Kahanikacarvan

हमनवां – 32

सम्बन्धों के नाम होते है पर प्यार के रिश्ते सिर्फ प्यार से बंधे होते है उनका जुड़ाव एक अदद एक दूसरे को सिर्फ प्यार से जोड़े रखता है, ऐसा ही कुछ रिश्ता था उन तीनों का मोहित के परिवार से कि जब भी वे यहाँ आते तो मिलकर एक बड़ा परिवार बन जाते| सबकी आंखे जैसे उन्हीं की राह तक रही होती, वे भी एक एक करके सबसे मिल रहे थे, घर रिश्तेदारों से भर गया था| मोहित के बड़े भाई ने जब ये कहा कि अभी सिर्फ मंगनी की रस्म हुई है बाकि रस्में कल से शुरू होगी आखिर बिना भाईयों के कैसे बहन का ब्याह होगा तो सब भाई गले मिल गए|

गुड्डी अपने भाइयों के बीच खिलखिला रही थी, कोई चिढ़ा रहा था तो कोई बचा रहा था|

“अब न पूछेगी कि की लाए हो मेरे नाल वीर जी ?”

“हम तो जालंधर वालों के लिए सब लाए है|”

“जाओ मैं तुहाडे नाल बात नई करनी|”

गुड्डी झट से नाराजगी का अभिनय करती जाने लगी तो सब भाई उसे मनाते हुए रोकने लगे|

“अरे तेरे वास्ते भाइयों की जान भी हाजिर है अब बस बता देना सब तेरी पसंद की चीजें ला देंगें|”

यही समय था जब आंगन का हुल्लड़ सुन शैफाली उचककर अपने बिस्तर के पास की खिड़की के पार झांकती है| वहां का आनंद उसके मन को भी रोमांचित कर देता है| कुछ पल तो मुस्कराते वह हथेली से चेहरा टिकाए वही देखती रही पर कब सफ़र की थकान से बोझिल ऑंखें अपने आप तकिया पर डेह गई पता भी न चला|

“अरे पुत्तर रोटी तो खा ले आकर किनि दूर से सफ़र करके आए हन|” ताया जी वही आते दिखे तो गुड्डी “चलो न वीर जी|” कहती रसोई की ओर चल दी|

“पुत्तर जी तुम लोगों को देख कर ही मेरे कालजे में ठांड पड़ गई बस उम्मीद करवईया सभ वाडिया हो जाए|”

“ताया जी आप फ़िक्र छोड़छाड़ आराम से बैठ कर बस हमे निर्देश देते जाइएगा – फिर सारा गाँव देखेगा कि इतनी बढ़िया शादी न हुई होगी कहीं दूर दूर तक|” तीनों के मन की बात मुखर होकर जय के मुंह से निकली तो बाकि तीनों सहमति में मुस्करा उठे|

अबकि ताई जी की आवाज ने उन्हें फिर पुकारा तो उनके पेट के चूहे और तेजी से फुदक उठे|

“अब तो भूख सही नही जा रही |”

इरशाद, समर और जय रसोई की ओर बढ़े तो मोहित कह उठा –

“तुम लोग चलो मैं बठिंडा वाले मामा जी से मिल कर आता हूँ |”

“हाँ चालो मोहिते वे बीमार है कल्ल शायद चले जाए|”

मोहित बड़े भाई के साथ बाहर की ओर चल दिया|

रसोई पूरे लजीज खाने की खुशबू से तर थी तो तीनों झट से हाथ धोकर वही फर्श पर आलथी पालथी मारे बैठ गए और एक एक प्लेट अपनी तरफ सरका ली| घर के स्नेहमय भोजन में स्वाद से कहीं ज्यादा प्यार का लावण्य घुला था| चूल्हे की सोंधी सोंधी महक से लिपटा स्नेह भोजन के रूप में उनके सामने था| तीनो की प्लेट से जरा भी कम होता वे थाली भर देती, साथ साथ हाल चल भी लेती जा रही थी| गुड्डी फिर मोहित को बुलाने भागी चली गई|

“कुड़ी तो बहुत ही चंगी है अबी तो खाना खिला कर आराम से सुला दिया है पूछ लेना कोई और जरुरत हो तो मेनू दास्या|”

परजाई ठिठोली के मूड में उनकी तरफ देखती हुई बोली तो जय झट से बोल पड़ा|

“अब मुझे तो नही पता वो तो मोहित की मेहमान है उसी से पूछिएगा |”

“ओह !!” परजाई जी थमकर रोचकता से सुनने लगी, जय कह रहा था –

“हाँ परजाई जी – वो तो बाकायदा तीखा खाना खिला खिला कर प्रैक्टिस करा कर लाया यहाँ|” फिर कहते कहते बाकियों की ओर देखता हुआ बोला – “क्यों भाई लोग सही कह रहा हूँ न – वैसे मुझे कुछ नहीं पता|” जय के कहने के अंदाज पर बाकि दोनों मन ही मन हँसते किसी तरह से अपनी हँसी पर काबू किए थे| अब तो ताई जी भी खाना परोसते परोसते सुन रही थी|

