
हमनवां – 29
सुबह से ही चारों निकलने की तैयारी कर रहे थे जिसके कारण पूरा घर अस्त व्यस्त था| किसी को कुछ नही मिल रहा था तो किसी को कुछ| एक अज़ब ही हंगामा मचा था वहां| जय और मोहित किसी बात को लेकर आपस में उलझ रहे थे इससे बेखबर समर और इरशाद सामान रख रहे थे|
“अच्छा देखा नहीं कि बेचारी जाने को कितना एक्साइटेड थी और सबकी रज़ा थी इसमें|” कहते हुए समर और इरशाद को आवाज़ लगाता हुआ हाँ बोलने को कहता है, वे दोनों जो उनकी बातों से बेखबर अवाक् सर उठकर जय के कहेनुसार हाँ में सर हिला देदेते है और फिर से अपने काम में लग जाते है, जिसे देख जय तुरंत कहता है – “देखा – सभी चाहते है |” कहते हुए जय के चेहरे पर भरपूर मुस्कान तैर गई जिससे और चिढ़ता हुआ मोहित एक दम से बैग जमीन पर लगभग पटकता हुआ कहता है – “तुमने जो रायता फैलाया है उसे तुम ही समेटो – मुझे इसके लपेटे में लेने की जरुरत नही है|”
अब दोनों उधर ही चले आए थे बात समझने और अगले ही पल उन्हें बात समझते देर नही लगी कि शैफाली के साथ चलने की बात को लेकर दोनों आपस में उलझ पड़े थे| जय कह रहा था कि मोहित उसे लिवा कर लाए पर वह इसके लिए टस से मस होने हो तैयार नहीं था|
“तुम्हे ज्यादा समझ आता है तो तुम जाओ मैं नही जा रहा और जो तुम अपने मन में कोई खिचड़ी पका रहे हो न अच्छे से जान लो वहां घर पर भी तुम ही बताना कि क्यों और किसलिए आई है – मुझे इन सब लफड़ों से दूर ही रखना|”
सबको कुछ अलग लग रहा था क्योंकि कभी किसी ने मोहित को इतना उखड़ते हुए नहीं देखा था| अब जय के पास कोई चारा नही बचता वह धीरे से कहता हुआ उठता है – “चल यार जय पता नहीं हमे किसकी किसकी नैया पार लगानी है|”
तभी समर जल्दी से आगे आता हुआ कहता है – “छोड़ो न मोहित – आखिर बस शैफाली घूमने ही तो जा रही है – इससे क्या प्रॉब्लम होगी|”
“हाँ वही तो |” जय के झट से कहते मोहित उसे अपनी घूरती आँखों से देखने लगता है जिससे बचने जय अब इधर उधर देखने लगता है|
“कहीं तुम्हारे मन में कोई चोर तो नही|”
अबकि इरशाद की बात सुन सब धीरे से मुस्कराते हुए अपनी अपनी नज़रे मोहित पर जमा देते है जिससे झेंपता हुआ मोहित अपने चेहरे को थोड़ा और सख्त करता दूसरी ओर बढ़ता हुआ कहता है – “जो जी में आए करो|”
इससे बाकि तीनों एक दूसरे का चेहरा देख धीरे से मुस्करा देते है|
***
शैफाली की पैकिंग के लिए भावना को परेशान देख पवन उसके पास आता हुआ कहता है – “तुम तो ऐसे परेशान हो रही हो जैसे बहन की विदाई कर रही हो !!”
कपड़ों की तह लगाते लगाते वह आवाज की दिशा की ओर पलट कर देखती है – “एक वो दिन भी आएगा |”
भावना के होठों की गहरी मुस्कान देखते हुए पवन कहता है – “उफ़ इतना विश्वास !!”
“हाँ क्योंकि हर बार बातों में रहस्य नही होता – वे सीधी सपाट भी होती है|”
कहती हुई भावना पवन का गाल छूती हुई कमरे से बाहर निकल जाती है जिसपर पवन अपने गले में पड़ी टॉवल खींचता हुआ धीरे से बुदबुदाता हुआ बाथरूम की तरफ बढ़ता हुआ कहता है – “लेट्स सी |”
भावना ज्यों ही शैफाली के कमरे में प्रवेश करती है उस कमरे का हाल देख उसकी ऑंखें हैरानगी से फैली रह गई, उस कमरे को देखकर ऐसा लग रहा था मानों कोई तूफान वहां से गुज़रा हो, बेड पर कपड़ों के अम्बार पर अनमनी सी शैफाली बैठी थी|
“ये क्या है – तुम अभी तक तैयार नही हुई ?”
