Kahanikacarvan

हमनवां – 30

ड्राइव करते करते जय ढ़ेरों खुद से बातें करते उसे बताता रहा तो कुछ शैफाली के सवालो का जवाब देता रहा, शैफाली को ये समुचित मौका लगा जब वह मोहित और उसके आस पास के लोगो को जान सकती थी|

ऐसे ही बातों के छोर को पकड़ते पकड़ते जय मोहित का अतीत उसके सामने रखकर मोहित के जीवन की गिरह उसके सामने खोल देता है ताकि उनके बीच कुछ भी अनकहा न रह जाए| संध्या के बारे में जानकार शैफाली को हैरत हुई कि किसी से न मिलकर भी कोई किसी से इतना जुड़ाव कैसे महसूस कर सकता है?? प्रेम जिसने बिना किसी लेन देन के अपनी पराकाष्टा को छू लिया था, ये सुन उसे नई सी अनुभूति हुई जिससे उसका मन मोहित को जानने की ओर और झुकने लगा|

शैफाली अभी भी पूरी रोचकता से जय को सुन रही थी जो अब बता रहा था कि उन सबने कैसे एक दूसरे के साथ रहना शुरू किया| कैसे उनकी जिन्दगियां आपस में टकरा गई जिससे आज वे एक दूसरे के सदा के हमनवां बन गए|

“सबसे पहले पता है वहां समर रहने आया और उस जगह ने उसे हर तरह से अपने पाश में जकड़ लिया ऐसा कि ऋतु के आँखों के बंधन में अभी तक जकड़ा है – एक कमरे में रेंट में रहता था पर जब मोहित से मिला तो दोनों ने मिलकर वो मकान खरीद लिया – फिर जब इरशाद और मैं आया तो हमने उस मकान को अपनी सारी जमापूंजी लगाकर अपने मुताबिक घर बना लिया|”

मकान और घर का अलग अलग फलसफा शैफाली समझ नहीं पाई थी वह बस ख़ामोशी से सुने जा रही थी|

“हम चारों अपनी अपनी पिछली जिंदगी को छोड़कर आए थे और आगे बढ़ना चाहते थे तो मिलकर हमी चारों ने एक परिवार बना लिया ताकि अपने अपने सपने पूरे करने में हम एक दूसरे के लिए हौसला बन सके – तुमने भी कुछ सोचा होगा न शैफाली – कोई तो सपना होगा तुम्हारा !” अपनी बात कहते कहते अचानक जय शैफाली से सवाल कर बैठा|

शैफाली अपने अन्दर ही डूब गई, डूबती शैफाली के मन में एकांत खुद से ही कह उठा कि उसने तो कभी कोई सपना देखा ही नहीं, उसे तो पता ही नहीं कि आगे क्या होगा या करना है उसे वह तो यहाँ भी बस उन रुपयों के लिए लाई जो उसकी जिंदगी में संसाधनों के लिए सहायक होते, उसकी सूनी आँखों का तो कोई भविष्य नही वह तो हमेशा वर्तमान में जीती रही| अन्दर ही अंदर जैसे सारे शब्द गडमड हो गए, वह मन के भीतर से बाहर झांकती हुई सुनती है कि उससे प्रश्न करने पर भी उसके उत्तर का इंतजार किए बिना जय अभी भी कहे जा रहा था|

“ऊपर हमने चार अपने लिए कमरे बनवा लिए और नीचे के हिस्से में पहले से जो दुकाने थी जिन्हें हमने ऐसे ही रहने दिया – नही तुड़वाया – |”

“अच्छा |” शैफाली को लगा इससे बातों का तारतम्य बना रहेगा उसके बाद फिर खामोश होकर सुनने लगी|

“मानसी और इरशाद मिलकर अपना प्रेस खोलना चाहते है – दोनों उसके लिए अभी से बहुत तैयारी कर रहे है – मैं भी चाहता हूँ कि वे दोनों अपना अपना सपना पूरा करे – |” कहते कहते जय स्टेरिंग घुमाता बीच बीच में साइड व्यू मिरर से मोहित की कार का अंदाजा ले लेता, ऐसा करते कभी कभी मोहित की कार उनसे आगे हो जाती कभी पीछे रह जाती इसी चूहे बिल्ली के खेल में मोहित की नज़र जय के फ्रंट में सरसरी सी घूम जाती|

