दिया पर अपने दिल में उसकी चाहत समेटे मैं बाहर पढ़ने चली गई और उसी रोज़ से मैं दुनिया के लिए नाज़ हो कर अपने खोए प्यार के लिए कविता लिखने लगी पर इसी बीच एक खबर ने जैसे मेरे ऊपर बिजली गिरा दी कि मेरी ही बड़ी बहन के साथ रिश्ते की बात इरशाद को लेकर होने लगी – तब मेरी वो हालात हो गई कि काटो तो खून नही – ऐसे ही कब उन दर्द भरी कविताओं ने किताब की शक्ल इख्तियार कर ली मैं खुद भी नही जान पाई – फिर उड़ती खबर मिली की इरशाद की ओर से न हो गई तब मुझे एक ही पल में उससे राहत और नफ़रत एक साथ हो गई – उसी बीच इरशाद का एक रिपोर्टर के रूप में सन्देश मिला तो मेरी तो ख़ुशी का ठिकाना ही नही रहा|”
मानसी चुपचाप सब सुनती रही, ऐसा करते उसकी सांसे जैसे थम थम कर चलने लगी कि कही सांसो के टोकन से भी नूर की वार्ता में कोई बाधा उत्पन्न न हो जाए इससे बेरोक टोक वह कहती रही|
“और तभी से मैं प्यार के खेल की तरह नाज़ बनकर उससे बात करने लगी और फिर नूर के रूप में उससे मेरा जब तारुख हुआ तो एक बार फिर मेरा दिल उससे मोहब्बत और नफरत एकसाथ करने लगा जबकि मुझे पता चल गया था कि मेरी आपा किसी और को पसंद करती है और इस रिश्ते को लेकर इरशाद को कुछ भी नही पता वो सब तो बड़ो के बीच में बात हुई थी इस तरह सब कुछ ठीक चल रहा था पर उस दिन जब मैं थोड़ी देर व्यस्त रहने के कारण इरशाद को सन्देश नही भेज पाई तो इरशाद का इजहार नाज़ के प्रति देख खुद से ही बैर कर बैठी मैं और जब अचानक इरशाद को सामने देखा तो मेरा दिल खुद से ही बगावत कर उठा पर उसका नतीजा ये होगा नही जानती थी मैं |”
कहते कहते अपने उफनते दिल को सँभालने नूर कुछ पल के लिए खामोश हो जाती है तो मानसी उसका हाथ फिर पकड़ती हुई कहने लगी – “ओह गॉड तुम्हारी कहानी सुनकर तो आज सच में इरशाद को बेवकूफ कहने का जी कर रहा है|” कहते कहते मानसी का ध्यान नूर पर जाता है जो शायद इरशाद के लिए बेवक़ूफ़ शब्द सुन धीरे से मुस्करा दी थी|
एकदम से मानसी खड़ी होती नूर का हाथ खींचती हुई कहती है – “चलो मेरे साथ |”
“कहाँ !!!” नूर के चेहरे पर फिर घबराहट आ जाती है|
“इरशाद से मिलने और कहाँ |”
“नही नही मैं नही जाउंगी – मैंने इसीलिए तुम्हें सब कह सुनाया ताकि तुम उसे बता देना मैं नही कह पाऊँगी कुछ |”
“क्या बात करती हो – चलो उठो – आज मिल लो कल ये लोग निकलने वाले है – फिर काफी दिन तक नही मिल पाओगी|”
नूर उठ तो गई पर जाने का मन अभी भी न बना पाई|
“अरे मेरी जान उठो तो यही दिन है इश्क के जी लो जरा – चलो |” अबकि वह उसका हाथ पकड़े उसे खींचती हुई बाहर ले गई मानसी|
***
साथ साथ आती दोनों घर के नीचे रुकी थी, नूर बहुत देर से देख रही थी कि मानसी रुक रुक कर हँस रही थी जिससे चिढ़ते हुए आखिर वह पूछ ही बैठी – “तबसे तुम हँस क्यों रही हो !!”