“मोहित को शैफाली के बारे में ज्यादा पता होगा आखिर दिल्ली भी उसी ने घुमाया – वैसे मुझे तो उनके बारे में कुछ नही पता |”

कुछ नही पता कह कह कर जय नमक मिर्च लगाकर खूब कहता रहा तो समर बीच में गला साफ़ करता हुआ उसकी तरह तिरछी निगाह से देखता हुआ कहता है –

“कुछ ज्यादा ही हो गया|”

“ऐसे कैसे पुत्तर अभी साग तो लिया ही नहीं|”

ताई जी सच में उसकी ओर परोसने बढ़ गई तो इरशाद जय की तरफ धीरे से झुकता हुआ कहता है – “

“अपनी पीठ मजबूत कर ले बेटा तूने ठुकाई का इंतजाम कर लिया है|” सुनकर जय के होठों के किनारे फ़ैल जाते है|

***

“चालो वीर जी रोटी खा लो|”

“अच्छा ठीक तू चल असी आंदे हन|”

जल्दी आने को कहती गुड्डी घर को वापस चल दी|

मिलने के बाद मोहित जोगिन्दर भाई के साथ घर वापस आते आते वे बात कर रहे थे – “चल मोहिते – बहुत देर हो गई – कल्ल तड़के से बहुत तैयारी करनी है – कनातें बी लगवानी है|”

“भाई जी तुसी फ़िक्र न करो – हम सब मिलकर कल से सारी तैयारी कर लेंगे |”

“वो तो है|” कहते हुए हँसते हँसते मोहित के कंधे पर हाथ रखते हुए आगे बढ़ते रहते है|

“ये कि है भाई जी |” चलते चलते मोहित का ध्यान घर से सटे एक नये मकान पर जाता है फिर थोड़ा गौर से देखता है तो उसके चेहरे पर दर्द मिश्रित मुस्कान आ जाती है – “निकुंज भवन !!!” शब्द होंठों तक आते आँखों को कुछ गीला कर गए, मोहित भाई की तरफ देखता है|

वे मुस्कराते हुए कह रहे थे – “तुसी इंकार कारन लाई भी जो रूपए भेजते थे उसी से यहाँ घार बनवाया है अभी तो मेहमान ठहरे है यहाँ फिर विआह के बाद इसके एक बड़े हिस्से में प्राथमिक स्कूल और दूसरे हिस्से में दवाखाना खुलेगा – इस वाडिया काम से चाची जी का नाम सदा याद में रहेगा – है न !”

मोहित के रुंधे गले से फिर कोई शब्द न निकल पाया, बस धुंधली यादों में माँ की तस्वीर उभर आई|

“लेकिन भाई जी वो तो मैंने घर की मदद के लिए भेजे थे|”

“ओए तू इसकी चिंता न कर – यहाँ सब चंगा है जी दूसरा ट्रेक्टर भी खरीद लिया है और इस बार तो पिछली बार से ज्यादा अच्छी फसल हुई है – कल्ल चालना तड़के खेत पर चलेंगे साथ – तब वेखिया |”

दोनों भाई बात करते करते अब घर तक आ गए थे|

“मोहिते पुत्तर हुना तक कित्थे सी?” रसोई में दोनों को आता देख ताई मुस्कराती हुई बोली – “दोनों भाइयों का अज्ज की बातों नु पेट भरना है कि!!”

मोहित के आते जय छुपी नज़र से उसे देखता हुआ तुरंत उठ जाता है तो जोगिन्दर भाई झट से बोल उठे – “चलो तुम लोग बहुत थके होगे मैं त्वाडे नाल सोने का प्रबंध करता हूँ|”

“भाई जी उसकी आप चिंता न करो हम अपना ठिकाना बना लेंगे |”

फिर मोहित को देखते तीनों अपनी हँसी रोकते रोकते बाहर निकल आते है इससे मोहित का ध्यान उन पर जाता है तो उसे कुछ शंका तो होती है पर जल्दी ही उनसे ध्यान हटा कर वह खाने के लिए बैठ जाता है|

“अभी कार सही से पार्क करने और गाड़ी से सामान निकालने चलो|” इरशाद की बात सुन समर टोकता है तो बाकि दोनों सर पर हाथ मारते हँस पड़ते है|

अब भूख वाकई उनके बर्दाश्त के बाहर थी| वे जब दो थाली लगाने लगी तो मोहित कह उठा –

“भाई जी आपने भी नहीं खाया !!”

“त्वाडे नाल जो खानी थी रोटी |”

दोनों भाइयों को साथ में हँसता देख परजाई अपने सर की ओढ़नी ठीक करती थाली में परोसती हुई बोली – “लाला जी को किसी और के साथ खाने का इंतजार होगा पर वो खा कर सो गई पर तुसी फ़िक्र न करो असी उसका वाडिया ध्यान रखेंगे – |”

परजाई की बात सुन मोहित के गले में ही कौर अटककर रह गया, वह परजाई की ओर देखता है जो मंद मंद मुस्करा रही थी|

“क्या परजाई जी मैय्नु कुछ पूछया शैफाली के बारे में ?”