शैफाली जय की बात बड़ी तन्मयता से सुन रही थी|

“पता है शैफाली सपने बड़ी अच्छी चीज होते है – जब सोते में देखते है तो अचेतन मन के सारे गिरह खोल देते है और जब खुली आँखों से देखते है तो आगे की जिंदगी को मकसद दे देते है – मेरा सपना तो अब अपनी मानसी का सपना पूरा करना है पर तुमने बताया नही तुम्हारा क्या सपना है शैफाली ?”

अभी कुछ पल तक की ख़ामोशी शैफाली के दिमाग में तेजी से मंथन मचाने लगी उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहे वह बस धीरे से कह उठी – “मेरी जिंदगी बस आज है – कल क्या होगा किसे पता !!”

शैफाली बताती है कि उसने स्कूल की पढाई के बाद कोई पढाई नही की क्योंकि उसकी आँखों का कोई सपना नही था उसे कुछ बनना नही था पर घर नही लौटना था तो बस किसी भी कॉलेज में उसने एडमिशन ले लिया ताकि लौट न सकूं वापस| सपाट स्वर में बोल वह चुप हो गई|

अब धीरे धीरे पंजाब की सरहद में प्रवेश करते वहां का मौसम और मिजाज़ दोनों बदलता हुआ दिखाई पड़ने लगा था| अब लम्बी यात्रा की थकान की वजह से शैफाली को नींद आने लगी वह सीट पर अपना सर सटा कर लेट गई|

तभी कार चिर्र की आवाज के साथ एक झटके के साथ रुक गई, सीट बेल्ट पहनी देह जल्दी से संभल गई| शैफाली देखती है कि जय जिसका ध्यान सामने रोड पर ही था वह मोहित की कार को रुकता देख अपनी कार भी साइड में लगाता हुआ उतर कर उनके पास जा रहा है| जबतक जय उनतक पहुँचता है वह तीनों उतरकर कार के पिछले हिस्से की ओर झुके मिलते है| पिछला टायर पंचर हो गया था जिसपर तेजी से हँसता हुआ जय कहता है – “सालों तुम तीनों को कब तक सहती गाड़ी |”

ये सुनते तीनों का मुंह बन गया और मोहित तुनकते हुए बोला – “हाँ तेरे संग तो फूलकुमारी बैठी है !!”

“अच्छा ठीक है तो तू ही बैठ जा उसमें – बेचैन क्यों हो रहा है|” कहते हुए जय ज्योंही हँसा मोहित अपनी घूरती हुई आँखों से टायर की ओर झुक गया तो बाकि के दोनों एक दूसरे को देखते शैफाली की ओर देखने लगे| शैफाली भी अब कार से बाहर आ रही थी ये देख समर इरशाद की ओर देखता हुआ बोला – “यहाँ हाइवे में कहाँ खड़ी रहेगी शैफाली – आगे जो ढाबा हो तुम तबतक वही ले जाओ हम सब भी टायर चेंज करके आजाएँगे वही|”

समर की बात सुन इरशाद अब शैफाली की ओर चल दिया तो जय धीरे से समर के कान के पास फुसफुसाया – ‘गलत आदमी भेज दिया तुमने |’

मोहित के सजक कान उसे भी सुन लेते है तो वह अपनी घूरती आँखों से उन्हें देखता हुआ कहता है – “अब तीन पांच ही करते रहना है या कुछ हेल्प भी करानी है|” मोहित की बात सुन दोनों एक दूसरे का चेहरा देख फंसी फंसी हँसी हँसते हुए कार की डिक्की की ओर बढ़ जाते है|

***

इरशाद शैफाली को कार से लेकर थोड़ा आगे के ढाबे जा पहुंचा| वहां पहुंचकर दोनों कोल्ड ड्रिंक पीते पीते बात करते रहे| शैफाली जहाँ नूर और नाज़ का किस्सा सुन हैरान हुई तो बाद में पूरी बात जान हँसते हँसते अपना पेट पकड़ लिया| इरशाद भी झेंपता हुआ सा अपने सर पर हाथ रख सर नीचा कर हँस दिया|