इसपर उसकी ओर देखती मानसी बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी पर काबू करती हुई उसकी ओर देखती हुई कहती है – “सॉरी नूर – बुरा न मानना – असल में मैं ये सोच रही थी कि जब इरशाद को ये सब पता चलेगा तो उसका बिगाड़ा हुआ चेहरा सोच सोचकर हँसी आ रही है |”
नूर अभी भी कुछ नही समझी थी वह बस हैरत से उसे देखे जा रही थी|
“तुमसे सिर्फ एक मुलाकात के लिए उसने कितनी तैयारी की बस पूछो मत पर उसे तो पता ही नही कि नूर तो दोनों हाथों में अपना दिल लिए खड़ी है उसके लिए – यही सोच सोच कर हँसी आ रही है|” कहती हुई वह बिन आवाज के कसकर हँस पड़ी|
ये सुन अबकि नूर के चेहरे पर भी शर्मोहया भरी हँसी तैर गई|
“अच्छा नूर थोड़ी देर यही रुको बस घड़ी से देखकर पांच मिनट बाद न तुम इरशाद के मोबाईल में कॉल करना तब ऊपर आना|”
“क्यों !!” पूछते हुए उसके नयन जैसे एक ओर तने रह गए|
“थोड़ा उसके चेहरे की उड़ती हवाइयां तो देख लूँ |” नूर की बेसब्र देह को वह कंधे से पकड़ती वही रोकती हुई कहती रही – “प्लीज नूर |”
नूर मनमसोजे वही खड़ी मानसी को झटपट सीढियाँ चढ़ती हुई देखने लगी|
मानसी तेज कदमो से अगले ही क्षण इरशाद के कमरे में थी जहाँ जय के साथ वह मोबाईल में झुका कोई मैच देख देख कर बार बार अति उत्साहित होते मुंह से आवाज निकालते लगभग उछल पड़ते| अपनी दुनिया में मस्त दोनों मानसी आना देख नहीं पाए थे पर वह तुरंत उनके पास पहुँचती झट से उनके हाथों के बीच से मोबाईल छीनती हुई उनपर कस कर भमकती हुई बोली – “तुम दोनों को अपनी मस्ती के अलावा कुछ और चीज से मतलब है |”
“हुआ क्या !!” जय धीरे से मुस्कराता हुआ उसकी ओर देखता हुआ बोला|
“ये कमरे का क्या हाल है – कोई आए तो देखे जैसे स्टोर रूम में बीच में बेड पड़ा है – |”
“वही तो – ये इरशाद भी न एकदम नक्कारा है |” जय तुरंत उठकर मानसी के बगल में खड़ा होता हुआ कहता है जिससे इरशाद बैठे बैठे मुंह लटका लेता है|
“जनाब आप का भी कुछ इससे जुदा हाल नही है दूसरी तरफ समर और मोहित का रूम देखो – अभी इरशाद की तबियत ठीक नही है तो दोस्ती का फ़र्ज़ निभाओ – चलो अभी ये कपड़े तुम समेटो मैं ये बर्तन रख कर आती हूँ|”
जय ऑंखें टेढ़ी कर इरशाद की ओर देखता है जो कनखनियों से देखता हौले से मुस्कराता हुआ बिस्तर पर पीठ के बल सरकता हुआ लेट गया था|
जय सब समटते समटते इरशाद के नजदीक आता उसके कान के पास जाता फुसफुसाता है – “बेटा आराम कर ले अभी – ठीक हो जा सारा बदला निकालूँगा इसका|”
“सारे बर्तन यही ले आए – ऐसा करते गैस भी यही ले आते|” मानसी वापस आती हुई इरशाद के पास आती हुई कहती है – “ये लो तुम्हारा मोबाईल भी ठीक हो गया -|” मोबाईल इरशाद की ओर बढ़ाती हुई कहती है – “बस शॉप वाले को फ़ॉरमेट करना पड़ा इसलिए सारे नंबर उड़ गए|”
इरशाद मोबाईल हाथ में लेते एकदम से बेड से उठ बैठा – “थैंकू मानसी |”
“हाँ हाँ ठीक है पर खबरदार जो नूर को फोन किया तो !!!” कहती हुई गौर से इरशाद के चेहरे के बदले भाव देखती हुई अन्दर ही अन्दर हँस दी|
ये सुनते इरशाद के चेहरे से एकदम से हँसी गायब हो गई, तभी स्क्रीन पर कोई अननोन नंबर दिखाई दिया जिसपर सबकी निगाह उस क्षण उस पर ठहर गई, तिस पर आगे बढ़ती मानसी कह उठी – “उठाओ देखो किसका फोन है ?”
इरशाद एक पल मोबाईल का स्क्रीन देखता है तो दूसरे पल उन दोनों की खुद पर जमी नज़रे देखता हुआ मोबाईल अपने कानों से लगा कर धीरे से हेलो बोलता है| उनकी नज़रे अभी भी इरशाद पर जमी थी और अब इरशाद का सारा ध्यान उस पार के सन्नाटे पर था| बार बार इरशाद के हेलो बोलने पर भी दूसरी ओर से कोई आवाज न आई| इरशाद ख़ामोशी से उस पार की नीरवता को सुनता रहा, जिसमें सांसो की गर्म आहट घुली हुई थी| इरशाद एकदम से बोल उठा – “नूर – !!” उस पार सच में मोबाईल थामे नूर के हाथ कांप गए, देह थरथरा गई, लब तपते रेगिस्तान से सूख गए, धड़कने धौकनी की तरह पसलियों से सर पीटने लगी| दोनों ओर से मोबाईल थामे उस पल में उन दोनों की देह मूर्ति हो गई पर नूर का मन ये सोचकर भी अपने स्थान पर झूम उठा कि कोई उसकी आहट भी पहचान लेता है|
जय अवाक् बैठा उसे देख रहा तो मानसी ये देख खिलखिला पड़ी जिससे उस पल की उन दोनों की तन्द्रा भंग हुई तो इरशाद मोबाईल लिए सामने देखता है जहाँ किसी ख्वाब सी नूर अब दरवाजे की देहरी पर खड़ी उसी की ओर देख रही थी ये देख इरशाद एकदम से बेड पर खड़ा हो गया जिसपर नूर उसकी खोई खोई हालत पर मुस्करा उठी|
मानसी आगे बढ़कर जल्दी से नूर का हाथ खीँच कर इरशाद के ठीक सामने लाती हुई कहती है – “लो अब एक दूसरे से मिलकर सारे गीले शिकवे दूर कर लो |”
इरशाद औचक मानसी के बदले तेवर देखता रह गया जो अब जय का हाथ खीँच कर बाहर की ओर ले जाती हुई कह रही थी – “चलो – तुम्हें मुझसे कोई काम नही है |”
“नही |” जय मजे से पैर फैलता अभी भी बैठा उनकी खस्ता हालात पर नज़र जमाए था|
“पर मुझे काम है तुमसे – चलो |” आखिर उसका हाथ अपने कंधो पर धरती तिरछी मुस्कान से मुस्काती हुई जय के साथ बाहर निकल जाती है|
वे दोनों अभी भी अपनी अपनी जगह जमे एक दूसरे से अपनी अखिंयों से ही आलिंगन कर रहे थे|
क्रमशः………..