भावना की आवाज सुन तुरंत उसके पास आती हुई बिफ़र पड़ी|
“कैसे तैयार होऊं – कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या पहनूं !!” अतिरेक भाव में उसकी नीली ऑंखें कुछ पनीली हो उठी|
भावना उन आँखों में बहुत कुछ देख पा रही थी, उत्सुकता, आवेग, उलझन और नेह एक साथ उसके चेहरे पर अपना जमावड़ कर लिए थे जिसमें वक़्त से उसके लिए बहुतेरी उम्मीदों की चाह झलक रही थी, भावना को पता था कि वक़्त से उम्मीदों की गठरी से अभी सभी अनभिग्ज्ञ है पर उसे दिख रहा था सामने विशाल प्रेम का अतहा समंदर जिसके एक ही छोर पर शैफाली और मोहित अभी कुछ दूर दूर खड़े थे, जाने किस वक़्त की उमड़ती लहर उन्हें एक साथ लाएगी ये सोच वह मन ही मन हौले से मुस्करा उठी !!!
भावना अपने सामने खड़ी शैफाली को देखती हुई उसका चेहरा देखती है – “कुछ खास पहनना है तुम्हें तो चलो मेरे साथ |” कहती हुई शैफाली का हाथ पकड़कर कमरे से बाहर ले जाती है|
अब वह भावना के कमरे में खड़ी उसको अपनी अलमारी खोलते हुए देख रही थी| कुछ पल तक अपनी अलमारी को खंगालते दो तीन कपड़ो की तह अपनी दोनों हथेलियों के बीच दबा कर लाती वह उन्हें बिस्तर पर उझेलकर उसमें से एक नारंगी नीला मिश्रित शेड का एक बंधानी कुरता उसकी ओर बढ़ाती हुई कहती है|
“ये तुमपर खूब फबेगा वैसे तुमपर तो हर रंग खिलता है|” कहती हुई शैफाली के गुलाबी कपोल छूती हुई उसकी हैरान आँखों को देखती हुई अब आँखों से ही प्रश्न करती है|
“मुझे ये पहनना है|”
शैफाली भावना की देह पर लिपटी साड़ी को छूती हुई सपाट भाव से कहती है तो भावना हौले से हँस पड़ती हुई उसके हाथो के बीच में वो कुरता रखती हुई बोली –
“जरुर पहनाती पर रास्ते में अभी तुम इसे संभाल नही पाओगी पर वादा है किसी रोज मैं अपने हाथों से तुम्हें साड़ी पहनाऊगी – अभी ये पहनकर आओ |”
ये सुन शैफाली के चेहरे पर एक संतुष्टि भरी मुस्कान तैर गई, वह झट से कपड़े लेकर कुछ ही पल में सलवार कुरता पहनकर उसके सामने खड़ी हो गई तो भावना एकटक उसे निहारती रह गई, रोजाना विदेशी परिधानों को उसकी देह पर देखती देखती उसे लगा ही नही था कि नया परिधान उसकी देह इतनी सहजता से आत्मसात कर लेगी कि एक पल को कुछ असहज नही लगेगा| भावना उसके कंधो को पकड़े उसे ऊपर से नीचे निहारती उसे ड्रेसिंग टेबल के स्टूल पर बैठा देती है|
अगले ही पल कानों में बाली, गले में छोटे मोती की माला पहनाती हुई उसकी कलाई रंग बिरंगी कांच की चूड़ियों से भर देती है, ऐसा करते भावना के मन में वही आवेग और उत्साह उदोलित हो रहा था जब बचपन में वह अपनी नीली आँखों वाली बार्बी डॉल को भारतीय परिधान से सजाते हुए उसे महसूसती थी| शैफाली उस क्षण खुद को आईने में देख चौंक गई| वह बिलकुल बदल गई थी, नख से सिर तक वह कुछ और हो गई थी| भावना अगले ही पल उसके माथे पर एक चमकती बिंदी लगा कर उसका माथा चूमती हुई उसका चेहरा अपने दोनों हाथों में भरती हुई उसे अपलक कुछ पल तक निहारती रही|
तभी दरवाजे की कॉल बेल से उन दोनों की तन्द्रा भंग हुई, तो दोनों साथ में दरवाजे की ओर बढ़ी| दरवाजा भावना खोलती है और शैफाली झट से दरवाजे के बाहर देखती है पर वहां जय का चेहरा देख उसका चेहरा कुछ उदास हो जाता है|
अब तक पवन भी नहाकर आता हुआ देखता है कि बाकी के अपने कुछ कुरते शैफाली के बैग में रखती हुई भावना शैफाली को विदा करती है वहीँ सभी शैफाली के बदले रूप को ख़ामोशी से जितना देख रहे थे उससे कहीं अधिक समझ रहे थे|