इरशाद उसे बताता रहा कि नूर कविता लिखती है तो कोई आसान जो शैफाली द्वारा समझी जा सके ऐसी कविता उसे मोबाईल से पढ़कर सुना रहा था| इरशाद को पता नही कि शैफाली को वो कविता कितनी समझ आई पर शैफाली को इरशाद का कहने का अंदाज ऐसा भा रहा था कि प्रेम में डूबी कविता उसके लिए बिना शब्दों के संगीत सी उसके मन में हिलौरे उठा रही थी वह भी पूरी तन्मयता से उसकी कविता सुनती रही और बीच बीच में इरशाद को नूर की तस्वीर वाला वाल पेपर देखते हुए पकड़ लेती तो धीरे से मुस्करा देती जिससे इरशाद फिर झेंप जाता|

टायर लगाकर तीनों अब वही ढाबे की ओर आ रहे थे| सीधा उसी ओर आता मोहित शैफाली को दूर से ही देखकर उससे कुछ दूर बिछी खाट पर आते लेट जाता है| बाकी अपना अपना हाथ धोने चल देते है| दोपहर का वक़्त हो रहा था तो ढाबे पर धीरे धीरे हलचल बनी हुई थी, खाने की खुशबू चारों ओर फैली जैसे आते जाते हर मुसाफिर का सर एक बार उस ओर जरुर घुमा देती| ढाबे का एक लड़का मोहित के पास खाने के बारे में पूछने आता है| आवाज सुन उसकी ओर मुड़ता हुआ मोहित कहता है – “पांच प्लेट खाना – एकदम तीखा और फटाफट|” उसकी आवाज सुन तबतक बाकी के भी वही आ जाते है तो जय उस लड़के को रोकता हुआ कहता है – “अरे सुन – उनमें से एक थाली में बिलकुल तीखा न हो |” वो ये सुन सर हिलाता चल देता है तो जय मोहित की ओर आता हुआ कहता है – “अरे शैफाली कैसे खाएगी इतना तीखा – वो भी इन ढाबों में जहाँ बिना मिर्ची का बोलकर भी इतना तीखा कर देते है कि आदमी बिना पानी के गटक नही सकते फिर !!!”

“तभी तो थोड़ा प्रैक्टिस हो जाएगी न |” अबकि बड़े सुकून से कहता मोहित करवट बदलता उस ओर देखने लगा जहाँ से इरशाद के शैफाली भी अब वहां आ रहे थे|

“पागल है क्या – जबरजस्ती उसके पीछे पड़ा है|”

अबकि तन कर बैठता हुआ मोहित कहता है – “मैं नही बल्कि वह मेरे पीछे आई है|”

“अच्छा ऐसे कैसे कह सकते हो – हमारे साथ आई है – कही तेरे मन में कोई चोर तो नही !!” धीरे से मुस्कराते हुए जय वही उसी की खाट के दूसरे हिस्से पर बैठता है तो मोहित तुनककर खड़ा हो जाता है|

“तुम पुलिसवालों के दिमाग में चोर पुलिस ही घूमता है वो तो मैं इसलिए कह रहा था वहां जाएगी तो वहां कुछ तो खा पाएगी |” कहता हुआ मोहित हैण्डपम्प की ओर चल देता है|

मोहित को जाता देख जय अपने सीने में हाथ बांधे समर की ओर देखता हुआ पूछता है – “डॉक्टर साहब आपको क्या लगता है – इनकी क्या समस्या है ?”