“एलो मैय्नु तो नाम बी न लिया |” वे इस तरह से बोली कि रसोई में मौजूद सबके एक साथ ठहाके गूंज उठे जिससे मोहित सर नीचा कर अगला कौर तोड़ने लगता है|

खाना खा कर रसोई से निकलते वह उन तीनों की खबर लेने इधर उधर देखने लगता है पर तीनों गधे के सींग की तरह गायब हो गए थे| मोहित छत की ओर जाने लगा तो भाई ने पुकारा – “कित्थे मोहिते – किसे ढूंढ रहा है – कुड़ी नू ?”

“कि भाई जी तुसी भी – मैं तो इन तीनों को देख रहा हूँ पता नही कहाँ छुपे बैठे है |”

“उनू छाड़ मेरे नाल डेरे चल तड़के वही से खेत पर चालेंगे|”

मोहित को पता था कि ये घर उनके लिए अजनबी नही है वे अपना ठिकाना आराम से ढूंढ लेंगे पर उनकी शैफाली और उसको लेकर पकाई खिचड़ी से बस उनको पकड़कर पीटने का मन हो रहा था उसका पर अपने गुस्से को अभी जब्त करता भाई संग चल देता है|                                                                                                                                                   

***

दिल्ली की बारिश के इंतजार में अलसाई सुबह जितनी सुस्त होनी थी उससे कहीं अधिक तेज सरगोशी भरी सुबह थी जिसमे तेज तल्खी, डर और गहरी सुगबुगाहट थी| अश्विन कुमार का चेहरा गुस्से से कस कर तमतमाया हुआ था| उसके सामने गौतम स्तब्ध मुद्रा में खड़ा अपने सामने फर्श की ओर देख रहा था जहाँ चार टुकड़ों में फाड़कर अभी अभी अखबार फेका गया था|

“मुझे समझ नही आता तुम सो रहे थे जो इतनी बड़ी बात हो गई और तुम्हारे तक कोई खबर भी नहीं पहुंची|” वह गुस्से में पीठ पर हाथ बांधें टहलता हुआ कहता रहा – “एक दिन अचानक आग नहीं लगती ये कही तो सुलग रहा था बस पता करो कि किसने सोते शेर को जगाया है – मैं अब उसका जीना हराम कर दूंगा – गौतम |” वह एक दम से उसके सामने पलटता हुआ चीखा – “अभी तुरंत अंश को हॉस्टल भेजो फिर उसका पता लगाओ जिसने मुझे मेरे अतीत से बाहर खींचा है वो चाहे पाताल में भी छुपा हो उसे ढूंढ कर लाओ|” अपने आखिरी शब्द पर वह ऐसे चीखा कि एक पल को दीवारें भी थरथरा उठी|

तभी साइलेंट में रखा बहुत देर से बजता फोन हाथ में लिए उसकी झनझनाहट महसूस करता गौतम अश्विन के चुप होते धीरे से कहता है – “बहुत देर से प्रदेश अध्यक्ष जी का फोन आ रहा है – क्या कहना है सर ??”

अश्विन उसकी ओर खा जाने वाली निगाह से देखता हुआ झटके से उसके हाथ से फोन ले लेता है| उसे पता था कि इस पल का सामना तो उसे करना ही पड़ेगा जब वह पार्टी से आगामी चुनाव के लिए टिकट की अपेक्षा रख रहा था तब किसी ने तो उसका अतीत अख़बार की सुर्खी बना कर उसे अचानक से समाज सेवी से छुपा अपराधी साबित कर दिया था, जबकि वह खुद अपने अतीत को बहुत पीछे छोड़ नए सिरे से अपनी जिंदगी जी रहा था इसलिए इस बार अंश का यही के स्कूल में एडमिशन भी करा दिया था पर फिर वही दहशत अपने दिल में वह महसूस कर रहा था पर उसकी आंच अंश के जीवन को न छुए इसलिए उसे सुरक्षित रखना पहले जरुरी था|

उधर से पार्टी अध्यक्ष उसे अपनी बातों से साफ़ साफ़ पार्टी की मंशा बता देते है कि अभी तक तो सिर्फ एक खबर छपी है अगर इसकी श्रृंखला निकल आई तो इस पार्टी से जोड़े रखना उनके लिए मुश्किल हो जाएगा, अंत में वे उसे यही दिलासा देते हुए फोन रख देते है कि जनता की याददाश्त छोटी होती है इसे आगे न बढ़ने दिया जाए इसी में तुम्हारी भलाई है|

फोन कट जाता है और हताश अश्विन कुमार दोनों हाथों से अपना सर पकड़े वही बैठ जाता है| गौतम चुपचाप अख़बार समेटता हुआ उस कमरे से बाहर निकल जाता है|

क्रमशः……….

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!