***
जय जबतक शैफाली को लेकर वापस आता है जाने की सारी तैयारियां हो चुकी थी| मोहित समर एक कार में थे तो शैफाली को जय के साथ दूसरी कार में बैठना पड़ा| इरशाद के लिए दोनों कार की पिछली सीट पर लेटने का ऑप्शन खुला था लेकिन संकोचवश वह जय के साथ न जाकर मोहित की कार की पिछली सीट पर लेट गया|
जय मोहित की अनदेखी समझ रहा था पर शैफाली को मोहित के साथ बैठाने का मौका हाथ से निकल चुका था तो अगले मौके के इंतजार में उसने यात्रा शुरू कर दी|
वे दोनों कार अपने गंतव्य की ओर बढ़ चली तो पीछे से विदा देती मानसी और ऋतु के मन को उदास कर गई| बहुत देर की ख़ामोशी में जय ड्राइव करते करते मानसी की यादों से बातें करता अंतिम विदाई की नमी होठों पर महसूसता रिंग रोड से मोहित के पीछे पीछे चलता रहा|
उस पल एकाएक उसकी नज़र शैफाली के उदास चेहरे पर गई तो अपने सर से यादों को झटकता वह शैफाली को कहता हुआ कार की स्पीड एकाएक बढ़ा देता है|
“अब देखना हम आगे होंगे|”
और अगले ही पल कार हवा से बातें करती उसकी कार को सच में ओवरटेक करती अब उनसे आगे आगे चल रही थी, इस क्षण भर के बचपने से शैफाली के चेहरे पर हँसी आ गई| वह मुड़ मुड़कर मोहित की कार को पीछे होती देखती रही|
तक़रीबन दो घंटे कार चला लेने के बाद हाइवे आते अब दोनों कारे एक साथ थी, एक पल ऐसा भी आया जब आगे बैठी शैफाली और मोहित अगल बगल हो गए जिससे उस पल उनकी ऑंखें आपस में मिल गई| कुछ पल पानी पीने जय कार रोकता है तो मोहित भी कार रोकता उसके पास आता है|
“ये क्या बचपना है – कोई रेस हो रही है क्या !!”
मोहित का गुस्सा उनकी आँखों से लेकर पूरे चेहरे पर फ़ैल गया था, वह आँखे तरेरता अभी भी उसको देख रहा था इसपर अपनी स्वछन्द हँसी से हँसता जय उसके कानो के पास जाता हुआ धीरे से फुसफुसाता है – “चिंता है किसी की तो बैठा ले न अपने साथ|”
जय तेजी से हँस रहा था पर गुस्से से तपता मोहित बिन कुछ कहे कार की तरफ बढ़ जाता है|
कार फिर अपने रास्तों पर बढ़ चली थी|
“लम्बा रास्ता है – अब हम बस दिल्ली से निकलने वाले है – फिर पंजाब की सीमा में पहुँचते कुछ घंटो बाद अपनी मंजिल आ जाएगी|”
शैफाली कुछ नही कहती बस एक साइड मिरर से पीछे आती कार को देखने लगती है|
“पता है शैफाली वहां पहुँचते तुम्हें लगेगा ही नहीं कि तुम वहां पहली बार गई हो – कितना अपनापन है वहां – मुझे उम्मीद है ये तुम्हारे जीवन की सबसे अवेसम यात्रा होगी|”
“क्या सच में !!” अबकि शैफाली जय की बातों में दिलचस्पी लेती है|
“हाँ वहां मोहित के ताया जी मतलब उसके पापा के बड़े भाई, दार जी यानि मोहित के ग्रैंड फादर और ताया जी की फैमिली जिसमें भईया, भाभी, दो बच्चे और हम जिसकी शादी में जा रहे है वो यानि ताया जी की छोटी बेटी और हम सबकी लाड़ली बहन – देखना जैसे ही हम पहुंचेंगे शिकायतों के ढेर लगा देगी|”
कहते कहते जय सच में उसका रूठा चेहरा याद कर खुल कर हँस पड़ा जिससे शैफाली भी धीरे से मुस्करा दी|
***
मानसी ऑफिस से अपना सारा काम निपटाकर बस निकलने ही वाली थी कि एक कॉल ने उसके कदम रोक लिए, वह मोबाईल कान से सटाए हेलो ही बोल पाई थी कि दूसरी ओर से आती कांपती आवाज़ धाराप्रवाह जो कह रही थी उसे सुनते उसकी ऑंखें हैरानगी से दोहरी होती गई|
दूसरी ओर शैली की डरी सहमी आवाज़ थी जो कह रही थी –
“मैं जो कह रही बस उसे ध्यान से सुनो मैंने जो रिपोर्ट तैयार की है उसे अब तुम्हें प्रकाशित कराना है क्योंकि कुछ दिन के लिए मैं खुद को अंडरग्राउंड कर रही हूँ बस तुम ये याद रखना अश्विन कुमार का काला अतीत अब सबके सामने आना चाहिए ये अब तुम्हारी जिम्मेदारी है|” और बाय कहते फोन झट से कट जाता है पर मानसी उस क्षण वही ठगी सी रह जाती है|
क्रमशः…………