समर जय की ओर देखता हुआ अपना सर हिलाता हुआ थोड़े मोटे स्वर में कहता है – “बेहद गंभीर |” कहते हुए दोनों आवाज करते हुए तेजी से हँस पड़े|

“ऐसा क्या जोक सुना दिया भाई ?” इरशाद वहां आते हुए कहता है उसके पीछे पीछे शैफाली भी वहां आ गई थी|

चारों वही साथ में बैठ जाते है|

“ऐ लो बाशाओ गरमा गर्म रोटी |” कहते हुए ढाबे का मालिक अपने लड़के के साथ पांच प्लेट पकड़े खाट के बगल में रखे हुए तख़्त पर सब रखते हुए अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए बोला – “आज का मजेदार खाना खाकर तुवाडा रास्ता भी आगे मजेदार रहेगा |” कहता हुआ अपनी घनी मूंछों के पीछे अपने दांत दिखाता वहां से चला जाता है|

मोहित वहां आता है तो सभी सरदार की बात पर अभी भी हँस रहे थे जिससे मोहित का मुंह बन गया उसे लगा कि उसी को लेकर वे सब हँस रहे है, वह आकर चुपचाप अपनी प्लेट उठाकर उनकी तरफ बिना देखे खाने लगता है|

सभी अपनी अपनी प्लेट उठा लेते है, जय शैफाली की प्लेट पकड़ कर खाट पर बैठने में मदद करता अपनी प्लेट की ओर झुक जाता है| शैफाली पहला कौर ही खाती है तो फट से तख़्त पर रखे पानी के गिलास की ओर अपना हाथ बढ़ा देती है तो एक आवाज की ओर सबका ध्यान जाता है| मोहित ढाबे वाले को आवाज लगा रहा था|

“ए कि बाशाओ – थोड़ा और मिर्च विरच डालो बिलकुल तीखा ही नही खाना|” कहता हुआ अबकि शैफाली की ओर देखता हुआ बाकियों की ओर देखता हुआ कहता है – “खाने में एक मिर्च ही तो है जिससे खाने का स्वाद बढ़ता है वरना तो घास फूस खा ले कोई |”

तब तक ढाबे का लड़का और हरी मिर्च लाकर उनके बीच में रख देता है|

मोहित की बात सुन समर जल्दी से कहता है – “यार ज्यादा तीखा खाना अच्छी बात नहीं – तुम तो अपने बनाए खाने में भी बहुत तीखा डालते हो |”

“किसी को अपनी जान देनी हो तो मोहित का बनाया खाना ही दिन में तीन बार खा ले जान अपने आप निकल जाएगी |”

जय की बात सुन सभी के चेहरे पर हँसी खिलखिला गई पर शैफाली के चेहरे के अलग ही भाव बने थे वह जाने किस ताव में प्लेट से हरी मिर्च उठाकर उसे झट से मुंह से काट लेती है, ऐसा करते ही जबरजस्त तीखेपन से वह लगभग उछल ही पड़ती है, उसकी आवाज सुन जय सामने रखा पानी का गिलास उसकी ओर जल्दी से बढ़ाता है पर उसका सीसी कर आवाज निकालना बंद ही नही होता तब मोहित आवाज लगाते हुए  धीरे से मुस्कराता हुआ कहता है – “लाओ जी कटोरा भर के चीनी|”

मोहित धीरे धीरे हँस रहा था तो शैफाली अपनी घूरती आँखों से अब उसे देख रही थी|

बहुत देर के भूखे पेट अब खाने की ओर झुक गए| उसी बीच इरशाद का फोन बार बार बजता कभी मेसेज टोन तो कभी रिंग जिससे मोहित खीजता हुआ उसका फोन उठाने लगा तो इरशाद झट से अपना फोन उसके हाथ से लेलेता है फिर अपनी शर्माती आँखों से देखता हुआ जल्दी खाना खत्म करके उठ जाता है तो मोहित धीरे से कहता है – “एक यही था अपने साथ का अब तो ये भी किसी काम का न रहा |”

सभी खाना खाकर उठने लगते है, शैफाली भी लगभग किसी तरह खाना खा कर हाथ धोने चल देती है| अंत में मोहित उठता है और हाथ धोने जाने तक देखता है कि इरशाद अभी भी फोन में लगा था वह समझ गया कि जरुर नूर से बात कर रहा होगा| फिर हैण्डपम्प से हाथ धोकर इधर उधर नज़र घुमाकर मोहित देखता है कि जय भी किसी पेड़ के तने से पीठ सटाए किसी से मोबाईल से बातों में मग्न था उसका हाव भाव देख वह तुरंत समझ गया कि यहाँ भी मुहब्बत की पारी खेली जा रही है तो अब उसकी नज़र समर को ढूंढने लगी कि उसी के पास चलकर कुछ देर बैठा जाए| फिर कुछ दूर समर की पीठ दिखती है वह उसी की ओर चल देता है पर ज्योंही वह उसे बुलाने उसके कंधे पर हाथ रखता उसका ध्यान समर के चेहरे के सामने उसके खुले मोबाईल की स्क्रीन की तरफ जाता है तो वह पाता है कि वह स्क्रीन पर डांस वाली मुद्रा में ऋतु की तस्वीर को बस अपलक निहारे जा रहा था तो खीजते हुए बडबडाता हुआ ढाबे के दूसरे किनारे की ओर बढ़ जाता है – ‘आदमी थे ये कभी किसी काम के|’

वहां दूसरे हिस्से में नाद बनी थी जिसपर लगातार नल का पानी गिर रहा था ये देख नल बंद करने के उद्देश से मोहित उस ओर बढ़ गया पर नाद के उपरी हिस्से पर बने छेड़ से अतिरिक्त पानी मेड़ो से होता खेतों की ओर चला जा रहा था ये देख वह वापस मुड़ने ही वाला था पर उसकी घूमती नज़र चूड़ियों की आवाज से उसके वही बगल के पेड़ की छाँव में खड़ी शैफाली पर जाती है जो पूरी दृष्टि से अब उसकी ओर देख रही थी, यही वो पल था जब मोहित ने भी शैफाली को भरपूर नज़र से देखा था| सलवार सूट में उसकी देह आज बहुत सुन्दर प्रतीत हो रही थी, उसके माथे की बिंदी अभी भी चमक रही थी, उनकी ऑंखें आपस में मिली तो शैफाली कुछ कहने को हुई तो मोहित जान कर इधर उधर देखने लगा तो शैफाली की भौं तन गई और वह उस मेंढ के किनारे बैठे ढाबे के लड़के की ओर बढ़ गई जो तल्लीनता से बर्तन धो रहा था| मोहित अपनी छुपी नज़रो से सारी गतिविधि देख रहा था कि शैफाली उस लड़के को पुकारती है तो वह लड़का तुरंत ही अपना काम छोड़ छाड़ हाथ अपने पैजामे के पिछले हिस्से से पोछता हुआ उससे पूछ रहा था – “हांजी दसो कि काम है ?”

“बोर हो रही हूँ तो बात करोगे मुझसे !” शैफाली उसके शब्दों के बजाय उसके हाव भाव से प्रश्न समझ गई|

पर शैफाली की बात सुन सब काम करने को उत्सुक उसका मन बस उसे ऑंखें फाड़े देखता रह गया, जिसपर शैफाली खिलखिला कर हँस दी तो मोहित भी बिना हँसे न रह सका, वह भी बहुत नियंत्रित हँसी से धीरे से हँस पड़ा| उसकी हालात देख वह देर तक हंसती रही तभी कार के हॉर्न की आवाज से दोनों का ध्यान सड़क के किनारे पार्क की गई कार तक जाता है|

ड्राइविंग सीट पर बैठा इरशाद उनको इशारा करके बुला रहा था| दोनों उस ओर साथ में बढ़ जाते है| मोहित देखता है कि तीनों अभी एक ही कार में बैठ गए थे तो दूसरी कार की तरफ मोहित बढ़ जाता है, पीछे आ रही शैफाली अब सोचने लगती है कि उसे किसमे बैठना है तो कार पर बैठ कार स्टार्ट कर मोहित आगे नही बढ़ता उसे लगा शैफाली उसी में बैठेगी| शैफाली उस ओर बढ़ने लगती है तो इरशाद के बगल में बैठा जय जोर से उसे आवाज लगाता हुआ कहता है – “शैफाली – हमारे साथ आ जाओ – |”

शैफाली भी एक क्षण मोहित की ओर देख धीरे से हंसती हुई जय के दरवाजा खोलते उसके पीछे की सीट पर बैठ जाती है| ये देख मोहित तेजी से आगे कार बढ़ा देता है जिससे वे सब साथ में हँस पड़ते है|

क्रमशः……………….

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